शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

पान मसाले-गुटखे की लत ऐसे भी लगती है!

बचपन में हमारे पड़ोस में एक बुज़ुर्ग महिला थीं.. बहुत अच्छी...अकसर जब मुहल्ले के बच्चों में से कोई बाज़ार जाता दिखता तो उसे चुपके से नसवार लाने के लिए पैसे देती .. और अकसर हम उन्हें देखा करते कि वे चुपके चुपके इस नसवार को अपने दांतों पर घिस रही होतीं (परदे में)...

हमें यह भी नहीं पता था उस लड़कपन में कि यह नसवार होती क्या है, बस हमें यह बात पता थी कि वह बुज़ुर्ग काकी उसे अपने दांतों पर घिसती हैं और हमें वह खुशबू कुछ कुछ अलग लगती है ... न अच्छी न बुरी। 

पर जब हम लोग थोड़े बड़े हो गये तो हमें काकी बताया करती थीं कि यह बुरी आदत मुझे दांतों की वजह से लग गई....जब दांतों में दर्द होता, मैं इसे घिसती और राहत महसूस होती ...बस, यह कब लत लग गई, पता ही नहीं चला...

वैसे उस समय में हम लोग अकसर देखा करते थे कि लोग दांत दर्द से निजात पाने के लिए नसवार दांतों पर घिस कर खटिया पर लेट जाते और मुंह से लार टपकने देते कि इस से दर्द ठीक हो जायेगा...मैंने अपनी मां को भी बहुत बार ऐसा करते देखा...
समय बीतता चला गया....काकी का मुंह तो बच गया ..दांत सारे गिर तो गये और नकली दांत भी लगवा लिए... लेकिन फिर अचानक उन्हें मूत्राशय का कैंसर हो गया...आप्रेशन भी हुए...रेडियोथैरिपी(सिकाई) भी हुई...लेकिन वे चल बसीं..

तंबाकू ज़रूरी नहीं कि मुंह में ही अपना ज़हर उगलता है ...यह काम यह किसी भी अंग को निशाना बना कर सकता है ...मूत्राशय के कैंसर का रिस्क तंबाकू चबाने वालों में बहुत ज़्यादा तो होता ही है ...

मुझे कुछ दिनों से वह काकी बहुत याद आ रही थी बार बार .... खास कर जब से विनोद खन्ना के मूत्राशय के कैंसर का पता चला था ...आप को भी याद होगा विनोद खन्ना धूम्रपान काफ़ी किया करते थे...मुझे बहुत दुःख है विनोद खन्ना के चले जाने का भी ..बचपन से लेकर बड़े होने तक उन की बहुत सी फिल्मों की यादें हमारे साथ हैं...बेहतरीन शख्स, कलाकार...शायद ही इन की कोई फिल्म होगी जो अमृतसर के किसी थियेटर में ही लगी हो और वह मिस हो गई हो ...

अफसोस, कैंसर से जंग हार गये वह भी ..

मेरे लिखने का यह आशय बिल्कुल नहीं है कि जो लोग तंबाखू का इस्तेमाल करते हैं वे सभी मूत्राशय के कैंसर के शिकार होंगे ..या जो लोग तंबाकू नहीं पीते-खाते-चबाते वे ताउम्र इस मामुराद बीमारी से बचे रहेंगे...चाहे मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं..लेकिन इतना तो पक्का है ही कि तंबाकू से इस बीमारी का रिस्क भी बढ़ जाता है ...

जब मुझे आज एक ४५ वर्षीय महिला अपने दांत दिखाने आईं तो उस से यह सुन कर हैरानगी नहीं हुई कि पहले तो वह कुछ पानमसाला आदि नहीं खाती थीं.. लेकिन १०-१२ साल पहले उस के दांतों में दर्द होने लगा तो किसी के कहने पर जब उस पर पान मसाला घिसने लगीं तो आराम सा लगने लगा ...बस ऐसे करते करते लत ही पड़ गई...

मुंह के अंदर की चमड़ी सफेद पड़ गई है, मुंह पूरा खुल भी नहीं रहा 

उस महिला ने १०-१२ साल पहले जिस पानमसाले से शुरूआत की थी उस में दरअसल तंबाकू भी मिला रहता था ...फिर एक साल बाद उसने मसाला बदल दिया.... और पिछले कुछ वर्षों से तो उसने ऐसा मसाला शुरू कर लिया है जिस के साथ तंबाकू अलग पाउच में मिलता है ...और ये दोनों को यह खाने से पहले मिला लेती हैं... और सारे दिन में दो तीन पाउच तो खप ही जाते हैं... 

बातों बातों में यह भी पता चला कि वह केवल पानमसाला ही नहीं चबातीं, बल्कि जब दांतों में दर्द होता था तो किसी के कहने पर तंबाकू वाला मूसा का गुल मंजन भी घिसना शुरू कर दिया था ... पहले पहल तो बता रही थीं कि उसे लगाने पर ऐसा चक्कर आता कि वहीं की वहीं बैठ जाती लेकिन दर्द में राहत महूसस होती ..फिर उस की भी लत लग गई ...और दिन में दो तीन बार इस गुल-मंजन को घिसने लगीं...
गाल के बाएं तरफ़ की अंदर की चमड़ी (बिल्कुल सूखे चमड़े जैसी सख्त हो चुकी है) 

दाएं तरफ की गाल के अंदर की हालत ..छोटे छोटे घाव भी बने रहते हैं

अब कभी कभी जब इस तंबाकू वाले मंजन को घिसने की इच्छा नहीं होती तो यह किसी सामान्य पेस्ट का इस्तेमाल कर लेती हैं...अब इन की समस्या यही है कि मुंह में घाव हैं...कुछ भी खाने पीने से बहुत चुल होती है ...परेशानी बहुत ज़्यादा होती है ...
इस महिला को इस के मुंह के अंदर की ये सभी तस्वीरें दिखा कर १५-२० मिनट लगा कर इसे सभी तरह की ऐसी आदतों को छोड़ने के लिए प्रेरित किया .. और ऐसा न करने के क्या परिणाम हो सकते हैं...इस से भी आगाह करवाया...बातों से तो लगा है कि वह यह सब कुछ छोड़ने के लिए राजी हो गई है ..क्योंकि इस बीमारी का सब से बडा़ इलाज ही यही है ...

आप इन के मुंह के अंदर की फोटो मेें देख सकते हैं कि कैसे मुंह के अंदर की चमड़ी --मुंह के पिछले हिस्से में और गालों के अंदरूरनी हिस्सों में पीली तो पड़ ही चुकी है और बिल्कुल सूखे चमड़े जैसी सख्त भी हो चुकी है ..घाव तो दिख ही रहे हैं...जिन पर लगाने के लिए दवाई दी है और कुल्ला करने के लिए माउथ-वाश.....लेकिन सच्चाई यह है कि जब तक यह इस आदत को नहीं छोडेंगी, कुछ खास फ़र्क नहीं पड़ेगा... 

दांत के दर्द से निजात पाने के लिए
कुछ लोग दांत के दर्द के लिए तंबाकू घिसने लग जाते हैं - जैसा कि ऊपर चर्चा हुई है, कुछ लोग दांत के दर्द के चक्कर में इस लत का शिकार हो जाते हैं..

सुबह पेट साफ ही नहीं होता 
जिस महिला के बारे में मैंने ऊपर लिखा है उस ने भी यही कहा कि सुबह जब तक गुल मंजन घिस नहीं लेती, पेट साफ ही नहीं होता...लेकिन इस तरह की भ्रांतियां जनमानस में बहुत लंबे समय से व्याप्त हैं...बीड़ी के बिना हाजत नहीं होती, तंबाकू के बिना पेट साफ़ नहीं होता...

काम ही ऐसा है, क्या करें
मैंने बहुत बार स्वच्छ कारों को भी इस पानमसाले-गुटखे से दूर रहने के लिए प्रेरित किया है ..लेकिन उन का एक ही तर्क होता है कि क्या करें, काम ही ऐसा है... बिना इसे खाए-चबाए तो हम खड़े नहीं हो सकते! लेकिन फिर भी मैं बार बार इन्हें याद दिलाता ही रहता हूं कि यह कोई समाधान नहीं है...कुछ मान जाते हैं और कुछ टालते रहते हैं..

भारी काम, रात की ड्यूटी 
बहुत से वर्कर यह कहते हैं कि पहले इन सब चीज़ों का सेवन नहीं करते थे ..लेकिन जब से यह भारी काम करते हैं..रात की शिफ्ट में काम करते हैं तो नींद को दूर भगाने के लिए और सचेत रहने के लिए सहकर्मियों के अनुऱोध पर थोडा़ थोड़ा मसाला रखते रखते बस कब यह खेल लत में बदल गया, पता ही नहीं चला, अब छोड़ ही नहीं पा रहे। 

पीप अंदर नहीं लेते, थूक देते हैं
बहुत से लोगों में यह भ्रांति है कि वे तो बस गुटखे-मसाले को गाल के अंदर थोड़ा दबा देते हैं...चबा कर उस के रस को अंदर भी नहीं लेते, बस थूकते जाते हैं....लेकिन यह भी एक बहुत बड़ी भ्रांति है कि अगर मसाले वाली लार को अंदर नहीं ले रहे हैं तो सब कुछ ठीक ठाक है ...ऐसा बिल्कुल नहीं है, चाहे आप उसे चबाएं या नहीं चबाएं, आप जहां पर भी गुटखा-पानमसाला मुंह में रखते हैं...उस के हानिकारक तत्व वहीं से ही शरीर के अंदर प्रवेश पा लेते हैं ...एक बात, दूसरी बात यह कि वहां पड़े पड़े भी वे क्या तांडव करते हैं, इस का ट्रेलर भी आप कितनी ही बार मेरी पोस्टों के माध्यम से देख चुके हैं...जैसा कि इस महिला के मुंह वाली तस्वीरों से भी आप देख सकते हैं कि मुंह के अंदर वाली चमड़ी की कितनी बुरी हालत हो चुकी है...इस अवस्था को ओरल-सब-म्यूक्स-फाईब्रोसिस कहते हैं जो कि निश्चित ही मुंह के कैंसर की एक पूर्वावस्था है ....अगर आदमी इस अवस्था तक पहुंचने पर भी नहीं समझता तो फिर कौन उस की मदद कर सकता है!.....इस अवस्था में भी अगर यह सब लफड़ा करना बंद कर दिया जाए तो स्थिति बद से बदतर होने से बच जाती है ..

जैैसा कि मैं हमेशा कहता हूं...इन तरह के जानलेव शौक से बचे रहिए, बचाते रहिए... और कोई रास्ता है भी नहीं!!

इतनी बोझिल टॉपिक था आज का.... एक गीत चला रहा हूं ... विनोद खन्ना साब का .. विनम्र श्रद्धांजलि इस महान अभिनेता को .. 




2 टिप्‍पणियां:

  1. आदत कब लत बन जाती है, इसका पता तब लगता है जब बहुत देर हो चुकी होती है, जहाँ से लौट पाना असंभव हो जाता हैं।
    बहुत उपयोगी प्रस्तुति

    महान अभिनेता खन्ना जी को हार्दिक श्रद्धांजलि

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कह रही हैं आप, कविता जी..
      पोस्ट देखने के लिए धन्यवाद..

      हटाएं

इस पोस्ट पर आप के विचार जानने का बेसब्री से इंतज़ार है ...