गुरुवार, 3 जनवरी 2008

इन लेखकों एवं चित्रकारों का टेलेंट तो रेलगाड़ी के बाथरूमों तक ही सीमित होता है.....

चलिए , यह भी एक इत्मीनान की ही बात है कि इन चित्रकारों का टेलेंट तो रेलगाड़ी के बाथरूमों तक ही सीमित रहता है। उन की यह कला उस से बाहर न ही आए तो ही ठीक है, नहीं तो गदर मच जाएगा। जब ये तरह तरह की अश्लील बातें अथवा ऊट-पटांग बातें मोटे मोटे अक्षरों में वहां लिखते हैं तो यह क्यों भूल जाते हैं कि इन पर समाज के हर आयु वर्ग के लोगों की नज़र पढ़ेगी। कई बार तो अबोध बच्चे भी यह सब पढ़ कर, चित्रकारी देख कर हैरान परेशान हो जाते होंगे। मैं अकसर सोचता हूं कि इस देश के अबोध बच्चों की यौन-शिक्षा के पहले पाठ तो शायद यहीं लिखे रहते हैं...।अफसोस तो बस इसी बात का ही होता है कि इन बाथ-रूम बलागरों को भी लगता है कि अपनी कला के जौहर दिखाने का उचित मौका मिला नहीं। इस अजीबो-गरीब बलागरी का दुनिया भी कुछ इंटरनैट ब्लागरी जैसी ही चलती है----अर्थात् कई लोग तो ये विवरण देख कर एवं लाइन ड्रांईंग देख कर इतने भड़क जाते हैं कि उन्होंने टिप्पणी के रूप में अपना करारा सा जवाब भी लिखा होता है। इस तरह की ग्रैफिटी रेल के बाथरूमों में ही नहीं, कईं बार तो मुझे मुंबई की लोकल गाड़ीयों में भी देखने को मिलीं। लेकिन बम्बई में इस तरह की ग्रैफिटी के ऊपर तुरंत कुछ पेंट पोत दिया जाता है...भई, ऐसे तो हज़ारों लोगों की नज़रों में यह सब आ जाएगा। कई बार तो नोटों पर भी इस तरह की ग्रैफिटी देखने को मिलती है, लेकिन वह बड़ी शालीन सी ही दिखती है। बंटी लव्स बबली या पिंचू लव्स पिंकी तक ही यह सीमित होती है। लेकिन कईं बार तो ये कलाकार एतिहासिक स्थानों को भी स्पेयर नहीं करते-- और उन पर भी अपनी छाप छोड़ने की पूरी कोशिश करते हैं। अरे भाई, कुछ ऐसी छाप ही छोड़नी है तो शाहजहां का अनुसरण करिए......उस ने कैसे अपने प्यार को अमर ही कर दिया। इन छोटी-मोटी हरकतों से तो कुछ हासिल होने से रहा, rather you are only corrupting the tender yound minds of our dear youngsters which happen to be our greatest assets!!

काश!! ऊपर वाला इन आत्माओं को सदबुद्धि प्रदान करें ताकि वे अपनी कलम के जौहर दिखाने के लिए बलागरी में पांव रखें।

सांस की दुर्गंध----परेशानी !..........कोई तो रास्ता होगा इस से बचने का...

जी हां, जरूर है और वह भी बिल्कुल सस्ता, सुंदर और टिकाऊ। यह रास्ता,दोस्तो, यह है कि अगर हम अपने दांतों को रात में सोने से पहले भी ब्रुश करें और प्रतिदिन सुबह-सवेरे अपनी जुबान को जुबान साफ करने वाली पत्ती से साफ कर लें,तो यकीन मानिए हम सब इस दुर्गंध की परेशानी से बच सकते हैं। दोस्तो, हम अकसर देखते हैं कि अपने लोग यह साधारण से काम तो करते नहीं---महंगी महंगी माउथ-वाश की बोतलों के पीछे भागना शुरू कर देते हैं। यह तो दोस्तो वही बात है कि मैं दो दिन स्नान न करूं,और हस्पताल जाने से पहले अपने शरीर पर यू-डी-क्लोन या कोई और महंगा सा इत्र छिड़क लूं। दोस्तो, इस से पसीने की बदबू शायद कुछ घंटे के लिए दब तो जाएगी , लेकिन दूर कदापि न होगी। उस के लिए तो दोस्तो खुले पानी से स्नान लेना ही होगा। ठीक उसी तरह ---रात में दांत साफ करना व रोज सुबह सवेरे अपनी जुबान को पत्ती से साफ करना भी मुंह की महक को कायम रखने के लिए नितांत जरूरी है। दोस्तो, यह कोई नहीं बात नहीं है, अपने देश में तो जुबान को नित्य प्रतिदिन साफ करने की आदत तो हज़ारों साल पुरानी है। बस, कभी कभी हम ही सुस्ती कर जाते हैं।
दोस्तो, इस का रहस्य यह है कि अब यह सिद्ध हो चुका है कि हमारे मुंह में दुर्गंध पैदा करने वाले कीटाणु हमारी जुबान की कोटिंग (वही, सफेद सी काई, दोस्तो) में ही फलते फूलते हैं और अगर हम इस काई को रोज सुबह सवेरे साफ करते रहें तो फिर सारा दिन सांसें महकती रहेंगी। यहां एक बात और साफ करनी जरूरी है कि आज कल लोग पानमसाले को भी माउथ-फ्रैशनर के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। यही खतरनाक है-इस प्रकार हम कई बीमारियों को मोल ले लेते हैं। अपनी वोह पुरानी वाल छोटी इलायची या सौंफ ही ठीक है। पानमसालों वगैरह के चक्कर में कभी न पड़ें। लेकिन एक बात का और भी ध्यान रखना जरूर है कि आप के मसूड़े एवं दांत स्वस्थ होने चाहिए ---क्योंकि अगर पायरिया है तो उस का इलाज करवाना भी बहुत जरूरी है क्योंकि पायरिया भी मुंह की दुर्गंध पैदा करने में बहुत ज्यादा जिम्मेदार है।

सांस की दुर्गंध----परेशानी !..........कोई तो रास्ता होगा इस से बचने का...


जी हां, जरूर है और वह भी बिल्कुल सस्ता, सुंदर और टिकाऊ। यह रास्ता,दोस्तो, यह है कि अगर हम अपने दांतों को रात में सोने से पहले भी ब्रुश करें और प्रतिदिन सुबह-सवेरे अपनी जुबान को जुबान साफ करने वाली पत्ती से साफ कर लें,तो यकीन मानिए हम सब इस दुर्गंध की परेशानी से बच सकते हैं। दोस्तो, हम अकसर देखते हैं कि अपने लोग यह साधारण से काम तो करते नहीं---महंगी महंगी माउथ-वाश की बोतलों के पीछे भागना शुरू कर देते हैं। यह तो दोस्तो वही बात है कि मैं दो दिन स्नान न करूं,और हस्पताल जाने से पहले अपने शरीर पर यू-डी-क्लोन या कोई और महंगा सा इत्र छिड़क लूं। दोस्तो, इस से पसीने की बदबू शायद कुछ घंटे के लिए दब तो जाएगी , लेकिन दूर कदापि न होगी। उस के लिए तो दोस्तो खुले पानी से स्नान लेना ही होगा। ठीक उसी तरह ---रात में दांत साफ करना व रोज सुबह सवेरे अपनी जुबान को पत्ती से साफ करना भी मुंह की महक को कायम रखने के लिए नितांत जरूरी है। दोस्तो, यह कोई नहीं बात नहीं है, अपने देश में तो जुबान को नित्य प्रतिदिन साफ करने की आदत तो हज़ारों साल पुरानी है। बस, कभी कभी हम ही सुस्ती कर जाते हैं।
दोस्तो, इस का रहस्य यह है कि अब यह सिद्ध हो चुका है कि हमारे मुंह में दुर्गंध पैदा करने वाले कीटाणु हमारी जुबान की कोटिंग (वही, सफेद सी काई, दोस्तो) में ही फलते फूलते हैं और अगर हम इस काई को रोज सुबह सवेरे साफ करते रहें तो फिर सारा दिन सांसें महकती रहेंगी। यहां एक बात और साफ करनी जरूरी है कि आज कल लोग पानमसाले को भी माउथ-फ्रैशनर के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। यही खतरनाक है-इस प्रकार हम कई बीमारियों को मोल ले लेते हैं। अपनी वोह पुरानी वाल छोटी इलायची या सौंफ ही ठीक है। पानमसालों वगैरह के चक्कर में कभी न पड़ें। लेकिन एक बात का और भी ध्यान रखना जरूर है कि आप के मसूड़े एवं दांत स्वस्थ होने चाहिए ---क्योंकि अगर पायरिया है तो उस का इलाज करवाना भी बहुत जरूरी है क्योंकि पायरिया भी मुंह की दुर्गंध पैदा करने में बहुत ज्यादा जिम्मेदार है।

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दोस्तो, मिठाइयों के ऊपर लगे चांदी के वर्क के बारे में आप क्या कहते हैं ?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

दोस्तो, इस के बारे में मेरा तो यह दृढ़ विश्वास यही है कि कुछ कुछ केसों में तो ये और कुछ भी हो, चांदी तो हो नहीं सकती। जिस जमाने में पनीर, दूध, दही तो हमें शुद्ध मिलता नहीं, ऐसे में मिठाईयों के ऊपर शुद्ध चांदी के वर्क लगे होने की खुशफहमी पालना भी मेरी नज़र में मुनासिब नहीं है। तो दोस्तो, मैंने इस समस्या से जूझने का एक रास्ता निकाल लिया है-- वैसे तो हम लोग मिठाई कम ही खाते हैं, लेकिन अगर यह सो-काल्ड चांदी के वर्क वाली मिठाई खाने की नौबत आती भी है तो पहले तो मैं चाकू से उस के ऊपर वाली परत पूरी तरह से उतार देता हूं। दोस्तों, कुछ समय पहले मीडिया में भी इसे अच्छा कवर किया जाता रहा है कि मिलावट की बीमारी ने इस वर्क को भी नहीं बख्शा ....कई केसों में इसे एल्यूमीनियम का ही पाया गया है। अब आप यह सोचें कि अगर यह एल्यूमीनियम का वर्क हम अपने शरीर के सुपुर्द कर रहे हैं तो यह हमारे गुर्दों की सेहत के साथ क्या क्या खिलवाड़ न करता होगा। इस लिए,दोस्तो, चाहे यह मिठाई महंगी से महंगी दुकान से खरीदी हो, मैं तो इस वर्क को खाने का रिस्क कभी भी नहीं लेता। आप भी कृपया आगे से ऐसी मिठाईयां खाने से पहले इस छोटी सी बात का ध्यान रखिएगा---दोस्तो, वैसे ही हमारे चारों इतनी प्रदूषण --जी हां, सभी तरह का-- फैला हुया है , ऐसे में चांदी के वर्क के चक्कर में न ही पड़ें तो ठीक है। यह तो हुई,दोस्तो, इन वर्कों की बात, तो इन में इस्तेमाल रंगों एवं फ्लेवरों की बात कभी फिर करते हैं।
Good morning, friends !!

दोस्तो, मिठाइयों के ऊपर लगे चांदी के वर्क के बारे में आप क्या कहते हैं ?



चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

दोस्तो, इस के बारे में मेरा तो यह दृढ़ विश्वास यही है कि कुछ कुछ केसों में तो ये और कुछ भी हो, चांदी तो हो नहीं सकती। जिस जमाने में पनीर, दूध, दही तो हमें शुद्ध मिलता नहीं, ऐसे में मिठाईयों के ऊपर शुद्ध चांदी के वर्क लगे होने की खुशफहमी पालना भी मेरी नज़र में मुनासिब नहीं है। तो दोस्तो, मैंने इस समस्या से जूझने का एक रास्ता निकाल लिया है-- वैसे तो हम लोग मिठाई कम ही खाते हैं, लेकिन अगर यह सो-काल्ड चांदी के वर्क वाली मिठाई खाने की नौबत आती भी है तो पहले तो मैं चाकू से उस के ऊपर वाली परत पूरी तरह से उतार देता हूं। दोस्तों, कुछ समय पहले मीडिया में भी इसे अच्छा कवर किया जाता रहा है कि मिलावट की बीमारी ने इस वर्क को भी नहीं बख्शा ....कई केसों में इसे एल्यूमीनियम का ही पाया गया है। अब आप यह सोचें कि अगर यह एल्यूमीनियम का वर्क हम अपने शरीर के सुपुर्द कर रहे हैं तो यह हमारे गुर्दों की सेहत के साथ क्या क्या खिलवाड़ न करता होगा। इस लिए,दोस्तो, चाहे यह मिठाई महंगी से महंगी दुकान से खरीदी हो, मैं तो इस वर्क को खाने का रिस्क कभी भी नहीं लेता। आप भी कृपया आगे से ऐसी मिठाईयां खाने से पहले इस छोटी सी बात का ध्यान रखिएगा---दोस्तो, वैसे ही हमारे चारों इतनी प्रदूषण --जी हां, सभी तरह का-- फैला हुया है , ऐसे में चांदी के वर्क के चक्कर में न ही पड़ें तो ठीक है। यह तो हुई,दोस्तो, इन वर्कों की बात, तो इन में इस्तेमाल रंगों एवं फ्लेवरों की बात कभी फिर करते हैं।
Good morning, friends !!

1 comments:

Raviratlami said...

अल्यूमिनियम से याददाश्त पर भी दुष्परभाव पड़ता है ऐसा मैंने भी कहीं पढ़ा था...

पौरूषता बढ़ाने वाले सप्लीमेंटस से सावधान !!-----मैं नहीं, अमेरिकी एफडीआई यह कह रही है....




अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने लोगों को ऐसे खाद्य़ पदार्थों को खरीदने अथवा खाने से मना किया है जिन की मार्केटिंग ही पौरूषता की कमी के मामले ठीक करने वाले डाइटरी सप्लीमेंटस के रूप में की जा रही है ---इस चेतावनी का कारण यह है कि इन पदार्थों को खाने से कुछ लोगों का ब्लड-प्रेशर खतरनाक लेवल तक गिर सकता है। इन पदार्थों को चीन में बनाया गया है।

चिंता की बात यही है ,दोस्तो, कि चाहे इन की मार्केटिंग डायटरी सप्लीमेंटस के रूप में की जाती है, लेकिन इन में एक्टिव दवाईयां भी होती हैं जिन के बारे में इस की पैकिंग पर कुछ नहीं लिखा होता और वैसे जिन दवाईयों को बिना डाक्टरी नुस्खे के कोई खरीद नहीं सकता। इसलिए एफडीआई के अनुसार ऐसे उत्पाद गैर-कानूनी हैं क्योंकि इन्हें एफडीआई की एपरूवल प्राप्त नही है। आप भी उत्सुक हो रहे होंगे कि ऐसा क्या मिला है इन चीनी खाद्य पदार्थों में कि एफडीआई इतना भड़क गई है। दोस्तो, इन सप्लीमेंटस में सिलडिनाफिल नाम की दवाई मिली हुई है, जी हां, बिलकुल वही जो वियाग्रा में होती है। अब, आप देखें कि वैसे तो वियाग्रा डाक्टरी सलाह से ही लेनी चाहिए----अब अगर इसे दवाई से लैस कुछ खाद्य पदार्थों को अगर लोग कुरमुरे की तरह छकने लगेंगे तो क्या होगा !!---अब जब डाक्टर किसी को यह दवाई दे रहे हैं ,तो उस बंदे के स्वास्थ्य के बारे में सारी खबर उस को रहती है। लेकिन अगर इन से लैस डिब्बों कोलोग डाइटरी सप्लीमेंटस के रूप में ही लेने लगें तो फिर तो .....। वास्तव में खतरा यही है कि ये दवाईयां जिन की सूचना डिब्बे के ऊपर नहीं की गई होती, ये नाईट्रेटस नामक दवाईयों की वर्किंग के साथ कुछ पंगा ले कर इन सप्लीमेंटस को लेने वालों में ब्लड-प्रेशर का स्तर खतरनाक लेवल तक गिरा सकती हैं। डायबिटीज़, हाई ब्लड-प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रोल एवं हृदय रोग वाले मरीज़ सामान्यतयः ये नाइट्रेटस नामक दवाईयां लेते है। थोडी़ बहुत पौरूषता की कमी (इरैक्टाइल डिसफंक्शन) इन मैडीकल अवस्थाओं में आम समस्या है---ऐसे में इन खाद्य़ पदार्थों को खाना कितना जोखिम भरा है, यह अब हम जानते हैं। अब भला अमेरिका यह सब कैसे बरदाशत कर सकता है....

रही अपने यहां की बात, यहां तो,दोस्तो, सब कुछ बिलकुल धड़ल्ले से बिक रहा है......पता ही नहीं, सड़क के किनारे तंबू गाड़ कर नीम हकीम इस पौरूषता को बढ़ावा देने के लिए इस देश के आम बंदे को क्या क्या पुड़ीयों में डाल कर खिलाए जा रहे हैं। अमेरिका वालों को यह तो पता चल गया कि उन के बंदे क्या खा रहे हैं........हमें तो अफसोस इस बात का ही है कि हमें तो यह भी नहीं पता कि हमारे बंदे इन नीम हकीमों एवं खानदानी दवाखानों से क्या क्या ले कर छके जा रहे है। और जब इन को कुछ हो भी जाता होगा....तो हम ही लोग बड़ी लापरवाही की चादर ओड़ कर यही कह कर बात आई-गई कर देते हैं कि इस की लिखी ही इतनी थी।
वैसे , मुझे तो यह भी लगता है कि जब ये चीनी सप्लीमेंटस अमेरिका वाले अपने देश से बाहर निकाल देंगें-----फिर यही सप्लीमेंटस हमारे देश के चाइनों बाज़ारों में ही बड़े धडल्ले से बिकेंगे......................क्या आप को भी ऐसा ही लग रहा है??