सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

स्वर कोकिला लता जी की याद में - दूसरी कड़ी



मैं आज सुबह आप को बता रहा था कि मैं लता जी के अन्तयेष्ठि स्थल - दादर के शिवाजी पार्क तक पहुंच गया...(इस लिंक पर आप पूरी बात देख-पढ़ सकते हैं..) 







जब मुझे किसी से पता चला कि शिवाजी पार्क के अंदर भी जा सकते हैं ..लता जी को श्रद्धांजलि देने तो मैं भी एक लाइन में लग तो गया ...अंदर घुसने से पहले सभी लोगों की अच्छे से तलाशी और मेटल-डिटेक्टर से जांच हो रही थी ...मैं भी लाइन में लग तो गया ..बाप रे बाप....इतनी लंबी लाइन ...गेट से बाहर भी पता नहीं कितनी दूर तक फैली हुई...और अंदर भी बहुत लंबी लाइन ...सिर के बाल सारे पके हों तो, उस का यह फायदा यह भी होता है कि आप को आप ही की उम्र के आसपास के अनजान बालों को लाल-काला रंग हुए लोग भी चाचा कहने लगते हैं...मैं गेट के बाहर लगी लाइन के आखिर में जा ही रहा था कि किसी तरफ़ से आवाज़ आई कि चाचा इधर ही लग जाओ...मैं वहीं खड़ा हो गया...मैंने सोचा कि अब चाचा बाकी काम अपने आप कर लेगा ...क्योंकि हमारा कल्चर ऐसा है कि हम बूढ़े लोगों को ज़्यादा टोकते नहीं हैं....मैं कुछ लोगों के आगे तो ऐसे ही निकल गया ...इतने में पता नहीं लाइन में क्या भगदड़ हुई ...लोग दो लाइनें बनाने लगे और मैं फिर आगे चलने लगा ..और इस तरह मुश्किल से पांच दस मिनट में लता जी के पार्थिव शरीर तक पहुंच गया ....सादर नमन किया ...बड़ा ग़मग़ीन माहौल था वहां...पहले तो लता जी को राजकीय सम्मान दिया गया... बैंड से धुनें बज रही थीं...मंत्रोच्चारण चल रहा था ...कुछ समय बाद ही चिता को आग दे दी गई ...



इस ताई को सुनना ही बहुत मार्मिक था...ज़ी टीवी की एक ऐंकर से इन की गुफ्तगू चल रही थी...बार बार भावुक हो रही थीं..इन्हें देख कर आसपास खड़े हम सब लोग भी भावुक हो गए...कल मुझे यह अहसास हो रहा था कि जहां आप रहते हैं न, वहां की भाषा भी सीख लेनी चाहिए...ज़्यादा दिमाग नहीं लगाना चाहिए, मुझे भी अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि इतने बरस हो गए यहां रहते हुए लेकिन अभी तक मराठी नहीं सीखी....वैसे मैं गुज़ारे लायक बात तो समझ ही लेता हूं और जो नहीं समझ पाता उस बात को किसी की आंखों में पढ़ लेता हूं ...

ज़ी वी वाली एंकर गईं तो दूसरे किसी चैनल का ऐंकर आ गया...लेकिन ताई की अब फिर से वह बात दोहराने की इच्छा न थी, वह अपने साथ आई महिला को इशारा करती है कि अब फिर से मेरे से नहीं होगा, चल चलते हैं...इस ताई की यह बात सच में मेरे दिल को छू गई...मुझे मराठी ज़ुबान बहुत अच्छी लगती है, ख़ास कौर जो गावठी मराठी गांव के लोग बोलते हैं...

लोगों ने अपने अपने ढंग से लता दीदी को श्रद्धांजलि दी 




संसार की हर शै का इतना ही फ़साना है ...इक धुंद में आना है, इक धुंद में जाना है 😂🙏

स्वर कोकिला लता जी की याद में ....

परसों शनिवार बाद दोपहर मैं कैंप्स कॉर्नर से हाजी अली की तरफ़ जा रहा था...कैंप्स कॉर्नर से पैडर रोड़ लेने लेने की बजाए मैंने बहुत अरसे के बाद वार्डन रोड वाली रोड ली...ब्रीच कैंड़ी अस्पताल के गेट के बाहर 40-50 लोग खड़े थे ...इन्हें देख कर हैरानी हुई क्योंकि इस अस्पताल के बाहर कभी कोई भीड़ इस तरह से जुटी नहीं दिखी...आगे आने पर सोचा कि ये शायद टैक्सी-ऑटो वाले होंगे ...लेकिन ख़्याल लता दीदी का भी आया क्योंकि वह भी तो यहीं पर भर्ती हो कर कोरोना से जंग लड़ रही हैं ...फिर यही लगा कि उन की हालत में तो लगातार सुधार हो रहा है ...मन किया कि वहां रुक कर पता करना चाहिए था...इसी उधेड़बुन में ही हाजी अली चौक आ गया...

कल ऐतवार सुबह जैसे ही उठा तो फोन उठाने ही पता चल गया कि लता दीदी की सेहत खराब है और वे वेंटीलेटर पर चल रही हैं, फ़िक्र हुई ...कुछ ही वक्त बाद वाट्सएप से खबर मिली की लता दीदी तो चल बसीं...देश के करोड़ों लोगों की तरह हमें भी बहुत दुख हुआ ...एक बार तो इच्छा हुई कि उसी वक्त पैडर रोड पहुंच जाएं ...उन के दर्शन कर के आएँ....लेकिन तब तक सूचना भी मिल गई कि उन का पार्थिव शरीर जनता के दर्शन हेतु शिवा जी पार्क में रखा जाएगा और शाम 6.30 बजे उन का अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा..

सुबह ही से लता जी के गाए हुए गीत ही रेडियो के विभिन्न चैनलों पर बजते रहे ...और वे अपने साथ यादों के सैलाब लेकर आते रहे ...खैर, पैडर रोड जाऊं या सीधा शिवाजी पार्क यह सोचते सोचते ही दोपहर हो गई ...तब तक पहले पैडर रोड जाने वाली ऑप्शन तो खत्म हो गई ...शाम साढ़े पांच पौने छः बजे के करीब मैं शिवा जी पार्क के लिए निकला...साढ़े छः बजे पहुंच भी गया वहां पर ....लेकिन पता ही नहीं लग रहा था कि अंदर जाने का रास्ता कहां से है ...पुलिस का पूरा कड़क बंदोबस्त था ...किसी ने कहा कि व्ही.आई.पी गेट से ही अंदर जा सकते हैं...वैसे तो मैं किसी भी तरह के VIP कल्चर का घोर विरोधी हूं लेकिन उस गेट की तरफ़ निकल गया ...वैसे तो किसी को भी उस वक्त अंदर नहीं ले रहे थे, सभी लोग बाहर ही खड़े थे ..मैं भी उधर ही खड़ा हो कर उन्हीं लोगों के बीच इंतज़ार करने लगा...यह पता नहीं किस चीज़ का ...वहां से शिवा जी पार्क के अंदर का मंज़र कुछ भी तो नहीं दिख रहा था..




20-30 मिनट हो गये तो कोई ऐसे ही किसी से बात कर रहा था कि किसी दूसरे गेट से लोग अंदर जा रहे हैं...मैं भी उधर तरफ़ निकल गया ..लेकिन मेरे पास अपना आइडेंटिटी कार्ड भी न था, वैसे तो वहां पूछ भी नहीं रहे थे...अंदर जाने से पहले मेटल-डिटेक्टर से सब की जांच हो रही थी...मैं भी कुछ वक्त लाइन में इंतज़ार करने के बाद लता दीदी के पार्थिव शरीर के पास पहुंच गया ...उस वक्त उन्हें राजकीय सम्मान दिया जा रहा था ...

सुबह से ही मेरी इच्छा थी कि स्वर कोकिला लता जी को ऋदांजलि देने तो कैसे भी जाना ही चाहिए ...जिस देवी के गीत सुनते सुनते हम लोग बूढ़े हो गए ...जिन को सुनते सुनते हमारे मां-बाप वाली पीढ़ी तो इस जहां से कूच ही कर गई, और अब तीसरी पीढ़ी उन को सुनते सुनते हैरान होती है कि जब इन का गाया कोई गीत सुनते हैं तो ऐसे लगता है कि उन्हें किसी म्यूज़िक की ज़रूरत ही नहीं है, इतना सुरीला कोयल जैसा स्वर ..गले में सरस्वती मां ने वास ही कर लिया हो जैसे...

डूबते सूरज के साथ आज सुर का एक सूरज भी डूबने वाला था...लेकिन वह अपने गीतों की वजह से अमर हो चुका है ...

दादर स्टेशन के बाहर पहले जैसे भीड़-भड़क्का 

और खरीदारी करने वालों का हुजूम भी वैसा ही ...

दादर(पश्चिम) से जाते वक्त रास्ते में यह प्रतिमा भी दिखाई दी ...🙏

अच्छा, एक बात और भी शेयर करनी है ...जब मैं दादर की तरफ जा रहा था तो रास्ते में देख रहा था कि हर तरफ़ काम पहले की ही तरह चल रहा है ...लोग बीच पर वैसे ही इक्ट्ठे हुए हैं, अड्डेबाजी वैसे ही चल रही है, दादर स्टेशन के बाहर पहले जैसे भीड़-भड़क्का है ..सब कुछ पहले जैसा चल रहा है ...इतनी बड़ी हस्ती आज हमारे बीच में से उठ गई जिस का हमारे ज़िंदा रहने को ज़िंदगी बनाने में इतना बड़ा योगदान है ...

यह बात इस बात का रिमांइडर भी है कि जाना तो सब ने है ...कोई आगे कोई पीछे...हम हैं कि दुनियावी चीज़ों के चक्कर में अपना दिमाग खराब किए रहते हैं...किसी से ढंग से पेश नहीं आते, हमारा व्यवहार कईं बार ऐसा होता है कि अगर किसी को कोई काम न हो हम से तो कोई हम से बात ही न करना चाहे, चेहरों पर भद्दी त्योरियां चढ़ी हुई हर वक्त, लोगों के साथ गेम खेलते हैं, किसी को नीचा किसी को ऊंचा दिखाने के चक्कर में अपनी ज़िंदगी रोल देते हैं, चापलूसी, चुगलखोरी, ईर्ष्या, नफ़रत, घमंड, अहम्....अभी तो इतना कुछ ही याद आ रहा है, बाकी का फिर कभी याद कर के लिख लेंगे ...इतनी भी क्या जल्दी, जब जीना है बरसों... ऐसे मौके पर हाज़िर होकर इंसान को अपने अंदर भी झांकने को एक मौका मिलता है कि अगर हश्र सभी का यही है तो क्या जो यह इतने हम रोज़ खेल खेलते हैं उन से क्या हासिल!!

ऐसे वक्त पर हमें अपने नश्वर होने का आभास होता है ..इतने इतने नामचीन, महान हस्तियां हमारे बीच में से उठ गईं ...जाना सब को है...लेकिन वह सफ़र कैसा है, यही बात अहम् है...क्या हम खुश रह पाए और दूसरों को खुशियां बांट पाए....लता जी ने तो ज़िंदगी भर खुशियां ही बांटी ...मेरी मां की उम्र थीं लता जी ...मुझे पक्के से याद है जब लता जी के 75 साल के होने के जश्न की खबर आ रही थीं तो मेरी मां ने उन्हें देख कर कहा था ...देख, प्रवीण, लता मंगेश्कर अभी भी कितनी अच्छी लगती हैं....इतनी उम्र की होने के बाद भी। मैंने कहा था कि बीजी, आप भी बहुत अच्छी लगती हैं ...और फिर हम हंसने लगे थे ..मां चार साल पहले छोड़ गई थीं, लता जी भी कल चली गईं ...

जब इस देवी की चिता चल रही थी तो यह गीत बज रहा था ...बेहद भावुक 

शेष अगली पोस्ट में .....🙏