देसी दवाईयों के नाम पर भी जो गड़बड़ घोटाला हो रहा है, उस के बारे में कभी कभी खबरें आती तो हैं लेकिन हम लोगों को वाट्सएप से कहां इतनी फुर्सत है कि हम उस के बारे में ज़्यादा सोचें….जो करेगा सो भरेगा …या जो इन को खाने की हिमाकत कर रहा है, वह देखे, हमें क्या….यही सोच के चलते हम आगे बढ़ जाते हैं….हां, इतना हुआ तो हुआ कि कभी कभी किसी चर्चा के दौरान इस का बात का यह ज़िक्र कर देते हैं कि ऐसी खबरें आ रही हैं….
देसी से मेरा मतलब आयुर्वेदिक नहीं है, वह तो एक भारतीय चिकित्सा पद्धति की एक अहम् पद्धति है जिस के ऊपर मैं कोई टिप्पणी करने में न तो सक्षम हूं और न ही अधिकृत….लेकिन कुछ स्वार्थी तत्व देसी के नाम पर ऐसे ही कुछ अजीबोगरीब बेचते रहते हैं जिस से कुछ फायदा होना तो दूर, खतरनाक नुकसान ज़रूर हो जाते हैं…रोग बिगड़ जाते हैं, लेने के देने पड़ जाते हैं….
पिछले तीस चालीस साल पहले सुनते थे …सुनते क्या थे, होता ही था ऐसे कि घुटने के दर्द के लिए शर्तिया इलाज की दुहाई ये देसी दवाई बेचने वाले देते थे ..बाद में पता चलता था कईं बरसों बाद कि जो घुटनों के दर्द के लिए या दूसरे अन्य जोड़ों के दर्द के लिए जो यह दवा देते थे …वही नीम हकीम….उसमें ये स्टीरॉयड नाम की दवाईयां मिला देते थे ….
अब स्टीरॉयड दवाईयां ऐसी हैं जिन को अच्छे पढ़े-लिखे अनुभवी ऐलोपेथिक डाक्टर भी बहुत सावधानी पूर्वक अपने मरीज़ों को लेने की सलाह देते हैं….बहुत ही सावधानी से, एहतियात से …..जहां ज़रूरत वहीं पर …और न ही एक टेबलेट ज़्यादा और न ही एक दिन भी ज़्यादा …..और यह बात हर ऐलोपैथिक डाक्टर पर लागू होती है….
लेकिन ये नीम-हकीम खतराए जान वाले नीम-हकीम जो पुड़िया मरीज़ों को देते रहे हैं उन में ये स्टीरॉयड की टेबलेट का पावड़र मिला कर देते हैं…..और ये इतनी पावरफुल दवाईयां होती हैं….कि दर्द वर्द तो गायब कर ही देंगी, कुछ समय के लिए, बुखार भी उतार देंगी कुछ समय के लिए …लेकिन ये झोलाछाप नीम हकीम जो इस तरह की दवाईयां मरीज़ों को पुड़िया में परोस देते हैं वे उन्हें तरह तरह के जटिल रोग…कईं बार जानलेवा भी…साथ में परोस रहे होते हैं….
यह तो एक मिसाल है….लेकिन ऐसा और क्या क्या कहां कहां हो रहा है, कोई कुछ कह नहीं सकता….जहां पर आप की कल्पना की उड़ान है, वहां तक सब गोरखधंधे हो ही रहे होंगे, ऐसा मान कर चलिए….सब से ज़्यादा सस्ती जान है आज के दौर में आम आदमी की….
आज मुझे लंबे अरसे के बाद यह स्टीरॉयड वाली बात इसलिए याद आई कि हमारे एक साथी डाक्टर ने एक अखबार की क्लिपिंग शेयर की ….जिसे पढ़ कर किसी के भी पैरों तले से ज़मीन खिसक जाए…ज़मीन खिसकने के साथ साथ मेरा तो दिमाग चकरा गया….वैसे उस क्लिपिंग की फोटो नीचे लगा रहा हूं, अगर आप चाहें तो उसे इत्मीनान से पढ़िए…(अगर पढ़ने में दिक्कत हो तो उस फोटो पर क्लिक करिए, फिर उसे आराम से पढ़ सकेंगे..)
यह कतरन 30 नवंबर 2024 की है, पत्रिका समाचार पत्र, रायगढ़ |
हां, तो खबर में बताया गया है कि देसी दवाईयां जो मधुमेह के लिए बेची जा रही थीं उन में मधुमेह की ऐलोपैथिक दवाईयों की दस गुणा मात्रा पाई गई …..और यह दावा करती कंपनियां कि हमारी दवाई शुरू करते ही आप को इंसुलिन का इंजेक्शन लेने की ज़रूरत न पड़ेगी….इंसुलिन आप की ज़िंदगी से निकल जाएगी…..
इस गोलमाल का पर्दाफाश तब हुआ जब कोई व्हीआईपी ऐसी दवाई ले रहा था ….और तीन दिन के बाद ही उस का ब्लड-शुगर स्तर इतना नियंत्रण हो गया कि उसे इंसुलिन लेने की ज़रूरत ही न पड़ी….उसने आयुर्वैदिक विशेषज्ञों से बात की….वे भी इस चमत्कार पर हैरान हुए….उन्होंने दवाई टैस्टिंग की सलाह दी…और फिर आगे जो गड़बड़ और खतरनाक स्तर पर ऐलोपैथिक दवाई से मिलावट का मामला सामने आया वह हम ऊपर लिख ही चुके हैं और आप अखबार की इस कतरन में पढ़ भी सकते हैं…
सोचने वाली बात तो यह है कि ऐलोपैथिक डाक्टर तो इस तरह की दवाईयां लिखते वक्त कईं तरह के जमा-घटा करते हैं, मरीज़ की उम्र, वज़न, उस से जुड़े कीं तरह के अन्य पैरामीटर्ज़ देख कर, जांच कर…मधुमेह की दवाई की डोज़ तय करते हैं….लेकिन देखिए किस तरह से दस गुणा डोज़ देसी दवाई के नाम पर उन को परोसी जा रही थी ……..थी क्या, है, बेशक यह सब कहीं न कहीं बिना रोक-टोक के चल ही रहा होगा….एक छोटी सी खबर आ गई ……But it is just tip of an ice-berg!!
ऐसे नहीं लगता कि जैसे आज कल जालसाज़ किस्म के लोग सीधे-सादे लोगों के पीछे हाथ धो कर पड़े हुए हैं….ऑन-लाइन फ्रॉड से कोई बच जाता है तो किसी दूसरे चक्कर में पड़ जाता है …ऑन-लाइन फ्रॉड से भी कहीं ज़्यादा घिनौना है यह देसी दवाईयों को इतने खतरनाक ढंग से मिलावट करने का गोरख-धंधा….
आप को क्या लगता है इन की क्या सज़ा होनी चाहिए…इस तरह के अपराधों के लिए आप के आसपास या दूर किसी को इस तरह के क्रूर कृत्यों के लिए सख्त सज़ा मिली हो तो उस के बारे में जानकारी कमैंट-बॉक्स में लिखिए…..
रोटी फिल्म का एक गीत था ...1974 में आई थी, मैं पांचवी छठी कक्षा में था, मुझे उस के सभी गाने बहुत रोमांचित करते थे ...खास कर के यह वाला ...यह जो पब्लिक है, सब जानती है ..इस फिल्म को मैं बीसियों बार देख चुका हूं और इस गीत को कम से कम सैंकड़ों बार ....लेकिन आज पचास साल बाद यही लगता है कि पब्लिक कुछ नहीं जानती, बड़ी ताकतें, राजनीतिक, व्यापारिक और धार्मिक सब कुछ जानती हैं कि कैसे जनता का इस्तेमाल करना है ....और कुछ नहीं....बस, आराम से गाना सुनिए...