गुरुवार, 29 जनवरी 2009

आज एक पुराने पाठ को ही दोहरा लेते हैं !

सीख कबाब आप के शहर में भी खूब चलते होंगे---लेकिन इसे जानने के बाद शायद आप कभी भी उस तरफ़ का रूख ही न करना चाहेंगे --- ब्रिटेन के विभिन्न शहरों में बिकने वाले लगभग 500 कबाबों के अध्ययन करने से यह पता चला है कि इन में इतनी वसा, इतना नमक और इस तरह का मांस होता( shocking level of fat, salt and mystery meat !) है कि इसे जान कर आप भी हैरान-परेशान हुये बिना रह न पायेंगे।

जब कोई व्यक्ति कबाब खाता है तो समझ लीजिये उसे खाकर वह अपने दिन भर की नमक की ज़रूरत का 98प्रतिशत खाने के साथ साथ लगभग एक हज़ार कैलोरीज़ खपा लेता है। कहने का मतलब कि एक महिला को सारे दिन में जितनी कैलोरीज़ लेने की ज़रूरत है , उस का आधा भाग तो एक कबाब ने ही पूरा कर दिया। कबाब खा लेने से दैनिक सैचुरेटेड फैट की मात्रा का डेढ़ गुणा भी निगल लिया ही जाता है। कुछ ऐसे कबाब हैं जिन में लगभग दो हज़ार कैलोरीज़ का खजाना दबा होता है।

चिंता की बात यह भी तो है कि इन में से बहुत से कबाब तो ऐसे पाये गये जिन्हें बनाने के लिये वह मांस इस्तेमाल ही नहीं किया गया था जिस का नाम इंग्रिडिऐंट्स में लिखा गjया था। ज़रूरी नहीं कि कुछ भी सीखने के लिये सारे तजुर्बे खुद ही किये जाएं ----दूसरों के अनुभव से भी तो हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। और यहां इस अध्ययन से हम यह सीख क्यों न ले लें कि अगर ब्रिटेन में यह सब हो रहा है तो अपने यहां क्या क्या नहीं हो रहा होगा ? -----यह सोच कर भी हफ्तों पहले खाये कबाब की मात्र याद आने से ही उल्टी जैसा होने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं है !!

ऊपर लिखी नमक वाली बात से तो मैं भी सकते में आ गया हूं –इस समय ध्यान आ रहा है कि यह नमक हमारी सेहत के लिये इतना जबरदस्त विलेन है लेकिन हम हैं कि किसी की सुनने को तैयार ही नहीं है, बस अपनी मस्ती में इस का अंधाधुंध इस्तेमाल किये जा रहे हैं -----जिस की वजह से उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग के चक्कर में फंसते चले जा रहे हैं।

नमक के बारे में अमेरिका में लोग कितने सजग हैं कि न्यू-यार्क सिटी में विभिन्न रेस्टरां, बेकरर्ज़, होटलों आदि को कह दिया गया है कि नमक के इस्तेमाल में 25 फीसदी की कटौती तो अभी कर लो, और 25 फीसदी की कटौती का लक्ष्य अगले दस साल के लिये रखो---- क्योंकि यह अनुमान है कि इस 50फीसदी नमक की कटौती से ही हर साल लगभग डेढ़ सौ अमेरिकियों की जान बचाई जा सकती है।

और जिन वस्तुओं में नमक कम करने की बात इस समय हो रही है उन में पनीर, बेक्र-फॉस्ट सीरियल्ज़, मैकरोनी, नूडल्स, केक, मसाले एवं सूप आदि शामिल हैं ---- ( cheese, breakfast cereals, bread, macaroni, noodle products, condiments, soups) .

न्यूयार्क सिटी बहुत से मामलों में सारे विश्व के लिये एक मिसाल सामने रखता है ---पहले वहां पर विभिन्न रेस्टरां में ट्रांस-फैट्स के इस्तेमाल पर रोक लगी , फिर हाल ही में वहां पर होटलों के मीनू-कार्डों पर बेची जाने वाली वस्तुओं के नाम के आगे उन में मौज़ूद कैलोरीज़ का ब्यौरा दिया जाने लगा और अब इस नमक को कम करने की मुहिम चल पड़ी है। इस से हमें भी काफ़ी सीख मिलती है – इतना कुछ तो सरकार किये जा रही है ---और किसी के घर आकर नमकदानी चैक करने से तो रही !!

हमें बार बार सचेत किया जा रहा है कि नमक एक ऐसा मौन हत्यारा है जिसे हम अकसर भूले रहते हैं। इसी भूल के चक्कर में बहुत बार उच्च रक्तचाप का शिकार हो जाते हैं, गुर्दे नष्ट करवा बैठते हैं, दिल के मरीज़ हो जाते हैं और कईं बार यही मस्तिष्क में रक्त-स्राव ( stroke) का कारण भी यही होता है। सन् 2000 में एक सर्वे हुआ था कि अमेरिका में पुरूष अपनी दैनिक ज़रूरत से दोगुना और महिलायें लगभग 70 फीसदी ज़्यादा नमक का इस्तेमाल करते हैं और इस के दुष्परिणाम रोज़ाना हमारे सामने आते रहते हैं, लेकिन फिर भी पता नहीं हम क्यों समझने का नाम ही नहीं ले रहे , आखिर किस बात की इंतज़ार हो रही है ?

एक बार फिर से उस पुराने पाठ को याद रखियेगा कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 2300मिलिग्राम सोडियम से ज़्यादा सोडियम इस्तेमाल नहीं करना चाहिये ---इस 2300 मिलिग्राम सोडियम का मतलब है कि सारे दिन में एक चाये वाले चम्मच से ज़्यादा खाया गया नमक तबाही ही करता है ------हाई-ब्लड प्रैशर, हृदय रोग से बचना है तो और बातों के साथ साथ यह नमक वाली बात भी माननी ही होगी------ इस खामोश हत्यारे से जितना बच कर रहेंगे उतना ही बेहतर होगा।

यह पुराने पाठ को दोहरा लेने वाली बात कैसी रही ? -- स्कूल में भी जब हम लोग कोई पाठ पढ़ते थे, अपने मास्टर साहब कितने प्यार से उसे दोहरा दिया करते थे ---बाद में हम लोग उसे घर पर दोहरा लिया करते थे और फिर कईं बार टैस्ट से पहले, त्रैमासिक, छःमाही, नौ-माही परीक्षा से पहले सब कुछ बार बार दोहरा करते थे और फिर जब बोर्ड की मैरिट लिस्ट में नाम दिखता था तो क्या जबरदस्त अनुभव होता था , लेकिन जो शागिर्द मास्टर के पढ़ाये पाठ को आत्मसात करने में ढील कर जाते थे उन का क्या हाल होता था , यह भी हम सब जानते ही हैं -------तो फिर उन दिनों की तरह अपनी सेहत के लिये इन छोटी छोटी हैल्थ-टिप्स को नहीं अपने जीवन में उतार लेते ----- आखिर दिक्तत क्या है !! ----मास्टर लोगों की मजबूरी यही है कि कॉरपोरल पनिशमैंट के ऊपर प्रतिबंध लग चुका है , वरना हम लोगों की क्या मजाल कि ..............................!!