शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

आने वाला पल जाने वाला है ...

आने वाला पल जाने वाला है ... अभी बिग-एफ.एम पर यह गीत बज रहा था तो मुझे याद आ गया कि इसने तो मुझे एक इनाम भी दिलाया था अभी हाल ही में ... एक कांफ्रेस में गया था ...वहां पर एक गेम चल रही थी ...गाने की शुरूआती धुन वे बजाते थे और धुन बजाते ही जितनी जल्दी हो सके आप अपना हाथ खड़ा करेंगे ...बस, इस की धुन शुरू हुई और दो-तीन सैकेंड में मैंने पहचान लिया - फिर मुझे वह अपनी बेसुरी आवाज़ में उसे गाना भी था... और इनाम भी मिला...खुशी इतनी हुई जितनी पांचवी कक्षा में योग्यता छात्रवृत्ति की लिस्ट में आने पर हुई थी....

फिल्मी गाने भी क्या चीज़ हैं...मैं तो इन्हें सुनते ही इन्हें लिखने वालों के बारे में सोचने लगता हूं कि कैसे उन्होंने ये सब लिख दिया... अद्भुत ...मुझे साठ-सत्तर के अधिकतर गाने बहुत भाते हैं...इन के लिरिक्स, म्यूज़िक और परदे पर इन पर अभिनय करने वाले .. वाह ..वाह ...वाह!

सोचता हूं बहुत बार कि बचपन में जवानी में हम गीतों को उन के खिलंड़रेपन के लिए पसंद करते थे ...फिर धीरे धीरे जैसे जैसे उम्र बढ़ती है तो उन के बोल भी दिमाग में कहीं दस्तक देने लगते हैं... और 50-60 की उम्र के आसपास जब ज़िंदगी के तज़ुर्बों वाले एयर-फोन्स के साथ उन्हें सुनते हैं ...फ़ुर्सत में ---तो लिखने वालों के हाथ चूम लेने की हसरत होती है ... लेकिन वे दरवेश अब कहां ...वे तो अपना काम कर के वो गए ..वो गए....कुछ के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिलता है .. फिर भी कम ही लगता है ... मसलन, कुछ अरसे से उस महान गीतकार आनंद बक्शी के बेटे राकेश बक्शी से उन के बारे में सुनता रहता हूं ....बहुत अच्छा लगता है ...और उन के गीतों की रचना के बारे में मज़ेदार बातें पता चलती हैं..।

महान गीतकार नीरज जी को भी लखनऊ में बहुत बार मिलने का मौका मिला .. उन का लिखा हुआ एक एक गीत भी मन को छू जाता है ..बेमिसाल गीत लिख दिए उन्होंने भी ..और सभी गीतकारों के बारे में पढ़ना मुझे बहुत भाता है ..

किस किस का नाम लूं ....सभी गीतकारों ने हमें ऐसे तोहफ़े दिेए हैं कि उन की तारीफ़ करने के लिए अल्फ़ाज़ भी तो चाहिए...वे कहां से लाऊं!!

अच्छा एक बात और शेयर करूं ...मैं उर्दू सीख रहा था ...ज़माने के हिसाब से मैं थोड़ा डफर तो हूं ही ...चलिए, कोई बात नहीं ...लेकिन उर्दू पढ़ने-लिखने की तमन्ना बहुत थी ...कुछ महीने बीत गए लेकिन वाक्यों की बनावट-बुनावट पल्ले ही न पड़ रही थी ...ऐसे में क्या हुआ कि लखनऊ की सड़कों की ख़ाक छानते हुए (मैंने यह काम बहुत किया है..) मुझे कहीं से मुझे उर्दू में लिखी फुटपाथ से वे 5-10 रूपये में बिकने वाली किताबें मिल गईं ...किशोर कुमार के गीत, मो.रफ़ी के गीत ... बस, फिर क्या था, वे सब मेरे पसंदीदा गीत तो थे ही ...मैंने उर्दू में लिखी इबारत को समझने-पढ़ने के लिए उन किताबों को खोल कर यू-ट्यूब पर वे गीत सुनने शुरू कर दिए ... बस, फिर क्या था, मुझे उर्दू के अल्फ़ाज़ की बनावट की पहचान होने लगी ... मैं आज सोचता हूं तो मुझे हंसी भी आती है कि कईं बार जुगाड़ भी कैसे काम कर जाते हैं..

चलिए, वह गीत तो सुन लें जिसे मैंने शायद कॉलेज में पांव रखते ही गोलमाल फिल्म में देखा था ......फिल्म भी हम लोगों ने स्कूल-कॉलेज के ज़माने में शायद ही कोई छोडी़ हो, 40 साल पुराना यह वह दौर था जब मेरी प्यारी मौसी को यह गलतफ़हमी हो गई कि उस के भांजे की शक्ल अमोल पालेकर से कितनी मिलती है और वह सब को यह बताती फिरती थीं (शुरू ही से हम ऐसे तोंदू-तोतले थोड़े न थे..) 😂

अब इच्छा नहीं होती मल्टीप्लेक्स में जाकर देखने की .....अब तो कईँ बार हो चुका है कि मैं इंटरवल से पहले ही सो जाता हूं क्योंकि वह से भाग कर बाहर आने की सर्वसम्मति नहीं बन पाती ...आजकल तो जब भी फिल्म देख कर आते हैं, अकसर एक तरह से निश्चय करते ही हाल से निकलते हैं कि बस, अब नहीं आया करेंगे !!

यकीं रखिए, यह कोरोना वाला मौजूदा पल भी जल्दी चला जाएगा ...लेकिन इस के लिए आप लोग घर में बैठे रहिए...मिनट मिनट की यह ख़बर ढूंढने के चक्कर में कि यह महामारी किस चरण में हैं, आप अपने चरणों को अपने घर ही में रोके रखिए...बड़ी मेहरबानी होगी ..

यह रहा उस गीत का यू-ट्यूब लिंक
https://youtu.be/AFRAFHtU-PE