कैंंसर की नकली दवाईयां, टीबी जैसे रोगियों के इस्तेमाल में होने वाली दवाईयां नकली...(मैंने भी खाई थीं- 15-16 साल पहले ...और यह सोच कर मन दहल जाता है कि अगर वे भी नकली होतीं...)...अब लोग क्या क्या छोड़ें.... बीमार को दवाईयां तो लेनी ही पडेंगी ...और कैंसर के इलाज की दवाईयां तो होती भी इतनी महंगी हैं कि सामान्य लोग तो बहुत बार सड़क पर आ जाते हैं...इन्हें खरीदते खरीदते ...और इस पर भी पता चले कि नकली दवाईयां ही मरीज़ को दिए जा रहे थे ...कितनी शर्मनाक बात है! चुल्लू भर पानी से भी कम पानी में भी डूब कर मरने की बात है!
अभी जब ये कोरोना वैक्सीन के इंजेक्शन लग रहे थे तो भी कितनी बार मीडिया दिखा रहा था कि जालसाज़ों ने नकली कैंप रख लिए और ज़ाहिर सी बात है इन कैंपों में लोगों को कोरोना वैक्सीन की जगह क्या लगा दिया गया, यह किसी को नहीं पाता.....अगर आपने कहीं यह ख़बर पढ़ी हो कि इन नकली कैंप वालों को क्या सज़ा हुई, वे अभी कहां है, तो मुझे भी वह लिंक शेयर करिएगा।
इमानदारी-बेइमानी हमारे अपने लिए है....कोई कितना भी पीछे पड़ जाए अगर हम बेइमानी पर उतर ही आएं तो किसी को कुछ भी पता नहीं लग सकता....वैसे भी लोगों के पास अपने ही इतने पचड़े हैं कि वे बहुत बार आंखें बंद करना ही बेहतर समझते हैं....क्योंकि इन गोरखधंधों में लिप्त लोग कब खुली आंखों वालों को गायब करवा दें, यह भी कोई नहीं जानता... जो फिल्मी में दिखाते हैं, वे सब किसी दूसरे ग्रह की बातें थोड़े न हैं, फिल्में हमारे समाज का दर्पण होता है और वे वही कुछ दिखाती हैं जो हमारे आस पास घट रहा होता है ...
ज़िंदगी के छठे दशक में प्रवेश करते करते बहुत से लोगों को देखा....और पढ़ा ...बेइमान आदत इतनी अपार दौलत का करेगा क्या....बीस हज़ार के जूते खरीद लेगा...हज़ारों रूपयों की लागत की पैंट-शर्ट या डिज़ाइनर ड्रेस ले लेगा ...लाखों-करोडो़ं की गाडि़यों में घूम लेगा...लेकिन कुदरत से भला कौन टक्कर ले पाता है ...कभी न कभी कहीं पर ट्रैप हो ही जाएगा...जितना भी शातिर दिमाग हो...कहीं न कहीं इस तरह के लोगों का बाप कहां से प्रकट हो जाता है पता ही नहीं चलता, फिर बाहर भागते हैं, अंडरग्रांउड हो जाते हैं...तरह तरह की बीमारियां ..महंगे अस्पताल...बडे़ बड़े डाक्टर भी क्या कर लेंगे .... डाक्टर भी भगवान हैं लेकिन कुछ हद तक ....बेइमानी, दलाली, कमीशनखोरी के कैंसर के लिए उन के पास अभी कोई दवाई नहीं है...न ही होगी....बीमारी के ऊपर किसी का कुछ बस नहीं है वैसे तो ...लेकिन धोखेबाज़ों को अकसर तिल तिल रुबड़ते-तड़पते देखा है ... अनाप शनाप पैसा होगा...करोड़ों के घर खरीदे जाते हैं...पूरी अय्याशी में लिप्त ज़िंदगी जी जाती है ...यहां भी और दूसरे देशों में भी ....सब बेकार।
साधु लोग कितनी सही बात कहते हैं....जैसा खाओ अन्न, वैसा बने मन। यह बात कह कर ज्ञानी लोगों ने जैसे कूज़े में समंदर भर दिया...अगर इमानदारी के पैसे की खरीदी दो ड्रैस भी हैं, दादर के फुटपाथ से खरीदे 250 के जूते हैं, बीवी के गले में अगर वीटी स्टेशन के बाहर बिकने वाली 20 रूपये का मंगल-सूत्र है, पांच रूपये के झुमके हैं .....लेकिन वही मुबारक हैं....वहीं सुखदायी हैं...और उन की चमक-दमक भी निराली ही दिखेगी, साधारण से चेहरे को भी नूरानी चेहरा बना देंगे। बेइमानी, रिश्वतखोरी के पैसे जमा के 20 लाख का हीरे का हार भी भद्दा ही दिखता है ..क्योंकि उस में डर भी तो मिला हुआ है, और दस रूपये की चूड़ीयों मे सच्चाई है, सादगी है, इमानदारी का गुरूर है.....क्या आपने कभी यह सब नोटिस किया। मैने तो बहुत किया....घुटने दर्द करते हैं, लेकिन मैं फिर खूब चलता-फिरता हूं, दुनिया देखता हूं ...
कभी भी गौर करिएगा कि बेइमान इंसान बड़ा डरा डरा सा, सहमा सहमा सा दिखेगा....उसे किसी से बात करते हुए भी डर लगेगा ..इस की तुलना में ईमानदार लोगों को देखते ही आप को पता चल जाएगा कि यह ईमानदार है ...वह आप की आंखों में आंंखें डाल कर बात करेगा...आंखें चुराएगा नहीं कभी। हम समझते हैं कि लोग अगर कुछ कहते नहीं है तो वे बेवकूफ हैं, ऐसा नहीं है, बस उन्होंने अपनी सलामती के लिए आंखें थोड़ी सी बंद की होती हैं.
आदमी जितनी मर्ज़ी दौलत इक्ट्ठा कर ले ... उस से कुछ नहीं होता...लोग भी बेकार की मुंह पर तारीफ़ करेंगे, बाद में गाली निकालेंगे कि यह सब दो नंबर का माल है ...
लेकिन मैं यह सब क्या लिखने लग गया....क्यों। क्योंकि अगर नहीं लिखता तो मेरा सिर भारी हो जाता और पूरा दिन मैं वैसे ही काट देता क्योंकि उस नकली कैंसर की दवाई ने मुझे बहुत परेशान किया...अब कुछ तो हल्का महसूस हो रहा है ..😎😄यह कोई ज्ञान बांटने की कोशिश नहीं थी, अपने मन को हल्का करने का एक बहाना भर था।