गाना चल रहा है ...प्रेम कहानी में इक लड़का होता है, इस लड़की होती है...
नींद तो उड़ गई ..पुराने दिनों के बेहतरीन गानों की याद फिर से लौट आई...
पुराने गीत बहुत बढ़िया थे....अभी मैं कुछ दिन पहले गोवा में था तो वहां बीच में एक रिसोर्ट में यह गीत बज रहा था...बहुत बढ़िया माहौल बना हुआ था.. आओ झूमें गायें ..मिलके धूम मचाएं...
होली का जश्न चल रहा था उन िदनों तो यह गीत बार बार सुनने को मिला...आज न छोड़ेंगे..बस हमजोली खेलेंगे हम होली...चाहे भीगे तेरी चुनरिया....
पुराने फिल्मी गीतों का जादू भी अलग ही है...झट से हमें किसी दूसरी दुनिया में ले जाते हैं...
बस, यही विराम लगाता हूं...गुड नाइट ...
मैं इधर उधर के विषयों के बारे में कुछ भी लिख कर टाइमपास करता रहूं लेकिन एक विषय जिस पर मेरा ध्यान सारा दिन टिका रहता है वह यही है कि किस तरह से लोगों के मन में तंबाकू के विभिन्न प्रोडक्ट्स के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके।
शायद ही कोई दिन ऐसा निकलता हो जब मैं एक या दो ऐसे मरीज़ों को नही देखता जिन में तंबाकू की वजह से मुंह में होने वाली किसी भयंकर बीमारी का अंदेशा न होता हो।
अभी ध्यान आया कि कुछ इस तरह का लिखूं कि अगर आप कुछ भी खाने-चबाने के शौकीन हैं, पानमसाला, गुटखा, सुरती, पान, बीड़ी, सिगरेट ...तंबाकू वाले मंजन ...कुछ भी तो आप को किस हालात में किसी क्वालीफाईड दंत चिकित्सक से अपना मुंह दिखवा लेना चाहिए...
मुंह में घाव जो १५ दिन में नहीं भर रहा हो
ठीक है, यह कहा जाता है ..लेिकन मैंने देखा है कि लोगों के मन में इस से डर ज़्यादा बैठा हुआ है ..बहुत से मुंह के घाव जिन्हें मरीज़ समझता है कि कुछ नहीं है, ऐसे ही है, वे सब से खतरनाक किस्म के हो सकते हैं और जिन्हें मरीज समझता है कि ये भयंकर हैं, वे चंद दिनों में अपने आप ठीक होने वाले हो सकते हैं।
तो इस का समाधान यही है कि कोई अनुभवी एवं क्वालीफाइड दंत चिकित्सक ही आप का मुंह देख कर आप के मुंह के घाव के प्रकार का पता लगा सकता है ..क्योंकि वह सारा दिन मुंह के अंदर ही झांकता है, छोटे से छोटे बदलाव भी वह देख लेता है और आप को समुचित इलाज के लिए प्रेरित करता है।
अगर बीड़ी सिगरेट पीने वाले में मुंह के अंदर होठों के कोनों के पास जख्म हैं तो तुरंत डैंटिस्ट को दिखाईए... एक बात यहां बताना ज़रूरी है कि बीड़ी सिगरेट से मुंह के अलग हिस्से प्रभावित होते हैं ..और अन्य तंबाकू उत्पादों जैसे कि गुटखा, पान मसाला से अन्य हिस्से प्रभावित होते हैं।
सिगरेट बीड़ी पीने वालों में इसी तरह के घाव से शुरूआत होती है ..
दांतों का अपने आप हिलना
अब यह एक बहुत ही आम समस्या है ..बहुत से लोगों के दांत अपने आप हिलते हैं, बेशक पायरिया आदि की वजह से ही होता है यह अधिकतर या वृद्धावस्था में कईं बार जबड़े की हड्डी की पकड़ ढीली पड़ने की वजह से भी यह होता है ..लेकिन कईं बार अपने आप ही किसी एक तरफ़ के दांतों का हिलना, और इतना हिलना कि अपने आप ही उखड़ जाना...यह एक खतरनाक सिग्नल है ...इसे पढ़ कर घबराने की ज़रूरत नहीं ...क्योंिक मरीज़ों में ऐसा देखते हैं इसलिए लिख रहा हूं...जितने मरीज़ हम लोग ओपीडी में देखते हैं दांत हिलने से परेशान...शायद एक प्रतिशत मरीज़ों में ही यह दांतों का अपने आप हिलना मुंह के कैंसर की वजह से होता है...लेिकन यह कोई फिक्स नहीं है...अकसर मसूड़ों आदि का कैंसर जब जबड़े की तरफ़ बढ़ जाता है तो इस तरह की जटिलता पैदा होती है।
अचानक पानी के बताशे खाने में दिक्कत हो ...
अगर आप पानमसाला गुटखा लेते हैं और आप को कभी यह लगे कि मैं तो पानी के बताशे भी ठीक से नहीं खा पा रहा हूं ..इस का मतलब यही है कि आप के मुंह की चमड़ी की लचक कम हो रही है या हो चुकी है ...उसी दिन से पानमसाले-गुटखे को त्याग कर डैंटिस्ट से अपने मुंह की निरीक्षण करवाएं।
मुंह पूरा न खुल पाना यह एक बहुत आम समस्या होने लगी है ...मैंने बीसियों लेख इसी ब्लॉग पर इसी समस्या को लेकर लिखे हैं... लेिकन होता यह गुटखा, पानमसाला, सुपारी की वजह से ही है ...कुछ अन्य कारण भी हैं जिन में मुंह कुछ दिनों के लिए कम खुलता है....जैसे किसी दांत में इंफेक्शन, कईं बार दांतों के इलाज के लिए मुंह में जो टीका लगता है उस की वजह से भी कुछ दिन मुहं पुरा खोलने में दिक्कत आ जाती है, कईं बार कुछ दिनों के लिए अकल की जाड़ हड्डी के अंदर दबी हुई या आधी-अधूरी निकली हुई भी परेशान किए रहती है ...लेकिन यह सब कुछ िदनों के लिए ही होता है ...डैंटिस्ट को देखते ही सही कारण समझ में आ जाता है।
मुंह के किसी घाव से खून आना, कोई मस्सा होना मुंह में..सूजन होना जो दवाईयों से न जा रही हो, ये सब इतनी नान-स्पेसेफिक से इश्यू हैं कि लोगों के मन में बिना वजह डर पैदा हो जाता है जब कि ये सब मुंह के कैंसर के अलावा ही अधिकतर देखा जाता है...कैंसर तो चुपचाप अपना काम करता रहता है ..इसीलिए ज़रूरी नहीं कि इस तरह के लक्षण हों तो तभी आप डैंटिस्ट से मिलें ...और अगर ये लक्षण नहीं हैं तो आप को डेंटिस्ट से नियमित परीक्षण करवाने की ज़रूरत ही नहीं है, ऐसा बिल्कुल नहीं है, सलाह यही है कि हर छः महीने के बाद दंत चिकित्सक से मिल लिया करें...अगर आप ये सब चीज़ें नहीं भी इस्तेमाल करते तो भी दांतों की कैविटी, पायरिया आदि की रोकथाम के लिए या उन्हें प्रारंभिक अवस्था में पकड़ने के लिए भी यह रेगुलर विज़िट जरूरी होती है।
अब कितना लिखें यार इस विषय पर ...पिछले पंद्रह सालों से लिखे ही जा रहा हूं ...निरंतर ...लेिकन पता नहीं ऐसा क्या है, इस ज़हर में कि लोग छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे ....यह कब किसे अपनी चपेट में ले लेगा, कोई नहीं जानता..आप के हाथ में बस इतना है कि इन उत्पादों से दूर रहिए, और दंत चिकित्सक से रेगुलर चैक-अप करवाते रहिए। बोर हो गये हैं यार लिखते लिखते इस विषय पर ....लेिकन बोर होने से बात बनने वाली नहीं है ...
मैं जब भी किसी मुंह के कैंसर के मरीज़ को देखता हूं पहली बार तो मुझे सब से मुश्किल बात यही लगती है कि यार, इसे बताएं कैसे ...क्योंकि बायोप्सी आदि तो बाद में होती ही है, अधिकतर केसों में पता चल ही जाता है ...यह बड़ा फील होता है कि वह तो ऐसे हल्के फुल्के अंदाज़ में दांत मसूड़े की किसी तकलीफ़ के लिए दवाई लेने आया और मुझे इसे कुछ और बताना पड़ेगा...
समय के साथ उस को इस के बारे में बताने का तरीका भी आने लगता है...पहली बार में कितना कहना है, कितना नहीं, उसे सदमा भी नहीं लगना चाहिए, लेकिन वह हमारी बात को इतना हल्के में भी न ले कि फिर दिखाने ही न आए...सभी बातों का संतुलन रखते हुए मुझे हर ऐसे मरीज़ के साथ पंद्रह मिनट अलग से बिताने ही होते हैं...जिस में मैं पहली ही विज़िट में उस का मनोबल इतना बढ़ा देता हूं कि वह पूरे इलाज के तैयार हो जाए और उसी दिन से ही पान, तंबाकू-वाकू को हमेशा के लिए थूक दे..
बचपन में मास्साब कहानियां सुनाते थे तो बाद में उस से मिलने वाली शिक्षा का भी ज़िक्र होता था... लालच बुरी बला है, एकता में बल है, याद है ना आप सब को ...बस, मेरी इतना आग्रह है कि मेरी ऊपर लिखी बातों को पढ़ कर समझें या न समझें, याद रखें या न रखें, लेिकन इन उत्पादों से हमेशा दूर रहें....यह आग का खेल है...खेल उन सिनेस्टारों के लिए है जिन्होंने कभी इन चीज़ों को इस्तेमाल नहीं किया होता लेिकन करोड़ों रूपये के लालच में युवाओं का बेड़ागर्क करने में भी नहीं चूकते ....और ये हीरो आज के युवाओं के रोल-माडल हैं!.... अफसोस...
कुछ दिन पहले गुड-फ्राय-डे वाले दिन मैं मुंबई की एक चर्च के बाहर खड़ा था...पास ही एक दुकान से ठक-ठक की आवाज़ आ रही थी।
उधर देखा तो यादव जी बड़ी तल्लीनता से एक पत्थर की धार लगाने में मस्त थे...यादव उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं...आठ दस से बंबई में हैं... बंबई में भी क्या हैं, बस पापी पेट के चक्कर में टिके रहते हैं वहां छःसात महीने...उस के बाद गांव लौट आते हैं...क्या बताया था नाम, शायद आजमगढ़ ...
मैं भी उन्हें उस पत्थर को तलाशते हुए देखने लगा...यादव जी एक चक्की चलाते हैं...यह भाड़े की दुकान है ... जिस का किराया ३० हज़ार रूपये महीना है ..बस इतनी ही जगह है जितनी आप इस तस्वीर में देख पा रहे हैं...
चक्की के पत्थर की कुछ दिनों के बाद धार लगानी होती है ...वरना आटा बारीक नहीं पिस पाता...यादव ने बताया...
एक पत्थर की धार लगाने में तीन घंटे लग जाते हैं
मुझे किराये की रकम सुन कर बहुत हैरानगी हुई ..मैंने फिर से पूछा...मैंने पहली बार ठीक ही सुना था..तीस हज़ार...इस में बिजली का बिल भी शामिल है...और जब वे पांच महीने के लिए गांव कूच कर जाते हैं तो इस ठीये (अड्डे को...बंबईया भाषा) किराये पर उठा जाते हैं...बता रहे हैं यादव कि वे कुछ नहीं लेते उस से...उसे किराया भरना होता है और बाकी कमाई अपने पास रख सकता है जिसे वह यह दुकान आगे किराये पर उठा कर जाते हैं।
मुझे यह सोचना ही इतना कष्टदायक लग रहा था कि पहले तो बंदा महीने में तीस दिन काम करे ..बिना नागा...फिर रोज़ कमाई का पहला एक हज़ार भाड़े का निकाले...उस के बाद उस की कमाई की बात शुरू हो...बता रहे थे कि किराया निकालने के बाद भी दस-पंद्रह-बीस हज़ार बच ही जाते हैं.. यादव वही बता रहे थे कि रोज़ का फिक्स नहीं है, बारह सौ, पंद्रह सौ, दो हज़ार ..
बड़े शहरों में हम सब जानते ही हैं कि survival का प्रश्न होता है ....जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही होती है ..लेकिन फिर भी ये लोग खुश दिखते हैं ... आप को क्या लगता है?
बिल्कुल छोटे छोटे काम धंधे करते हैं...गुज़ारा चलाते हैं ...एक ट्रैफिक सिग्नल पर यह बंदा गनेरियां (गन्ने के छोटे२ टुकड़े) प्लास्टिक की पन्नी में डाल कर बेचता हुआ दिखा..अच्छा है, अपना अपना जुगाड़ किए हुए हैं लोग...लेकिन उसी समय मेरा ध्यान उन बदकिस्मत किसानों की तरफ़ चला गया जो अपनी फसल की उचित कीमत न मिलने पर या अपना कर्ज़ न चुकता कर पाने की हालत में फंदे पर लटक जाते हैं ..लेिकन उन की मेहनत से दूसरे लोग पलते हैं....
बंबई के ट्रैफिक सिग्नल पर बिकती गनेरियां
चलिए यह गनेरियां वाला तो ठीक है...बच्चे पाल रहा है, लेकिन किसान के उगाये गेहूं का आटा कंपनियों द्वारा ४५-५० रूपये किलो. के हिसाब से बिकता है ....लेकिन कब से कह तो यही रहे हैं कि उस के भी अच्छे दिन आयेंगे......देखते हैं..
लोग हर शहर में हर तरफ़ हर समय मेहनत तो कर ही रहे होते हैं ..दो दिन पहले हम लोग लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट से रात में साढ़े बारह बजे आ रहे थे तो अचानक यह ट्रक दिख गया..इतना बड़ा ट्रक पहली बार दिखा था...टैक्सी ड्राईवर ने बताया कि इस के १२० पहिये हैं और यह मैट्रो रेल के ट्रैक को लाद कर ले जा रहा है ....हमने पहली बार इस तरह की माल-ढुलाई देखी थी... मैट्रो का सारा सामान इधर-उधर ले जाने का काम रात के उसी दौर में ही चलता है..
यह बात मैंने आज से दस साल पहले यमुनानगर में नोटिस की...हम किराये के एक मकान में रहते थे..पास ही एक बुज़ुर्ग ..बहुत बुज़ुर्ग ८०-८५ साल से ऊपर की उम्र होगी...साथ में कमर पूरी तरह से मुड़ी हुई थी...बहुत ही कमज़ोर, आंखों की रोशनी भी बहुत कम ...मैं अकसर उन्हें देखा करता था कि घर से साईकिल पर निकलते थे...कुछ भी सामान लाने के लिए..अपनी दिनभर की ज़रूरतों को स्वयं जा कर खरीदते थे..
मुझे कितने ही महीने लग गये यह नोटिस करने में यह महाशय साईकिल पर निकलते तो हैं लेिकन कभी साईकिल इन्हें चलाते तो देखा नहीं...मैं यह तो सोचा ही करता था कि यह साईकिल चला तो पाते नहीं होंगे, फिर इसे साथ लेकर निकलते क्यों हैं, फिर बात मेरी समझ में आ गई कि यह साईकिल को एक सहारे की तरह इस्तेमाल किया करते हैं...
एक बार यह बात समझ में आ गई तो फिर मुझे ऐसे बुज़ुर्ग बहुत सी जगहों पर दिखने लगे...यहां लखनऊ में भी मैंने देखा ..अपने अस्पताल के बाहर ही कईं मरीज़ों को जो साईकिल पर आते तो हैं, उस की सवारी कर के नहीं, बस उसे एक सहारे की तरह इस्तेमाल करते हुए...उम्र के हिसाब से किसी के घुटने नहीं चलते, किसी को चलने में दिक्कत है, किसी के पैर लड़खड़ाते हैं, किसी को िदखता कम है, किसी के शरीर में अब पैडल मारने की शक्ति नहीं है ...लेकिन साईकिल का सहारा लेकर वे धीरे धीरे अपनी मंज़िल की तरफ़ चल निकलते हैं।
कल रात मुझे यह बुज़ुर्ग दिखे ..
कल रात मैं भी साईकिल पर ऐसे ही घूम रहा था...मैंने लखऩऊ एलडीए एरिया में एक बुज़ुर्ग को देखा तो मुझे पहले तो यही ध्यान आया कि यह पैदल क्यों चल रहे हैं, लेकिन फिर तुरंत ध्यान आ गया..कि यह भी अकेले बचे साईकिल के सहारे वाला ही केस है।
बेशक ऐसे लोगों का मेरे मन में बहुत सम्मान है जो उम्र की किसी भी अवस्था में हार नहीं मानते..बस ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए मस्त रहते हैं...यही ज़ज्बा है जो सब से ज़रूरी होता है उम्र के उस दौर में शायद ...फिर से एक थ्यूरेटिक बात कर रहा हूं शायद....पता नहीं।
कईं बार हम सब ने नोटिस किया है कि सब कुछ होते हुए भी ...धन दौलत, सेहत ...रहने को अच्छा आशियाना..लेकिन फिर भी खुशी गायब होती है कुछ बुज़ुर्गों की ज़िंदगी से ...और कुछ इतने मस्त-मौला होते हैं कि बिल्कुल परवाह ही नहीं करते ...मुझे एक बात याद आ गई ...कुछ महीने पहले मेरे पास एक ८०वर्ष के करीब बुज़ुर्ग आए...मुंह में दो या तीन दांत ही बचे थे हिलते हुए....मुझे लगा कि इन्हें उखड़वाने आए होंगे...लेकिन नहीं, उन्हें तो बस उन में कभी कभी दर्द होता था..कोई मामूली सी दवा लेने आए थे...मैंने हैरान हो कर पूछा कि आप खाना कैसे खाते हैं?..उस बुज़ुर्ग ने मुझे निःशब्द कर दिया यह कह कर कि डाक्टर साहब, मैं तो कोई ऐसी चीज़ है ही नहीं जिसे खाता न होऊं...सब कुछ खाता हूं, मजे में हूं...कोई दिक्कत नहीं है।
लेकिन मैं भी अपनी आदत से मजबूर ... मैंने पूछा कि आप भुने ही चने तो नहीं खा पाते होंगे...वह कहने लगे ...नहीं, खूब खाता हूं..ग्राईंडर में पिसवा लेता हूं। मुझे उन से मिल कर उस दिन बहुत खुशी हुई ..इतना सकारात्मक रवैया अपनी सिचुएशन के प्रति....यह बुज़ुर्ग मुझे हमेशा याद रहेंगे।
कुछ दिन पहले अखबार में एक विज्ञापन देखा ....दो तीन बार देखा ...ऐसा लगा कि बुज़ुर्ग महिला का चेहरा जान पहचाना लग रहा है ...अनुमान लगाया कि शायद यह कामिनी कौशल हों, तुरंत गूगल बाबा से पूछा...अनुमान सही निकला....आप देखिए उम्र के इस पढ़ाव में भी किस तरह से काम में लगे हुए हैं...कामिनी कौशल सिनेजगत की एक जानी मानी हस्ती रही हैं... पारिवारिक, साफ-सुथरे मनोरंजन के लिए बहुत मशहूर नाम।
तभी मुझे ध्यान आया कि यह तो प्रिंट मीडिया का विज्ञापन है ...शायद यू-ट्यूब पर भी कोई ऐसा विज्ञापन हो ...मिल गया, वहां भी ....और उस को मैं यहां एम्बेड कर रहा हूं....भाषा शायद कोई और है, लेकिन उस से क्या, हमें मैसेज तो पहुंच ही रहा है...मैं इन विज्ञापन बनाने वालों से बहुत मुतासिर हूं...विशेषकर जब वे 'Slice of life' टाइप के विज्ञापन हमें परोसते हैं...सर्फ के ही इतने बेहतरीन विज्ञापन हमें याद हैं...दाग अच्छे हैं वाला विज्ञापन जब बच्चे दोस्त बन जाते हैं कीचड़ में खेलते खेलते. ...और एक वह वाला जिस में एक टीचर के डॉगी की डेथ हो जाती है, बहुत उदास हैं, स्कूल नहीं आतीं और शाम के वक्त उस का एक नन्हा सा छात्र कीचड़ में लथपथ उस की खोज-खबर लेने पहुंच जाता है ...उसे देख कर टीचर जी हंस पड़ती है...
जीवन में प्रेरणा ज़रूरी नहीं कि हमें बड़े बड़े लोगों की बातों से ही मिले....हम अपने आस पास ही से प्रेरणा लेते हैं...मुझे भी कल ध्यान आ रहा था कि रिटायरमैंट के बाद जिस भी शहर में रहने का अवसर मिलेगा...वहां पर तीन चार अस्पताल में निःशुल्क सेवा किया करूंगा...बड़ी तमन्ना है...आगे आगे देखते हैं होता है क्या!...लेकिन रिटायरमेंट के बाद करना कुछ ऐसा ही है। वैसे भी जितनी भी जान मार लूंगा ...एक करोड़ से ज़्यादा तो क्या इक्ट्ठा कर पाऊंगा रिटायरमेंट के बाद ...और इतने में एक ढंग का फ्लैट भी नहीं मिलता...फिर इतनी सिरदर्दी मोल ही क्यों ली जाए...मैं तो यही सोच कर शांत हो जाता हूं।
सक्रिय रहने के इस ज़ज्बे को सलाम
जो लोग विशेषकर बुज़ुर्ग हार नहीं मानते उन्हें देखना ही अपने आप में एक प्रेरणा है ... कुछ दिन पहले मैंने गोवा के एक बाज़ार में एक बहुत व्यस्त रोड़ पर एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला को देखा ...होगी ज़रूर ९० वर्ष के करीब की होगी...हाथ में लाठी और टार्च....और समुद्री तट पर एक ९० वर्ष की औरत भी मिली जो रोज़ाना दूर से टहलने आती हैं...अपने पति के साथ...
ज़्यादा क्या लिखना है दोस्तो, आप सब समझते ही हैं....दुनिया बड़ी तेज़ी से बदल रही है, हमारा सब कुछ बदल रहा है...पहले हम लोग डबल स्टैंडर्डस की बात किया करते थे, अब तो भई multi-standards की बात करनी चाहिए...जहां तक हो सके, खुश रहें और सब को खुश रखें, हर हालात में ईश्वर का शुक्रिया अदा करते रहें, किसी आध्यात्मिक सत्संग से जुड़िए...कुछ न कुछ असर तो देर सवेर हो ही जाएगा...
और एक काम की बात....एक बहुत पापुलर गीत है ..तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो...तुम को अपने आप ही सहारा मिल जाएगा... बस, अब के लिए इतना ही आज का विचार....वैसे इस तरह की विचार मुझे आज से चार वर्ष पहले भी आया था...जिसे मैं यहां दर्ज कर दिया था... तुम बेसहारा हो तो