रविवार, 27 जुलाई 2014

चलिए मिलते हैं आज ९० वर्ष के युवा सैक्सपर्ट डा महेन्द्र वत्स से.....

रेडियो में देर रात आजकल एक प्रोग्राम आता है ..लव गुरू.......जो भी उस कार्यक्रम में लव गुरू का काम करता है, वह लोगों को अच्छे से बिल्कुल दोस्ताना अंदाज़ में गाइड करता दिखता है। बिल्कुल एक सच्चे दोस्त की तरह वह अपनी सिचुएशन ब्यां करने वाले लोगों को उस से जूझने का रास्ता सुझा देता है। बीच बीच में पुराने फिल्मी गीतों की अच्छी डोज़ भी दी जाती है। यह कार्यक्रम रात में रेडियो सिटी चैनल पर आता है।

सैक्स गुरू .. डा महेन्द्र वत्स 
बीबीसी न्यूज़ के होमपेज पर आज एक सैक्स गुरू के चित्र के साथ  एक लिंक देखा जो कि ९० वर्ष की उम्र में भी पूरी सक्रियता से लोगों के सेक्स से संबंधित प्श्नों का रोज़ाना उत्तर देते हैं। अब तक ३०हज़ार के करीब प्रश्नों के उत्तर वे दे चुके हैं।
Ask the Sexpert : The 90-year-old sex guru

अभी मैंने डा वत्स के बारे में पढ़ना शुरू ही किया था तो मुझे ऐसे लगा कि नाम तो कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है। फिर आगे इसी लेख में पढ़ा कि वे रोज़ाना मुंबई मिरर में पाठकों के सैक्स से संबंधित प्रश्नों का जवाब देते हैं। फिर मुझे ध्यान आया कि अच्छा, तो यह ग्रेट बंदा है जो इतनी सच्चाई और सटीकता से इन सब प्रश्नों का जवाब देता है।

अभी कुछ दिन पहले मैं मुंबई में था तो रोज़ाना मुंबई मिरर पढ़ता ही था, और उन के कॉलम पर भी नज़र पड़ ही जाती थी। उस कॉलम में प्रश्न और उन के उत्तर देख कर यही लगता था कि ये उत्तर किसी ऐसे वैसे ने नहीं बल्कि किसी विशेषज्ञ द्वारा ही दिए गये हैं, क्योंकि हर प्रश्न को बड़ी सहानुभूति एवं वैज्ञानिक सत्यता के आधार पर हैंडल किया गया पाया। लेकिन आज इस का राज़ खुला जब यह खुलासा हुआ कि इस कॉलम के कर्ता-धर्ता ये डा वत्स साहब हैं।

सैक्स ऐजुकेशन के बारे में क्या बात करें, आए दिन जब विध्यार्थियों को सैक्स ऐजुकेशन दिए जाने की बात होती है तो इतनी राजनीति होती है अगले कुछ दिनों तक फिर सब कुछ ठंडा पड़ जाता है और एक स्तरीय सैक्स ऐजुकेशन के अभाव में छात्रों को उन की तरूणावस्था और युवावस्था के शुरूआती दिनों में भगवान के भरोसे छोड़ कर चैन की सांस ले ली जाती है।

बहुत आ रहा है कि सैक्स ऐजुकेशन का न ही यह मतलब है कि बस आप को बच्चों को प्रजनन अंगों की नीरस सी बॉयोलाजी ही पढ़ानी है, और न ही सैक्स ऐजुकेशन से कोई ऐसी मांग ही की जा रही है कि वह काम-सूत्र के पाठ पढ़ाने लगेगी.....नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं .....बस इतना सी अपेक्षा तो बनती है कि छात्रों की उन की अवस्था के अनुसार उन के शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में अच्छे से आश्वस्त तो करवा ही दिया जाए...लड़के हों या लड़कियां, उस उम्र में प्रश्न केवल दो चार ही होते हैं ..सैक्सुएलिटी के बारे में......लेकिन पांच-सात-दस साल तक वही प्रश्न हमारी जान लिए रहते हैं।

अपने दिल पर हाथ रख के टटोलें कि ऐसा आप के साथ हुआ कि नहीं, क्या कुछ प्रश्न ऐसे नहीं थे जिस की वजह से आप अपनी पढ़ाई ठीक से न कर पाए या अभी भी पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहे.......हां, मैं तो नहीं कर पाया, उस उम्र में होने वाली सामान्य सी शारीरिक परिस्थितियों को मैं पांच-सात वर्ष तक विभिन्न काल्पनिक बीमारियों से इक्वेट करता रहा ...किस से पूछते उस दौर में कि ऐसा क्यों होता है ..रात में सोते सोते अपने आप वीर्य स्खलन कैसे हो जाता है, इतने कामुक स्वपन उस उम्र में क्यों आते हैं ...वगैरह वगैरह....... उफ़, वे भी क्या दिन थे....सिर भारी ही रहता था सोच सोच कर कि पता नहीं यह सब क्या है, पता नहीं यह क्या कोई भयंकर बीमारी है क्या।

पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था ...कहीं से २१ उम्र में एक किताब हाथ लग गई कि यह सब सामान्य है, बस उसे पढ़ कर जैसी ज़िंदगी ही बदल गई। धीरे धीरे सब कुछ अपने आप ठीक हो गया....ठीक क्या हो गया, पहले भी ठीक ही था, लेकिन मुझे ही नहीं पता था कि यह सब उस उम्र में कितनी सामान्य सी बात थी।

हां, बात तो हो रही थी इन डाक्टर साहब की। इन की इंटरव्यू आप इस लिंक पर जा कर देख सकते हैं। इंगलिश में बात कर रहे हैं, लेकिन आसानी से बातें समझ में आ जाएंगी।

बीबीसी न्यूज़ की साइट पर पड़े इस आर्टीकल को आप पूरा ज़रूर पढ़ें और देखें अगर आप को ज़रूरत लगती है किसी के साथ इस लेख को शेयर करने की तो शेयर भी करें।

अब डा वत्स के इतने बढ़िए लेख के बारे में मैं और क्या लिखूं......सब कुछ तो इतने बढ़िया तरीके से वह पिछले ५० वर्षों से किए जा रहे हैं, काश, हमें भी कोई ऐसे डा वत्स स्कूल के दिनों में मिल गये होते तो हम भी अपना दिमाग फिजूल की चिंताओं से मुक्त कर पाते। आते तो थे हमारे स्कूल में भी कुछ डाक्टरनुमा लोग जो हर वर्ष हमारा हैल्थ-चैक अप करते थे.....कभी उन से इन सब के बारे में बात करने की तमन्ना तो बहुत होती थी, लेकिन कभी भी हिम्मत न हो पाई....बस, एक बार इतनी हिम्मत सी जुटा ली कि उन्हें कह दिया कि कमज़ोरी सी महसूस होती है। उन्होंने एक पर्चे पर वॉटरबरी टॉनिक लिख दिया....... शाम को पापा को वह पर्चा दिया, वे बाज़ार से तुरंत ले कर आ गए। लेिकन मन की बातें तो मन ही में रह गईं।

मेरा इन डाक्टर वत्स साहब के बारे में यह विचार है कि वे एक बहुत ही महान काम कर रहे हैं, जहां लोग सैक्स के बारे में बोलना एक पाप जैसा समझते हैं, ऐसे में इन डा साहब की वजह से लोग दिल खोल कर अपनी शंकाओं का निवारण कर रहे हैं। कभी फुर्सत हो तो इन के प्रश्न-उत्तर के इन पन्नों को खोल कर देखिएगा (न तो मैं यौन रोग विशेषज्ञ हूं और न ही इस तरह के विभिन्न अनुभव हैं... वैसे इस से कोई खास फर्क भी नहीं पड़ता,  मैं इतना तो कह ही सकता हूं कि कम से कम डा वत्स जैसा कोई ऐसा शख्स  है तो जो इन सब के बारे में बात कर रहा है, जिस से आप अपना दिल खोल सकते हैं, लेकिन कुछ निर्णय लेने आप के अपने विवेक पर भी निर्भर होते हैं...........बहरहाल, मेरी राय में वे एक प्रशंसनीय काम कर रहे हैं)

और जहां तक स्कूल में सैक्स शिक्षा की बात है, इसी लेख में एक वीडियो भी है जिस में इस पर बहुत सही कटाक्ष किया गया है कि हमारे सिस्टम ने सैक्स शिक्षा को कितना बड़ा मज़ाक बना कर रखा हुआ है।इस यू-ट्यूब वीडियो को  कुछ ही दिनों में १५ लाख के करीब लोग देख चुके हैं।


लगता है अब बस करूं......डा साहब का लेख और उन के प्रश्न उत्तर पढ़ने का भी समय आप को मिलना चाहिए।
जाते जाते एक बात.......अकसर हिंदी की स्थानीय अखबारों में देखते हैं किस तरह से युवाओं को गुमराह करने वाले विज्ञापन और यहां तक की नीम हकीमों के नुस्खे छपते रहते हैं जो उन की काल्पनिक तकलीफ़ों को दूर करने का ढोल पीटते नहीं थकते। बाकी सब तो आप उस लेख में पढ़ ही लेंगे लेकिन उस पेज पर डा वत्स से पूछे दो एक प्रश्न और उन के जवाबों को  शेयर करने से रहा नहीं जा रहा.......

प्रश्नकर्ता- डा साहब, मेरा लिंग छोटा है, और मुझे लगता है कि मैं अपनी गर्ल-फ्रेंड को संतुष्ट नहीं कर पाता हूं। मेरे ज्योतिषी ने मुझे कहा है कि मैं इसे रोज़ाना एक शलोक को पढ़ते हुए १५ मिनट तक खींचा करूं। मैं यह सब पिछले एक महीने से कर रहा हूं लेकिन कुछ भी फायदा नहीं हुआ...अब मुझे क्या करना चाहिए?

डा वत्स ने उत्तर दिया है.......... बच्चे, अगर तुम्हारा ज्योतिषी सही कह रहा होता तो ज्यादातर पुरूषों के लिंग इतने लंबे हो जाते कि वे उन की घुटनों तक पहुंच जाते। ईश्वर भी इस तरह से किसी की भी बात में आ जाने वाले बेवकूफ़ लोगों की मदद नहीं कर पाते। जाओ, जा कर किसे ऐसे सैक्स एक्सपर्ट से परामर्श लो जो तुम्हें प्यार करने के फंडे सिखा पाये।

एक और प्रश्न सुनिए.....मेरे परिवार की मांग है कि मैं शादी कर लूं लेकिन मैं लड़की के कौमार्य (विर्जिन) को  लेकर कैसे आश्वस्त हो सकता हूं ...

डा वत्स का जवाब सुनिए.....मेरी सलाह है कि तुम शादी कर लो। जब तक तुम किसी लड़की की विर्जिनिटी जानने के लिए जासूस ही न रख लो, तुम यह नहीं जान पाओगे। अपनी शक्की स्वभाव से बेचारी लड़की को बचा लो।

  PS......ईमानदारी से सब कुछ लिखना बहुत हल्कापन लाता है........लेिकन इसे आते आते बहुत समय बीत जाता है।
आप इस लिंक पर क्लिक कर के डा वत्स के बारे में हिंदी में भी बहुत कुछ जान सकते हैं।


एकदम खालिस कैफ़ीन भी बिकती है इंटरनेट पर

अभी अभी यह जानना भी मेरे लिए एक बड़ी खबर थी कि शुद्ध कैफ़ीन पावडर इंटरनेट से भी खरीदा जा सकता है।

कैफ़ीन से अपना परिचय कालेज के दिनों में हुआ.....जब हमें यह पता चला कि चाय-काफी में भी कैफ़ीन होती है और थोड़ी बहुत मात्रा में तो ठीक है, यह ताज़गी देती है लेकिन इस की ज़्यादा मात्रा से कईं प्रकार का नुकसान होता है। यह भी तो एक तरह का नशा ही हुआ क्योंकि इस के ऊपर फिर एक तरह से डिपेंडैंस हो जाती है। 

कैफ़ीन की विशेषता यह भी सुनते थे अपनी फार्माकॉलोजी की प्रोफैसर से कि गांव के लोग क्यों बुखार वार होने पर एक प्याली चाय पी कर ही ठीक हो जाया करते थे, वह भी इसी कैफ़ीन का कमाल ही होता था---दवाईयों के वे लोग ज़्यादा आदि थे नहीं, इसलिए यह भी एक दवाई का ही काम करती थी, चाय पीने के बाद उन का पसीना-वीना निकल जाता था और वे छोटी मोटी तकलीफ़ से बाहर निकल आया करते थे, तरोताज़ा सा महसूस कर लेते थे। 

अभी ध्यान आ रहा था कि बचपन में हमारे दौर के लोगों की जुबां पर एक दवाई का नाम चढ़ गया था.......एपीसी......  APC... बाद में कॉलेज में फार्माकॉलोजी पढ़ने के दौरान पता चला कि इस में ए का मतलब है एसिटाअमाईनोफैन, पी से से फिनैसेटिन और सी से कैफ़ीन.... यह टेबलेट बड़ी पापुलर सी हुआ करती थी। सरकारी अस्पतालों के नुस्खों पर पहली दवा यही हुआ करती थी..... फिर अस्सी के दशक में अमेरिका में जब फिनेसेटिन पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो फिर यह टेबलेट यहां से भी गायब हो गई। हमारे घर में भी एपीसी की गोलियां बहुत इस्तेमाल हुआ करती थीं....दांत दर्द, बदन दर्द, सिर दर्द, बुखार, ..हर किस्म के दर्द का बस एक ही इलाज हुआ करता था। 

इस पृष्ठभूमि के साथ अपनी बात कहनी शुरू करें....शुद्ध कैफ़ीन के बारे में। यह जो शुद्ध कैफ़ीन पावडर के पैकेट इंटरनेट पर बिक रहे हैं, यह एक चिंताजनक ट्रेंड है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इस के बारे में लोगों को सावधान करते हुआ कहा है कि शुद्ध कैफ़ीन का एक चम्मच कॉफी के २५ कपों को एक साथ पी लेने के बराबर है।

एफ डी आई ने मां-बाप को भी इस मुसीबत से बच्चों को बचाए रखने के लिए कहा है क्योंकि यह कैफ़ीन एक बहुत शक्तिशाली स्टुम्लैंट (उत्तेजित करना वाला) है और ज़रा सी भी लापरवाही से शुद्ध कैफ़ीन की थोड़ी सी मात्रा से भी ओवरडोज़ का खतरा हो सकता है। 

मैं जो चेतावनी पढ़ रहा था उस में स्पष्टता से लिखा है कि कैफ़ीन की ओवरडोज़ से दिल की धड़कन में कुछ खतरनाक बदलाव, दौरे और मृत्यु तक हो सकती है। उल्टी आना, दस्त लगना और बेसुध सा हो जाना कैफ़ीन की विषाक्ता के लक्षण हैं। और शुद्ध कैफ़ीन के पावडर रूप में सेवन करने में ये लक्षण चाय, काफ़ी, या अन्य कैफ़ीन सम्मिलित पेय पदार्थ पीने वालों की अपेक्षा में बहुत ज़्यादा उग्र किस्म के होते हैं। 
अब ऑनलाइन पर हर कुछ खरीदना वैसे ही बहुत आसान सा हो गया है, मन में विचार आया और तुरंत खरीद लिया और अगले दिन आप के द्वार पर सामान पहुंच जाता है, ऐसे में स्वयं भी सचेत रहिए, दूसरों को भी करते रहिए।