शनिवार, 12 जनवरी 2008

मोशन सिकनैस--- जब मतली कर देती है हालत पतली


दोस्तो, अकसर हम देखते हैं कि बसों, गाड़ियों एवं अन्य वाहनों में यात्रा कर रहे लोगों को अकसर बार-बार मतली होने लगती है और कईँ बार तो यह उल्टियां उन की यात्रा का सारा मज़ा ही किरकिरा कर देती है। दोस्तो, मैं तो स्वयं ही इस का भुक्त-भोगी हूं ---- बस में यात्रा करना मेरे लिए आज भी आफ़त से कम नहीं है। लेकिन यह जरूरी नहीं कि बस में ही यात्रा के दौरान किसी को यह तकलीफ़ हो, किसी को मोटर-कार में अथवा किसी को गाड़ी में भी यह तकलीफ होना बिलकुल संभव है। तो फिर इस से बचें कैसे.....अथवा एक बार जब ये उल्टियों वगैरह का चक्कर शुरू हो ही जाए तो इस से कैसे निबटा जाए।

तो, दोस्तो, सुनिए इस मोशन सिकनैस से बचने का सब से कारगर तरीका है कि आप बस अथवा गाड़ी (जिस के दौरान भी आप को यह तकलीफ होती है) में चढ़ने से लगभग आधा-या पौन घंटा पहले एक टेबलेट पानी के साथ ले लें.....उस टेबलेट में प्रोमैथाज़ीन नाम की दवा रहती है और यह 25(पच्चीस मिलीग्राम) की टेबलेट आसानी से बाज़ार में मिलती है। इस का एक ब्रांड तो बेहद पापुलर है— लेकिन मैं इस ब्रांड का नाम लिखना यहां ठीक नहीं समझता। दस टेबलेट्स की स्ट्रिप लगभग पच्चीस रूपये की मिलती है। फिर भी आप किसी भी केमिस्ट से जब सफर में उल्टियों आदि से बचाव की टेबलेट मांगेगे तो अधिकतर आप को यही ब्रांड ही मिलेगा। वैसे तो ब्रांड कोई भी हो, लेकिन ध्यान बस यह रहे कि उस में साल्ट प्रोमैथाज़ीन ही हो। अगर आप एक टेबलेट सफ़र शुरू होने से आधा-पौन घंटा पहले पानी से ले लेते हैं तो आप अगले 6-8 घंटे के लिए निश्चिंत हो सकते हैं। दस साल से कम आयु के बच्चों को इस पच्चीस मिलीग्राम की आधी टेबलेट ही काफी है।

कुछ और बातों की तरफ ध्यान दीजिएगा-
  • ये दवाई तो तभी प्रभावी है अगर इसे सफर शुरू होने के आधा-पौना घंटे पहले ले लिया जाए।
  • जिन लोगों को मोशन-सिकनैस की शिकायत होती हो, वो ये टेबलेट तो ले लें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि इस को लेने से पहले पेट को परांठों से कहीं ठूंस मत लें। उन्हें तो सफर से पहले अथवा सफर में बिल्कुल हल्के फुल्के पेय-पदार्थ ( नहीं, नहीं, मैं कोल्ड-ड्रिंक्स की बात नहीं कर रहा) जैसे कि पतली लस्सी , नींबू-पानी, शर्बत, फलों का जूस इत्यादि ही लेना चाहिए....कोई एक-आध फल भी ले लें तो ठीक ही है। गलती से भी बच्चों के स्पाईसी स्नैक्स, भुजिया वगैरा न चख लें....हालत पतली से भी पतली हो जाएगी.....उसे क्या कहेंगे, पता नहीं।
  • अगर आप ने यह टेबलेट यात्रा शुरू होने के बाद मतली होने पर ली है तो इस का कोई इफैक्ट होता नहीं है।
  • वैसे तो दोस्तो इस बात का मोशन-सिकनैस से कोई सीधा संबंध है नहीं, लेकिन शायद मनोवैज्ञानिक रूप में ही सही, कुछ तो जरूर लगता है ......यात्रा से पहले अपना पेट साफ़ होने देना चाहिए।
चलो दोस्तो, अब छोड़ें इस बात को ---इस का एक छोटा सा सुखद पहलू यह भी है कि यह आस-पास की सीटों पर बैठे लोगों में अचानक सहानुभूति की एक भावना सी जगा देता है....झट से खिड़की वाली सीट खाली कर दी जाती है,कोई मेरे जैसे डाक्टर झट से कोई गोली निकाल लेता है, कोई मेरी मां जैसी अपनी चूरण की डिब्बी झट से निकाल लेती है, कोई वही दशकों से चली आ रही संतरे वाली खट्टी-मीठी गोली आप को देना चाहता है तो कोई अपने थैले में रखे हुए आधे नींबू के ऊपर नमक लगा कर थमा देता है .................How touching and how lovely !! This is real India where everybody is concerned about fellow passengers। Of course, except the ones who smoke in a crowded bus – these souls are least concerned about anything else – except ‘roasting their own lungs”----but, friends, this second hand smoke is a great contributing factor towards initiation of motion-sickness type symptoms in susceptible individuals like me….so, just take care and don’t hesitate to ask a smoker to stop it at least for the sake of his fellow passengers.

दोस्तो, परसों शाम को जब मैं भी बस की एक घंटे की यात्रा के दौरान सोनीपत जा रहा था, तो भरी बस में जब मैंने धुएं की छल्ले देखे तो मुझे पता लग गया कि आज मेरी खैर नहीं। कंडैक्टर को कहा कि यार, बंद करवाओ न ये बीड़ी......उस बेचारे ने भी अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए यह कह दिया कि क्या करें, ये नहीं मानते, मैं तो खुद बीड़ी नहीं पीता, लेकिन क्या करें। खैर, अभी यह बात खत्म ही हुई होगी कि मेरा उल्टियों का सिलसिला शुरू हो गया......पर जब मैं दरवाजा खोल कर अपने आप को हल्का करने की कोशिश कर रहा था,तो कंडैक्टर ने एक मिनट के लिए बस रूकवा दी।

और, मैने एक बार फिर से सबक ले लिया है कि वो प्रो-मैथाज़िन की गोलियों की एक स्ट्रिप हमेशा घर में रखनी चाहिएं....क्या पता कब जरूरत पड़ जाए। अगली बार यात्रा के दौरान आप भी ध्यान रखिएगा.....take care, please !!

आप को आखिर कैमिस्ट से बिल मांगते हुए इतनी झिझक क्यों आती है ?


आप भी न्यूज़ मीडिया में अकसर नकली दवाईयों की खेप पकड़ने की खबरें देखते-सुनते रहते हैं , लेकिन अभी भी आप यही समझते हैं कि ये दवाईयों आप तक तो पहुंच ही नहीं सकतींतो, क्या आप नकली-असली में भेद जानने की काबलियत हासिल करना चाहते हैंअफसोस, दोस्त, मैं आप के जज़बात की कद्र करता हूं लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप कितनी भी कोशिशों के बावजूद ऐसा कर नहीं पाएंगेदोस्तो, हमें चिकित्सा के क्षेत्र में इतने साल हो गएयह काम अभी तक हम से भी नहीं हो सका !! तो फिर आप यही सोच रहे हैं कि आखिर करें तो करें क्या ---खाते रहे ऐसी वैसी दवाईया ? आखिर क्या करे आम बंदा ?-----दोस्तो, इस विषम समस्या से जूझने का केवल एक ही तरीका जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि आप कैमिस्ट से चाहे दस रूपये की भी दवाई लें,आप उस से बिल मांगने में कभी भी झिझक महसूस करें, प्लीज़आप यह समझ कर चलें कि जब आप बिल की मांग करेंगे तो आप को दवाई भी असली ही मिलेगी----नकली दवाई तो मिलने का फिर सवाल ही नहीं उठता,क्योंकि कैमिस्ट को उस बिल में दवाई के बारे में पूरा ब्यौरा देना पड़ता हैअगर हम इतनी सी सावधानी बरत लेंगे तो हमें पास की किसी बस्ती में बनी दवाईयों खरीदने से भी निजात मिल जाएगी


एक बात और जिस का विशेष ध्यान रखें वह यह है कि बसों वगैरह में जो सेल्स-मैन दर्द-निवारक दवाईयों के पत्ते बेचने आते हैं , उन से कभी भी ये दवाईयां खरीदेंचाहे ये सेल्समैन किसी IIM institute से नहीं निकले होते, फिर भी इन बंदों की salesmanship की दाद दिए मैं नहीं रह सकता----ठीक वही बात, दोस्तो, कि वे तो बिना बालों वाले को भी कंघी बेच डालें ! फिर भी मुझे,दोस्तो, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि ये बलाग्स लिखने-पढ़ने वाले उन की बातों में सकते हैंलेकिन फिर भी मैं यह सब लिख रहा हूं ताकि आप के माध्यम से यह जानकारी आम इंसान तक पहुंच सके


दोस्तो, एक विचार जो मुझे कुछ दिनों से परेशान कर रहा है ,वह यह है कि कहीं आप को मेरी posts पढ़ कर यह तो नहीं लगता कि ये सब छोटी छोटी बातें जो मैं अकसर उठाता रहता हूं, यह तो सब को पहले ही से पता हैं..........दोस्तो, मेरा तो बस इतना सा तुच्छ प्रयास है कि ठीक है पता हैं तो अब इन को प्रैक्टीकल शेप दीजिए ----और अपने आसपास भी इन छोटी छोटी दिखने वाली बातों के प्रति जनचेतना पैदा करेंबस, दोस्तो मेरे पास यही छोटी छोटी बातें ही हैं-----जिस बंदे ने बस अपनी सारी ज़िंदगी इन छोटी-छोटी बातों के प्रचार-प्रसार के नाम लिख दी है, उस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ??।


दोस्तो, आप से एक रिक्वेस्ट है कि कृपया मुझे अपनी मेल कर के अथवा अपनी टिप्पणी/ feedback में यह भी लिखें कि इस बलाग के माध्यम से किन मुद्दों को छूया जाएवैसे तो मैं यह स्पष्ट कर ही दूं कि मैं कोई ऐसा तीसमार खां भी नहीं हूं---बस जो दो बातें पता हैं उन्हें आप सब से शेयर कर के अच्छा लगता है, बस और कुछ नहींबाकी सब बातें तो मैंने आप सब से सीखनी हैं..................obviously in this wonderful platform of blogging…..where we understand, share and learn from each other’s wisdom and experience.

आप को आखिर कैमिस्ट से बिल मांगते हुए इतनी झिझक क्यों आती है ?


आप भी न्यूज़ मीडिया में अकसर नकली दवाईयों की खेप पकड़ने की खबरें देखते-सुनते रहते हैं , लेकिन अभी भी आप यही समझते हैं कि ये दवाईयों आप तक तो पहुंच ही नहीं सकतींतो, क्या आप नकली-असली में भेद जानने की काबलियत हासिल करना चाहते हैंअफसोस, दोस्त, मैं आप के जज़बात की कद्र करता हूं लेकिन मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आप कितनी भी कोशिशों के बावजूद ऐसा कर नहीं पाएंगेदोस्तो, हमें चिकित्सा के क्षेत्र में इतने साल हो गएयह काम अभी तक हम से भी नहीं हो सका !! तो फिर आप यही सोच रहे हैं कि आखिर करें तो करें क्या ---खाते रहे ऐसी वैसी दवाईया ? आखिर क्या करे आम बंदा ?-----दोस्तो, इस विषम समस्या से जूझने का केवल एक ही तरीका जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि आप कैमिस्ट से चाहे दस रूपये की भी दवाई लें,आप उस से बिल मांगने में कभी भी झिझक महसूस करें, प्लीज़आप यह समझ कर चलें कि जब आप बिल की मांग करेंगे तो आप को दवाई भी असली ही मिलेगी----नकली दवाई तो मिलने का फिर सवाल ही नहीं उठता,क्योंकि कैमिस्ट को उस बिल में दवाई के बारे में पूरा ब्यौरा देना पड़ता हैअगर हम इतनी सी सावधानी बरत लेंगे तो हमें पास की किसी बस्ती में बनी दवाईयों खरीदने से भी निजात मिल जाएगी


एक बात और जिस का विशेष ध्यान रखें वह यह है कि बसों वगैरह में जो सेल्स-मैन दर्द-निवारक दवाईयों के पत्ते बेचने आते हैं , उन से कभी भी ये दवाईयां खरीदेंचाहे ये सेल्समैन किसी IIM institute से नहीं निकले होते, फिर भी इन बंदों की salesmanship की दाद दिए मैं नहीं रह सकता----ठीक वही बात, दोस्तो, कि वे तो बिना बालों वाले को भी कंघी बेच डालें ! फिर भी मुझे,दोस्तो, ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि ये बलाग्स लिखने-पढ़ने वाले उन की बातों में सकते हैंलेकिन फिर भी मैं यह सब लिख रहा हूं ताकि आप के माध्यम से यह जानकारी आम इंसान तक पहुंच सके


दोस्तो, एक विचार जो मुझे कुछ दिनों से परेशान कर रहा है ,वह यह है कि कहीं आप को मेरी posts पढ़ कर यह तो नहीं लगता कि ये सब छोटी छोटी बातें जो मैं अकसर उठाता रहता हूं, यह तो सब को पहले ही से पता हैं..........दोस्तो, मेरा तो बस इतना सा तुच्छ प्रयास है कि ठीक है पता हैं तो अब इन को प्रैक्टीकल शेप दीजिए ----और अपने आसपास भी इन छोटी छोटी दिखने वाली बातों के प्रति जनचेतना पैदा करेंबस, दोस्तो मेरे पास यही छोटी छोटी बातें ही हैं-----जिस बंदे ने बस अपनी सारी ज़िंदगी इन छोटी-छोटी बातों के प्रचार-प्रसार के नाम लिख दी है, उस से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ??।


दोस्तो, आप से एक रिक्वेस्ट है कि कृपया मुझे अपनी मेल कर के अथवा अपनी टिप्पणी/ feedback में यह भी लिखें कि इस बलाग के माध्यम से किन मुद्दों को छूया जाएवैसे तो मैं यह स्पष्ट कर ही दूं कि मैं कोई ऐसा तीसमार खां भी नहीं हूं---बस जो दो बातें पता हैं उन्हें आप सब से शेयर कर के अच्छा लगता है, बस और कुछ नहींबाकी सब बातें तो मैंने आप सब से सीखनी हैं..................obviously in this wonderful platform of blogging…..where we understand, share and learn from each other’s wisdom and experience.

1 comments:

Neeraj Rohilla said...

डाक्टर साहब,
आपका प्रयास सराहनीय, आप अपने प्रयासों को जारी रखिये । लोग टिप्पणी भले ही न करें लेकिन आपके ब्लाग को पढ अवश्य रहे होंगे । दूसरे, आपका लिखा हुआ अगर कोई ६ महीने या एक साल बाद भी पढेगा तो भी उसे फ़ायदा ही होगा । मैं आपसे निम्न विषयों पर लिखने की गुजारिश करूँगा ।

१) शराब पीना: लेकिन मैं इस विषय पर आपका लेख सामाजिक परिपेक्ष में नहीं बल्कि ठेठ चिकित्सा विज्ञान की नजर से जानना चाहूँगा ।

२) दमे/अस्थमा की बीमारी: मेरे परिवार के एक सदस्य इस बीमारी से पीडित हैं इसलिये मैं इस विषय पर और जानकारी चाहूँगा ।

साभार,