एक बार सत्संग में एक प्रेरणात्मक प्रसंग सुना...खेत मे एक जगह सूखे भूसे जैसा कुछ पड़ा हुआ था, एक शैतान पंक्षी को शरारत सूझी, कहीं से आग की चिंगारी उठा ले आकर उस पर फैंक दी, देखते ही देखते आग जंगल की आग की तरह चारों तरफ़ फैलने लगी। एक चिड़िया दूर किसी पेड़ पर बैठी यह मंज़र देख रही थी.....वह तुरंत उड़ कर दूर एक तालाब तक गई, वहां से चोंच में भर कर पानी लाई... और धधकती आग पर उस पानी को छिड़क कर वापिस तालाब से पानी लेने चली गई..यह सिलसिला चल रहा था, तपिश के कारण उस का बुरा हाल हो रहा था, लेकिन उस की सेवा निरंतर चल रही थी।
इतने में दूर से आग का मंज़र देख रहे एक आदमी से रहा नहीं गया, उस ने उस से पूछ ही लिया.. अरी चिड़िया, तुम जो इतना परेशान हो रही है, इतनी बड़ी आग है, चोंच भर पानी के छिड़काव से आखिर क्या हो जाएगा। चिड़िया ने तुरंत जवाब दिया.....देखो, समझदार इंसान, मुझे नहीं पता कुछ होगा कि नहीं, लेकिन इतना तो मानते हो कि जब इस आग का इतिहास लिखा जाएगा, तो मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं, बल्कि आग बुझाने वालों में दर्ज होगा। क्या इतना कम है?
मुझे इस प्रेरक प्रसंग ने बहुत बार प्रेरणा दी।
आज एक इंसान से आप को मिलाना है, यह तस्वीर आप जो देख रहे हैं, यह ७८ वर्षीय रिटायर्ड रेलकर्मी श्री निहाल सिंह जी की है। इन्हें रेलवे से सेवानिवृत्त हुए बीस वर्ष हो चुके हैं, लेकिन अभी भी मैं इनमें बच्चों जैसा उत्साह देखता हूं। खूब साईकिल चलाते हैं, योगाभ्यास करते हैं और सदैव खुश रहते हैं।
मैं इन को पिछले लगभग एक वर्ष से देख रहा हूं...यह लोगों को योगाभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं......उन्हें योग की किताबें-प्रतिकाएं पढ़ने को दे जाते हैं, और कुछ भी अपने अनुभव बांटते रहते हैं।
मैं जब भी इन्हें देखता हूं तो यही सोचता हूं कि समाज सेवा केवल कोई बड़े बड़े संगठनों द्वारा ही नहीं की जा रही, बल्कि ऐसे लोग भी अपनी धुन में पता नहीं कितने लोगों का अपनी क्षमता के अनुसार भला करते रहते हैं।
जितनी बार भी मिलता हूं इन से और बात करता हूं तो इन का एक अलग पहलू ही जानने को मिलता है....कईं बार ये जोधपुर के सेवा संस्थान के लिए दान देने के लिए प्रेरित करते दिखते हैं.. कभी अनाथ बच्चों की किसी संस्था के समर्थन में आप से दो बातें करते हैं।
अस्पताल में जहां कहीं भी दिखते हैं किसी न किसी की सहायता या किसी का मार्गदर्शन ही करते इन्हें देखा है।
आज भी जब यह अस्पताल में आए तो इन के पास एक अखबार में प्रकाशित एक विज्ञापन की कुछ कापियां थीं, मुझे भी पांच छः देकर कहने लगे कि आप भी इसे आगे बांट देना। विज्ञापन यही है कि एक समाचार पत्र ने पर्यावरण संरक्षा हेतु पुराने अखबार अपने नेटवर्क द्वारा इक्ट्ठा करने का एक अभियान चला रखा है, यही लिखा था उस पर और पेड़ों के महत्व की बातें बड़े अच्छे ढंग से लिखी थीं।
आप सुन रहे हैं ना इन का कुछ भी अच्छा काम रोज़ाना करने का ज़ज्बा..........हां, एक और बात......आप पता चला कि ये सुबह सुबह जब सैर के लिए निकलते हैं तो सड़कों पर चल रही स्ट्रीट लाइटों के स्विचों को बंद करते चलते हैं। जब उन्होंने यह कहा कि पता है कि एक घंटे में ये मरकरी के लैंप कितनी बिजली खा जाते हैं तो मुझे उन के दर्द में बिल्कुल ऐसा अपनापन था जैसा अपने घऱ में बिजली की फिजूलखर्ची पर होता है।
रेलवे में हूं ......ऐसी बहुत सी शख्सियतों से मिलता रहता हूं.....जो कुछ न कुछ प्रेरणादायी किए जा रहे हैं। पहले जहां था वहां एक ८५ से भी ऊपर के शख्स थे जो रिटायर्ड लोगों की चिट्ठीयों की मदद, उन की विधवाओं की पैंशन के फार्म या किसी परेशान करने वाले बाबू या किसी की भी खबर लेनी होती थी तो पहुंच जाते थे। सब कुछ निःस्वार्थ भाव की सेवा।
एक रिटायर्ड कर्मचारी को मैं देखता था कि बैंक में , एक को डाकखाने में जा कर लोगों के फार्म भरने, लोगंों को गाइड करना, उन की जितनी भी हो सके मदद कर देना......यह सब मैं लगभग १५ वर्षों से देख रहा हूं। अच्छा लगता है कि रिटायर होने पर किस कद्र सेवा का जज्बा इन में ज़िंदा है, हम सब के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है।
एक बार और...जाते जाते पता नहीं क्या बात हुई........कि कहने लगे श्री निहाल सिंह जी कि डाक्टर साहब, अब ये कुर्ते-पायजामे पांच-छः इक्ट्ठे हो गये हैं मेरे पास, इतने क्या करने हैं, कुर्ते फटते तो हैं नहीं, घर में रखे रखे क्या करना है इन्हें, अब इन्हें भी बांटना शुरू कर दूंगा।
वाह जी वाह, क्या बात कही........वे तो चले गये लेकिन मुझे यह ध्यान आया कि यह शख्स की तो पांच कुर्तों से ही ऐसी तृप्ति हो गई कि वे अब इन्हें ज़रूरतमंद बंदों को बांटने वाले हैं लेकिन जो मेरे घर में सैंकड़ों कमीज़े-पतलूनें पड़ी हैं, जिन का एक एक साल भर नंबर नहीं आता, मैंने उन्हें बांटने के लिए क्या किया ?....... कुछ भी तो नहीं, एक कड़वा सच। बस विचार आया और यह गया, वो गया, इस के आगे कुछ भी तो नहीं।
अब मैं ऊपर लिखे प्रेरक प्रसंग से निहाल सिंह जी जैसे लोगों के कामों को रिलेट कर सकता हूं......हमारे पास अनेकों अनेकों काम करने वाले हैं, लेकिन यही लगता है ना बहुत बार कि एक हमारे करने से क्या बदल जायेगा, नहीं ऐसा नहीं है, सब बदलेगा.....लेकिन वही चिड़िया जैसी भावना होनी चाहिए.......
इतने में दूर से आग का मंज़र देख रहे एक आदमी से रहा नहीं गया, उस ने उस से पूछ ही लिया.. अरी चिड़िया, तुम जो इतना परेशान हो रही है, इतनी बड़ी आग है, चोंच भर पानी के छिड़काव से आखिर क्या हो जाएगा। चिड़िया ने तुरंत जवाब दिया.....देखो, समझदार इंसान, मुझे नहीं पता कुछ होगा कि नहीं, लेकिन इतना तो मानते हो कि जब इस आग का इतिहास लिखा जाएगा, तो मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं, बल्कि आग बुझाने वालों में दर्ज होगा। क्या इतना कम है?
मुझे इस प्रेरक प्रसंग ने बहुत बार प्रेरणा दी।
श्री निहाल सिंह जी |
मैं इन को पिछले लगभग एक वर्ष से देख रहा हूं...यह लोगों को योगाभ्यास करने के लिए प्रेरित करते हैं......उन्हें योग की किताबें-प्रतिकाएं पढ़ने को दे जाते हैं, और कुछ भी अपने अनुभव बांटते रहते हैं।
मैं जब भी इन्हें देखता हूं तो यही सोचता हूं कि समाज सेवा केवल कोई बड़े बड़े संगठनों द्वारा ही नहीं की जा रही, बल्कि ऐसे लोग भी अपनी धुन में पता नहीं कितने लोगों का अपनी क्षमता के अनुसार भला करते रहते हैं।
जितनी बार भी मिलता हूं इन से और बात करता हूं तो इन का एक अलग पहलू ही जानने को मिलता है....कईं बार ये जोधपुर के सेवा संस्थान के लिए दान देने के लिए प्रेरित करते दिखते हैं.. कभी अनाथ बच्चों की किसी संस्था के समर्थन में आप से दो बातें करते हैं।
अस्पताल में जहां कहीं भी दिखते हैं किसी न किसी की सहायता या किसी का मार्गदर्शन ही करते इन्हें देखा है।
आज भी जब यह अस्पताल में आए तो इन के पास एक अखबार में प्रकाशित एक विज्ञापन की कुछ कापियां थीं, मुझे भी पांच छः देकर कहने लगे कि आप भी इसे आगे बांट देना। विज्ञापन यही है कि एक समाचार पत्र ने पर्यावरण संरक्षा हेतु पुराने अखबार अपने नेटवर्क द्वारा इक्ट्ठा करने का एक अभियान चला रखा है, यही लिखा था उस पर और पेड़ों के महत्व की बातें बड़े अच्छे ढंग से लिखी थीं।
आप सुन रहे हैं ना इन का कुछ भी अच्छा काम रोज़ाना करने का ज़ज्बा..........हां, एक और बात......आप पता चला कि ये सुबह सुबह जब सैर के लिए निकलते हैं तो सड़कों पर चल रही स्ट्रीट लाइटों के स्विचों को बंद करते चलते हैं। जब उन्होंने यह कहा कि पता है कि एक घंटे में ये मरकरी के लैंप कितनी बिजली खा जाते हैं तो मुझे उन के दर्द में बिल्कुल ऐसा अपनापन था जैसा अपने घऱ में बिजली की फिजूलखर्ची पर होता है।
रेलवे में हूं ......ऐसी बहुत सी शख्सियतों से मिलता रहता हूं.....जो कुछ न कुछ प्रेरणादायी किए जा रहे हैं। पहले जहां था वहां एक ८५ से भी ऊपर के शख्स थे जो रिटायर्ड लोगों की चिट्ठीयों की मदद, उन की विधवाओं की पैंशन के फार्म या किसी परेशान करने वाले बाबू या किसी की भी खबर लेनी होती थी तो पहुंच जाते थे। सब कुछ निःस्वार्थ भाव की सेवा।
एक रिटायर्ड कर्मचारी को मैं देखता था कि बैंक में , एक को डाकखाने में जा कर लोगों के फार्म भरने, लोगंों को गाइड करना, उन की जितनी भी हो सके मदद कर देना......यह सब मैं लगभग १५ वर्षों से देख रहा हूं। अच्छा लगता है कि रिटायर होने पर किस कद्र सेवा का जज्बा इन में ज़िंदा है, हम सब के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है।
एक बार और...जाते जाते पता नहीं क्या बात हुई........कि कहने लगे श्री निहाल सिंह जी कि डाक्टर साहब, अब ये कुर्ते-पायजामे पांच-छः इक्ट्ठे हो गये हैं मेरे पास, इतने क्या करने हैं, कुर्ते फटते तो हैं नहीं, घर में रखे रखे क्या करना है इन्हें, अब इन्हें भी बांटना शुरू कर दूंगा।
वाह जी वाह, क्या बात कही........वे तो चले गये लेकिन मुझे यह ध्यान आया कि यह शख्स की तो पांच कुर्तों से ही ऐसी तृप्ति हो गई कि वे अब इन्हें ज़रूरतमंद बंदों को बांटने वाले हैं लेकिन जो मेरे घर में सैंकड़ों कमीज़े-पतलूनें पड़ी हैं, जिन का एक एक साल भर नंबर नहीं आता, मैंने उन्हें बांटने के लिए क्या किया ?....... कुछ भी तो नहीं, एक कड़वा सच। बस विचार आया और यह गया, वो गया, इस के आगे कुछ भी तो नहीं।
अब मैं ऊपर लिखे प्रेरक प्रसंग से निहाल सिंह जी जैसे लोगों के कामों को रिलेट कर सकता हूं......हमारे पास अनेकों अनेकों काम करने वाले हैं, लेकिन यही लगता है ना बहुत बार कि एक हमारे करने से क्या बदल जायेगा, नहीं ऐसा नहीं है, सब बदलेगा.....लेकिन वही चिड़िया जैसी भावना होनी चाहिए.......