बुधवार, 7 जनवरी 2009

कईं बार ऐसा भी होता है – आगे कुआं पीछे खाई !!

पी.एस.ए टैस्ट – इस का पूरा नाम है प्रोस्टेट स्पैसिफिक ऐंटीजन टैस्ट। दोस्तो, यह तो हम सब जानते ही हैं कि बढ़ती उम्र के साथ कईं बार पुरूषों को पेशाब में थोड़ी दिक्तत सी होने लगती है ---बार बार पेशाब आना, बिल्कुल थोड़ा थोड़ा पेशाब आना, पेशाब करने में दिक्तत होना अर्थात् ज़ोर लगना। इन सब के बारे में आपने अकसर सुना होगा और यह भी सुना होगा कि ये सब प्रोस्टेट के बढ़ने के हो सकते हैं--- भारत के इस हिस्से में तो आम तौर पर यही कहा जाता है कि उस की गदूद बढ़ गई है।

गदूद बढ़ने को कहते हैं --- प्रोस्टेट एनलार्जमैंट । इस के लिये सर्जन से संपर्क करना आवश्यक होता है जो कि अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद और चैक-अप करने के बाद यह निर्णय लेते हैं कि इस का आप्रेशन करना अभी बनता है कि नहीं, क्या अभी दवाईयों से चलेगा या नहीं। इस में ऐसे भी कईं मरीज़ देखे जाते हैं जिन्हें थोड़ी बहुत तकलीफ़ तो होती है लेकिन वे इस तरफ़ ध्यान नहीं देते लेकिन एक दिन अचानक पेशाब रूक जाने की वजह से इन्हें एमरजैंसी में पेशाब के लिये नली ( catheter) भी डलवानी पड़ सकती है --- यह नली स्थायी तौर पर ही नहीं लग जाती --- इस से मरीज़ के रूके हुये पेशाब को निकाल दिया जाता है और उस के बाद इस बढ़े हुये प्रोस्ट्रेट के इलाज के बारे में सोचा जाता है।

अब देखते हैं एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात --- पुरूष की प्रोस्टेट ग्रंथि एक प्रोटीन बनाती है जिसे कहते हैं प्रोटीन स्पैसिफिक ऐंटीजन जिस के स्तर को रक्त की जांच द्वारा मापा जा सकता है। कुछ बीमारियों में जिन में प्रोस्टेट का कैंसर शामिल है प्रोस्ट्रेट इस को ज्यादा मात्रा में बनाने लगता है इसलिये किसी पुरूष के रक्त की जांच कर के डाक्टरों को प्रोस्टेट कैंसर का बिल्कुल प्रारंभिक अवस्था में पता चल सकता है।

डाक्टर लोग अभी तक इस के बारे में एक राय नहीं बना पाये हैं कि क्या 50 वर्ष की उम्र पार कर लेने पर सभी पुरूषों का यह टैस्ट करवाना उचित है । इस का कारण यह है कि इस प्रोस्टेट टैस्ट के द्वारा जिन प्रोस्टेट कैंसर का पता चलता है उन में से बहुत से केस ऐसे भी होते हैं जिन में से यह कैंसर प्रोस्टेट के एक बिल्कुल ही छोटे से क्षेत्र तक ही महदूद रहता है और ये कभी भी आगे फैलता नहीं है जिस की वजह से कोई मैडीकल व्याधियां उत्पन्न ही नहीं होती।

अब ऐसा है न कि इस तरह के बिल्कुल छोटे से कैंसर का भी जब किसी को पता चलता है और वह उस का कोई उपचार नहीं करवाता तो भी उस की तो रातों की नींद उड़ी रहती है। और अगर वह इस तरह के बिल्कुल छोटे कैंसर का ( जिस ने भविष्य में कभी फैलना ही नहीं था) --- उपचार करवा लेता है तो उस को इस के इलाज के संभावित साइड-इफैक्ट्स जैसे कि यौन-सक्षमता का खो जाना और पेशाब की लीकेज की शिकायत हो जाना ( possible side effects such as loss of sexual function, or leakage of urine). वैसे देखा जाए तो बिल्कुल उस कहावत जैसी बात ही यहां भी लग रही है न --- आगे कुआं पीछे खाई --- बंदा जाए तो कहां जाए !!

दूसरी तरफ़ बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर प्रोस्ट्रेट के ऐसे किसी कैंसर को प्रारंभिक अवस्था में ही पकड़ लिया जाए और समुचित उपचार कर दिया जाए तो समझ लीजिये बंदे को जीवनदान मिल गया। इसीलिये डाक्टर आज कर इस बात को खोज निकालने में पूरे तन-मन से लगे हुये हैं कि आखिर किस तकनीक से उन्हें यह पता लगे कि कौन सा प्रोस्टेट कैंसर फैलेगा और किस केस में यह शेर सारी उम्र सोया रहेगा ------- ताकि सोये हुये शेर को बिना वजह क्यों जगाया जाए !!

इस टैस्ट के लिये कोई विशेष तैयारी की आवश्यकता होती नहीं है लेकिन इस की रिपोर्ट कृत्तिम तौर पर बहुत बढ़ी हुई न आए ( artificially high test level) इस के लिये अमुक व्यक्ति को टैस्ट से पूर्व एक दिन संभोग नहीं करना चाहिये। और अगर आप कोई दवाईयां ले रहे हैं तो इस की जानकारी अपने डाक्टर को दे दें – इस से आप के डाक्टर को आप के टैस्ट का परिणाम समझने में आसानी होगी।

अब यह पोस्ट पढ़ने के बाद किसी के भी मन में यह प्रश्न पैदा होना स्वाभाविक है कि अब तक अगर डाक्टर लोग ही बिल्कुल छोटे प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिये अपनी एक राय नहीं बना पाये हैं तो हम लोग कैसे निर्णय लें कि इलाज करवायें या नहीं ---- सर्जरी करवाये या नहीं ---- इस का जवाब तो दोस्तो यही है कि ये जो ये जो मंजे हुये सर्जन होते हैं इन को मरीज़ की जांच करने के बाद, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट से , पीएसए टैस्ट से काफ़ी हद तक अनुमान हो ही जाता है कि इस केस की सर्जरी की आवश्यकता है कि नहीं !! और ध्यान रहे कि इन धुरंधर विशेषज्ञों की राय के आगे नतमस्तक होने के इलावा कोई चारा भी तो नहीं है क्योंकि इन्हें अंदर की भी सारी खबर है।

आज कल तो प्रोस्टेट के इलाज के लिये बहुत ही बढ़िया तकनीकों का पसार हो चुका है । दूरबीन से भी बढ़े हुये प्रोस्टेट को निकाल दिया जाता है --- इसलिये कोई इतना घबराने की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन बात इस बात का ज़रा ध्यान रहे कि अगर आप की नज़र में आप का कोई मित्र या संबंधी बढ़े हुये प्रोस्टेट के लिये दवाईयां खाये चला जा रहा है तो उसे कहें कि अगली बार किसी सर्जन से जब परामर्श हेतु जाएं तो इस टैस्ट के बारे में थोड़ी चर्चा ज़रूर करें।

क्या मैं भी कभी कभी सुबह सुबह इतने गंभीर विषयों पर लिखना शुरू कर देता हूं ---- तो, ठीक है , दोस्तो, खुश रहिये और परमात्मा आप सब को सेहत की नेमत से नवाज़ता रहे ---- मुझे अभी ध्यान आ रहा है कि मैं भी आप सब हिंदी के प्रकांड विद्वानों में घुस कर हिंदी के शब्दों की धज्जियां उड़ाने में लगा रहता हूं --- और आप सब लोग इतने विशाल हृदय हो कि फिर भी मुझे स्वीकार कर लेते हो--- दरअसल मैं जिन शब्दों को जैसा सुनता हूं वैसा ही लिख देता हूं --- कल ही एक सज्जन की पोस्ट से पता चला ( कथाकार डॉट काम) कि सही शब्द है खतो-किताबत न कि खतो-खिताबत जैसा कि मैं सोचा करता था --- और दोस्तो मुझे यह तो ज़रूर ही बताने की कृपा करें कि सही शब्द सांझा है या साझा ---किसे से विचार सांझे किये जाते हैं या साझे ----मुझे इस में बहुत बार दुविधा होती है !!

अच्छा तो आज का दिन आप सब के लिये बहुत सी खुशियां ले कर आए ---- दो दिन पहले कनॉट-प्लेस की एक दीवार पर लिखी इस बात का ध्यान आ रहा है ------ When you look for the good in others, you discover the best in yourself !!----- जब आप किसी दूसरे की अच्छाईयां ढूंढने में लग जाते हो और आप को खुद की श्रेष्टताएं , विलक्षणता स्वयं ही दिखनी शुरू हो जाती हैं ---कहने वाले ने भी कितना बढ़िया बात कर दी है, दोस्तो !!