सोमवार, 24 नवंबर 2014

आप रोज़ाना कितने अंडे खा सकते हैं?

अभी मैं न्यू-यार्क टाइम्स देख रहा था तो मेरी नज़र एक रोचक स्टोरी पर पड़ गई ...जिस का शीर्षक था कि मैं रोज़ाना कितने अंडे खा सकता हूं।

देखते ही लगा कि यह इस प्रश्न का उत्तर तो आप सब से शेयर करना ही चाहिए क्योंिक जिस तरह से भारतवर्ष में काश्मीर से कन्याकुमारी तक अंडे के स्टाल हर तरफ़ नज़र आते हैं....आमलेट भी खूब बिकता है और उबले हुए अंडे भी दनादन बिकते दिखते हैं, इस से देशवासियों के अंडों के प्रति प्रेम का पता चलता है। 

लेकिन ध्यान देने योग्य बात बस इतनी है कि पहले तो अमेरिकी हार्ट संगठन अंडों को दिल की सेहत को ध्यान में रखते हुए खाने की सिफारिश नहीं करता था, लेकिन अब उन्होंने कहा कि रोज़ाना एक अंडा खाने से आदमी में कोल्स्ट्रोल की मात्रा में कुछ इज़ाफ़ा नहीं होता। 

चलिए जी, दारा सिंह की बात भी सुन लेते हैं......


मान लेते हैं जी अमेरिकी संगठन की बात ...क्योंिक ये अपनी रिसर्च बड़े वैज्ञानिक ढंग से करते हैं..

लेकिन आप खा कहां रहे हैं इस तरफ़ थोड़ा ध्यान देना होगा,  अगर आप बाहर किसी स्टाल या रेस्टरां आदि में ओमलेट खा रहे हैं तो वे लोग कौन सा घी-तेल इस्तेमाल कर रहे हैं, इस का ध्यान कौन रख सकता है?

मैंने आज तक अंडा नहीं खाया... बचपन में बताते हैं कि जब भी खिलाने की कोशिश की तो मैं थूक दिया करता था.... फिर जब मैं बड़ा हुआ आठ-दस वर्ष का तो मुझे याद है कि मुझे अंडे की भुर्जी से और उबले अंडे से इतनी बदबू आने लगी कि कभी हिम्मत ही नहीं हुई चखने की। कोई भी धार्मिक कारण नहीं है कि मैं कह सकूं कि मैं बहुत महान हूं क्योंिक मैं अंडा नहीं खाता.....मैं ऐसे व्यक्तव्यों से नफ़रत करता हूं। 

अगर आप अंडा खाते हैं तो चलने दें, लेकिन रोज़ाना एक से ज़्यादा नहीं........इस सिफ़ारिश को मूल रूप से आप इस लिंक पर जा कर पढ़ सकते हैं... How many eggs can i eat?

लिखना भी बढ़िया टाइम पास है.....जब लिखने बैठे तो पता नहीं कहां कहां से बातें याद आने लगती हैं... अंडा तो मैंने कभी नहीं खाया लेकिन ग्याहरवीं कक्षा में जब इंगलिश के टीचर ने आमलेट के स्पैलिंग पूछे तो सारी कक्षा में मेरे ही ठीक थे....omelette....उस दिन बड़ी शाबाशी मिली थी.....पहले हमारे प्रोफैसर लोग यह काम खूब किया करते थे...रोज़ाना आठ दस स्पैलिंग लिखने को कहा करते थे.......अच्छा लगता है ......अब भी बच्चे लिखते तो हैं.....लेकिन व्हॉट्स-अप पर -- स्लैंग मार के ......है कि नहीं!

विविध भारती के पिटारे से निकलता है सेहतनामा

जी हां, विविध भारती रेडियो पर रोज़ाना शाम को चार बजे एक पिटारा कार्यक्रम आता है। सोमवार के दिन इस पिटारे से सेहतनामा प्रोग्राम निकलता है। यह एक घंटे तक चलता है...चार से पांच बजे तक। इस में किसी भी रोग के विशेषज्ञ को बुलाते हैं और उस से उस तकलीफ़ के बारे में प्रश्न उत्तर का दौर चलता है..बीच बीच में डाक्टर साहब की पसंद के फिल्मी गीत भी बजाये जाते हैं।

मैं थोड़ा भुलक्कड़ किस्म का आदमी हूं..लेकिन मुझे जब भी याद रहता है तो मैं सब काम छोड़ के इस प्रोग्राम को देखता हूं। इस प्रोग्राम की जितनी तारीफ़ की जाए कम है क्योंिक आने वाला विशेषज्ञ बड़ी सहजता से जटिल से जटिल प्रश्नों का जवाब देता है।

टीवी रेडियो और अखबारों में तो तरह तरह की हैल्थ जानकारी मिलती ही रहती है ..लेकिन अब हमें अनुभव हो चुका है कि कौन सा प्रोग्राम किस अस्पताल अथवा चिकित्सक के स्वार्थ भाव से प्रेरित है.....यह समझते देर नहीं लगती।

लेकिन यह जो विविध भारती के सेहतनामा की मैं बात कर रहा हूं इस में ऐसा कुछ भी नहीं......सब कुछ सटीक और बिना पब्लिक को उलझाए हुए अपनी बात कहते चिकित्सक जितने मैंने यहां देखे हैं, शायद ही कहीं देखे हों।

मैं अकसर कहता हूं कि अगर बड़े से बड़े अनुभवी डाक्टर को भी अपने अनुभव जनता से साझे करने हों तो उसे एक घंटे से ज़्यादा समझ नहीं चाहिए होता। मैं अपनी ही बात करता हूं......मुझे तो शायद एक घंटा भी न चाहिए हो। लेकिन आप देखिए कि अगर रेडियो पर देश के सुप्रसिद्ध चिकित्सक जब आपके लिए अपने चिकित्सीय ज्ञान का पिटारा एक घंटे तक खुला रखते हैं तो बाकी क्या बचता होगा!! सोचने वाली बात तो है !! मैं भी आल इंडिया रेडियो के काफी कार्यक्रमों में शिरकत कर चुका हूं, इसलिए पूरी प्रामाणिकता से यह बात रख रहा हूं।

इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि जैसे ही भो आप यह प्रोग्राम विविध भारती पर सोमवार शाम चार से पांच बजे तक ज़रूर सुना करिए...बेहद उपयोगी जानकारी जो और कहीं नहीं मिल सकती।

बदलते समय की दस्तक है ......मन की बात......देश के प्रधानमंत्री सारे देश से संवाद करते हैं आकाशवाणी के माध्यम से.......लेिकन एक दस्तक और भी होनी चाहिए...आज की युवा पीढ़ी की व्यस्तता को देखते हुए इस तरह के उपयोगी कार्यक्रमों की रिकार्डिंग विविध भारती की साइट पर भी आर्काइव में पड़ी होनी चाहिए। लेकिन अभी ऐसी कुछ व्यवस्था नहीं है।

जहां तक मुझे याद है....पहले कुछ जगहों पर इस सेहतनामा कार्यक्रम का पुनः प्रसारण अगली सुबह भी होता है ..लेकिन यहां लखनऊ में तो नहीं होता यह पुनः प्रसारित। 

कैसा कैसा पनीर बिक रहा है!


कल हम लोग घर के पास ही एक सब्जी मंडी में थे....मैंने देखा कि किस तरह से वहां बाज़ार में पनीर बिक रहा था....१४० रूपये का एक किलो।
 लखनऊ की सब्जी मंडियों में अब पनीर ऐसे बिकने लगा है
आप के शहर में भी इस तरह से पनीर तो बिकता ही होगा। ऐसा नहीं है कि इस तरह से बिकने वाला पनीर ही खराब है या इस के ही मिलावटी दूध से बने होने की आशंका होती है। 

मेरे को तो एक बात ही हमेशा परेशान करती है कि दूध तो बाज़ार में ढंग का दिखता नहीं....फिर इतना सारा पनीर कहां से तैयार हो कर बिकने लगता है। है ना सोचने वाली बात। मिलावटी पनीर के बारे में हम लोग अकसर मीडिया में पढ़ते, देखते-सुनते रहते हैं। खराब पनीर मिलावटी दूध से तैयार तो होता ही है, इस को तैयार करने के लिए किस किस तरह के हानिकारक कैमीकल इस्तेमाल होते हैं, यह भी अकसर मीडिया में दिखता रहता है। 

दो दिन पहले मेरी पत्नी बता रही थीं कि इधर लखनऊ में एक प्रसिद्ध ब्रॉंड है दूध का ...इस कंपनी का पनीर भी खुले में बिकता है....उन्होंने कंपनी की थैली में तो डाला होता है लेकिन ऊपर से खुला होता है..

यह भी कल की ही तस्वीर है.. 
अब पनीर के बारे में कुछ व्यक्तिगत बातें कर लें......हम लोगों ने लगभग दस वर्ष हो गये कभी बाज़ार से पनीर नहीं खरीदा, हां, कभी लेना ही पड़े तो एक बहुत प्रसिद्ध ब्रॉंड है जिस का ले आते हैं। वरना हमेशा घर में ही पनीर बनाया जाता है। 

बाहर का पनीर खाया ही नहीं जाता....कईं बार तो बिल्कुल रबड़ जैसा लगता था। इसलिए शायद १०-१५ वर्षों से न तो हम बाज़ार का खुला पनीर लाये हैं (चाहे वह बड़ी बड़ी डेयरीयों में बिकता हो) और न ही हम लोगों ने बाहर कभी किसी पार्टी में या कोई रेस्टरां में पनीर की कोई भी आटइम खाई है। इच्छा ही नहीं होती......कौन इन की क्वालिटी चैक करता होगा....जिस देश मेें ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों में चूहे मारने की दवा भरी पड़ी हो, वहां पर मिलावटी पनीर की सुध लेने की किसे फुर्सत है!

मैं तो अकसर अपने संपर्क में आने वाले लोगों को भी यही कहता हूं कि अगर बाज़ार में खुले में बिक रहा पनीर ही खाना है तो इस से बेहतर है कि आप इसे इस्तेमाल ही न करिए, हो सके तो घर ही में तैयार किये हुए पनीर की ही सब्जी खाइए। 

अब आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि जिस तरह का पनीर कल मैंने बिकते देखा ...वह किस स्तर का होगा, देखिए वह दाम तो पूरे ले रहा है, लेकिन मुझे यही भय रहता है कि ऐसे खोमचे वाले कहीं पनीर की जगह बीमारियां ही तो नहीं परोस रहे। 

लिखते लिखते अचानक ध्यान आ गया....पता नहीं मैंने कहां देखा था, शायद हरियाणा में वहां यह रवायत है कि लोग कच्चा पनीर बाज़ार में लेकर उस पर नमक-मसाला लगा कर अकसर खाते दिख जाते हैं..बस, यह ऐसे ही याद आया तो लिख दिया। 

होटल, ब्याह शादी में खाए पनीर से अनुभव बड़े कटु रहे हैं......सुबह होते ही पेट पकड़ कर बार बार बाथरूम भागने का दौर........इसलिए अब लगभग १२-१५ वर्षों से इस झंझट में पड़ते ही नहीं......किसी भी पार्टी में बस दाल चावल बहुत सुख देते हैं। आप का क्या ख्याल है? .... सही है बात ..गोलमाल है भाई सब गोलमाल है!!

मुंह में रखा गुटखा, तंबाकू कहां गायब हो जाता है?

मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिलता हूं जिन्हें लगता है कि अगर वे धूम्रपान नहीं कर रहे हैं, बीड़ी-सिगरेट को छू नहीं रहे हैं तो एक पुण्य का काम कर रहे हैं...फिर वे उसी वक्त यह कह देते हैं कि बस थोड़ा गुटखा, तंबाकू-चूना मुंह में रख लेते हैं...और उसे भी थूक देते हैं, अंदर नहीं लेते।

यही सब से बड़ी भ्रांति है तंबाकू-गुटखा चबाने वालों में.. लेकिन वास्तविकता यह है कि तंबाकू किसी भी रूप में कहर तो बरपाएगा ही। जो तंबाकू-गुटखा लोग मुंह में होठों या गाल के अंदर दबा कर रख लेते हैं और धीरे धीरे चूसते रहते हैं, इस माध्यम से भी तंबाकू में मौजूद निकोटीन एवं अन्य हानिकारक तत्व मुंह की झिल्ली के रास्ते (through oral mucous membrane)शरीर में निरंतर प्रवेश करते ही रहते हैं। 

और शरीर में जो निकोटीन अंदर जाता है, वह चाहे किसी भी रूट से जाए, वह दिल, दिमाग एवं नाड़ियों की सेहत के लिए बराबर ही खतरनाक है। यह बात समझनी बेहद ज़रूरी है। 

शायद ही शरीर का कोई अंग हो जो इस हत्यारे की मार से बच पाता हो। शरीर में पहुंच कर तो यह उत्पात मचाता ही है, शरीर के िजस रास्ते से यह बाहर निकलता है (एक्सक्रिशन - excretion) उन को भी अपनी चपेट में ले लेता है। 

ज़ाहिर सी बात है कि तंबाकू शरीर के अंदर गया है तो इस के विषैले तत्व बाहर तो निकलेगें ही ही... और पेशाब के रास्ते से भी ये बाहर निकलते हैं। यह तो एक उदाहरण है... तंबाकू का बुरा प्रभाव शरीर के हर अंग पर होता ही है। मेरी नानी के दांतों में दर्द रहता था...किसी ने नसवार लगाने की सलाह दे दी.....नसवार (creamy snuff, पेस्ट जैसे रूप में मिलने वाला तंबाकू)....इस की उन्हें लत लग गई....नियमित इस्तेमाल करने लगीं....अचानक पेशाब में खून आने लगा..जांच होने पर पता चला कि मसाने (पेशाब की थैली - urinary bladder) का कैंसर हो गया है, आप्रेशन भी करवाया, बिजली (radiotherapy) भी लगवाई लेकिन कुछ ही महीनों में चल बसीं। पीजीआई के डाक्टरों ने बताया कि तंबाकू का कोई भी रूप इस तरह की बीमारियों भी पैदा कर देता है। 

बस यह पोस्ट तो बस इसी बात को याद दिलाने के लिए ही थी कि तंबाकू किसी भी रूप में जानलेवा ही है........अब जान किस की जायेगी और किस की बच जाएगी, यह पहले से पता लगा पाना दुर्गम सा काम है.....वही बात है जैसे कोई कहे कि असुरक्षित संभोग करने वाले, बहुत से पार्टनर के साथ सेक्स करने वाले सभी लोगों को थोड़े ना एचआईव्ही संक्रमण हो जाता है, बहुत से बच भी जाते होंगे......ठीक है, शायद बच जाते होंगे कुछ.......लेकिन मुझे दुःख इस बात का होता है कि पता है कि तंबाकू ने अगर एक बार शरीर के किसी अंग में उत्पात मचा दिया तो फिर अकसर बहुत देर हो चुकी होती है....ऐसे में भला क्यों किसी लफड़े का ही इंतज़ार किया जाए। 

यही बातें रोज़ाना पता नहीं कितनी बार ओपीडी में बैठ कर रिपीट की जाती हैं, लेकिन कोई सुनता है क्या?.... शायद, लेकिन तभी जब कोई न कोई लक्षण शरीर में दिखने लगते हैं। 

एक ग्राम कम नमक से हो सकती है अरबों डालर की बचत

अमेरिकी लोग अगर रोज़ाना लगभग साढ़े तीन ग्राम नमक की बजाये लगभग अढ़ाई ग्राम नमक लेना शुरू कर दें तो वहां पर 18 बिलियन डॉलरों की बचत हो सकती है।
केवल बस इतना सा नमक कम कर देने से ही वहां पर हाई-ब्लड-प्रैशर के मामलों में ही एक सौ दस लाख मामलों की कमी आ जायेगी। यह न्यू-यॉर्क टाइम्स की न्यूज़ रिपोर्ट मैंने आज ही देखी।
ऐसा कुछ नहीं है कि वहां अमेरिका में यह सिफारिश की जा रही है और भारत में कुछ और सिफारिशें हैं। हमारे जैसे देश में जहां वैसे ही विशेषकर आम आदमी के लिये स्वास्थ्य संसाधनों की जबरदस्त कमी है —ऐसे में हमें भी अपनी खाने-पीने की आदतों को बदलना होगा।
जबरदस्त समस्या यही है कि हम केवल नमक को ही नमकीन मानते हैं। यह पोस्ट लिखते हुये सोच रहा हूं कि नमक पर तो पहले ही से मैंने कईं लेख ठेल रखे हैं —फिर वापिस बात क्यों दोहरा रहा हूं ?
इस सबक को दोहराने का कारण यह है कि इस तरह की पोस्ट लिखना मेरे खुद के लिये भी एक जबरदस्त रिमांइडर होगा क्योंकि मैं आचार के नमक-कंटैंट को जानते हुये भी रोज़़ इसे खाने लगा हूं और नमक एवं ट्रांस-फैट्स से लैस बाकी जंक फूड तो न के ही बराबर लेता हूं ( शायद साल में एक बार !!) लेकिन यह पैकेट में आने वाला भुजिया फिर से अच्छा लगने लगा है जिस में खूब नमक ठूंसा होता है।
और एक बार और भी तो बार बार सत्संगों में जाकर भी तो हम वही बातें बार बार सुनते हैं लेकिन इस साधारण सी बातों को मानना ही आफ़त मालूम होता है, ज़्यादा नमक खाने की आदत भी कुछ वैसी ही नहीं हैं क्या ?
इसलिये इस पर तो जितना भी जितनी बार भी लिखा जाये कम है —एक छोटी सी आदत अगर छूट जाये तो हमें इस ब्लड-प्रैशर के हौअे से बचा के रख सकती है।