गुरुवार, 11 जून 2015

मैंने आठ साल बाद अपनी ब्लड-शूगर जांच कैसे करवाई...

जी हां, पिछली बार मेरी ब्लड-शूगर जांच २००७ में हुई थी...उस समय पहले २००५ में मेरा एक आप्रेशन होना था...फिश्चूला का...आप्रेशन से पहले सभी जांचें हुई थीं।

इन आठ सालों में मिसिज़ ने बहुत बार कहा कि जांच करवा लिया करें....लेकिन मैं टालता ही रहा। सच बताऊं तो दोस्तो जिस तरह से मैं मीठे का शौकीन हूं ..या यूं कहूं कि था...डर ही लगता था कि चलो, ठीक ही चल रहा है, अगर शूगर बड़ी आई तो तुरंत दवाईयां खानी पड़ेंगी...बीसियों तरह के परहेज़ करने पड़ेंगे.

मैंने आप को बताया ना कि आखिरी ब्लड-शूगर की जांच मेरी २००७ में हुई थी...उसी साल मैं हिंदी ब्लॉगिंग के चक्कर में पड़ गया...और इन आठ सालों के दौरान शूगर की नियमित जांच के महत्व के बारे में बीसियों लेख इस ब्लॉग पर भी लिखे लेकिन अपनी शूगर जांच की हिम्मत नहीं जुटा पाया। ऐसे होते हैं हम डाक्टर लोग भी....दोस्तो, आप से कुछ भी छुपाने में मज़ा नहीं आता।

हम लोग कालेज में पढ़ा करते थे ...KAP Studies के बारे में ...कहने का मतलब Knowledge, Attitude, and Practice....मेरी उदाहरण से आप यह समझ सकते हैं कि केवल किसी बात की नालेज से ही बात नहीं बन सकती, उस के बारे में आप का क्या एट्ीट्यूड है, आप उस को कैसे प्रैक्टिस करते हैं, यह सब बहुत महत्वपूर्ण है। इस की और भी उदाहरणें हैं...डाक्टर लोग जब गुटखा चबाते हैं...आदि ..

इस का मतलब सीधा सीधा है कि नालेज तो वही काम की है जिसे प्रेक्टिस में लाया जा सके।

मीठे की बातें करूं....मुझे बचपन से ही मीठा बहुत पसंद है...याद है बिल्कुल छोटे थे तो इतने बिस्कुट विस्कुट तो मिला नहीं करते थे...अकसर उस की जगह एक मुठ्ठी में कच्चे चावल और दूसरी में चीनी दबा लिया करते और उसे चबा कर ही खुश हो जाया करते थे...फिर पके हुए चावल में चीनी डाल कर खाने की लत लग गई जो अाज तक कायम है, गुड़ वाले चावल, आधी रात में मां को जगा कर चीनी के परांठे खाने की फरमाईश रख देना...गेहूं और मक्के की रोटी पर शक्कर, चीनी और गुड़ रख कर खाना.....चाय भी ऐसी पसंद है जिसमें मीठा अच्छा खासा हो, लड्‍डू वड्डू भी बहुत अच्छे लगते हैं...लेकिन अब इतने लाते-खाते नहीं हैं...शुक्र हो मिलावटखोरों का ...कम से कम इन्होंने हमें डराया तो!

वैसे अब बिस्कुट और मिठाईयां, भुजिया आदि तो बहुत कम दिया है......मीठा पर भी बहुत कंट्रोल किया हुआ है।

2009 में मैं Kidney Foundation के आमंत्रण पर चेन्नई गया था -- वहां पर हमें एक ऐसे प्रोग्राम को देखने का अवसर मिला जो NGOs चलाती हैं, हाई-ब्लड-प्रेशर, डॉयबीटीज़ की रोकथाम के लिए ताकि गुर्दों को भी बीमारियों से बचाया जा सके...बिल्कुल सस्ते टेस्ट से ..पेशाब की जांच के लिए कुछ लोगों को ट्रेन्ड कर दिया गया था ...जो नियमित इस जनसंख्या की जांच किया करते थे...बहुत अच्छा अनुभव रहा उस प्रोग्राम में शिरकत करने का ..कहने का मतलब यह कि पहले तो उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोगों की रोकथाम ही हो जाए कैसे भी (primary prevention)  ..लेकिन अगर इस तरह की कोई तकलीफ हो भी तो उसे शुरूआती दौर में ही पता कर के ...उस के शरीर के विभिन्न हिस्सो में होने वाले बुरे प्रभावों से तो बचा ही जा सकता है।

इस पोस्ट का परिचय कुछ लंबा हो गया दिखता है...मैं तो अपनी ब्लड-शूगर की जांच की बात कर रहा था ..पिछले सात आठ वर्षों से पेन्डिंग थी...मैं बस टालता जा रहा था...बहुत बार इच्छा भी होती थी कि आज करवा लूं लेकिन फिर टाल देता।

हां, तो कल हमारे अस्पताल की टीम जौनपुर गई हुई थी..वहां पर हेल्थ-चैकअप कैंप था....स्ट्रिप से ब्लड-शूगर की जांच भी हो रही थी.....लगभग १०० के करीब लोगों की ब्लड-शूगर की जांच हुई ...हैरानगी की बात यह थी कि इन में से २० केस ऐसे पाये गये जिन का रेन्डम ब्लड-शूगर का स्तर काफ़ी बड़ा हुआ था ...और लगभग इतने ही मरीज़ ऐसे थे जिन्हें पहले से मालूम था कि उन्हें शूगर है, उन का स्तर भी बड़ा हुआ था।

मुझे यह देख कर बहुत हैरानगी हुई कि उन बीस नये शूगर के केसों में से चार मरीज़ उस कैंप में ऐसे थे जिन के ब्लड-शूगर का स्तर चार पांच सौ के करीब था...जिसे mg% में दिखाया जाता है।

एक आदमी था...यही कोई ३५-४० का होगा...उसे कोई तकलीफ नहीं थीं, बता रहा था कि उसने पिछले ८-१० वर्षों में कभी कोई टेबलेट तक नहीं ली, बुखार तक नहीं हुआ...एकदम सेहतमंद है, कह रहा था ....उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की ब्लड-शूगर का स्तर  507mg% आया है। 

उसे लग रहा था कि उसने जांच से पहले लड्डू खाया था, कहीं लड्‍डू हाथ में तो नहीं लगा रह गया हो......उस का हाथ धुला कर वापिस जांच की गई तो भी उतनी ही रीडिंग आई।

जब वह मरीज़ कह रहा था कि मैं तो सेहतमंद हूं ...तो मेरे सामने बैठा फिज़िशियन उसे यही बताने की कोशिश कर रहा था कि इस तरह के कैंप आप जैसे लोगों के लिए ही होते हैं .....जिन्हें कोई तकलीफ़ नहीं है, लेकिन अंदर ही अंदर बीमारी शरीर के महत्वपूर्ण अँगों पर असर करती रहती है। ऐसे ही कुछ अन्य तीन चार मरीज़ थे ...जिन का स्तर भी ३००-४०० के करीब था।

उस समय मुझे लगा कि यह बात तो बड़ी बेवकूफी वाली है कि मैं अपने ब्लड-शूगर की जांच ही नहीं करवा रहा..पिछले सात आठ सालों से....मेरा कद है ५ फुट १० ईंच ...वजन है 97 किलो......जितना होना चाहिए उस से २० किलो ज़्यादा.....इसलिए मैं हिम्मत कर के उस काउंटर पर चला गया...मुझे लगा कि अच्छा भला तो हूं, पता नहीं क्या रिपोर्ट आ जाए...दोस्तो, बिल्कुल अपने मरीज़ों की तरह ही डर तो लग ही रहा था....सूईं चुभने का नहीं, रिजल्ट का ......चंद सैकिंडों में रिजल्ट आ जाता है .....यह रेंडम ब्लड-शूगर की जांच थी ....मेरी रीडिंग थी 121mg %..

ईश्वर का शुक्रिया अदा किया मन ही मन ....और आगे से मीठे को ध्यान से और लिमिट में खाने का प्रण किया.....हर जगह मीठे को इतना बड़ा विलेन बताया जाता है, फिर भी हम लोग पता नहीं क्यों कंट्रोल नहीं कर पाते..

हां, एक बात और ..एक बार इस तरह से जांच करवाने के बाद मेरी उम्र में (पचास के ऊपर) हर साल इस तरह की जांच होनी चाहिए...यह बहुत ज़रूरी होता है।

अच्छा ...आप को पता है मैंने यह इतनी लंबी राम कहानी क्यों लिख दी ..........केवल इसलिए कि अगर आप भी मेरी तरह से ब्लड-शूगर जैसी आसान सी शरीर की नियमित जांच से भागते रहते हैं....तो अब आप भी भागना बंद करिए और कल ही जा कर यह जांच करवा लीजिए...मैं अगली पोस्ट में लिखूंगा िक यह जांच कितनी आसान है ...सैकेंडों में आप को रिपोर्ट मिल जाती है।

बाहर से आम बिल्कुल दुरूस्त 
आदत से मजबूर हैं, इतनी बातें ब्लड-शूगर की करने के बाद भी इच्छा हो रही है कि इस बात को विराम भी कुछ मीठी सी बात से ही किया जाए...दोस्तो, बात यह है कि आम हानिकारक मसाले से पकाए जाते हैं, इसलिए कुछ साल पहले से हम ने इसे चूस कर खाना बंद कर दिया क्योंकि नुकसानदायक कैमीकल छिलके पर लगे रहते हैं.....लेिकन एक चौंकाने वाली बात यह है कि बाहर से अच्छे भले दिखने वाले आम भी अकसर इस तरह से खराब होते हैं.......मैं तो यह बहुत बार नोटिस करने लगा हूं ..यह कल की तस्वीर है, आज की तस्वीर नहीं खींचीं, वह भी बिल्कुल इस के साथ मिलती जुलती ही थी...
और अंदर यह मंज़र था...

तो इस से यही शिक्षा मिलती है कि आम को बिना काटे कभी भी मत खाईए....

यादों के झरोखों से ...हमारे डा कपिला सर..

हमारे कालेज के सभी साथियों का एक व्हाट्सएप ग्रुप है...आज सुबह डा मंडियाल ने एक मैसेज भेजा...आज की इंगलिश अखबार ट्रि्ब्यून में छपी एक तस्वीर थी...अपने प्रोफैसर साहब डा कपिला सर की...ज़रा इन से तारूफ़ करवा दें आप का...यह महान् शख्शियत १९८० के दशक में अमृतसर के सरकारी डैंटल कालेज एवं अस्पताल में ओरल सर्जरी विभाग के  प्रोफैसर एवं विभागाध्यक्ष थे...


हम लोगों ने बीडीएस १९८०-८४ के दरमियान की ...डा कपिला सर की छत्रछाया में बहुत कुछ सीखने का मौका मिला...
These three msgs by this humble self...working as Chief Dental Officer in Govt of India 
मैंने आज सोचा कि उन से जुड़ी यादें तो बहुत सी हैं, लेकिन कुछ तो आज शेयर कर ही लेते हैं। वैसे याद तो उसे किया जाता है जिसे हम लोग भूल गये हों, यह महान शख्स कभी भी हमारी यादों से कहीं गया ही नहीं।

दोस्तो, आज सुबह जब से हमें पता चला कि आज डा कपिला सर की १४ वीं पुण्यतिथि है तो हम सब अपने अपने भाव  प्रकट करने लगे....मैंने सोचा कि अपने साथियों के सभी भावों को सहेज कर लेख में डालूंगा ...बस, यही किया है।

ये जो मैसेज आप देख रहे हैं इन से कुछ अब अमेरिका में जा कर अपने कालेज का नाम रोशन कर रहे हैं....कुछ स्वयं अब प्रिंसीपल बन चुके हैं, कुछ प्रोफैसर ....लेकिन आप देखिए इन के भावों को किस शिद्दत से अपने गुरू को याद कर रहे हैं।


मुझे याद है जब हमारी क्लास सुबह आठ से नौ बजे हुया करती थी तो डा कपिला सर...हमेशा ही आठ बजे से पहले क्लास में पहुंचे होते थे...हमेशा का मतलब बिल्कुल हमेशा...और कभी भी याद नहीं कि इन की क्लास शेड्यूल्ड हो और ये ना आए हों...और एक बात कि इन को हम जब पढ़ाते देखते थे तो उससे भी इन का पेशन झलकता था.....दोस्तो, कभी भी नहीं लगा उन दो सालों के दौरान कि कभी भी जैसे यह थोड़ा ऊबे से हुए हों...हमेशा प्रसन्नचित, मुस्कुराते हुए और सहज बने रहते थे।

इन्हें सिखाने का बहुत शौक था.....आपने मेरे साथियों के मैसेज पढ़ ही लिए होंगे...ये सब इन्हें कितना प्यार करते होंगे, ये इन के शब्दों से झलकता है...मैं तो क्वालीफाइड एंड ट्रेन्ड राइटर हूं....शब्दों से थोड़ी शरारतें भी कर लेता हूं लेिकन इन साथियों के शब्दों की ईमानदारी नोटिस करिए।
This is message of Dr (Prof) Namita 
हमारे कपिला सर ने साठ के दशक में एमडीएस की थी मुंबई से....कभी भी वहां की बातें सुनाते थे...एक बार मुझे याद है क्लास में कोई बात चली तो बता रहे थे कि जब हम लोग लोकल गाडियों में वहां चला करते थे तो बिना अच्छा सा परफ्यूम लगाए आप वहां घर से बाहर निकलने की सोच ही नहीं सकते थे।
First msg is by Dr Mandial who is one of the seniormost Dental Surgeons with Punjab Govt.. Dr Manoj is a renowned Oral Surgeon and Principal
वह हमेशा वेल-ड्रेसड रहते थे....हमनें हमेशा उन्हें ऐसे ही देखा ..हर समय मुस्कुराते रहना उन की फितरत थी।

डा कपिला उत्तर भारत के सब से मशहूर ओरल-सर्जन थे...हमें याद है उन के पास वी वी आई पी अकसर आते रहते थे...अस्सी के दशक में पंजाब में गोलियां बहुत चला करती थीं..गोली आदि लगने से क्षत-विक्षित चेहरे आदि सभी जगहों से हैरान परेशान हो कर आखिर इन्हीं के पास ही इलाज के लिए आया करते थे।
Dr Kapila had a great sense of humour.
Dr Jeewan runs a big hospital and Dr Anoop Jain, Renowned Dental Surgeon and well-known figure of Karnal with two post-graduates (MDS) in his family..

एक केन्द्रीय मंत्री थी....बहुत साल तक अमृतसर से लोकसभा सदस्य भी रहे ..रघुनंदन भाटिया...इन्हें भी जब उन्हीं दिनों जबड़े में गोलियां लगीं तो इन का इलाज भी कपिला सर ने ही किया था।

एक बात और...सुबह जब आठ बजे की क्लास अमृतसर की जनवरी माह की ठंडी में हुआ करती थी तो अगर दो तीन छात्र पांच दस मिनट लेट हो जाया करते थे तो डा कपिला जी को बहुत बुरा लगता था...पूछा करते थे डे-स्कालरों से...नाश्ता नहीं बना?....कोई बात नहीं, एक दिन बिना खाए आ जाओ, तो अगले दिन से समय पर मिला करेगा।
Dr Rajiv Bhagat is world-renowned Endodontist in USA 

उस दौर में भी हमारे क्लास की कुछ लड़कियों को नाश्ता न करने की आदत थी....ऐसे में ओपीडी में तीन चार घंटे खड़े खड़े अगर उन्हें चक्कर आने लगता तो डा कपिला क्लास में खूब डांट लगाया करते थे कि तुम लोग अपने खाने पीने का ध्यान नहीं रखती हो।। कभी कभी इन की क्लास दोपहर दो से तीन बजे हुआ करती थी तो जैसे ही स्टूडेंट्स ऊंघने लगते तो यह हंस पड़ते और कहते....राजमाह चावल चीज ही ऐसी है....(उन दिनों होस्टल में दोपहर में अधिकतर राजमाह चावल, छोले चावल, कड़ी चावल आदि ही मिला करते थे)
Dr Bedi is an Outstanding Dental Surgeon and runs a training institute for fresh dental graduates

मुझे अच्छे से याद है कि वे अकसर हमें ऊपर व नीचे वाले जबाड़े को बहुत ही अच्छे से पढ़ने-समझने के लिए कहा करते थे....और कईं बार कहा करते थे इन दोनों हड्डियों को तो अपने तकिये के नीचे रख के सोया करें....सुबह उठते ही इन का अध्ययन शुरू कर दिया करें। दोस्तो, आप को बताना चाहूंगा कि मेडीकल की पढ़ाई करते समय हमें विभिन्न हड्डियां मोल पर मिल जाती हैं...ये हड्डियां मुर्दा लोगों की निकाल कर सुखा ली जाती हैं और मेडीकल स्टूडेंटस को बेच दिया जाता है।

एक बात और याद आ गई...मुझे याद है ओरल सर्जरी को पढ़ाने का अंदाज़ उन का निराला ही था...हर टॉपिक का पढ़ाने-समझाने के साथ साथ नोट्स भी लिखवा दिया करते थे.....हम तो बस उन के नोट्स ही रोज़ाना पढ़ते थे ...और विशेष किसी किताब पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी...आज मैंने ढूंढा...मेरे पास १९८३-८४ के समय का उनके लिखवाए गये नोट्स का एक रजिस्टर है, आज ढूंढना चाहा लेकिन मिला नहीं....मेरे साथ ऐसे ही होता है....मैंने सोचा था उस के एक पन्ने की तस्वीर यहां पर लगाऊंगा।

हां, तो मैडम कपिला जी भी मैडीकल कालेज के एनाटमी विभाग की प्रोफैसर थी ..वे भी बेहतरीन पढ़ाती थीं लेकिन मेरे जैसे डफर को एनाटमी का विषय काला अक्षर भैंस बराबर कहावत जैसे लगता था....इसलिए मैं पहली बार प्रथम वर्ष में एनॉटमी विषय में फेल हो गया ...भला हो मैडम कपिला जी का जिन्होंने छः महीनों के बाद पास कर दिया....वरना मुझे पता है कि मेरे पास होने जैसे हालात तो बिल्कुल नहीं थे। सच कह रहा हूं।

मुझे लगता है अब यादों के झरोखे को बंद करने का वक्त आ गया है...जाते जाते बस इतना ही कहना चाहता हूं कि डा कपिला सर ने बहुत ही रिस्पेक्ट कमांड की। और उन्होंने हमें इतना कुछ इतने प्यार से सिखाया...और आज हर दिन कोई न कोई मरीज़ यह कह देता है कि आप का हाथ बहुत साफ़ है, आपने में मुंह में टीका लगाया पता ही नहीं चला, सर्जरी का भी पता नहीं चला, तुरंत ध्यान अपने गुरू डा कपिला जी की तरफ़ जाता है....to pay our gratitude!....ये हमें अकसर कहा सकते थे कि अपने काम में रूचि रखो...अच्छे से थ्यूरी भी पढ़ा करो... इन का एक वाक्य जो मुझे अभी बहुत बार याद आता है...."In a patient's mouth, you see what you know, you don't see what you don't know!"

मरीज़ की बात ध्यान से सुनने के लिए कहते थे तो साथ में यह भी अकसर कहा करते थे......"Listen to the patient carefully. He is giving you the diagnosis."

जैसे आज अपने साथी डा मंडियाल ने उन की बरसी की खबर वाट्सएप पर शेयर की ...२००१ का दिन भी वह मुझे याद है जब इस महीने में उन के क्रिया-कर्म की खबर इसी अखबार में पढ़ी थी....बहुत दुःख हुआ था....उन दिनों मैं फिरोज़पुर में पोस्टेड था.

इस पोस्ट के माध्यम से मैं समस्त कपिला परिवार को अपनी शुभकामनाएं भेज रहा हूं.......ईश्वर सारे परिवार को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखे ...और कपिला सर की आत्मा तो इस प्रभुसत्ता में ब्रह्मलीन हो ही चुकी है। Rest in peace, sir! We remember you a lot!