स्वयं एक क्वालीफाईड जर्नलिस्ट होते हुये भी आज आप को बता ही देता हूं कि मेरा हिस्ट्री-ज्योग्राफी का ज्ञान शून्य के बराबर है। अगर मुझे कोई पूछे ना कि बताओ कि हिंदोस्तान के नक्शे में यह अंडमान-निकोबार द्वीप-समूह किधर है तो मेरी आँखें दस मिनट तक नक्शे के इधर उधर ही घूमती रहेंगी और उस के बाद भी मारूंगा तुक्का ही .....हां, हां, बिलकुल मैट्रिक के हिस्ट्री-ज्योग्राफी के पेपर की ही तरह।
मैट्रिक का पेपर देने के बाद मुझे पता है कि रिजल्ट आने तक मेरा डेढ़-दो महीना कैसा गुज़रा था.....क्योंकि मुझे ही पता था कि मैं इतिहास-भूगोल के पेपर में क्या गंद डाल के आया था। बस, इतना सुन रखा था कि हिस्ट्री वाले पेपर जांचने वाले पेपर पढ़ते नहीं है, लंबाई नापते हैं......बस, इसी बात का ही सहारा था। वैसे मैं इतनी गप्पे हांक कर आया था कि क्या कहूं...मुझे अच्छी तरह से याद है कि मुझे अगर किसी प्रश्न के बारे में दो-चार लाइनें भी पता थीं ना तो मुझे पता है कि मैंने कैसे उन्हें चालीस बना कर दम लिया था और वह भी खुला खुला लिख कर ताकि चैक करने वाले मास्टर को 5-6 नंबर देने में कोई आपत्ति तो ना हो....वह बस तरस कर ले कि यार, लड़के ने लिखा तो है ही ना........बस, पता नहीं चैक करने वाले को ही रहम आ गया होगा कि मेरे 150 में से 94 अंक आ गये.....वैसे तो मैं मैरिट सूची में था। बस, सचमुच रिजल्ट आने पर राहत की सांस ही ली थी......क्योंकि मुझे इस तरह के नाइट-मेयर्स होते थे उन दिनों कि बच्चू तू बाकी विषयों में ते लेगा 85-90प्रतिशत लेकिन हिस्ट्री-ज्योग्राफी खोलेगी तेरी पोल।
यह जो ऊपर मैंने चार लाइनों को चालीस तक खींचने की बात की है.....अब लग रहा है कि ब्लॉगर बनने के गुण शायद इस नाचीज़ में बचपन ही से मौज़ूद थे। हां, एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा कि जब भी मैं इस पेपर का पहला प्रश्न लिखना शुरू करता था तो यह सुनिश्चित किया करता था कि पहला सवाल एकदम धांसू सा पकड़ूं........हम लोग आपस में बातें तो किया ही करते थे कि यार, बस अग्ज़ामीनर पर एक बार इंप्रैशन पड़ गया ना तो समझो कि उस ने बाकी फिर कुछ नहीं देखना। बस, इस बात को अपनी सारी पढ़ाई में फॉलो किया। पंजाबी में हमारे दोस्त कहा करते थे कि यार, हिस्ट्री विच तक गिट्ठां मिन के नंबर मिलदे ने.......यानि की हिस्ट्री में तो पेपर को हाथ से नाप-नाप के ही नंबर मिलते हैं.....बस, इसी बात का ही आसरा लग रहा था। भूगोल का भी वो हाल कि नक्शे में कुछ भी भऱना आता ना था .....बस, तुक्के पे तुक्के.....फिर रबड़ से मिटा मिटा के बार-बार तुक्के ताकि पेपर जांचने वाले को दूर से पता चल जाये कि इस को आता जाता तो कुछ है नहीं, बेवकूफ बनाने के चक्कर में ही है।
डीएवी स्कूल अमृतसर में पढ़ा हूं.....लेकिन वहां पर मुझे यह ध्यान नहीं है कि कोई भी टीचर ऐसा होता कि जो मेरे को हिस्ट्री-भूगोल में मेरी ऱूचि पैदा कर पाता। वैसे है तो यह बात अपना दोष किसी ओर के ऊपर मढ़ने की.......लेकिन फिर भी कर रहा हूं। क्योंकि अपना दोष किसी और के सिर मढ़ने में अच्छा लगता है....है कि नहीं, सच-सच बताईये। अच्छा , तो इतिहास-भूगोल का इतना ही याद है कि पांचवी-छठी कक्षा तक तो शिखर -दोपहरी में कच्छे-बनियान में बैठ कर बेहद चाव से इस के सवाल-जवाब अपनी कापी पर लिखा करते थे । लेकिन उस के बाद पता नहीं कब यह इंटरैस्ट कहीं दूर हवा हो गया.....मुझे पता नहीं ।
जहां तक मुझे अपने इतिहास-भूगोल के मास्टरों का याद है ....उन्हें तो बस यही होता था कि बस सत्र के शुरू ही में कैसे गाइड़े वगैरा बस लगवा देनी हैं। बस क्लास से क्लास छलांग लगाते तो गये लेकिन इस हिस्ट्री -भूगोल में बिल्कुल कोरे।
चलिये, आप से कैसी शर्म ....अपना इतिहास-भूगोल का ज्ञान आप के साथ एक पैराग्राफ में ही बांट लेतता हूं....पता नहीं वैसे तो मैं बेहद रिज़र्व किस्म का इंसान हूं लेकिन आप से कुछ भी बांटने में कभी भी लज्जा महसूस नहीं हुई .....पता है क्यों......क्योंकि आप सब मुझे अपने सखा -बंधु ही लगते हो......आप भी तो अपने दुःख -सुख कैसे बिना किसी झिझक के सांझे कर लेते हो। हिस्ट्री में तो दोस्तो हम यही पढ़ते रहे कि पानीपत का यूद्ध कब हुया, किस किस के बीच हुया....हां, कुछ कुछ प्लासी का युद्ध भी पढ़ा। जैन और बुद्ध धर्म के नियम भी पढ़े.....धन्यवाद हो, गौत्तम बुद्ध जी का और उस से भी ज़्यादा महावीर जैन प्रभु का ..............क्योंकि ये सिद्धांत बेहद आसान लगते थे। इस्ट इंडिया कंपनी के बारे में भी पढते थे। मोहंमद तुगलक के बारे में पढ़ते तो थे कुछ कुछ.....अब ध्यान नहीं आ रहा कि क्या ...शायद उस ने मेरे पुरखों पर बहुत हमले-वमले किये थे.....शेर शाह सूरी के बारे में पढ़ते थे कि उस ने जीटी रोड बनवाई थी.....अच्छा लगता था.....और हां, मोहम्मद गौरी और महमूद गजनवी ने यारो बहुत डराया है इन छोटी कक्षाओं में ........उन के बार-बार हमलों के बारे में जानकर और मंदिर वगैरह में की गई लूट-पाट जानकर कुछ इस तरह से सहम जाया करता था कि जैसे हमारे घऱ में ही डाका पड़ गया है। यह तो था मेरा हिस्ट्री ज्ञान......हां, हां, था मैंने बिलकुल ठीक लिखा है....अब इन में से कुछ भी नहीं याद।
अब अपने भूगोल ज्ञान के बारे में भी लिख दूं......आज तक मुझे कुछ पता नहीं दुनिया कितने हिस्सों में बंटी हुई है.....कौन सा देश कहां है...बस मेरे लिये जो तस्वीर मन में पांचवी कक्षा से चली आ रही है उसे कोई भी हिला--डुला नहीं पाया ....तस्वीर यही कि हिंदोस्तोन की हदों के बाहर समुंदर है और फिर आता है इंग्लैंड और अमेरिका ........फिर जब पंजाब से बहुत से लोग कैनेडा जाने शुरू हो गये तो मुझे पता चला कि कैनेडा भी कोई जगह है।
जो हमारे मास्टर थे उन में से एक थे ...बहुत डरावने से...बडी-बड़ी मूंछे.......मुझे उन की मानसिक स्थिति एवं आव-भाव देख कर पता नहीं क्यूं लगता था कि उन की पर्सनल लाइफ कुछ ठीक नहीं थी.....दूसरे लड़के तो उन से नफरत सी ही करते थे लेकिन मुझे पता नहीं क्यों उन से सहानुभूति सी लगती थी। वे अपने छोटे से बेटे को अपने साथ कईं बार क्लास में लाते थे......और मुझ उस पर भी बहुत रहम ही आता था........उस को भी वे अजीब से ढंग से डरा-धमका के ही रखते थे। अब सोचता हूं कि क्या मास्टर लोग ह्यूमन नहीं होते क्या .....उन की भी अपनी कुंठायें हैं, अपने मसले हैं , अपने दबी भावनायें हैं......सो, दोस्तो, मुझे अपने इस मास्टर से भी कोई गिला-शिकवा ही नहीं है लेकिन दो बातें याद हैं कि मुझे एक बार तो उन्होंने वर्दी न डालने के कारण एक जबरदस्त करारा सा थप्पड़ मारा था ( नौवीं कक्षा में) और दूसरा जब मैंने किसी कारणवश एक दिन दंदासा इस्तेमाल किया हुया था ....( पंजाब में हम लोग रंगीन दातुन को --अखरोट छाल --- दंदासा कहते हैं).......जिस की वजह से मेरे होंठों पर थोडा उस दातुन का रंग लगा हुया था तो उन्होंने मुझे सारी क्लास के सामने कहा था कि तू सैक्स ही चेंज करवा ले, आज कल हो रहे हैं...............ऐसा उन्होंने इस लिये कहा था कि पंजाब में रंगीन दातुन ज्यादातर महिलायें ही इस्तेमाल करती थीं लेकिन उस दिन शाय़द घर में पेस्ट खत्म थी , या कुछ और कारण था...बस, कुछ तो लफड़ा था, इसलिये मैंने उसे इस्तेमाल किया था।
बस, उस मास्टर की यह बात मैं बहुत दिनों तक सोचता रहा था लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि पहले कईं मास्टर लोग भी शायद इतने सेंसेटिव किस्म के नहीं थे.....कोई कोई, ऑफ कोर्स-----कुछ भी कह देते थे और सब के सामने और फिर उस अबोध मन पर क्या बीतता था , उन इस से कोई खास सरोकार नहीं होता था। चलो, यारो, छोड़ो ....मैं भी क्यों उस बेचारे मास्टर के पीछे ही हाथ धो कर पड़ गया हूं। जहां भी हों, वे खुश रहें।
अब जल्दी जल्दी से एक बात लिखनी यह भी है कि मेरे इस हिस्ट्री-भूगोल के बिलकुल शून्य के बराबर ज्ञान का मेरे ऊपर क्या प्रभाव पड़ा......बिल्कुल पड़ा, सज्जनो, क्योंकि मैं इस अल्प-ज्ञान की वजह से ना तो अखबारों की खबरें ही समझ पाता हूं....ना ही ज़्यादातर खबरों से रिलेट ही कर पाता हूं......और हमारे प्रोफैसर साहब कहा करते थे कि अंग्रेजी का सीएनएन एवं बीबीसी न्यूज़ चैनल रोज़ाना ज़रूर देखा करो ....लेकिन कोशिश तो की ....लेकिन जब भी वे किसी जगह का नाम लेते हैं, मैं कहीं गुम हो जाता हूं और झट से दौड़ कर उस चैनल पर वापिस आ जाता हूं जहां निंबूडा-निंबूडा वाला गाना चल रहा होता है या लाफ्टर चैनल पर पांच मिनट बिता कर अपने इतिहास-भूगोल ना जानने का दुःख भूल सा जाता हूं।
एक बात यह भी करनी चाह रहा हूं कि डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद भी मैंने अपने इतिहास-भूगोल के ज्ञान को सुधारना तो चाहा, कभी बच्चों की किताबें पढ़ के, कभी एनसीईआरटी की बहुत ही बेहतरीन किताबें खरीद कर ....लेकिन मैं भई नहीं जान पाया कि यह हिस्ट्री-ज्योग्राफी क्या बला है।
एक बात और यह भी कह रहा हूं कि एक तरफ मेरे को तो मलाल है कि मैंने हिसट्री-ज्योग्राफी ढंग से नहीं पढ़ी और उधर मेरी माताश्री इस बात से परेशान हैं कि उन्होंने ने काहे अंग्रेज़ी की तरफ़ स्कूल में ध्यान नहीं दिया.......अकसर कहती हैं कि उन की फलां-फलां सखी अंग्रजी में अच्छी थी और वह जम्मू से डिप्टी -डायरैक्टर के पद से रिटायर हुई हैं। और अब सुनाता हूं ...बीवी की .....श्रीमति जी से इस पोस्ट लिखते समय इतना ही पूछा कि ज्योत्स्ना, क्या वह राजा तुगलक ही था ना जो बहुत खाता था....तो उन्होंने भी झट से जवाब दे डाला.......मुझे नहीं पता नहीं इन चीजों के बारे में .....आप ही हो इतनी पुरानी बातों को याद किये रखते हो......हम तो याद करते थे और फिर भूल-भाल के छुट्टी किया करते थे................बस , बीवी का यह जवाब सुन कर मुझे राहत महसूस हुई कि मैं अकेला ही नहीं हूं....यहां तो सारी फैमिली ही अज्ञानी है, तो फिर दिल पे क्या लेना यारो।
हां, अब जाते जाते मुझे कुछ सीरियस से सुझाव दीजिये कि मैं अपने हिसट्री-भूगोल के ज्ञान को थोडा बहुत आगे धक्का देने के लिये आखिर करूं भी तो क्या !!
मैट्रिक का पेपर देने के बाद मुझे पता है कि रिजल्ट आने तक मेरा डेढ़-दो महीना कैसा गुज़रा था.....क्योंकि मुझे ही पता था कि मैं इतिहास-भूगोल के पेपर में क्या गंद डाल के आया था। बस, इतना सुन रखा था कि हिस्ट्री वाले पेपर जांचने वाले पेपर पढ़ते नहीं है, लंबाई नापते हैं......बस, इसी बात का ही सहारा था। वैसे मैं इतनी गप्पे हांक कर आया था कि क्या कहूं...मुझे अच्छी तरह से याद है कि मुझे अगर किसी प्रश्न के बारे में दो-चार लाइनें भी पता थीं ना तो मुझे पता है कि मैंने कैसे उन्हें चालीस बना कर दम लिया था और वह भी खुला खुला लिख कर ताकि चैक करने वाले मास्टर को 5-6 नंबर देने में कोई आपत्ति तो ना हो....वह बस तरस कर ले कि यार, लड़के ने लिखा तो है ही ना........बस, पता नहीं चैक करने वाले को ही रहम आ गया होगा कि मेरे 150 में से 94 अंक आ गये.....वैसे तो मैं मैरिट सूची में था। बस, सचमुच रिजल्ट आने पर राहत की सांस ही ली थी......क्योंकि मुझे इस तरह के नाइट-मेयर्स होते थे उन दिनों कि बच्चू तू बाकी विषयों में ते लेगा 85-90प्रतिशत लेकिन हिस्ट्री-ज्योग्राफी खोलेगी तेरी पोल।
यह जो ऊपर मैंने चार लाइनों को चालीस तक खींचने की बात की है.....अब लग रहा है कि ब्लॉगर बनने के गुण शायद इस नाचीज़ में बचपन ही से मौज़ूद थे। हां, एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा कि जब भी मैं इस पेपर का पहला प्रश्न लिखना शुरू करता था तो यह सुनिश्चित किया करता था कि पहला सवाल एकदम धांसू सा पकड़ूं........हम लोग आपस में बातें तो किया ही करते थे कि यार, बस अग्ज़ामीनर पर एक बार इंप्रैशन पड़ गया ना तो समझो कि उस ने बाकी फिर कुछ नहीं देखना। बस, इस बात को अपनी सारी पढ़ाई में फॉलो किया। पंजाबी में हमारे दोस्त कहा करते थे कि यार, हिस्ट्री विच तक गिट्ठां मिन के नंबर मिलदे ने.......यानि की हिस्ट्री में तो पेपर को हाथ से नाप-नाप के ही नंबर मिलते हैं.....बस, इसी बात का ही आसरा लग रहा था। भूगोल का भी वो हाल कि नक्शे में कुछ भी भऱना आता ना था .....बस, तुक्के पे तुक्के.....फिर रबड़ से मिटा मिटा के बार-बार तुक्के ताकि पेपर जांचने वाले को दूर से पता चल जाये कि इस को आता जाता तो कुछ है नहीं, बेवकूफ बनाने के चक्कर में ही है।
डीएवी स्कूल अमृतसर में पढ़ा हूं.....लेकिन वहां पर मुझे यह ध्यान नहीं है कि कोई भी टीचर ऐसा होता कि जो मेरे को हिस्ट्री-भूगोल में मेरी ऱूचि पैदा कर पाता। वैसे है तो यह बात अपना दोष किसी ओर के ऊपर मढ़ने की.......लेकिन फिर भी कर रहा हूं। क्योंकि अपना दोष किसी और के सिर मढ़ने में अच्छा लगता है....है कि नहीं, सच-सच बताईये। अच्छा , तो इतिहास-भूगोल का इतना ही याद है कि पांचवी-छठी कक्षा तक तो शिखर -दोपहरी में कच्छे-बनियान में बैठ कर बेहद चाव से इस के सवाल-जवाब अपनी कापी पर लिखा करते थे । लेकिन उस के बाद पता नहीं कब यह इंटरैस्ट कहीं दूर हवा हो गया.....मुझे पता नहीं ।
जहां तक मुझे अपने इतिहास-भूगोल के मास्टरों का याद है ....उन्हें तो बस यही होता था कि बस सत्र के शुरू ही में कैसे गाइड़े वगैरा बस लगवा देनी हैं। बस क्लास से क्लास छलांग लगाते तो गये लेकिन इस हिस्ट्री -भूगोल में बिल्कुल कोरे।
चलिये, आप से कैसी शर्म ....अपना इतिहास-भूगोल का ज्ञान आप के साथ एक पैराग्राफ में ही बांट लेतता हूं....पता नहीं वैसे तो मैं बेहद रिज़र्व किस्म का इंसान हूं लेकिन आप से कुछ भी बांटने में कभी भी लज्जा महसूस नहीं हुई .....पता है क्यों......क्योंकि आप सब मुझे अपने सखा -बंधु ही लगते हो......आप भी तो अपने दुःख -सुख कैसे बिना किसी झिझक के सांझे कर लेते हो। हिस्ट्री में तो दोस्तो हम यही पढ़ते रहे कि पानीपत का यूद्ध कब हुया, किस किस के बीच हुया....हां, कुछ कुछ प्लासी का युद्ध भी पढ़ा। जैन और बुद्ध धर्म के नियम भी पढ़े.....धन्यवाद हो, गौत्तम बुद्ध जी का और उस से भी ज़्यादा महावीर जैन प्रभु का ..............क्योंकि ये सिद्धांत बेहद आसान लगते थे। इस्ट इंडिया कंपनी के बारे में भी पढते थे। मोहंमद तुगलक के बारे में पढ़ते तो थे कुछ कुछ.....अब ध्यान नहीं आ रहा कि क्या ...शायद उस ने मेरे पुरखों पर बहुत हमले-वमले किये थे.....शेर शाह सूरी के बारे में पढ़ते थे कि उस ने जीटी रोड बनवाई थी.....अच्छा लगता था.....और हां, मोहम्मद गौरी और महमूद गजनवी ने यारो बहुत डराया है इन छोटी कक्षाओं में ........उन के बार-बार हमलों के बारे में जानकर और मंदिर वगैरह में की गई लूट-पाट जानकर कुछ इस तरह से सहम जाया करता था कि जैसे हमारे घऱ में ही डाका पड़ गया है। यह तो था मेरा हिस्ट्री ज्ञान......हां, हां, था मैंने बिलकुल ठीक लिखा है....अब इन में से कुछ भी नहीं याद।
अब अपने भूगोल ज्ञान के बारे में भी लिख दूं......आज तक मुझे कुछ पता नहीं दुनिया कितने हिस्सों में बंटी हुई है.....कौन सा देश कहां है...बस मेरे लिये जो तस्वीर मन में पांचवी कक्षा से चली आ रही है उसे कोई भी हिला--डुला नहीं पाया ....तस्वीर यही कि हिंदोस्तोन की हदों के बाहर समुंदर है और फिर आता है इंग्लैंड और अमेरिका ........फिर जब पंजाब से बहुत से लोग कैनेडा जाने शुरू हो गये तो मुझे पता चला कि कैनेडा भी कोई जगह है।
जो हमारे मास्टर थे उन में से एक थे ...बहुत डरावने से...बडी-बड़ी मूंछे.......मुझे उन की मानसिक स्थिति एवं आव-भाव देख कर पता नहीं क्यूं लगता था कि उन की पर्सनल लाइफ कुछ ठीक नहीं थी.....दूसरे लड़के तो उन से नफरत सी ही करते थे लेकिन मुझे पता नहीं क्यों उन से सहानुभूति सी लगती थी। वे अपने छोटे से बेटे को अपने साथ कईं बार क्लास में लाते थे......और मुझ उस पर भी बहुत रहम ही आता था........उस को भी वे अजीब से ढंग से डरा-धमका के ही रखते थे। अब सोचता हूं कि क्या मास्टर लोग ह्यूमन नहीं होते क्या .....उन की भी अपनी कुंठायें हैं, अपने मसले हैं , अपने दबी भावनायें हैं......सो, दोस्तो, मुझे अपने इस मास्टर से भी कोई गिला-शिकवा ही नहीं है लेकिन दो बातें याद हैं कि मुझे एक बार तो उन्होंने वर्दी न डालने के कारण एक जबरदस्त करारा सा थप्पड़ मारा था ( नौवीं कक्षा में) और दूसरा जब मैंने किसी कारणवश एक दिन दंदासा इस्तेमाल किया हुया था ....( पंजाब में हम लोग रंगीन दातुन को --अखरोट छाल --- दंदासा कहते हैं).......जिस की वजह से मेरे होंठों पर थोडा उस दातुन का रंग लगा हुया था तो उन्होंने मुझे सारी क्लास के सामने कहा था कि तू सैक्स ही चेंज करवा ले, आज कल हो रहे हैं...............ऐसा उन्होंने इस लिये कहा था कि पंजाब में रंगीन दातुन ज्यादातर महिलायें ही इस्तेमाल करती थीं लेकिन उस दिन शाय़द घर में पेस्ट खत्म थी , या कुछ और कारण था...बस, कुछ तो लफड़ा था, इसलिये मैंने उसे इस्तेमाल किया था।
बस, उस मास्टर की यह बात मैं बहुत दिनों तक सोचता रहा था लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि पहले कईं मास्टर लोग भी शायद इतने सेंसेटिव किस्म के नहीं थे.....कोई कोई, ऑफ कोर्स-----कुछ भी कह देते थे और सब के सामने और फिर उस अबोध मन पर क्या बीतता था , उन इस से कोई खास सरोकार नहीं होता था। चलो, यारो, छोड़ो ....मैं भी क्यों उस बेचारे मास्टर के पीछे ही हाथ धो कर पड़ गया हूं। जहां भी हों, वे खुश रहें।
अब जल्दी जल्दी से एक बात लिखनी यह भी है कि मेरे इस हिस्ट्री-भूगोल के बिलकुल शून्य के बराबर ज्ञान का मेरे ऊपर क्या प्रभाव पड़ा......बिल्कुल पड़ा, सज्जनो, क्योंकि मैं इस अल्प-ज्ञान की वजह से ना तो अखबारों की खबरें ही समझ पाता हूं....ना ही ज़्यादातर खबरों से रिलेट ही कर पाता हूं......और हमारे प्रोफैसर साहब कहा करते थे कि अंग्रेजी का सीएनएन एवं बीबीसी न्यूज़ चैनल रोज़ाना ज़रूर देखा करो ....लेकिन कोशिश तो की ....लेकिन जब भी वे किसी जगह का नाम लेते हैं, मैं कहीं गुम हो जाता हूं और झट से दौड़ कर उस चैनल पर वापिस आ जाता हूं जहां निंबूडा-निंबूडा वाला गाना चल रहा होता है या लाफ्टर चैनल पर पांच मिनट बिता कर अपने इतिहास-भूगोल ना जानने का दुःख भूल सा जाता हूं।
एक बात यह भी करनी चाह रहा हूं कि डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद भी मैंने अपने इतिहास-भूगोल के ज्ञान को सुधारना तो चाहा, कभी बच्चों की किताबें पढ़ के, कभी एनसीईआरटी की बहुत ही बेहतरीन किताबें खरीद कर ....लेकिन मैं भई नहीं जान पाया कि यह हिस्ट्री-ज्योग्राफी क्या बला है।
एक बात और यह भी कह रहा हूं कि एक तरफ मेरे को तो मलाल है कि मैंने हिसट्री-ज्योग्राफी ढंग से नहीं पढ़ी और उधर मेरी माताश्री इस बात से परेशान हैं कि उन्होंने ने काहे अंग्रेज़ी की तरफ़ स्कूल में ध्यान नहीं दिया.......अकसर कहती हैं कि उन की फलां-फलां सखी अंग्रजी में अच्छी थी और वह जम्मू से डिप्टी -डायरैक्टर के पद से रिटायर हुई हैं। और अब सुनाता हूं ...बीवी की .....श्रीमति जी से इस पोस्ट लिखते समय इतना ही पूछा कि ज्योत्स्ना, क्या वह राजा तुगलक ही था ना जो बहुत खाता था....तो उन्होंने भी झट से जवाब दे डाला.......मुझे नहीं पता नहीं इन चीजों के बारे में .....आप ही हो इतनी पुरानी बातों को याद किये रखते हो......हम तो याद करते थे और फिर भूल-भाल के छुट्टी किया करते थे................बस , बीवी का यह जवाब सुन कर मुझे राहत महसूस हुई कि मैं अकेला ही नहीं हूं....यहां तो सारी फैमिली ही अज्ञानी है, तो फिर दिल पे क्या लेना यारो।
हां, अब जाते जाते मुझे कुछ सीरियस से सुझाव दीजिये कि मैं अपने हिसट्री-भूगोल के ज्ञान को थोडा बहुत आगे धक्का देने के लिये आखिर करूं भी तो क्या !!