सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

उदवाड़ा में एक यादगार शाम ...

पहले यह तो बता कि क्या है यह उदवाड़ा, आप भी यही सोचने लगे न ...मैंने भी पहली बार जब इस जगह का नाम सुना तो मुझे भी ऐसा ही लगा था कि आखिर क्या है उदवाड़ा जैसी जगह में कि अचानक यह इतनी लाइम-लाइट में आ गई कि इस छोटे से स्टेशन पर रेलवे ने एक ऑफीसर रेस्ट हाउस भी बना दिया..और स्टेशन को एकदम चकाचक कर दिया है...मैंने न तो स्टेशन देखा है और न ही रेस्ट हाउस ...वैसे भी अगर आपने रेलगाडी से वहां जाना है तो आप को पैसेंजर गाड़ी लेनी पड़ेगी....और जिन फर्राटेदार गाडि़यों में हम सफर करते हैं, उन में बैठे हुए तो शायद बाहर झांकने पर कभी इस तरह के स्टेशन का नाम भी हम से न पढ़ा जा सके ... वैसे तो बाहर झांकने की अब फ़ुर्सत ही किसे होती है...

हां, तो चलिए आज इतवार के दिन आप को भी उदवाड़ा घुमा दिया जाए...हमें भी जब से इस के बारे में पता चला कि यह इतनी ऐतिहासिक जगह है तब से मैं भी इसे जी भर कर देख लेने के लिए बड़ा बेताब था...वलसाड़ से कार में जातें हैं तो यही कोई आधे-पौन घंटे की दूरी पर है ...बाकी स्पीड़ पर निर्भर है ..दूरी तो २०-२२ किलोमीटर की ही है ...लेेकिन रोड़ फोर-लेनिंग वाली नहीं है...


खैर, हमें किसी ने बताया कि उदवाड़ा इस लिए बहुत मशहूर है क्योंकि वहां पर पारसी समुदाय से जुड़ा बहुत पुराना फॉयर-टेंपल है....(पारसी समुदाय के लोगों के धार्मिक स्थान को फॉयर-टेंपल कहते हैं जिन में पारसी धर्म के लोग ही जा सकते हैं..)...पहली बार बंबई के मेट्रो सिनेमा के पास ही एक फॉयर-टेंपल के बाहर बरसों पहले यह नोटिस चस्पा देखा तो कुछ अजीब सा लगा था ...लेकिन फिर समझ में आ गया कि हर धर्म की अपनी मान्यताएं हैं, धारणाएं हैं...उसमें क्या अजीब है, अपने आप से कहा कि तू कुछ और देख ले, इतना कुछ है देखने के लिए इस कायनात में...तू भी उधर ही जाना चाहता है जिधर जाने से तुझे रोका जाता है...

खैर, फिर वक्त के साथ पारसी धर्म और पारसी लोगों के बारे में पता चलता रहा ..अधिकतर मुझे यह सब टाइम्स ऑफ इंडिया के पन्नों से ही पता चला ..ये कहां से आए, अपने आप में मस्त रहते हैं, देश के लिए इन्होंने कितना कुछ किया...इन में शादियां कैसे होती हैं, प्राण त्याग देने पर किसी के मृत शरीर का क्या किया जाता है ...कहीं पढ़ा था मैंने कि इनमें मृत शरीर को जलाते-दफनाते नहीं हैं, लेकिन उसे किसी विशेष जगह पर चील-कौवों के खाने के लिए रख दिया जाता है ...मैंने सुना है कि आजकल ऐसा करना बंद है ...मुझे कुछ पता नहीं, आप गूगल अंकल से ही पूछिए...मेरे पास जितनी अधकचरी जानकारी थी मैंने आप तक पहुंचा दी ...

अच्छा तो उदवाड़ा गांव में पहुंचते ही लगा मानो कितनी सदियां पीछे चले आए हों....हर तरफ़ पसरी शांति-सन्नाटा....हर शै ठहरी हुई ...शांतिप्रिय पारसी लोग दिखे ..बाबा आदम के ज़माने की के कुछ घर, कुछ बिल्डिंग ....बहुत से कुएं भी दिखे ....और ये कुएं काम में नहीं थे...लेकिन इन्हें भरा भी नहीं हुआ था, मैंने ऊपर लिखा न चील-कौवों के बारे में ...उसी संबंध में ही कुओं के बारे में भी पारसी धर्म की कुछ धारणाएं हैं...इसलिए कुओं का पारसी लोगों की ज़िंदगी में एक ख़ास स्थान है ...

हमें पता नहीं था कि गांव के बीचो-बीच एक बीच भी है ....वहां पर भी लोग इत्मीनान से बैठे गपशप में लगे हुए थे ...वहां की रेत भी अलग तरह की लगी ....आप को इस का रंग कुछ अलग सा नहीं लग रहा ..

एक पारसी महिला से बात हुई - बेहद खूबसूरत घर था उन का ..वह बाहर ही खड़ी थीं...कहने लगीं कि उस के पति ४० साल से ज़्यादा बरस नौकरी में बिताने के बाद कहने लगे कि यहीं उदवाड़ा में बस जाएंगे ...बता रही थीं कि तीन नौकर भी हैं लेकिन इतने बड़े घर का रखरखाव कर पाना बड़ी टेढ़ी खीर है...एक बेटा अमेरिका में है, दूसरा बंबई में है....हम से भी जब तक इस घर का ख्याल रखा जाएगा, यहां रहेंगे ...जब लगेगा नहीं हो पा रहा है, तो बंबई में ही जा कर रहने लगेंगे....

उस महिला की बातों से ऐसा आभास हुआ जैसे वे लोग मजबूरी में रह रहे हों....मुझे ऐसा लगा तो मैंने लिख दिया..लेकिन मैं किसी के बारे में क्या लिखूं मैं भी तो ऐसा ही हूं...सुख सुविधाएं भी चाहिए, सुकून भी चाहिए ...शरीर को कोई ज़हमत भी नहीं देनी...हा हा हा ..यह भी कैसी नौटंकी है ..😎 ...चलिए, उदवाड़ा की और बातें करते हैं...

मुझे उदवाड़ा गांव की गलियों में घूमते-फिरते लोनावला जैसी फील आ रही थी ..बस, जैसे पहाड़ों की जगह समुंदर ने ले ली हो ....उदवाडा़ में भी एक दो बहुमंजिला इमारतें दिख गईं ..यही कोई चार पांच मंज़िल वाली ..और एक शानदार धर्मशाला भी दिखी ..लोग वहां ठहरे भी हुए थे ...मुझे वहां पर ऐसा लग रहा था जैसे लोग वीकएंड रिट्रीट के लिए भी आते होंगे ..मैंं भी जब २५-३० साल पहले सिद्ध समाधि योग से जुड़ा हुआ था तो हमें भी एडवांस मेडीटेशन कोर्स के लिए चार पांच दिन के लिए रिट्रीट के लिए देहरी आश्रम ले जाते थे ..वहां पर कुदरती माहौल में रहना, अपने मोबाइल फोन चार दिन के लिए बंद कर के जमा करवा देना....लगभग व्रत रखे रखना, ऊपर से शंख-प्रश्रालन ...(यही होता है शब्द ...सुनने में तो ऐसा ही लगता था...) इस के लिए हमें एक दिन सुबह सुबह गर्म पानी पीना होता था ..उस के बाद हमें एक घंटा हाजत होती रहती थी और पूरा पेट साफ़ होने पर ही हमें बात समझ आने लगती थी ..कोई चाय नहीं, कोई सिगरेट नहीं, पान मसाला नहीं ....अच्छा लग रहा है उन दिनों को याद कर के ...पता करूंगा कि अभी भी क्या मेरे जैसे बिगड़ैल को दाखिला दे देंगे .... मैंने मेडीटेशन को वहीं से समझा ....करता हूं आज भी कभी कभी...बहुत अच्छा लगता है ...

खैर, अब मेरे ख्याल में आप को उदवाड़ा की तस्वीरें ही दिखाई जाएं ...बातें तो बहुत हो गईं ...दरअसल हम लोग देर शाम के वक्त पहुंचे थे ..थोड़ा जल्दी जाना चाहिए था...चलिए, जब हो आए, वही घड़ी मुबारक है ...

उदवाड़ा गांव में जाते ही सब से पहले यह सुंदर घर दिखाई पड़ा ...

सौ साल पुरानी एक बिल्डिंग में अब एक जनाना अस्पताल है ...पढ़िए इस बोर्ड को आप को ..

अस्पताल की खूबसूरत बिल्डिंग 


गांव में अधिकतर घर जर्जर हो चुके...कोई रहता नहीं अब इन में ..

बेहतरीन सुंदर घर खस्ताहाल में शायद किसी की याद में संजो रखे होंगे...

कुएं बहुत से हैं गांव में ..और पारसी समाज में कुओं के अहमियत को मैं पहले ही लिख चुका हूं...

एक और खूबसूरत घर देखिए..

चलते चलते समंदर का किनारा ही आ गया...

समंदर की तरफ़ बढ़ने से पहले इस कुएं में भी झांक लीजिए...जब मैं दूसरी तीसरी क्लास में था तो पैदल ही हम लोग मोहल्ले के दूसरे बच्चों के साथ स्कूल जाते थे ...अमृतसर के इस्लामाबाद एरिया में रेलवे फाटक के पास एक बहुत बड़ा कुआं था...पानी से भरा हुआ...मैं अकसर उस को झांक कर ही आगे बढ़ता था ...पता नहीं मैं उसमें क्या ढूंढने जाता था 😂

दूर से देखने पर ऐसा लगा जैसे कि यह कुछ परिवारों का प्राईव्हेट बीच है ...लेकिन वही होता है जब तक किसी चीज़ के पास जा कर न देखो तो हम अपनी ही धारणाएं बना लेते हैं...यहां पर कईं जगह पर बैंच लगे हुए थे...



इसे देखिए यह कैसे कुदरती नज़ारोे के पास पहुंचते ही अपनी औकात भूल जाता है ...वैसे कहता रहता है घुटने दुखते हैं...लेकिन इन जगहों पर इसे कुछ याद नहीं रहता..😃...बच्चों को बार बार याद दिलाना पड़ता है, ध्यान से पापा!!😎

बीच पर 15-20 सीढियां बनी हुई थीं, ...उन से नीचे आने पर बीच ऐसा दिखाई दिया 


बीच के किनारे पर यह दलदल समझ में नहीं आई...पानी तो बहुत दूर था...ज्वारभाटे का कुछ चक्कर होगा...अब इतना भूगोल जान लेते तो क्या बात होती!!


यह धर्मशाला तो देख कर तबीयत खुश हो गई ...लोग आकर यहां ठहरते होंगे ...मैंने कहा न यह जगह बड़ी शांत है...

जगह जगह पुराने खंडहर ....इमोशल वेल्यू शायद - पुरखे रहते होंगे जिन के यहां, अब वे अधिकतर बंबई जैसे बड़े शहरों में रहने चले गये हैं...

झांक ले यार तू भी कुएं में ....

डरावने कुएं ...सुनसान जगहों पर 

यह बोर्ड पढ़ने से पता चला कि यह किसी ज़माने में किसी डाक्टर साब का विल्ला था ...

खंडहर भी बहुत कुछ ब्यां कर जाते हैं...


बढ़िया खिड़की ...

खूबसूरत घर ....मैं तो जहां भी जाता हूं मुझे वही जगह खूबसूरत लगने लगती है, मेरी तो यहीं पर बस जाने की तमन्ना हुई...

स्ट्रीट -आर्ट का नमूना भी दिख गया एक दीवार पर ...



यह पारसी समुदाय का फॉयर-टेंपल है ...अब मुझे क्या पता अंदर कैसा है, बाहर लिखा तो है पारसी लोगों के अलावा किसी दूसरे को अंदर जाने की इजाजत नहीं है ...

इन घरों की तारीफ़ के लिए इतने अल्फ़ाज़ कहां से लाऊं..

वाह..बहुत खूब...

माशाल्लाह .....


ठहरा हुआ सा गांव...सुकून से भरा हुआ...कभी हो कर आइए..लेकिन हमारी तरह देर शाम को न जाइए...सुबह जाइए, सारा दिन वहीं बिताइए...जगह और लोगों को जानिए...हमारे जैसे हाथ मत लगाने जाइए....कुछ ंघंटे तो ज़रूर टिकिए वहां ... 


जिन घरों में लोग रह रहे हैं उन में से कुछ का तो बहुत अच्छे से रखरखाव किया गया है ...

बैंच भी ऐसे कि उन पर बैठने तो क्या, लेटने के लिए मन मचल उठे....

वाह रे तेरी नक्काशी ....

यह जो लकड़ी का एक दरवाज़ा सा है न यह दरअसल परदे के लिए एक स्क्रीन का काम कर रहा है, अगली तस्वीरों से आप को स्पष्ट हो जाएगा...




वह लकड़ी की सुंदर स्क्रीन जिस की मैं बात कर रहा था ...










सारे गांव में एक ही दुकान दिखी हमें ...


कोई इस से पूछे कि क्या यह तेरा विल्ला है, बिल्ले...जितनी ठसक से तू उस के गेट पर पोज़ दे रहा है!!😎

वापिस लौटने का वक्त हो गया ....लेकिन गांव से बाहर निकलते ही यह तो हरियाणा के किसी दूर-दराज के गांव की कोई सड़क लग रही थी ...😎😃

अच्छा, यहां जाना कैसे है...यह भी सुनिए...यह जगह उदवाड़ा रेल और रोड़ से वापी और वलसाड़ से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है ...वलसाड़ से 22किलोमीटर है और वापी से तो और भी कम है ..यही कोई 30-40 मिनट की ड्राइव ...वैसे उदवाड़ा का अपना स्टेशन भी है ...लेकिन वहां पर पैसेंजर गाड़ियां ही रूकती हैं...स्टेशन एक दम बढ़िया है ..देखिए, कभी चक्कर लगे तो हो कर आइए....पारसी समुदाय का सब से पवित्र जगहों में से एक है ....


इतने खूबसूरत बहुत से खंडहर देख कर पता नहीं मेरे दिलोदिमाग में तो यही गीत बार बार कौंध रहा है ... पारसी समुदाय को उन के समाज की तरफ़ से यह हिदायत है कि आप अपनी जनसंख्या बढ़ाइए और इस के लिए इन्हें कुछ इंसेन्टिव भी देने की बात भी कहीं पढ़ी थी..लेकिन अपने यहां तो अकसर कहते ही हैं कि बच्चे तो भगवान की देन हैं😂 ...इसी के चलते पारसीयों की जनसंख्या दुनिया भर में दिनोंदिन घट रही है ...