शनिवार, 20 सितंबर 2014

बोरों में लाश किसकी-- जानवर या इंसान

आज बाद दोपहर मैं लखनऊ के आलगबाग से बंगला बाज़ार की तरफ़ आ रहा था...जिस रोड से मैं आ रहा था उसे व्ही.आई.पी रोड कहते हैं.....शायद इसलिए कि जब माननीय लोग हवाईअड्डे की तरफ़ जाते हैं तो इन की गाड़ियों के काफ़िले इस रोड से ही निकलते हैं, मुझे ऐसा लगता है कि इसीलिए नाम भी यही पड़ गया होगा।





नहरिया के ऊपरी सतह से निकला बोरा...


हां, तो उस व्हीआईपी  रोड के एक तरफ़ तो है बौद्ध विहार नामक एक स्मारक.....बहुत बढ़िया स्मारक है, देखने लायक....सुश्री माया वती के कार्यकाल के दौरान तैयार हुआ था। लेकिन कुछ दिनों से व्ही आई पी रोड के बीच में एक बंद रास्ता खोल दिया गया है। और इस स्मारक की दीवार के आगे एक नहर है.......इसे यहां की भाषा में नहरिया कहते हैं......लेकिन मुझे यह किसी नाले जैसा ही लगता है।

आज मैंने आते हुए देखा कि वहां पर लोगों का तांता लगा हुआ है......मैं भी रूक गया, पूछने पर पता चला कि नीचे नहर में दो बोरे पड़े हैं. कुछ दिनों से पड़े हुए थे, लोगों ने बदबू की शिकायत की तो आज उन्हें पुलिस की देखरेख में और जेसीबी मशीन की मदद से उठाया जा रहा है।

मैंने भी आगे होकर देखा कि एक वर्कर नीचे जा कर उन में से एक बोरे को रस्से से बांध रहा था....और फिर जेसीबी मशीन के द्वारा उसे ऊपर उठा लिया गया। वह वर्कर उस के बाद वापिस ऊपर आ गया।

जे सी बी मशीन में चंद लम्हों में वे बोरे ऊपर उठा कर रख दिए....आप इन तस्वीरों मेें देख रहे हैं...

उस के बाद वही बोरे जेसीबी ने सावधानी से उठाये और चलती बनी......पुलिस भी वहां से हट गई......और जनता भी तितर बितर हो गई।

हर कोई एक दूसरे से पूछ रहा था कि इन बोरों में लाश जानवर की है या इंसान की है?......तभी किसी ने एक बोरे की तरफ़ इशारा किया कि देखो, जानवर के पांव जैसा एक बोरे से बाहर दिख रहा है। लेकिन किसी ने इस बात की पुश्ति नहीं की कि आखिर क्या था उन बोरों में।

वहां खड़ा एक आदमी कहने लगा कि अगर जानवर की ही लाश होती तो उसे इतने टुकड़ों में काट कर बोरे में बंद कर के भला फैंकने की क्या ज़रूरत थी?...बात तो सही लग रही थी।

अब यह रहस्य कल के अखबार में शायद खुल जाए कि क्या था उन बोरों में.......पुलिस तहकीकात में क्या पता चला......मुझे वहां खड़े खड़े सोनी टीवी के सीआईडी सीरियल का ध्यान आ रहा था।

एक बार जर्नलिज़्म के एक प्रोफैसर ने क्लास मे एक शेयर मारा था....पूरा तो अभी याद नहीं, लेकिन कुछ शब्द ऐसे थे कि......
अब कौन देखने जाए कहां से उठ रहा है धुआं....
कल सुबह अखबार में पढ़ लेंगे आग कहां लगी है।। 

आज हमारे समाज का भी कुछ ऐसा ही हाल हो गया है। सनसनी हर तरफ़ दिख रही है लेकिन इस के आगे किसी को कोई सरोकार नहीं.......कुछ मतलब नहीं। दो मिनट में तांता लग जाता है तीसरे मिनट में तितर बितर हो जाता है........आज सुबह किसी फेसबुक मित्र की एक पोस्ट देखी थी ...अब सपेरे ने यह कह कर सांप अपने पिटारों में बंद कर दिये हैं.....कि अब इंसान को काटने के लिए इंसान ही काफ़ी है।