शनिवार, 26 जनवरी 2008

“नहीं, डाक्टर, मैं किसी ऐसी वैसी जगह नहीं जाता.....


बस, यूं ही तीन-चार जगह जहां मेरा प्यार बना हुया है, बस वहां ही.....। आप शायद गलत समझ रहे हैं,मैं उन वेश्याओं वगैरह के चक्कर में नहीं हूं।

दोस्तो, हम डाक्टर लोगों को भी नित-प्रतिदिन नये नये अनुभव होते रहते हैं जिन्हें हमें फिर दूसरों के साथ बांटना ही पड़ता है क्योंकि उन अनुभवों में कुछ इस तरह की बातें होती हैं जिन से दूसरों का भी कल्याण हो जाता है...उन में भी स्वास्थ्य के प्रति चेतनता बढ़ती है। लेकिन यकीन मानिए हम जब ऐसी बातों को किसी से साझी करते हैं तो हम उस किसी मरीज़ की गोपनीयता का 101फीसदी ध्यान रखते हैं क्योंकि उस मरीज़ ने भी कितना भरोसा कर के वह बात डाक्टर के साथ शेयर की होती है। अब जो मैं बात आप को बताने जा रहा हूं, उस मरीज़ का नाम अथवा किसी तरह की डिटेल्स मैं किसी के साथ शेयर करने की सोच ही नहीं सकता। लेकिन यह जो बात बता रहा हूं –इस का मतलब किसी तरह से भी यह नहीं है कि डाक्टर मरीज़ों के बारे में किसी तरह के जजमैंटल होते हैं......बिल्कुल नहीं, सो इस बात को केवल कुछ सबक ग्रहण करने के लिए ही सुनिएगा। लेकिन है यह शत-प्रतिशत सच।

कुछ दिन पहले, दोस्तो, मेरे पास लगभग 40वर्ष का युवक आया ( अब युवक ही कहूंगा...क्योंकि 35-40 की उम्र तक तो युवक अब कुंवारे ही रहने लगे हैं).....लेकिन यह युवक शादी-शुदा था। वह जिस तकलीफ़ के लिए आया था, जब मैं उस का निरीक्षण कर ही रहा था तो उस के मुंह में झांकने पर मुझे कुछ इस तरह के इंडीकेटर्स दिखे जो कि स्वस्थ व्यक्ति में नहीं होते, और जो कम इम्यूनिटि( रोग-प्रतिरोधकता क्षमता) की तरफ भी इशारा कर रहे होते हैं। इन इंडीकेटर्स की चर्चा विस्तार से फिर किसी पोस्ट में करेंगे। एक अवस्था जो आजकल के परिपेक्ष्य में संभावित सी जान पड़ रही थी, वह है एच-आई-व्ही इंफैक्शन।

तो, उस की तकलीफ़ के लिए प्रेसक्रिप्शन लिखते हुए मैंने उसे बहुत ही एक कैज़ुएल-वे में यह पूछ लिया कि बाहर किसी से शारीरिक संबंध तो नहीं रखते हो। लेकिन यह क्या, उस ने भी उतने ही कैज़ुएल वे में कह दिया----हां, हां, बिल्कुल !!

मुझे लगा कि उस ने मेरा प्रश्न ठीक से कैच नहीं किया, क्योंकि इतनी जल्दी और इतनी फ्रैंकनैस से हमें इन बातों के जवाब कम ही मिलते हैं। पहले थोड़ा मरीज़ से बातचीत में खुलना पड़ता है ....we have to make the person comfortable before discussing personal issues….otherwise why the hell he would talk with his doctor what he is doing behind closed doors!!

इसलिए मैंने अपना प्रश्न कुछ दूसरे ढंग से पूछा.....नहीं, मैं तो केवल यही पूछना चाह रहा था कि आप ने पिछली बार बाहर किसी के साथ शारीरिक संबंध कितने साल पहले बनाए थे। एक बार फिर मैं उस का जवाब सुन कर दंग रह गया....डाक्टर साहब, कितने साल पहले क्या, मैं तो आज भी यह सब खूब करता हूं।

मैंने उस से आगे कहा कि तुम्हें पता है न कि आज कल कितनी बीमारियां ऐसे असुरक्षित यौन संबंधों से फैलती हैं। खैर, दो-तीन बातें करने के बाद मैंने उसे एच-आई-व्ही टैस्ट करवाने पर राज़ी करवा लिया। लेकिन मैंने उसे इतना भी कह दिया कि इतनी कोई जल्दी भी नहीं है, तुम्हारी 2-4 दिन में जब तबीयत ठीक हो जाएगी, तब यह एच-आई-व्ही के लिए अपने रक्त की जांच भी ज़रूर करवा लेना। वह कुछ चिंतित सा लगा, सो मैंने उसे कहा कि इस में चिंता की तो कोई बात है ही नहीं, बिल्कुल मत सोचो इस के बारे में ज्यादा, लेकिन तुम चूंकि हाई-रिस्क सैक्सुयल बिहेवियर में लिप्त हो , इसलिए यह टैस्ट करवा लेना ही तुम्हारे हित में होगा। और तब मैंने उस मरीज़ को भेज दिया।

दोस्तो, आप सोच रहे होंगे कि उस का टैस्ट उसी समय ही क्यों नहीं करवा लिया गया, नहीं, दोस्तो, अकसर ऐसा नहीं किया जाता,क्योंकि मरीज़ को थोडा मानसिक तौर पर तैयार होने में टाइम तो लगता ही है ..उस में उस की सहमति (informed consent) भी बहुत ज़रूरी है …अब अगर किसी व्यक्ति को जो आप के पास थूक निगलने में दर्द की शिकायत लेकर आया है , उसे आप एचआईव्ही टैस्ट करवाने के लिए कह रहे हैं.....उस का तो सिर ही एकदम से घूम जाता है,और विशेषकर जब वह कोई भी हाई-रिस्क सैक्सुयल एक्टिविटि में लिप्त होने की बात स्वयं स्वीकार रहा हो......That’s why it is very important to make him/her feel relaxed !!.

दोस्तो, मैंने तो तीन –चार दिन के बाद आने की कही थी लेकिन वह तो अगले ही दिन मेरे पास आ गया। बहुत खुश लग रहा था, बताने लगा कि डाक्टर साहब, आप से कल जब मैं मिल कर गया, मेरे तो पैरों के तले से ज़मीन ही खिसक गई, मेरे से तो रहा ही नहीं गया, मैं सीधा पैथोलाजी लैब में गया और जा कर अपना खून HIV जांच के लिए दे दिया। उस ने आगे बताया कि शाम को मुझे जब ठीक ठाक होने की रिपोर्ट मिली तो मुझे चैन आया, मैं तो डाक्टर बहुत घबरा गया था।

अब हमारी अगली बात ज़रा ध्यान से सुनिएगा....पोस्ट लंबी होने की चिंता मेरी पोस्ट में ज्यादा न किया करें...आप को पता ही है कि डाक्टर लोग तो वैसे कितना कम बोलते हैं, और देखिए मैं आपसे बतियाता ही जा रहा हूं।

अच्छा , तो दोस्तो, मैंने उस की ठीक ठाक रिपोर्ट देख कर उसे बधाई दी और कहा यह तो ठीक है , लेकिन जो आप कल बाहर जा कर संबंध (extra-marital relations) बनाने की बात कह रहे थे, उस पर टोटल रोक लगा दें, ताकि हमेशा के लिए आप इस बीमारी से अपना बचाव कर सकें।

अब उस की बोलने की बारी थी----नहीं, डाक्टर साहब, आप गल्त समझ बैठे हैं, मैं इधर-उधर कहीं नहीं जाता...मेरे कहने का मतलब है कि वैश्याओं के पास नहीं जाता, बस कुछ पर्सनल 3-4 जुगाड़ हैं , जो अब विवाहित हैं ,जहां बस प्यार का ही मामला है, एक दम पर्सनल...और कुछ नहीं।

अब मैं उस को यह कैसे कहता कि जिन “जुगाड़ों” को तुम इतना पर्सनल कह कर इतरा रहे हो, उनकी इतनी गारंटी कैसे ले सकते हो। क्या पता यह क्लेम करने वाले और भी कितने हों !!(विचार तो, दोस्तो, एक दो और भी आए लेकिन वे यहां लिखने लायक भी नहीं हैं....क्या है न , डाक्टरों को गुस्सा पीना भी बखूबी आता है...) .....चूंकि डाक्टरों को मरीज़ पर सीधी कोई भी चोट करने से बचना होता है या यूं कहूं कि डैकोरम मेनटेन करना होता है, सो मैंने भी उस दिन उसे समझाने के लिए थोड़ा घुमावदार तरीका ही अपनाया।

मैंने उस बंदे को यह कह कर समझाने की कोशिश की कि देखो, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि ये सब तुम्हारी पर्सनल हैं, लेकिन सोचो, उन के जो पति हैं वे कहां कहां जाते होंगे, तुम इस की क्या गारंटी ले सकते हो ? ….दोस्तो, यकीन मानिए बात उस के मन को लग गई। और, अंत में वह कहने लगा कि अब मेरी तो तौबा, डाक्टर साब, ऐसे संबंधों से। लेकिन अभी भी उस के अंदर का कीड़ा काट रहा था.......जाने से पहले, एक सवाल उस ने यह कर ही दिया कि डाक्टर साब, सैक्स की बात तो मैं मान गया, लेकिन क्या चुंबन करने से भी कोई खतरा होता है। मैंने उसे समझाया कि हां, हां, मुंह से मुंह (mouth-to-mouth kissing) लगा कर किए जाने से भी एचआईव्ही इंफैक्शन का खतरा संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में होता ही है क्योंकि मुंह में अगर कट्स हैं, छाले हैं, कोई घाव है, खरोंच हैं तो बस हो गया एचआईव्ही वायरस के फैलने का प्रबंध। लग तो रहा था कि अब उसे पूरी समझ लग चुकी है कि यह खेल तो आग का खेल है।

जाते जाते मैंने उसे यह भी समझाया कि अब अपना ध्यान इस घर के बाहर जा कर संबंध स्थापित करने से हटाओ....सैर किया करो, प्राणायाम एवं योग किया करो....सात्विक भोजन खाया करो......हां,हां, वही सब घिसी पिटी बातें जो मेरे जैसे सारे डाक्टर सारा दिन गला फाड़-फाड़ कर कहते रहते हैं।

लेकिन इस घटना ने मेरे उस विश्वास को और भी पक्का कर दिया कि अच्छे पढ़े लिखे लोगों में भी एचआईव्ही संक्रमण एवं इन पर्सनल जुगाड़ों के प्रति कितनी गलतफहमी है। इसलिए हम डाक्टरों पर भी यह अवैयरनैस लाने की अभी कितनी बड़ी जिम्मेदारी है।

पोस्ट लंबी है, मैं इस के बारे में कुछ नहीं कर सका---क्योंकि, दोस्तो, मुझे अपनी बात तो पूरी आप के सामने रखनी ही थी।

Wishing you pink of health and lots of lots of happiness..

बचपन के दिन भुला न देना.......!!




दोस्तो, अगर आप को कहीं पीछे छूट चुके बचपन की एक हल्की सी झलक देखने की तड़फ है, तो ही इस बलोग को देखिए.....वरना, आप जो काम कर रहे हैं, प्लीज़ कैरी ऑन।

हुया यों कि दोस्तो, आज अभी कुछ समय पहले जब गणतंत्र दिवस की गतिविधियों से फारिग हो कर रिफ्रैशमैंट ले रहे थे तो मेरा बेटा वहां हाथ में एक गुलेल ले कर अंदर आया जो उस ने बाहर खड़े किसे खिलौने वाले से अभी अभी खरीदी थी। आप को भी याद आ गया न----कुछ कुछ अपना इस गुलेल से रिश्ता। दोस्तो, वह गुलेल क्या अंदर लाया, यार, मैं तो सीधे 30साल पुराने ज़माने में पहुंच गया। वो भी क्या दिन थे......इतनी अच्छी रैडीमेड गुलेलें भी तब कहां मिलती थीं। मेरे साथ बैठे एक साथी भी गुज़रे ज़माने में पहुंच गए.....वो भी याद करने लगे कि हम तो भई किसी साइकिल के टायर की फटी हुई टयूब से ही इसे बना लिया करते थे...और फिर उसी ट्यूब के टुकड़े से ही उस को उस विशेष किस्म की लकड़ी से कस से बांधना भी होता था........और हां, मैंने कहा कि वह Y – शेप की लकड़ी ढूंढना भी कौन सा आसान काम था। साथ में बैठे एक अन्य सज्जन ने भी यह कह कर अपनी सारी यादें ताज़ा कर लीं कि बस इस के साथ साथ कुछ छोटे-छोटे पत्थरों से लैस होकर फिर होती थी अपनी आधे कच्चे-आधे पक्के आम पेड़ों से गिरा कर नमक के साथ खाने वाले अभियान की तैयारी। मुझे तो याद आया कि मैं तो भई इस के साथ इमली के बीजों को ही इस्तेमाल करता था। लेकिन इस गुलेल को हाथ में उठाने का मतलब होता था कि बस घर के हर बंदे से झिड़कियां खाने का सिलसिला शुरू हो जाना।

बात यह भी सोलह आने सच है कि तब इस शेप की लकड़ीयां इतनी तादाद में कहां मिलती थीं...इसलिए अमृतसर में एक जंगली पौधा होता है जिसे हम पंजाबी में अक कहते हैं ( I am very sorry, friends, I don’t know what they say this in Hindi….I am awfully sorry for this !!)…..वह पौधा तो क्या उस की छोटी छोटी झाडियां टाइप ही हुया करतीं थीं जिन के ऊपर कुछ इस तरह के फल भी आते थे जिन से सफेद दूध टाइप का कुछ द्रव्य निकलता था, उस के पत्तों को लोग किसी फोड़े( abcess) को पकाने के लिए भी इस्तेमाल किया करते थे.......मुझे याद है मेरे से दस साल बड़ी बहन की छाती पर भी एक बार कुछ ऐसा ही हुया होगा ...वह दो-तीन दिन रोती रही थी, फिर मेरी मां ने इस पौधे का पत्ता ही गर्म कर के उस पर लगाया था, उस के आगे का कुछ याद नहीं....मैं तब 4-5 साल का रहा हूंगा।

और हां, दोस्तो, मैं भी किधर का किधर निकल गया। अच्छी भली गुलेल की बात हो रही थी। और तो और दोस्तो, जब कभी निशाना साधते हुए उस गुलेल की लकड़ी टूट जाती थी , तो मन बड़ा बेहद दुःखी होता था। कईं शरारती किस्म के लड़के तो छोटे-छोटे बच्चों को उलटी गुलेल सिखाने की हिदायत ही दे डालते थे।

दोस्तो, यह गुलेल तो एक बहाना ही साबित हुई हमें अपने कहीं दूर खो चुके बचपन की एक झलक देखने क्या। क्या यार वो भी क्या दिन थे.....कहां हो बचपन तुम......तुम यार बहुत जल्दी बीत जाते हो......एक तो समस्या यह है कि हमें अब समझ भी जल्दी ही आने लगी है। और मां-बाप को भी जल्दी पड़ी होती है कि जल्दी से जल्दी बच्चे को किसी बड़े से स्कूल में डाल कर अपना एक और स्टेटस सिंबल ऐड कर लें। पहले ऐसी जल्दी भी नहीं हुया करती थी.....बंदा घर में ही अपनी मां, चाची , ताई, दादी ,नानी, .....और ढेर सारा प्यार देने वाली पड़ोस की अपनी मां-जैसी ही लाडली दिखने वाली आंटियों से भी बहुत कुछ सीखता रहता था। अब किस के पास टाइम है......

और हां, बेटे ने गुलेल तो ले ली है, लेकिन अब चलानी कहां है, क्योंकि अपने सारे पेड़ पौधे काट काट कर तो हम अपने बेवकूफ होने के सारे सबूत बरसों से जुटा ही रहे हैं. अब गुलेल अगर महानगरों में इस्तेमाल होगी तो इमली की बजाए झगडे ही तो हाथ लगेंगे। और हां, इमली की बात से याद आ गया कि दो दिन पहले नीरज जी द्वारा अपनी प्यारी पोती मिष्टी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में लिखी पोस्ट बेहतरीन थी....शायद ही किसी दादू ने अपनी पोती को इतना बेहतरीन तोहफा पहले दिया हो...पोस्ट का नाम था.....हसरतों की इमलियां.........अगर अभी तक नहीं पढ़ी है तो जरूर पढ़ना, दोस्तो।

दोस्तो, मैं कुछ ज्यादा ही अपनी बात खींच तो नहीं गया ....कोई बात नहीं दोस्तो बचपन में घूमते हुए कहां हम लोग अपने आप को शब्दों अथवा टाईम के बंधन में बाँध पाते हैं। लेकिन मैंने आप को अगर इस पोस्ट की तरफ बुला कर डिस्टर्ब किया है तो दोस्तो मैं हाथ जोड़ कर आप से माफी मांगता हूं। वैसे दोस्तो मैंने तो इस ब्लाग—मेरी स्लेट—के उदघाटन समारोह में ही यह घोषणा कर दी थी कि इस ब्लोग पर... अपनी स्लेट... पर मैं जम कर मस्ती करूंगा....क्योंकि मुझे कैसे भी किसी भी कीमत पर अपना बचपन दोबारा जीना है......आप क्या सोच रहे हैं, आप भी कुछ सुनाइए.........देखना, आपस में बात करेंगे तो कितना मज़ा आएगा।

बचपन के दिन भूला न देना,.....एक गाना है न ऐसा ही कुछ, अच्छा लगता है।

सुप्रभात..............आज का विचार..26जनवरी,२००८.

--"जब मैं एक आवाज़ को सुनता हूं तो सोचता हूं कि उस की तुलना किस से करूं। फिर सोचता हूं कि अगर सभी पर्वतों से निकलने वाली नदियों के मधुर संगीत, आकाश पर उन्मुक्त हो कर विचर रहे सभी पंक्षियों की चहक, मधुमक्खियों के छज्जों से टपकते हुए शहद की ध्वनि और बागों में सभी रंग बिरंगी तितलियों के मनलुभावन रंगों को मिला दिया जाए और इन सब को चांदनी में गूंथा जाए तो शायद आशा भोंसले की आवाज़ बन जाए।"-----दोस्तो, ये शब्द जावेद अख्तर द्वारा आशा भोंसले के लिए २००२ में ज़ी-सिन अवार्ड्स के दौरान कहे गये थे और मैंने इन्हें अपनी डायरी में लिख लिया था....क्योंकि मैंने ऐसी जबरदस्त तुलना आज तक ही देखी है, ही सुनी है - इसीलिए आज के विचार में आप के लिए पेश कर रहा हूं
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सीखो
फूलों से नित हंसनी सीखो,
भोरों से नित गाना,
फल की लदी डालियों से नित
सीखो शीश झुकाना।

सीख हवा के झोंकों से लो
कोमल कोमल बहना
दूध तथा पानी से सीखो
मेल जोल से रहना।

सूरज की किरणों से सीखो,
जगना और जगाना,
लता और पेड़ों से सीखो,
सब को गले लगाना।

दीपक से सीखो तुम
अंधकार को हरना,
पृथ्वी से सीखो सब की ही ,
सच्ची सेवा करना।।
( दोस्तो, यह प्रेरणात्मक पंक्तियों मुझे उस कागज़ पर बहुत साल पहले दिख गईं थीं जिस में मैं एक रेहड़ी के पास खड़ा हो कर भुनी हुई शकरकंदी का मज़ा लूट रहा था.....यह किसी छोटे बच्चों की किताब का कोई पन्ना था जो मुझे हिला गया).....
दोस्तो, अभी तो कोई शक करने की गुजाइश ही नहीं रह गई कि क्यों कहते हैं कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।
अच्छा , दोस्तो, गणतंत्र दिवस की ढ़ेरों बधाईआं।