गुरुवार, 15 सितंबर 2022

लौकी का रस और वह भी कड़वा !

इसे भी पढ़ लो यार, यह वाट्सएप की पोस्ट नहीं है ...क्वालीफाईड डाक्टरों की सीख है जिसे दोहराने का मन हो रहा है ...मुझे भी यह पता तो था लेकिन इस पर मोहर आज कुछ बहुत अनुभवी, भले एवं अपने काम में माहिर चिकित्सकों की लगी तो मुझे लगा कि इस पर ही बात करते हैं...

जितना आप की समझ में आए समझ लीजिए, बाकी की बातें गूगल से पूछ लीजिए...हां तो दोस्तो, मैंने भी कितनी बार सुना होगी यह बात कि लौकी का कड़वा रस बीमार कर देता है, सेहत के लिए ठीक नहीं होता...और इस सोशल-मीडिया की भरमार में और हमारे अपने बचपन एवं जवानी के अनुभवों के आधार पर हमें कभी यह लगा नहीं कि यह इतनी खराब चीज़ हो सकती है..क्योंकि हम उस दौर की पैदावार हैं जिस दौरान घर में तरह तरह की सब्जीयां बनती थीं, दालें भी अलग अलग तरह की ....और मिक्स दालें भी ...और बात यही होती थी कि जो भी घर में बना है सभी को वही खाना है, कोई ज़ोमैटो न था, किसी स्विग्गी न थी...बस, जो रसोई में तैयार हुए व्यंजन हैं, उन्हें ही सभी खुशी खुशी खा लेते थे ...फिर भी मैं पता नहीं क्यों करेले से हमेशा नफ़रत ही करता रह गया...और आज तक यह नफरत बरकरार है ...करेले अपने अलग अलग अंदाज़ में पके हुए, धागा बांध कर तले हुए ....जितने मेरी मां और नानी को पसंद थे, मुझे उन से उतनी ही घृणा थीं...मैं जब उन को करेले की सब्जी की तैयारी करते देखता, कईं बार धागे बांध कर .....मैं यही सोचा करता कि यार, यह कर क्या रही हैं, इन्हें अब करेला ही मिला था बनाने को ....खैर, फिर बहुत बार हम लोग अपनी मां से सुनते कि करेले का कड़वा जूस बहुत सी बीमारियों से बचाए रखता था ...यह दरअसल बाबे राम देव वाला दौर था जो तड़के सारे हिंदोस्तान को टीवी में प्रगट होकर योग करवाया करता था ..

तस्वीर देख कर आप को भी मज़ाक सूझ रहा होगा ..कि इन सब को छोड़ दें तो फिर खाएं क्या....जनाब, छोड़ने को कौन कहता है, बस काटने से पहले थोड़ा चख लें, कड़वी निकले तो मत पकाइए, और कड़वा जूस क्या कर सकता है, वह तो आप इस पोस्ट में पढ़ ही लेंगे ..🙏

खैर, क्योंकि मैं करेले साल में दो या तीन ही खा पाता हूं ....इसलिए मुझे नहीं पता कि इस करेले का रस क्या खुद ही से कड़वा होता है या यह भी किसी लफड़े की निशानी है ...जैसा कि आज हम लोग लौकी के बारे में जानते हैं....

खीरे को भी बचपन में खाने से पहले एक सिरे से काट कर झाग निकाल कर काटना कितना पकाने वाला काम लगता था ...ऐसे लगता था जैसे कोई बहुत बड़ा काम कर रहे हैं...लेकिन उसमें भी तो ज़रूर कोई वैज्ञानिक रहस्य ही छुपा होगा ..आज कल के खीरे भी कभी कभी कड़वे निकल आते हैं ...,शायद अब हमने वह उस का सिरा काट कर झाग निकालने के बाद ही खाने वाली प्रक्रिया से अपने आप को मुक्त कर लिया है ....क्योंकि हम अपने से ज़्यादा किसी को अक्लमंद समझते ही नहीं....तो जनाब सुनिए, अगर आपने भी यह शॉटकट अपना लिया है तो वापिस उस पुरानी रिवायत जिसमें खीरे का एक सिरा काट कर, उसे बाकी के खीरे पर रगड़ कर झाग निकालने के बाद ही खाने का उसूल था, उसे फिर से अपना लीजिए। इस कारण यह है कि कड़वी लौकी ही विलेन नहीं है, लौकी के परिवार की सैंकड़ों सब्जियां हैं जो अगर कड़वी निकलती हैं तो समझिए उन्हें खाना जोखिम का काम है...



अब सवाल यह है कि जिस तरह से इंसान की पहचान देखने से नहीं होती, सब्जियों की कहां से होगी कि कौन सी मीठी है, कौन फीकी और कौन कड़वी....इसलिए सब से अच्छी आदत यह है कि जिन सब्जियों की अभी आपने ऊपर तस्वीर देखी है उन को काटते वक्त ही थोड़ा चख लीजिए...अगर कोई तोरई, कोई करेला, खीरा, लौकी मुई कड़वी निकल आए तो उसे फैंक दीजिए.......और हां, बेचारे पुशुओं के खाने के लिए उसे मत छोड दीजिए....सोचने वाली बात है जो चीज हमारे लिए ठीक नहीं है, वह हमारे पशुओं के लिए कैसे ठीक हो सकती है ...इसलिए कभी भी फ्रिज से कुछ भी पुराना निकालिए तो उसे कचरे की पेटी में ही फैंकिए...

खैर, आगे चलें ...मैंने देश के बड़े बड़े शहरों में देखा कि लगभग सभी पार्कों के बाहर किसी पुरानी मारूति मैटाडोर में (जिसे पुरानी मसाला फिल्मों में हीरोईऩ को अगवा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था...) बीस तीस स्टील के बर्तनों में रखे हुए तरह तरह के सब्जियों के, फलों के या कोई भी हर्बल जूस बिक रहे होते हैं ...(मैंने इन स्टालों से कभी भी कुछ लेकर नहीं पिया...)...इस का फैसला खुद आप को ही लेना है कि आप इन के बारे में क्या सोचते हैं...इन को तैयार हुए कितना समय हो गया, आप को कुछ भी तो पता नहीं इन के बारे में ...फिर आप कैसे कहीं भी इन्हें खरीद कर पीना शुरू कर सकते हैं...बचे रहिए और बचाते रहिए...मैं आपको दिल्ली की एक घटना सुनाऊंगा अभी जिसे सुन कर आप फिर कभी इन चक्करों में पड़ेंगे ही नहीं....वैसे भी आज हमारे एक साथी बता रहे थे कि उन्होंने भी दो तीन ऐसी घटनाएं देखी हैं...जहां लोग घर से दूर हरे-भरे मैदानों में टहलने गए...और वहीं आस पास इसी तरह के जूस पी लिए और उस के बाद उन की हालत ऐसी बिगड़ी कि वे लोग घर आने से पहले ही खत्म हो गए...

खैर, आप को भी कहीं यह तो नहीं लग रहा कि आज यह क्या अजीब2 सी बातें कर रहा है ...न सिर न पैर....सच में मुझे भी नहीं पता होता लिखते वक्त कईं बार कि मैं क्या लिख रहा हूं ...जो दिल कहता है, हाथ लिखते रहते हैं, मैं बीच से हट जाता हूं और इबारत तैयार हो जाती है...आज भी कुछ ऐसा ही काम हो रहा है, क्योंकि मुझे आप सब को और अपने आप को भी एक बहुत अहम् संदेश देना है ....हां, तो लोगों की सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू, नसवार छुड़ाते छुड़ाते 30-40 बरस तो हो ही गए हैं...ज़्यादा ही पीछे पड़ जाओ किसी के तो उसे भी यही लगता है कि अपना तो दादू, नाना, काका ...90 की उम्र तलक फेफड़े सेंकता रहा, पान-तम्बाकू चबाता रहा  ...उस का तो कुछ न हुआ...हां, अगर आप ये सब तर्क लेकर खड़े हैं तो मुझे आप से कोई गिला नहीं है, न ही मुझे कुछ आप से कहना है ...। 

अच्छा हम तो लौकी के कड़वे जूस की बात कर रहे थे ... कानपुर के दो माईयों ने इसे पिया ...दोनों ने एक एक गिलास ...तबीयत दोनों की बिगड़ी ..वही उल्टियां दस्त पेट दर्द ....दोनों को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा, बडा़ इलाज विलाज हुआ....नाना प्रकार की जटिलताएं पैदा हुईं इलाज के दौरान लेकिन एक बच गया ... और दूसरा स्वर्ग-सिधार गया....बहुत बड़े बिजनेसमेन थे ...और संयोग भी यह रहा कि उन दोनों ने उस दिन लौकी का जूस पहली बार ही पिया था ...ये सब सुनी सुनाई राजन-इकबाल नावल के अफ़साने नहीं है, पूरी की पूरी सच्चाई है ..

अच्छा, एक बात बताऊं...जब मैंने दिल्ली और कानपुर की ये घटनाएं सुनीं तो मैने गूगल पर भी कुछ ढूढना चाहा ...मिला भी मुझे लेकिन मुझे इतना यकीं हुआ नहीं ...लेकिन कुछ दिन पहले बहुत पढ़े-लिखे, अनुभवी एवं नामचीन फ़िज़िशियन के मुंह से ये सब बातें सुनीं तो वे सब मन में ऐसी बैठीं कि मैं उसे आगे भी आप सब के दिलों में बैठाने निकल पड़ा ...

लौकी के बारे में बात करने से पहले मैं अपनी वनस्पति विज्ञान से मोहब्बत की बात बताता चलूं ..दोस्तो, मेरा कोई डैंटिस्ट-वैंटिस्ट बनने का कोई ख्याल न था....वह तो मेरे पिता जी के दफ्तर में उन के एक साथी का बेटा बीडीएस कर रहा था और उन्होंने मेरे पिता जी को बता दिया कि बीडीएस करने के बाद नौकरी मिल जाती है ...बस, हमें भी दाखिला दिला दिया गया.....और एक बार दाखिला जब ले लिया तो मैडलो ंकी बौछार ऐसी हुई कि एमडीएस में दाखिला भी मिल गया और नौकरीयों की जैसे झड़ी लग गई ...(इसे कहते हैं अपने मियां मिट्ठू बनना...अब कहते हैं तो कहते फिरें, दूसरे तो तारीफ़ करने से रहे, अपनी ही पीठ कभी भी थपथपा लेनी चाहिए, अच्छा लगता है ...😎) लेकिन हम अपने पहले प्यार "बॉटनी की पढ़ाई" से हमेशा के लिए महरूम हो गए...बस, पेड़ों को, हरियाली को निहारते निहारते ही 60 के हो गए.... 

हां, तो यह लौकी कुकरबिटेसी फैमली से है ...जिसमें सैंकड़ों सब्जियां आती हैं ..इस श्रेणी की जो सब्जियां आप को अपने आस पास दिखती हैं उन की तो यह रही तस्वीर जो आपने देखी...बाकी, अलग अलग जगहों पर, अलग अलग देशों में, वातावरण के मुताबिक उगती होंगी ...उनमें से कितनी खाने योग्य हैं, कितनी नहीं हैं...यह हम नहीं जानते ....हमारा तो सब्जियों के बारे में इल्म ऐसा है कि हमें नहीं याद कि जब हम लखनऊ में सब्जी लेने गए हों और हमने कोई नईं सब्जी न देखी हो ...इतनी विविधता है ....जिससे हम अंजान है ... खैर, होता यह है कि लौकी जैसी सब्जियां कीट पतंगों से एवं शाकाहारी पशुओं इत्यादि से बचने के लिए एक कड़वा पदार्थ पैदा करती हैं ....जिस की महक से कह लीजिए....ये सब कीट पतंगे एवं शाकाहारी पशु इन के पास नहीं फटकते ....

अब होता यह है कि अगर ये सब्जियां बहुत सी ज़्यादा गर्म या सर्द वातावरण में लगी हुई हैं या ज़मीन की उर्वरकता में ही कुछ झोल है या फिर उन्हें पानी ही पूरा नहीं मिल पाता तो होता यह है कि इन में उस नुकसानदायक कैमीकल की मात्रा बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है ...कि इन के सेवन से शरीर को बहुत नुकसान हो सकता है ... और कईं बार इन का जूस वूस पी लेने से तो कोई इंसान जान भी गंवा बैठता है । 

ऐसा भी सुना है (मैं प्रामाणिक तौर पर नहीं कह सकता हूं) कि जो इस तरह की कड़वी सब्जियों की पकी हुई सब्जी खा ले अगर तो वह बीमार तो हो सकता है लेकिन अमूमन उस की जान पर तो आफ़त नहीं आन पड़ती  ... लेकिन अगर जूस पी लिया जाए ... तो 50 से लेकर 300 मिलीलीटर तक जूस भी किसी की जान ले सकता है ...अब यह भी कोई नहीं कह सकता कि किस की जान चली जाएगी, किस की बच जाएगी, यह तो बड़े से बड़े चिकित्सक भी नहीं बता पाएंगे....साथियो, यह कोई एक्सपेरीमेंट थोडे़ न है कि ऐसा कर के देखा जाए....सीधी सीधी बात है मेडीकल वैज्ञानिक जैसा कह रहे हैं कि इस तरह की कड़वी सब्जियों के जूस से तो बचिए ही, उन को पका कर तैयार की गई सब्जियों से भी बचिए...

अब बंद कर रहा हूं पोस्ट ...कुछ इंगलिश में तस्वीरें लगा दूंगा ...देखिएगा.........और कुछ पूछना चाहें तो गूगल डाक्टर है ही, वरना मुझे भी कमैंट में लिखेंगे तो मैं ज़रूर आप के सवाल का जवाब दूंगा ...चाहे मुझे स्पेशलिस्ट से पूछ कर ही क्यों न आप को बताना पड़े...

अभी मैं पोस्ट का शीर्षक देख रहा था तो मुझे एक कहावत की याद आ गई......एक करेला ऊपर से नीम चढ़ा। अच्छा भई, अपना ख्याल रखिए...देख भाल कर खाया करें, फ्रिज में रखी पकी हुई चीज़ों का,  गूंथे हुए आटे का भी अंधाधुंध इस्तेमाल करने से बचें....नहीं, यह मैंने किसी से नहीं पूछा, यह मेरा ख़ुद का अनुभव है ... गूंथे हुए आटे को, एक दो दिन पुरानी दाल-सब्जी को फ्रिज में देख कर ही मेरा दिल कच्चा होने लगता है, और कईं बार तो आधे सिर का दर्द ही ट्रिगर हो जाता है, उसे भी बहाना चाहिए होता है मुझे तंग करने का ... ...क्या करें, अब जो आदते जैसी हैं सो हैं, अब 60 की उम्र में इस का कुछ नहीं हो सकता...आदतें पक चुकी हैं..