गुरुवार, 20 नवंबर 2008

क्या आप जो दूध पी रहे हैं उस की क्वालिटी के बारे में आश्वस्त हैं ?

हो ही नहीं सकता कि आप ने कभी मेरी तरह इसे टैस्ट करवाने की या इस की उत्तमता जानने की रत्ती भर कोशिश भी की हो। बस, यहां वहां नकली सिंथैटिक दूध, मिलावटी दूध की खबरें देख-पढ़ कर थोड़ा सा डर लिये, सहम गये ( और हर बार यही सोच कर बेफिक्र हो गये कि अपना रामू काका तो पिछले 35 सालों से आ रहा है , इस के दद्दू के ज़माने से ) ----बस हो गई अपनी ड्यूटी पूरी .... क्योंकि तभी अपने मोटर-साइकल ब्रांड दूध वाले ने घंटी दे दी । और साथ में ही पड़ा है आज का अखबार जिस से हम ने न्यूक्लियर समझौते के बारे में और भी गहराई से जानना है-----दूध के बारे में सोचने की अभी किसे फुर्सत है !!

इस पोस्ट में लिखे जाने वाले दूध के बारे में मेरा विचार एकदम पर्सनल हैं ---इसलिये कृपया इन्हें इसी ढंग से लें। बचपन से देख रहे हैं कि दूध की उत्तमता जानने का एक तरीका जो हिंदोस्तानी घरों में बहुत इस्तेमाल होता है वह यही है कि अंगुली को दूध में डुबो के देखा जाता है जैसे कि यह कोई गोल्ड-स्टैंडर्ड टैस्ट हो।

दूसरा, हमारे यहां दूध को उबालने के बाद कितनी मलाई आती है ---यह भी देश की करोड़ों महिलायों के लिये सत्संग के पंडाल में पीछे बैठ कर विचार-विमर्श करने लायक एक बहुत हॉट टॉपिक होता रहा है और आज भी है। ये भोली महिलायें आज तक यह नहीं जानतीं कि मलाई की मात्रा किसी दूध की उत्तमता की कोई गारंटी नहीं है-----कम से कम मैं तो ऐसा ही सोचता हूं क्योंकि सिंथैटिक दूध में और मिलावटी दूध भी मलाई तो अच्छी खासी आ जाती है।

इस मिलावटी दूध की वजह से शायद आप लोग इतना परेशान नहीं होंगे क्योंकि आप ने तो अपने परिवार के लिये ही यह निर्णय लेना होता है लेकिन मुझे एक आठ-दस के बच्चे का हाथ थामे उस सीधी-सादी मां को यह कहना बहुत अजीब सा लगने लगा है कि इस को दूध पिलाया करो। और विशेषकर के बिना दूध के स्रोत को जाने तो यह काम और भी मुश्किल लगता है। पिछले कुछ हफ्तों से तो मीडिया में दूध के बारे में जो कुछ पढ़ा है, उस ने तो और भी डरा दिया है।

इस पोस्ट के ज़रिये किसी तरह का पैनिक क्रियेट करना मेरी मंशा नहीं है----लेकिन जब कभी मन को हिला देने वाली खबरें दिख जाती हैं तो आम पब्लिक के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये मन बहुत कुछ सोचने तो लगता है लेकिन लाख सोचने के बाद भी इस लंबी सी पोस्ट के इलावा आज तक तो कुछ हाथ लगा नहीं।

अभी अभी मैं यह सोच रहा था कि हमारे विज्ञानिक इतने चोटी के हैं कि उन्होंने हमें चन्द्रमा तो दिला दिया लेकिन अफ़सोस इस बात का बहुत ही ज़्यादा है कि हम लोग एक आम-आदमी को आज तक यह नहीं बता पाये कि यह जो दूध तुम बच्चे को पिला रहे हो......क्या यह शुद्ध है, मिलावटी है, मिलावट किस चीज़ की है, या फिर है ही सिंथैटिक !

कुछ दिन पहले मेरी मुलाकात एक बुजुर्ग महिला से हुई जो पिछले पचास सालों तक भैंसों-गायों का दूध बेचने का काम करती रही हैं। और उस की एक बात मेरे को हमेशा याद रहेगी कि गाय-भैंस का दूध तो जब उस के स्तन से निकल रहा है तब ही शुद्ध है।

मेरा बहुत दृढ़ विश्वास है कि हम लोग जिस दूध को इस्तेमाल कर रहे हैं उस के बारे में कुछ भी नहीं जानते----शायद हम भी कहीं दूध में मैलामाइन की मिलावट की दो-चार रिपोर्टों की इंतज़ार ही तो नहीं कर रहे।
हां, तो मिलावट से याद आया कि चार पांच दिन पहले REUTERS की साइट पर एक खबर दिखी कि झारखंड के एक स्कूल में मिलावटी दूध पिये जाने से छः बच्चों की मौत हो गई और साठ के करीब हास्पीटल में इलाज करवा रहे हैं। मुझे यह खबर अपने समाचार-पत्र में तो कहीं दिखी नहीं----शायद इसलिये कि ये सभी बच्चे आदिवासी थे ---शायद मीडिया के लिये इन आदिवासी बच्चों की मौत की खबर से कहीं ज़्यादा यह खबर थी कि इस दुनिया में सब से हसीं नितंब किस महिला के हैं ----जी हां, चार पांच दिन पहले एक न्यूज़ यह भी थी और तस्वीर के साथ ---Most beautiful bottom of the world!! अगर यह खबर ना भी होती तो उस की जगह पर दिल्ली के किसी बड़े स्कूल के एमएमएस कांड की फोटो की छोंक उसी पेज पर लगी होती। अब आदिवासी बच्चों की मिलावटी दूध की वजह से हुई मौत से रीडरशिप पर खाक असर पड़ना था ?

चीन से आने वाला पावडर दूध बहुत ज़्यादा मात्रा में आज कल नष्ट किया जा रहा है –अमेरिका में तो वे उन डेयरी उत्पादनों को नष्ट करते जा रहे हैं जिन में भी मैलामाइन की मिलावट का अंदेशा है । ज्ञात रहे कि पिछले दिनों चीन में मैलामाइन ( एक इंडस्ट्रियल कैमीकल) की पावडर-दूध में मिलावट की वजह से चीन में कुछ बच्चों की दुःखद मौत हो गई थी और बहुत से बच्चे गुर्दे की पथरी से होने वाली बीमारी से जूझ रहे हैं।

क्या आप को लगता है कि हमारे यहां बिकने वाला मिल्क पावडर एकदम शुद्ध होगा ---- इस का जवाब टटोल कर अपने पास ही रखिये, प्लीज़। वैसे इस पावडर दूध की खपत हमारे देश में बहुत ही ज़्यादा है---दरअसल इस की भी बहुत सी किस्में बाज़ार में उपलब्ध हैं और मुझे बताया गया है कि दूध की मिलावट के लिये उस पावडर-दूध का इस्तेमाल किया जाता है जो 80 रूपये किलो बिकता है। और इस एक किलो पावडर दूध से दस किलो दूध तैयार किया जाता है। और मैं समझता हूं कि इन ब्याह-शादियों में और बड़े बड़े समारोहों में सब कुछ इसी तरह के पावडर दूध से ही बना हुआ खाने के बाद ही हम इतना अजीब सा अनुभव करते हैं।

पहले कहा करते थे कि शादी-ब्याह में ज़्यादा खाना ठीक नहीं होता---बस दही-चावल लेकर ही बस कर लेनी चाहिये। लेकिन अब तो दही का एक चम्मच भी इन जगहों पर खाने की इच्छा ही नहीं होती -------केवल मन में इतना विचार ही आता है कि और कुछ भी हो यह शुद्ध दूध से बना हुआ नहीं हो सकता।

थोड़ी सी अपनी बात कहता हूं ----- बिल्कुल पर्सनली स्पीकिंग ----मैं घर से बाहर जब भी होता हूं तो ऐसी किसी भी चीज़ से बिल्कुल परहेज़ ही करता हूं जिस में दूध का इस्तेमाल हुआ हो। मेरी ऐसी सोच है ---बस वो पिछले तीन-चार में तरह तरह की अजीबो-गरीब रिपोर्टें देख कर बन चुकी है कि जब तो सिद्ध न हो, जो भी दूध बिक रहा है उस में गड़बड़ी है। कृपया नोट करें कि ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और आप इन से कतई प्रभावित न हों----आप सच्चाई को अपने ढंग से खोजने की कोशिश कीजिये।

हां, तो मैं परहेज़ की बात कर रहा था ---वैसे तो मैं चाय का ही इतनी कोई ज़्यादा शौकीन हूं नहीं लेकिन मैं बाहर कहीं भी चाय पीने से गुरेज़ ही करता हूं क्योंकि उस चाय बेचने वाले से आप उम्मीद ही कैसे कर सकते हैं कि उसे अपने दूध की क्वालिटी का कुछ भी ज्ञान होगा या वह भी कुछ गोरख-धंधा नहीं करता होगा।

आगे आते हैं ---मिल्क प्राड्क्टस-----ये आइस-क्रीम, मिठाईयां, बाज़ारी पनीर, खोआ----- इन सब से एकदम नफ़रत सी ही हो चुकी है और इस के पीछे भी इस विषय पर दिखी अनगिनत रिपोर्टों का ही हाथ है।

बच्चे अकसर खुश होते हैं कि फलां-फलां ज्वाईंट पर सात रूपये में सॉफटी मिलती है-------मैं अकसर कहता हूं कि सात रूपये का दूध तो हम लोग जानते ही हैं कि कितना होता है तो फिर यह बड़ी सी साफ्टी आखिर जो सात रूपये में बिक रही है इस की शुद्धा कितनी होगी, कितनी नहीं राम जाने। मिठाईयां इसी चक्कर में मैं कभी नहीं खाता ----- बिल्कुल भी नहीं -----कुछ सालों से ही नहीं खाता था लेकिन जब से यह चीनी दूध की बातें सुनी हैं तो इन्हें बिल्कुल चखने का भी दुःसाहस नहीं कर पाता। मेरा पर्सनल अनुभव यही रहा है कि अगर हमें या अपने बच्चे को बीमारी की छुट्टी दिलानी हो तो किसी ब्याह-शादी में जाकर शाही पनीर का आनंद ले कर लौट आयें-----अगले दिन की छुट्टी लगभग पक्की !!

सात रूपये वाली साफ्टी का तो रोना रो लिया ---लेकिन उस का क्या करें जो दूध की कुल्फियां दो-दो रूपये में मैले-कुचैले थर्मोकोल में जगह जगह बिकती दिखती हैं। यह भी दूध तो नहीं हो सकता ----और क्या क्या है , इस की तो रिसर्च करनी होगी ----परसों मैं दिल्ली में भी देख रहा था कि ऐसे बीसियों कुल्फी-वाले लोगों को अपना माल बेधड़क, सरे-आम परोस रहे थे -----विचार तब भी यह आ रहा था कि क्या पब्लिक को गर्मी में गन्ने के रस के बारे में जागरूक करने के इलावा हमारे पास कोई विषय नहीं है !!

जो लोग किसी जगह पर एकदम शुद्ध बर्फी के मिलने की बात करते हैं उन्हें मैं हमेशा यही याद दिलाना चाहता हूं कि जितने में बर्फी का एक डिब्बा मिल रहा है, आप उतने पैसे में दूध,चीनी स्वयं उबाल कर देख लीजेये कि कितना वज़न आप के हाथ में आता है ----सो , यह शुद्ध बर्फी वाली बातें कोरी ढकोसलेबाजी ही हैं----शुद्ध बर्फी और वह भी आज के दौर में ---मैं तो यही सोचता हूं कि शुद्ध एवं नरम-नरम बर्फी वही थी जो हम लोग बचपन में पचास-सौ ग्राम किसी ऐसे हलवाई से लेकर खाया करते थे जो बेचारा सुबह से दूध की कडाही में कड़छी घुमा घुमा कर शाम तक पसीने से लथ-पथ हुआ करता था----और यह दो-तीन किलो बर्फी बनाने की सारी प्रक्रिया सब के सामने ही किया करता था और इतनी मेहनत करने का उसे बहुत गर्व हुआ करता था ------सच में बतलाइये कि अपने बचपन के दौर के किसी मशहूर हलवाई की याद आ गई ना ?----तो बढ़िया है उस की मिठाईयों का स्वाद हम सब से भी बांटिये।

मैं यह चाहता हूं कि देश का हर बंदा दूध एवं दूध उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में सजग हो और सवाल पूछने शुरू करे। यही एक आशा है----वरना कोई बात नहीं, चलता है ,हम अकेले थोड़े ही हैं, करोड़ों लोग यही सब खा-पी रहे हैं.....ऐसी सोच नहीं चलेगी, दोस्तो। आप का आज पूछा हुआ सवाल आने वाले कईं वर्षों तक आप की और अगली पीढ़ी की सेहत का फैसला करेगा !!

इस विषय पर मैं भी बार बार इंटरनैट खंगाल लेता हूं और 3-4 वर्षों में इस विषय के बारे में पढ़ पढ़ कर जितना समझ पाया, जो इस विषय के बारे में अपना ओपिनियन बना पाया, उसे आप तक रख दिया ----सिर्फ़ एक राइडर के साथ ( शायद एक ज़रूरी फारमैलिटि के लिये ही !!) कि यह मेरे व्यक्तिगत विचार हैं -----आप अपने विचारों से हम सब को रू-ब-रू करवाइये।

जैसा कि मैंने ऊपर भी लिखा है कि हम डाक्टरों की समस्या और भी विकट इसलिये है क्योंकि हम लोगों को इस बात का ध्यान तो रखना ही होता है कि लोग जिस चीज़ का भी सेवन कर रहे हैं उस से उन्हें अवश्य स्वास्थ्य लाभ होना ही चाहिये ---और यह तो कतई बरदाश्त ही नहीं हो सकता कि फायदा-वायदा तो कुछ हुआ नहीं ---लेकिन बीमारियां ज़रूर मोल ले लीं। इसलिये कुछ मरीज़ों को जवाब देना बेहद मुश्किल हो जाता है कि क्या बच्चे को दूध पिलाने से उस की सेहत ठीक हो जायेगी !! हमें खुद ही नहीं पता कि दूध में आखिर कौन-कौन सी मिलावट है तो हम क्या जवाब दें ----इसलिये केवल इतना ज़रूर कह देता हूं कि दूध की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दें ---मात्रा पर नहीं।

पावडर से बने हुये दूध के बारे में आप भी सोचिये कि क्या उस को बनाने के लिये भी श्रेष्ठ दूध का ही इस्तेमाल हुआ होगा-----वैसे आप इस समय यही सोच रहे हैं ना कि अब तू बस कर, हमारी खटिया-चाय का समय हो रहा है , पहले ही से तूने इतना लिख दिया है कि हो न हो आज तो उस का स्वाद कड़वा ही लगेगा और उस कड़वाहट को झेलने के बाद तो हमें अपने दूध-वाले को शक की निगाहों से देखने पर मजबूर होना ही पड़ेगा।

बस, कुछ भी खायें, कुछ भी पियें, लेकिन अपना ध्यान रखियेगा। पिछले बड़े अरसे से ये सारी बातें, अपने विचार आप सब के साथ साझे करने के लिये व्याकुल हो रहा था, आज सुबह जल्दी जाग आ गई ( क्योंकि ठंडी लगने से ,छींकों से परेशान हूं !!) तो सोचा यही काम कर लेता हूं -----इतना लिखने के बाद हल्कापन सा महसूस हो रहा है---जुकाम में भी राहत लगने लगी है। सोचता हूं अब दो-एक घंटे के लिये सो ही जाता हूं, उस के बाद टहलने का समय हो जायेगा।

अच्छा तो दोस्तो, सुप्रभात !!....a very good morning to all of you !!
PS....मैंने यह पोस्ट लिखी तो कल 19नवंबर की सुबह सुबह लिखी थी ...लेकिन पोस्ट नहीं कर पाया ---कल से ब्राड-बैंड में कुछ तकनीकी खराबी थी ।