आज सुबह पांच बजे ही मैं साईकिल उठा कर घूमने निकल गया...आज फिर शहर के अंदर ही घूमने लगा। फिर से वही पुराना सबक याद हो गया....सुबह सुबह शहर के अंदर साईकिल पर घूमना अच्छा नहीं लगता। बाहर की खुली सड़कों पर हरियाली में ही सुबह अच्छा लगता है।
और अगर कहीं आप किसी कॉलोनी की किस तंग गली में घुस जाएं तो क्या हालत होती है, यह तो कोई अनुभव करे तो ही पता चले। मुझे भी आज सुबह मां की कुछ दिन पहले की सीख याद आ गई...मां ने कहा था कि सुबह सुबह बाहर जाते हो, हाथ में कोई छोटी मोटी छड़ी रखा करो, कुत्ते पीछे पड़ जाएं तो उन्हें दूर रखने में मदद मिलेगी।
आज जैसे ही मैं एक कालोनी की गली में घुसा, तो मुझे नहीं पता था कि यह आगे से बंद है...जैसे ही मैं साईकिल से नीचे उतरा एक आदमी से रास्ते के बारे में पूछने लगा तो लगे कुत्ते भौंकने....मैंने उस आदमी को ही कहा कि यार, ज़रा इन कुत्तों से बाहर तो पहुंचा दो.....उसने मदद कर दी ....और मैं उस गली से बाहर आ गया......और आज से यह सबक लिया कि सुबह भ्रमण करते हुए न तो किसी तंग सी सड़कों वाले शहरी एरिया में घूमना है और गलियों में तो जाने का सवाल ही नहीं...सुबह सुबह बहुत से लोग तो सोए होते हैं, ऐसे में अगर कुत्ते अगर अपनी औकात पर उतर आएं तो बंदे का क्या बना दें, सुबह के भ्रमण का सारा फितूर उतर जाए एक ही दिन में।। वैसे भी अगर गलियों वलियों में नहीं घुसा जायेगा तो हिंदोस्तान थोड़ा सा कम ही देख लेंगे ......और तो कुछ नहीं........वह भी चलेगा!
आगे जाते हुए देखा कि सुबह सुबह कुछ लोग प्लास्टिक के गिलास इक्ट्ठा कर रहे थे, मैंने पूछा कि इन का क्या होगा, तो उस बंदे ने जवाब दिया कि ये दिल्ली जाएंगे, वहां ये इन्हें फिर से ढाला जाएगा.. (यानि पिघलाया जायेगा) ...और फिर गिलास बनेंगे...सच में इस प्लास्टिक ने तो हमारी ज़िंदगी में ज़हर घोल दिया है...मैं यही सोच रहा था कि हम लोग कितनी खुशी खुशी विभिन्न समारोहों में पानी इस तरह के गिलासों में पा कर इत्मीनान कर लेते हैं कि चलो, गिलास किसी का जूठा तो नहीं है, सब साफ़-सुथरा है.....लेिकन इस तरह का प्लास्टिक हमारी सेहत के साथ सच में बहुत बड़ा खिलवाड़ कर रहा है।
मैंने एक जगह देखा कि एक कबाड़ी अपने सामान के ढेर को आग लगाए बैठा था....करते हैं यह काम कबाड़ी ताकि रबड़ आदि जल जाए और शेष बची धातु को आगे बेचा जा सके। अजीब तरह का धुआं और गंध आ रही थी...उसी आग के पास ही बैठी थी उस की बीवी और उस के पास ही उस के दो छोटे छोटे बच्चे....एक बार तो मैं आगे निकल गया, फिर मेरे से रहा नहीं गया...बच्चों को इस धुएं में खेलते देख कर.....मुझे इतना तो पता है कि मेरे कहने से वह यह काम बंद नहीं करेगा ..लेकिन मैंने उसे इतना तो दो बार ज़रूर कहा कि इस तरह का काम करते वक्त मुंह पर कपड़ा बांध लिया करे और बच्चों को तो इस तरह के धुएं से बहुत दूर रखा करे, यह इन की सेहत के लिए भी बहुत खराब है। उस ने मेरी बात पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की ....लेकिन मुझे उस की आंखों की भाषा से यह पता चल गया कि वह मेरी बात समझ गया है। मेरा क्या गया, ऐसा कितनी बार होता है ...हम कुछ ऐसा वैसा होते देखते हैं ...लेकिन हमें क्या...वाली मानसिकता के रहते आगे निकल जाते हैं....ऐसा नहीं होना चाहिए, अगर आप िकसी बात को जानते हैं तो कम से कम उसे आगे पहुंचा तो दें.......बाकी निर्णय उस के हाथ में है, लेकिन हम अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह तो करें।
मुझे यहां लखनऊ की अखबारें पढ़ कर यही लगने लगा है कि यहां पर अकेली टहलने निकली महिलाओं को तो अपने घर के आस पास ही टहल लेना चाहिए...कानून व्यवस्था यहां पर बहुत खराब है...छीना-झपटी, ज़ोर-जबरदस्ती दिन दिहाड़े करने से तो लोग चूकते नहीं......इसलिए विशेषकर महिलाओं को अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहने की ज़रूरत है.....मैं बहुत बार लिख चुका हूं कि आज के दौर में सोना तो क्या, नकली गहने पहनना भी अपनी जान को खतरे में डालने वाली बात है।
एक महिला को देखा उसने एक नुकीली सी छोटी छड़ी पकड़ी हुई थी...अब वह छड़ी इस तरह की थी कि अगर यह छड़ी किसी आपराधिक प्रवृत्ति वाले बंदे के हाथ में आ जाए तो वह उसी से कितने लोगों को नुकसान पहुचंा दे...मैं कोई गामा पहलवान नहीं हूं जानता हूं.....लेकिन फिर भी अकेली सुनसान सड़कों पर बुज़ुर्गों को भी हाथों में मजबूत सी स्टिक्स कुत्तों से रक्षा के लिए... हाथों में थामे देखता हूं तो यही लगता है कि आदमी को वही हथियार उठाना चाहिए जिसे वह अच्छे से संभाल तो सके..
बातों से बातें तो आगे से आगे निकलती ही जाएंगी........बातों का क्या हाल, लेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि सुबह शाम टहलने के लिए अपने घर के आस पास का पार्क जिस में खूब लोग आते हों, नहीं तो अपनी कॉलोनी का चक्कर लगा लेना ही सुरक्षित है। यह राय विशेषकर महिलाओं के लिए है......सुनसान रास्तों पर गहने पहन कर इन्हें टहलता देख कर तो यार हम लोग इन की दबंगाई पर हैरान हो जाते हैं। आगे जैसी इन की इच्छा.......It's their life anyway....Choice is theirs!
आज साईकिल बड़ा भारी चल रहा था...ऐसे लग रहा था जैसे रिक्शा हांक रहा हूं......शाम को मेकेनिक को दिखाते हैं...बस, आज तो ऐसे लगा कि घर में एक्सरसाईकिल चलाने की बजाए साईकिल पर बाहर घूम आए।
सबक एक दूसरे से सीख लेने चाहिए....कल शाम मैं और बेटा स्कूटर पर कहीं जा रहे थे...बिज़ी रोड़ थी....दो युवक वहां पर लंबी दौड़ लगा रहे थे ...जॉगिंग....बेटा कहने लगा कि इन्हें इधर नहीं दौड़ना चाहिए....उस की बात यही थी, एक तो ट्रैफिक की वजह से अनसेफ और दूसरा इतनी प्रदूषण में इस तरह से जॉिगंग करने का मतलब यह कि हम कईं गुणा ज़्यादा प्रदूषित हवा अंदर फेफड़ों में खींच रहे हैं......कोई सुन रहा है क्या! लेिकन हर कोई अपने अनुभव से ही सीखता है....करने देने चाहिए जितने अनुभव कोई करना चाहे. ...
नसीहतों की इतनी बातें हो गईं तो मुझे यह सुंदर गीत चाचा भतीजा फिल्म का याद आ गया....मां ने कहा था ओ बेटा, कभी दिल किसी का न तोड़ो...
और अगर कहीं आप किसी कॉलोनी की किस तंग गली में घुस जाएं तो क्या हालत होती है, यह तो कोई अनुभव करे तो ही पता चले। मुझे भी आज सुबह मां की कुछ दिन पहले की सीख याद आ गई...मां ने कहा था कि सुबह सुबह बाहर जाते हो, हाथ में कोई छोटी मोटी छड़ी रखा करो, कुत्ते पीछे पड़ जाएं तो उन्हें दूर रखने में मदद मिलेगी।
आज जैसे ही मैं एक कालोनी की गली में घुसा, तो मुझे नहीं पता था कि यह आगे से बंद है...जैसे ही मैं साईकिल से नीचे उतरा एक आदमी से रास्ते के बारे में पूछने लगा तो लगे कुत्ते भौंकने....मैंने उस आदमी को ही कहा कि यार, ज़रा इन कुत्तों से बाहर तो पहुंचा दो.....उसने मदद कर दी ....और मैं उस गली से बाहर आ गया......और आज से यह सबक लिया कि सुबह भ्रमण करते हुए न तो किसी तंग सी सड़कों वाले शहरी एरिया में घूमना है और गलियों में तो जाने का सवाल ही नहीं...सुबह सुबह बहुत से लोग तो सोए होते हैं, ऐसे में अगर कुत्ते अगर अपनी औकात पर उतर आएं तो बंदे का क्या बना दें, सुबह के भ्रमण का सारा फितूर उतर जाए एक ही दिन में।। वैसे भी अगर गलियों वलियों में नहीं घुसा जायेगा तो हिंदोस्तान थोड़ा सा कम ही देख लेंगे ......और तो कुछ नहीं........वह भी चलेगा!
हमारी किसी अगली दावत के लिए गिलासों का इंतज़ाम चल रहा है.. |
मैंने एक जगह देखा कि एक कबाड़ी अपने सामान के ढेर को आग लगाए बैठा था....करते हैं यह काम कबाड़ी ताकि रबड़ आदि जल जाए और शेष बची धातु को आगे बेचा जा सके। अजीब तरह का धुआं और गंध आ रही थी...उसी आग के पास ही बैठी थी उस की बीवी और उस के पास ही उस के दो छोटे छोटे बच्चे....एक बार तो मैं आगे निकल गया, फिर मेरे से रहा नहीं गया...बच्चों को इस धुएं में खेलते देख कर.....मुझे इतना तो पता है कि मेरे कहने से वह यह काम बंद नहीं करेगा ..लेकिन मैंने उसे इतना तो दो बार ज़रूर कहा कि इस तरह का काम करते वक्त मुंह पर कपड़ा बांध लिया करे और बच्चों को तो इस तरह के धुएं से बहुत दूर रखा करे, यह इन की सेहत के लिए भी बहुत खराब है। उस ने मेरी बात पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की ....लेकिन मुझे उस की आंखों की भाषा से यह पता चल गया कि वह मेरी बात समझ गया है। मेरा क्या गया, ऐसा कितनी बार होता है ...हम कुछ ऐसा वैसा होते देखते हैं ...लेकिन हमें क्या...वाली मानसिकता के रहते आगे निकल जाते हैं....ऐसा नहीं होना चाहिए, अगर आप िकसी बात को जानते हैं तो कम से कम उसे आगे पहुंचा तो दें.......बाकी निर्णय उस के हाथ में है, लेकिन हम अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह तो करें।
मुझे यहां लखनऊ की अखबारें पढ़ कर यही लगने लगा है कि यहां पर अकेली टहलने निकली महिलाओं को तो अपने घर के आस पास ही टहल लेना चाहिए...कानून व्यवस्था यहां पर बहुत खराब है...छीना-झपटी, ज़ोर-जबरदस्ती दिन दिहाड़े करने से तो लोग चूकते नहीं......इसलिए विशेषकर महिलाओं को अपनी सुरक्षा के प्रति सजग रहने की ज़रूरत है.....मैं बहुत बार लिख चुका हूं कि आज के दौर में सोना तो क्या, नकली गहने पहनना भी अपनी जान को खतरे में डालने वाली बात है।
एक महिला को देखा उसने एक नुकीली सी छोटी छड़ी पकड़ी हुई थी...अब वह छड़ी इस तरह की थी कि अगर यह छड़ी किसी आपराधिक प्रवृत्ति वाले बंदे के हाथ में आ जाए तो वह उसी से कितने लोगों को नुकसान पहुचंा दे...मैं कोई गामा पहलवान नहीं हूं जानता हूं.....लेकिन फिर भी अकेली सुनसान सड़कों पर बुज़ुर्गों को भी हाथों में मजबूत सी स्टिक्स कुत्तों से रक्षा के लिए... हाथों में थामे देखता हूं तो यही लगता है कि आदमी को वही हथियार उठाना चाहिए जिसे वह अच्छे से संभाल तो सके..
बातों से बातें तो आगे से आगे निकलती ही जाएंगी........बातों का क्या हाल, लेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि सुबह शाम टहलने के लिए अपने घर के आस पास का पार्क जिस में खूब लोग आते हों, नहीं तो अपनी कॉलोनी का चक्कर लगा लेना ही सुरक्षित है। यह राय विशेषकर महिलाओं के लिए है......सुनसान रास्तों पर गहने पहन कर इन्हें टहलता देख कर तो यार हम लोग इन की दबंगाई पर हैरान हो जाते हैं। आगे जैसी इन की इच्छा.......It's their life anyway....Choice is theirs!
आज साईकिल बड़ा भारी चल रहा था...ऐसे लग रहा था जैसे रिक्शा हांक रहा हूं......शाम को मेकेनिक को दिखाते हैं...बस, आज तो ऐसे लगा कि घर में एक्सरसाईकिल चलाने की बजाए साईकिल पर बाहर घूम आए।
सबक एक दूसरे से सीख लेने चाहिए....कल शाम मैं और बेटा स्कूटर पर कहीं जा रहे थे...बिज़ी रोड़ थी....दो युवक वहां पर लंबी दौड़ लगा रहे थे ...जॉगिंग....बेटा कहने लगा कि इन्हें इधर नहीं दौड़ना चाहिए....उस की बात यही थी, एक तो ट्रैफिक की वजह से अनसेफ और दूसरा इतनी प्रदूषण में इस तरह से जॉिगंग करने का मतलब यह कि हम कईं गुणा ज़्यादा प्रदूषित हवा अंदर फेफड़ों में खींच रहे हैं......कोई सुन रहा है क्या! लेिकन हर कोई अपने अनुभव से ही सीखता है....करने देने चाहिए जितने अनुभव कोई करना चाहे. ...
नसीहतों की इतनी बातें हो गईं तो मुझे यह सुंदर गीत चाचा भतीजा फिल्म का याद आ गया....मां ने कहा था ओ बेटा, कभी दिल किसी का न तोड़ो...