जब भी बच्चों की बीमारियों की चर्चा होती है तो अकसर डायबिटिज़ का जिक्र कम ही होता है क्योंकि अकसर हम लोग आज भी यही सोचते हैं कि डायबिटिज़ का रोग तो भारी-भरकम शरीर वाले अधेड़ उम्र के रइसों में ही होता है लेकिन अब इस सोच को बदलने का समय आ गया है। डायबिटिज़ के प्रकोप से अब कोई भी उम्र बची हुई नहीं है और मध्यम वर्ग एवं निम्न-वेतन वर्ग के नौजवान लोगों में भी यह बहुत तेज़ी से फैल रही है।
जहां तक बच्चों की डायबिटिज़ की बात है, बच्चों की डायबिटिज़ के बारे में तो हम लोग बरसों से सुनते आ रहे हैं ----इसे टाइप-1 अथवा इंसूलिन-डिपैंडैंट डायबिटिज़ कहते हैं। अच्छा तो पहले इस टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटिज़ की बिलकुल थोड़ी सी चर्चा कर लेते हैं।
टाइप-1 डायबिटिज़ अथवा इंसूलिन-डिपैंडैंट डायबिटिज़ में पैनक्रियाज़ ग्लैंड ( pancreas) की इंसूलिन-पैदा करने वाली कोशिकायें नष्ट हो जाती हैं जिस की वजह से वह उपर्युक्त मात्रा में इंसूलिन पैदा नहीं कर पाता जिस की वजह से उस के शरीर में ब्लड-शूगर का सामान्य स्तर कायम नहीं रखा जा सकता। अगर इस अवस्था का इलाज नहीं किया जाता तो यह जानलेवा हो सकती है। अगर ठीक तरह से इस का इलाज न किया जाये तो इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों में आंखों की बीमारी, हार्ट-डिसीज़ तथा गुर्दे रोग जैसी जटिलतायें पैदा हो जाती हैं। इस बीमारी के इलाज के लिये सारी उम्र खाने-पीने में परहेज़ और जीवन-शैली में बदलाव ज़रूरी होते हैं जिनकी बदौलत ही मरीज़ लगभग सामान्य जीवन जी पा सकते हैं और कंप्लीकेशन्ज़ से बच सकते हैं।
सौभाग्यवश यह टाइप-1 डायबिटिज़ की बीमारी बहुत रेयर है ---बहुत ही कम लोगों को होती है और पिछले कईं दशकों से यह रेयर ही चल रही है।
लेकिन चिंता का विषय यह है कि एक दूसरी तरह की डायबिटिज़ – टाइप 2 डायबिटिज़ बहुत भयानक तरीके से फैल रही है। और इस के सब से ज़्यादा मरीज़ हमारे देश में ही हैं जिस की वजह से ही हमें विश्व की डायबिटिज़ राजधानी का कुख्यात खिताब हासिल है।
इस टाइप -2 डायबिटिज़ की सब से परेशान करने वाली बात यही है कि इस बीमारी ने अब कम उम्र के लोगों को अपने चपेट में लेना शुरु कर दिया है ----अब क्या कहूं ----कहना तो यह चाहिये की कम उम्र के ज़्यादा स ज़्यादा लोग इस की गिरफ्त में आ रहे हैं। आज से लगभग 10 साल पहले किसी 20 वर्ष के नवयुवक को यह टाइप-2 डायबिटिज़ होना एक रेयर सी बात हुआ करती थी लेकिन अब चिंता की बात यह है कि अब तो लोगों को किशोरावस्था में ही यह तकलीफ़ होने लगी है। यही कारण है कि आज कल बच्चों की डायबिटिज़ ने इतना हो-हल्ला मचाया हुआ है।
ठीक है , बच्चों में इतनी कम उम्र में होने वाली तकलीफ़ के लिये कुछ हद तक हैरेडेटी ( heredity) का रोल हो सकता है ---लेकिन इस का सब से महत्वपूर्ण कारण यही है कि बच्चों की जीवन-शैली में बहुत बदलाव आये हैं ----घर से बाहर खेलने के निकलते नहीं, सारा दिन कंप्यूटर या टीवी के साथ चिपके रहते हैं ---और सोफे पर लेटे लेटे जंक-फूड खाते रहते हैं --- इन सब कारणों की वजह से ही बच्चों में टाइप-टू डायबिटिज़ अपने पैर पसार रही है। और यह बेहद खौफ़नाक और विचलित करने वाली बात है। मद्रास के एक हास्पीटल में पिछले बीस सालों में बच्चों में टाइप-2 डायबिटिज़ के केसों में 10गुणा वृद्धि हुई है।
लेकिन खुशखबरी यह है कि टाइप-2 डायबिटिज़ से रोकथाम संभव है---अगर जीवन-शैली में उचित बदलाव कर लिये जायें, खान-पान ठीक कर लिया जाये तो इस टाइप-2 से अव्वल तो बचा ही जा सकता है वरना इस को काफी सालों तक टाला तो जा ही सकता है। तो, बच्चों शुरू हो जाओ आज से ही रोज़ाना एक घंटे घर से बाहर जा कर खेलना-कूदना और अब तक जितना जंक फूड खा लिया, उसे भूल जाओ---अब समय है उस से छुटकारा लेने का ----जंक फूड में क्या क्य़ा शामिल है ?----उस के बारे में आप पहले से सब कुछ जानते हैं