शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

फेस-रीडिंग भी बना एक धंधा...


एक शॉपिंग मेले में गये हुए थे कल..  मिसिज़ एक लेडीज़ स्टॉल पर सूट-दुप्पटों में व्यस्त थीं ...मैं तो कुल जमा पांच सात मिनट में किसी दुकान पर खड़ा खड़ा ऊब जाता हूं...बाहर निकला तो पास ही एक चमकदार स्टाल की तरफ़ ध्यान चला गया...


वहां पहुंचा तो ये सब रंग बिरंगी चमकीली चीज़ें देख कर मन बहला रहा था...तभी एक ग्राहक की आवाज़ सुनाई दी...यह ग्बोल है?...दुकानदार ने तुरंत कहा - "नहीं नहीं , यह क्रिस्टल है.." 

दुकानदार ने कुछ आगे कहा तो था कि यह कौन सा क्रिस्टल है ...वह बंदा थोडा़ सकपका गया ...अब मैंने उसकी असहजता भांप कर यह कह दिया कि मैंने भी ग्लोब ही समझा था..

दुकानदार कहने लगा कि यह घर की सारी निगेटिव एनर्जी सोख लेता है ....बंदे ने उस का दाम पूछा...मुझे याद नहीं कितने का था, मेरा ध्यान कहीं और था उस समय...

ग्राहक ने पूछा कि इस से छोटा नहीं है...दुकानदार तो दुकानदार ही होते हैं...नहीं, इस से छोटे का क्या करोगे?...लोग तो इस से भी बड़े बड़े क्रिस्टल ले जाते हैं, सारे घर की निगेटिव एनर्जी को इसने सोखना होता है ...


बहरहाल, फिर उस ग्राहक का ध्यान इस पिरामिड की तरफ़ चला गया..साढ़े सात सौ रूपये का था...देख कर उसने रख दिया वापिस...और यंत्रों-तंत्रों में उलझने के लिए शायद...एक घर के बाहर लटकाने वाला कुछ अष्ट धातु का यंत्र देख  कर उसे यही लगा कि जंग तो नहीं लग जायेगा...कोई चुरा तो नहीं लेगा...बिल्कुल अपने लोगों जैसे मध्यमवर्गीय प्रश्न...लेकिन उसे दुकानदार ने अच्छे से फिर समझा दिया कि इस यंत्र को किसी कमरे के बाहर कील लगा कर फिक्स कर लीजिए...बस, और अगर इसे जंग लग गया या ७२ घंटे के अंदर कोई शुभ बात न घटित हो तो भी मुझे फोन कर देना....मैं अपने इस लड़के (वर्कर) को घर भिजवा कर इसे वापिस कर लूंगा...


मैं उन रंग बिरंगी आकृतियों में उलझा हुआ था ...बिना किसी मतलब के ...क्योंकि सत्संग में जाते हैं...हम इस सर्व-व्यापी कण कण में विद्यमान ईश्वर के अलावा किसी भी यंत्र-तंत्र पर यकीं नहीं करते ...बिल्कुल भी नहीं...इन जगहों पर जाकर सत्संग की बातें अचानक मन में घूमने लगती हैं...

मेरा ध्यान गया उस दुकानदार के विज़िटिंग कार्ड की तरफ ..उस पर लिखा हुआ था...फेस-रीडिंग एक्सपर्ट .... मुझे याद आया कालेज से दिनों से छुटकारा मिलने के बाद एक बार एक किताब के बारे में सुना था.....How to read a person like a book?....किसी आदमी को एक किताब की तरह कैसे पढ़ा जाए?.....मैंने भी खरीदी थी, लेकिन अपनी हर खरीदी किताब की तरह इस के भी दो चार पन्ने पढ़ कर किसी कोने में फैंक दिया...बड़ी अजीब सी बात लगी थी कि हम लोग किसी दूसरे को पढ़ने के लिेए इतने आतुर ही क्यों हैं, पहले अपने आप को तो पढ़ लिया जाए !

हां, फेस-रीडिंग की बात पर वापिस लौटते हैं.....मैंने जिज्ञासा वश उस दुकानदार से पूछा कि फेस-रीडिंग आप करते हैं?...उसने हां कहा तो मैंने पूछा कि इस के कुछ दाम लगते हैं...उसने बताया कि दो हज़ार रूपये...और हमारा एक ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट भी है जहां पर हम लोगों को ट्रेन करते हैं...

फेस-रीडिंग से पहले वे लोग हमारे शरीर के चक्रों की चाल को चैक करते हैं...उस के हिसाब से फिर फेस-रीडिंग की जाती है ...जैसा उसने मुझे कहा...उसने यह भी कहा कि इस से आप के चेहरे का ओजस बढ़ जायेगा...

अचानक उसने मेरे से यह पूछा कि क्या आप इन सब बातों में यकीं करते हैं ?.... मैंने प्रश्न को टालना चाहा ...उस की दुकानदारी चल रही थी... लेकिन उसने तभी पूछा कि इन चीज़ों में से आपने घर में क्या रखा हुआ है ?...  मुझे और कुछ तो ध्यान में आया नहीं , बस लॉफिंग बुद्धा का ध्यान आ गया, मैंने बता दिया ...उसे शायद इत्मीनान हो गया हो कि इस को भी  इन सब में विश्वास तो है ...


लेकिन मैंने उसे यह नहीं बताया कि यह लॉफिंग बुद्धा टीवी के सामने पड़ा हुआ है ...और जब कभी भी इस की तरफ़ ध्यान चला जाता है तो अच्छा लगता है ....इस को मस्ती वाला पोज़ देख कर ...बस, और कुछ नहीं एक्सपेक्टेशन है नहीं कि यंत्र-तंत्र कुछ कर सकते हैं...

सब कुछ अपने अंदर है ..मन जीते जग जीत....बस, हम इसे बाहर ढूंढते ढूंढते बेहाल हुए जा रहे हैं..


इतने में उस ग्राहक ने साढ़े सात में इस पिरामिड जैसी रंग बिरंगे यंत्र को खरीद लिया ...और लगा पूछने कि रखना कहां है...फिर दुकानदार शुरू हो गया कि कंपास से देख लेना ...कमरे की किसी उत्तर दिशा में इसे रख देना...७२ घंटे में यह अपना काम करना शुरू कर देगा...शुभ समाचार मिलेगा !

मैं उस दुकान से हटते हुए यही सोच रहा था कि हम लोग भी किस तरह से एक दूसरे को टोपी पहनाने लगे हैं.....उस बंदे का यह खरीदारी करते वक्त अपने एक पुराने लोकल ब्रांड के हेल्मेट को हाथ में पकडे़ रखने से मुझे यही ध्यान आया कि लोग टोपियां पहनाने के इस चक्कर में मिडिल क्लॉस लोगों को कैसे कैसे सपने बेचने लगे हैं.... God bless your all children, bring them out of darkness of ignorance to this light of divine knowledge!