बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

बंदूक का लाइसेंस रिन्यू न करवाने की सलाह

अभी तीन दिन पहले की बात है एक शख्स से मुलाकात हो गई..वह मेरे को ओपीडी की पर्ची थमाने लगा तो साथ में एक काग़ज़ का टुकड़ा भी उसने मुझे गलती से थमा दिया।

मैंने उसे अभी सरसरी निगाह से देखा ही था कि लाल पेन से उस में एक काम यह भी लिखा हुआ था ...कि बंदूक का लाइसेंस रिन्यू करवाना है। दरअसल यह उस की उस िदन करने वाले कामों की लिस्ट थी।

वह पढ़ा लिखा और बड़ा समझदार सा इंसान है..ठीक है थोड़ा बातूनी और परफैक्शनिस्ट सा है....है तो है, क्या फर्क पड़ता है। वह पहले भी मेरे पास बहुत बार आ चुका है। पहले ही वह कईं तरह की शारीरिक परेशानियों से जूझ रहा है

इसलिए मुझे बड़ी हैरानी हुई ..और मैंने पूछ लिया कि क्या आपने बंदूक रखी हुई है...उस की उम्र ६५ के करीब होगी और बीवी भी इस के आस पास की है.......बीवी भी पास बैठी हुई थी....हिंदोस्तान की अधिकांश पतिव्रता गृहिणियों की तरह वह भी पूजा पाठ वाली नेक आत्मा है...जिन्हें अपनी राय देने का अकसर हक होता ही नहीं।

बह शख्स बताने लगा .. क्या करें डाक्टर साहब आज के जमाने में अपनी रक्षा के लिए यह सब रखना पड़ता है। उस का तर्क था कि  जब भगवान अपने पास अस्त्र-शस्त्र ऱखते थे तो हम तो मामूली इंसान ठहरे। मेरे पास इस बात का जवाब नहीं था, क्योंकि मेरा इस तरह का ज्ञान और तर्क-वितर्क क्षमता नगन्य है....इसलिए मैं चुप हो गया।

मुझे लगता है कि अभी तक उस बंदूक ने उस का एक ही काम किया ..जिसे वह बड़े गर्व से मुझे सुना गया.....उस के घर का छ्ज्जा बनना था, पड़ोसी अड़चन डाल रहे थे, बताने लगा कि डाक्टर साहब, मैं उस दिन बंदूक लेकर बाहर गली में खड़ा हो गया कि आओ, हिम्मत है तो आगे आओ... और छज्जा बन गया। और फिर अपनी बीवी की तरफ़ देख कर उस से अपनी बात पर मोहर लगवा ली........बताओ, ऐसा ही हुआ था ना?......वह बेचारी हिंदोस्तानी नारी ......उस ने झट से हल्की मुंडी हिला दी।

मैं इस बात का शुक्र मना रहा हूं कि मैं उस की इस बात पर ठहाके लगाता लगाता रह गया। 


बताने लगा कि लाईसेंस आज का नहीं है, कालेज के दिनों का है। मैंने फिर भी कहा कि छोड़ो, लाईसेंस रद्द करवा दो और बंदूक-कारतूस जमा कर दो। कहने लगा पूरा २०-२५ हज़ार का नुकसान हो जाएगा।

जब मैंने उसे बंदूक का लाइसैंस न रिन्यू करवाने की सलाह दी और कारतूस लौटाने की बात कही तो झट से उस की बीवी भी बोली कि मैं भी तो इन्हें यही कहती हूं।

एक बात जो मैंने उसे कही नहीं उस के सामने वह यह थी ..... उस के दो बेटे हैं, अच्छे काम धंधे वाले हैं, उन की बीवियां आपस में कलह कलेश करती रहती हैं जैसा कि आज लगभग हिंदोस्तान के हर घर में हो रहा है, इसी चक्कर में लड़कों ने भी बोलना बंद कर दिया है, रहते सब लोग एक ही घर में हैं......मैं उसे यह कहना चाह रहा था कि यार, आपने तो कारतूस संभाल लिए इतने वर्षों तक .. लेकिन आप के बाद क्या पता किस के हाथ यह बंदूक आ जाए और कभी गुस्से में कुछ कर बैठे। यह मैंने उसे कहा नहीं।

लेकिन जब मैंने उसे बार बार कहा कि इसे वापिस करो तो मान गया ....कहने लगा ठीक है, मैंने उसे कहा था कि जब मुझे अगली बार मिलना तो मुझे यह खुशखबरी देना।

वह यह तो कह ही रहा था कि दोनों बेटे भी यही कहते हैं कि इसे वापिस कर दो, हमें नहीं चाहिए.......और वह भी कह रहा था कि लाइसेंस रिन्यू करवाना भी एक झंझट है, कितने कितने चक्कर लगवाते हैं, पांच छः दिन कईं चक्कर काटने के बाद कहीं जा कर लाइसेंस रिन्यू होता है।

मैंने उसे इतना कहा कि ये सब हथियार वार घर में रखने शरीफ़ों के वश की बात कहां है, जो लुक्खे लोग होते होंगे उन के लाइसेंस घर बैठे ही िरन्यू हो जाते होंगे और इस भलेमानस को अपने शौक के लिए कितना कष्ट सहना पड़ता है।

वैसे उसे इस बात का तो बड़ा फख्र है कि उस के पास बंदूक है और वह यह मानता है कि आज के जमाने में यह ज़रूरी है.....वैसे उस के पास बंदूक वही है जो तीन चार फुट की होती है.....अब पता नहीं इस उम्र में वह इसे कैसे संभालेगा, खुदानाखास्ता अगर कभी ज़रूरत पड़ भी जाए।

लेकिन वह इतना तो कहता है कि शरीफ आदमी को तो पता नहीं पुलिस वाले या कोई और कब फंसा दें कि तेरे पास लाईसेंस है, बता तूं उधर क्या करने गया है.....जाते जाते ऐसी ऐसी बातें करने लगा था।

बहरहाल, मान गया लगता है कि अब लाइसेंस को रिन्यू नहीं करवाएगा और कारतूस (गोलियां) आदि जमा करवा देगा। देखते हैं।

वैसे मुझे नहीं लगता लखऩऊ जैसे शहर में इस तरह की बंदूक से कुछ ज़्यादा सुरक्षा हो जाती होगी......यहां तो ऐसी ऐसी घटनाएं रोज़ पढ़ने-सुनने को मिलती हैं कि लगता है यहां पर किसी को पुलिस या शासन का डर ही नहीं है......कुछ दिन पहले एक महिला सर्राफ को रात को नौ बजे रिक्शा पर ही गोली मार दी, जेवर लेकर भाग गए.......तीन दिन पहले एक महिला को उस के घर आ कर मार गये, बच्चे स्कूल गये हुए थे, बच्चे स्कूल से आए तो उन्हें पता चला....और इस महिला का घर शहर के एक व्यस्त एरिया में है......परसों यहां लखनऊ के सेंट्रल स्कूल का एक कैमिस्ट्री का अध्यापक पकड़ा गया, ग्यारहवीं कक्षा की अपनी ही एक छात्रा के साथ कईं महीने तक मुंह काला करता रहा, उसे गर्भ ठहर गया, उस का गर्भवात करवा दिया....घर में पता चला तो उन्होंने पुलिस में तहरीर दी......परसों एक २० वर्ष की वकालत पढ़ रही छात्रा घर से अपने पापा की जैकेट ड्राई-क्लीनर को देने गई...रात तक घर नहीं पहुंची तो अगले दिन सुबह शहर के शहीद पथ पर उस के शरीर के कईं टुकड़े मिले..........और पुलिस का कहना है कि शरीर को काटने के लिए जिस आरी का इस्तेमाल किया गया था, वह मोटर से चलने वाली थी.....

अब आप ही सोचिए कि मैंने उस बुज़ुर्ग को सही सलाह दी कि नहीं....बंदूक का लाइसैंस रिन्यू न करवाने की.....जब शहर में हर तरफ़ इतनी गुंडागर्दी, दादागिरी, रंगदारी.....और जान इतनी सस्ती हो चुकी हो तो एक चालीस साल पुरानी बंदूक किसी का क्या उखाड़ लेगी.....कुछ भी तो नहीं! लेकिन घर में रखी वह घर के ही किसी बाशिंदे का बहुत कुछ उखाड़ सकती है।

 P.S....मेरा एक मित्र फौजी अधिकारी है. उसने इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यह टिप्पणी दी है ..छज्जे वाली बात पर कि चलो कोई काम तो हुआ...वरना अधिकांश केसों में तो तो लोग अपनी पिस्टल आत्महत्या के लिए ही इस्तेमाल करते हैं।