मंगलवार, 29 नवंबर 2022

ग्रूमिंग-शूमिंग ...

दो चार दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर खबर थी कि एयर-इंडिया ने अपने क्र्यू को ग्रूमिंग के बारे में कुछ हिदायत दी है ...जिन के बाल बहुत कम हैं, उन्हें सिर के सारे बाल मुंडवाने होंगे ...जिन के बाल सफेद हो रहे हैं, उन्हें नियमित नेचुरल हेयर कलर का इस्तेमाल करना होगा...और जिन के बाल वाल कायम हैं, उन्हें हेयर-जेल से उन्हें कायदे से बिठा कर रखना होगा...

कोई हैरानी की बात नहीं है...नौकरी क्या और नखरा क्या, मालिक जैसा भी चाहेगा, करना होगा अगर नौकरी करनी है तो ...मुझे इस में कुछ भी अजीब न लगा। इतनी बड़ी कंपनी है, सोच समझ कर ही ऐसे फ़ैसले लिए जाते हैं....सभी देशों से इन के ग्राहक होते हैं, इन सब चीज़ों की तरफ इन्हें ध्यान देना ही होता है...मुझे यह सोच कर हंसी आ रही थी कि अगर मेरे जैसा सफेद बालों वाला कोई क्रयू मैंबर हो तो ग्राहक मुझे तो बुलाए ही न, कि इसे तकलीफ क्यों दें, अगर प्यास भी लगी है तो भी घंटी न बजाएं कि जाने दो, यार, बाहर जा कर पी लेंगे ...इसे क्यों इतनी ज़हमत दें...

जो लिख रहा हूं ...उस के बारे में मेरे खुद के ख्याल ये हैं कि बाल होना या कम होना, सफेद होना, या और भी नयन-नक्ष ये सब कुदरत की दी हुई चीज़ें हैं, हम लोग इन सब चीज़ों पर ध्यान लगा कर किसी का मज़ाक उड़ाने का तस्सवुर भी नहीं कर सकते ...लेकिन मेरे जैसों का क्या, जो खुद अपने आप पर भी हंसने से नहीं चूकते ...इसलिए मेरे जैसों को तो थोड़ी बहुत छूट दी भी जा सकती है...

आज शाम भी हुआ यह कि लोकल ट्रेन में मेरे सामने की सीट पर एक शख्स बैठा हुआ था...यही ५५-६० साल के करीब का होगा...सरसरी निगाह से जैसे हम किसी को देखते हैं, देखा....लेकिन फिर दूसरी बार मैंने उस के घने बालों को देखा...और तीसरी बार बडे़ बालों से बने एक बडे़ पफ को देखा ..पफ को वो लोग जानते हैं जो अब ५०-६० साल के हैं क्योंकि आज से चालीस साल बरस पहले बालों पर तेल (अकसर सरसों का ही) लगा कर एक बड़ा सा पफ बनाने का एक रिवाज था...मुझे नहीं पता कि तेल से चुपड़े बालों को पफ बनाना कूल समझा जाता था या हॉट, हमें तो ये अल्फ़ाज़ ५०-५५ बरस की उम्र में ही पता चले...खैर, १६-१७ बरस वाले दिनों में हम ने कोशिश तो कईं बार थी पफ बनाने की ....लेकिन बाल हैं ही इतने पतले की एक जगह जब ये टिक ही नहीं पाते तो पफ के लिए क्या उठेंगे ...

खैर, हमारे स्कूल में एक मास्टर था जो बहुत बड़ा पफ बनाया करता था और पिटाई भी बड़ी करता था ...इसलिए हमें तो पफ से उनी दिनों से बड़ी नफ़रत है ...दूसरा एक प्रोफैसर था मेडीकल कालेज में जो हमें पहले फ़िज़ियोलॉजी पढ़ाता था, वह भी पफ का पक्का शौकीन ....इतना बड़ा पफ बना के आता था कि हम दोस्त लोग उस के पफ को याद कर के हंसते हंसते लोटपोट हो जाया करते थे ..लेकिन एक बात है, वह पढ़ाता भी बहुत अच्छा था ...सब कुछ झट से समझ में आ जाता था...

लेकिन मैं तो आज गाड़ी में मिले शख्स के पफ की बात कर रहा था ...मैंने बताया न कि तीन बार तो मैंने देख लिया...फिर उस के बाद मेरा स्टेशन आने में दस मिनट थे..फिर मेरे मन में हलचल चलती रही कि यार इतनी उम्र में इतने घने बाल और इतने करीने से सैट हुए हुए ....मेरे मन में शक का बीज पड़ चुका था कि हो न हो यार यह तो विग ही होगी ...मैंने उस की तरफ देखा, वह सो रहा था, मैंने उस के बालों की तरफ देखना शुरू ही किया था कि वह जाग गया...अब यह कोई ऐसी एमरजैंसी भी न थी कि मुझे यह पता लगाना है ..खैर, मैंने मौका मिलते ही दो तीन बार सरसरी निगाहों से उस के पफ को देखा और यह फैसला हो गया कि बंदे ने विग ही लगाई हुई है ...

और बेशक यह विग बहुत महंगी होगी ....मुझे मेरे एक दोस्त ने कुछ महीने पहले बताया था कि विग भी हज़ारों रूपयों की भी मिलती हैं..इस की विग तो पकड़ में इसलिए आ गई क्योंकि इसने कुछ ओवर हो गया विग खरीदते वक्त ....अगर सीधी सादी विग होती तो किसी को भी पता नहीं चल पाता ..पर मैं होता कौन हूं किसी के पर्सनल मामले में दखल देने वाला ...जो उस के मन की मौज थी, उसने लगा ली ...मैं क्या खामखां अपने दिमाग पर लोड ले रहा हूं....अभी यह सोचा ही था कि मेरा स्टेशन आ गया और मैंने नीचे उतरते उतरते उस खूबसूरत विग को अपने कैमरे में कैद करने की एक कोशिश भी कर डाली .... 


अब इतनी बात लिख देने के बाद यह सोच रहा हूं को हो सकता है कि उस के बाल अपने ही हों....हम भी कैसे कितनी आसानी से फैसले कर लेते हैं...कुछ भी, कहीं से, किसी के भी, कैसे भी, कभी भी ...कितनी जल्दबाजी में ....कितनी फुर्ती से, कितने उतावलेपन से ...कितनी अंधाधुंध स्पीड से ...

हां, जाते जाते इन की भी बात पर गौर करिएगा....ये बाल- काले, सफेद, कम ज़्यादा, विग, काला-गोरा रंग .....इससे कुछ भी फ़र्क नहीं पड़ता...फ़र्क बस इस बात से पड़ता है कि आप दूसरों के साथ, अनजान लोगों के साथ भी, किस तरह से पेश आते हैं ....सीधे मुंह बात कर भी पाते हैं या नहीं... यह गीत भी कुछ कुछ तो ऐसा ही समझा रहा है ... गोरों की न कालों की, दुनिया है दिल वालों की ...