जी हां, कईं बार जब पानी के बताशों का ज़िक्र होता है तो मुझे सामने वाली की बात बड़े ध्यान से सुनती होती है ...कारण अभी बताता हूं...
पानी के बताशे खाने से होने वाली जलन
कुछ लोग आ कर कहते हैं कि पानी के बताशे खाने से मुंह में बहुत जलन होती है ..कुछ लोगों में तो यह परेशानी दो चार दिन से होती है और अकसर यह मुंह के छालों की वजह से होती है ...लगाने वाली दवाई दे देते हैं..दो चार दिन में सामान्यतयः सब कुछ ठीक हो जाता है..
लेकिन कुछ लोगों में इस तरह की जलन लंबे अरसे से चल रही होती है ..इन में अकसर गुटखे-पान मसाले वाले घाव परेशानी का कारण होते हैं। उसे समझाने की पूरी कोशिश की जाती है कि इस के स्थायी इलाज के लिए तुम्हें गुटखे-पान मसाले को हमेशा से ही थूक देना पड़ेगा..वरना इन ज़ख्मों की वजह से कुछ का कुछ बन जायेगा...फिर बिगड़ी बात बन भी नहीं पाएगी।
अचानक मुंह जल गया किसी का
कुछ साल पहले की बात है एक महिला मेरे पास आई ..उस का तालू पूरी तरह से जला हुआ था...यह कोई पांच साल पहले की बात होगी..मैंने पूछा कि क्या कुछ गर्म खा लिया था..कहने लगी ...नहीं। थोड़ा और अच्छे से पूछने पर उसने बताया कि कल शाम को उस का बेटा पानी के बताशे लाया था..बस वही खाए थे...कुछ समय बाद ही यह सब हो गया...
समझ में आ गया...और उस के बाद भी ऐसे बहुत से केस आने लगे ..तालू के घाव ही नहीं, मुंह के अंदर अन्य ज़ख्म भी पानी के बताशों की वजह से दिख जाते हैं...रिसर्च करने पर यही पता चला कि आज कर ईमली-विमली महंगी है, लोग बताशे का पानी बताने के लिए भी सस्ता जुगाड़ इस्तेमाल करने लगे हैं..टार्टरिक एसिड...जैसे ही अनुमान गड़बड़ाया तो बस इस पानी से मुंह तो जलेगा ही।
अब पानी का बताशा ही नहीं खाया जाता
जब कोई गुटखा-पान मसाले खाने वाला आता है और उस के मुंह की हालत देख कर अगर उस से यह पूछा जाए कि पानी के बताशे खा लेते हो...तो बहुत बार यही जवाब मिलता है कि पहले तो खा लेते थे, अब मुंह इतना नहीं खुलता कि बताशा अंदर जा पाए...ऐसे मरीज़ों का मुंह देखने पर पता चलता है कि उन में अकसर सब-म्यूक्स-फाईब्रोसिस नाम की बीमारी हो चुकी होती है जो कि मुंह के कैंसर की पूर्वावस्था होती है .. (oral pre-cancerous lesion) ..इन्हें भी सब तरह के नुकसान दायक पदार्थों का सेवन बंद करने के लिए तो लंबा-चौड़ा सिर दुःखाने वाला लेक्चर तो देना ही होता है, साथ ही इस का पूरा इलाज भी किया जाना ज़रूरी होता है ..
इस अवस्था के बारे में आप इस लिंक पर जाकर अच्छे से पढ़ सकते हैं... मुंह का पूरा न खुलना एक भयंकर समस्या--ऐसे भी और वैसे भी।
पानी के बताशों के नाम पर मैंने भी आप को कितना बोर कर दिया...कोई बात नहीं...आज कल पानी के बताशे खाने का अंदाज़ भी कुछ कुछ बदला हुआ है ...बचपन में दो मटके होते थे रेहड़ी पर लाल कपड़ा बंधा होता था..एक में खट्टा पानी और दूसरे में मीठा...मुझे हमेशा से मीठा पानी अच्छा लगता है....और साथ में एक पतीले में चने और उबले आलू हुआ करते थे ...देश के विभिन्न भागों में इन का नाम भी अलग अलग... बंबई में पानी पूरी...पंजाब हरियाणा दिल्ली में गोल गप्पे ...बस मुझे इतने ही नाम पता हैं...
गोल गप्पे घर लाकर खाने में मजा नहीं आता...ऐसा लगता है कि बंदा कोई एक्सपेरीमेंट कर रहा है..पहले उसे फोड़ो, फिर उस में मटर भरो, फिर पानी...अब तो कुछ दुकानों पर प्लेट में ये गोल गप्पे परोसे जाते हैं...कटोरी या गिलास में खट्टा-मीठा पानी..
पिछले साल से कुछ दुकानों में देख रहा हूं .अब मटकों की जगह इस तरह के डिस्पेन्सरों ने ले ली है... और परोसने वाले ने इस तरह के पतले से दस्ताने पहने होते हैं...इस तरह के पतले तो ठीक लगते हैं..लेिकन एक जगह पर देखा कि उसने डाक्टरों वाले ग्लवज़ पहने हुए थे...अजीब सा लगा था उस दिन...कुछ दिन पहले मैंने इस लड़के की फोटो खींची तो कहने लगा ...व्हाट्सएप पर डालेंगे?...हंसने लगा। पता नहीं मेरे जैसे दिन में कितने लोग फोटो खींच के उसे परेशान कर देते होंगे!😊😊
ग्राहकों को बुलाने के लिए कुछ न कुछ नया करते रहना पड़ता है ...कुछ दुकाने अब बोर्ड लगाने लगी हैं कि यहां पर आर-ओ का पानी इस्तेमाल होता है ...
पानी के बताशों से याद आया ...कुछ िदन पहले मेरे पास पांच दस मिनट का फ्री टाईम था...मुझे और कुछ करने को दिखा नहीं... मैंने सामने पानी बताशे की दुकान में २० रूपये का टोकन लिया...खाने लगा ...मैंने सोचा था ..पांच छः होंगे..लेिकन उस दिन मैंने १०-१२ बताशे खाए बहुत दिनों बाद...तबीयत खराब रही अगली दिन भी ..अब इन सब की इतनी संख्या में खाने की आदत नहीं रही...
वैसे आलू की टिक्की भी अच्छी लगती है ..लेकिन जो पुदीने की चटनी, और पतला प्याज और मीठी चटनी आज से ४० साल पहले मेले में खाया करते थे ...उस का ज़ायका तो अब नाक में ही है ...एक बात अच्छी यह है कि अब बहुत सी जगहों पर कुल्फी की तरह आलू की टिक्की भी इस तरह की मिट्टी की प्लेटों में परोसी जाने लगी है ...
अब इस बात को यहीं विराम देते हैं... फिल्म की बात करते हैं...शाम से ज़ी-क्लासिक चैनल पर कर्मा फिल्म आ रही है ..तीस साल पहले शायद कहीं वी सी आर पर देखी होगी...पॉयरेटेड वीसीडी से ...उस के बाद शायद कभी कभी टीवी पर थोडी बहुत...आज फिर से इसे देख रहा हूं और हैरान हूं कि सभी कलाकारों ने इतना बढ़िया काम किया है ...
Tags.. #पानीकेबताशे #गोलगप्पे #पानीपूरी #ओरलसबम्यूक्सफाईब्रोसिस #गुटखापानमसाला
पानी के बताशे खाने से होने वाली जलन
कुछ लोग आ कर कहते हैं कि पानी के बताशे खाने से मुंह में बहुत जलन होती है ..कुछ लोगों में तो यह परेशानी दो चार दिन से होती है और अकसर यह मुंह के छालों की वजह से होती है ...लगाने वाली दवाई दे देते हैं..दो चार दिन में सामान्यतयः सब कुछ ठीक हो जाता है..
लेकिन कुछ लोगों में इस तरह की जलन लंबे अरसे से चल रही होती है ..इन में अकसर गुटखे-पान मसाले वाले घाव परेशानी का कारण होते हैं। उसे समझाने की पूरी कोशिश की जाती है कि इस के स्थायी इलाज के लिए तुम्हें गुटखे-पान मसाले को हमेशा से ही थूक देना पड़ेगा..वरना इन ज़ख्मों की वजह से कुछ का कुछ बन जायेगा...फिर बिगड़ी बात बन भी नहीं पाएगी।
अचानक मुंह जल गया किसी का
कुछ साल पहले की बात है एक महिला मेरे पास आई ..उस का तालू पूरी तरह से जला हुआ था...यह कोई पांच साल पहले की बात होगी..मैंने पूछा कि क्या कुछ गर्म खा लिया था..कहने लगी ...नहीं। थोड़ा और अच्छे से पूछने पर उसने बताया कि कल शाम को उस का बेटा पानी के बताशे लाया था..बस वही खाए थे...कुछ समय बाद ही यह सब हो गया...
समझ में आ गया...और उस के बाद भी ऐसे बहुत से केस आने लगे ..तालू के घाव ही नहीं, मुंह के अंदर अन्य ज़ख्म भी पानी के बताशों की वजह से दिख जाते हैं...रिसर्च करने पर यही पता चला कि आज कर ईमली-विमली महंगी है, लोग बताशे का पानी बताने के लिए भी सस्ता जुगाड़ इस्तेमाल करने लगे हैं..टार्टरिक एसिड...जैसे ही अनुमान गड़बड़ाया तो बस इस पानी से मुंह तो जलेगा ही।
अब पानी का बताशा ही नहीं खाया जाता
जब कोई गुटखा-पान मसाले खाने वाला आता है और उस के मुंह की हालत देख कर अगर उस से यह पूछा जाए कि पानी के बताशे खा लेते हो...तो बहुत बार यही जवाब मिलता है कि पहले तो खा लेते थे, अब मुंह इतना नहीं खुलता कि बताशा अंदर जा पाए...ऐसे मरीज़ों का मुंह देखने पर पता चलता है कि उन में अकसर सब-म्यूक्स-फाईब्रोसिस नाम की बीमारी हो चुकी होती है जो कि मुंह के कैंसर की पूर्वावस्था होती है .. (oral pre-cancerous lesion) ..इन्हें भी सब तरह के नुकसान दायक पदार्थों का सेवन बंद करने के लिए तो लंबा-चौड़ा सिर दुःखाने वाला लेक्चर तो देना ही होता है, साथ ही इस का पूरा इलाज भी किया जाना ज़रूरी होता है ..
इस अवस्था के बारे में आप इस लिंक पर जाकर अच्छे से पढ़ सकते हैं... मुंह का पूरा न खुलना एक भयंकर समस्या--ऐसे भी और वैसे भी।
पानी के बताशों के नाम पर मैंने भी आप को कितना बोर कर दिया...कोई बात नहीं...आज कल पानी के बताशे खाने का अंदाज़ भी कुछ कुछ बदला हुआ है ...बचपन में दो मटके होते थे रेहड़ी पर लाल कपड़ा बंधा होता था..एक में खट्टा पानी और दूसरे में मीठा...मुझे हमेशा से मीठा पानी अच्छा लगता है....और साथ में एक पतीले में चने और उबले आलू हुआ करते थे ...देश के विभिन्न भागों में इन का नाम भी अलग अलग... बंबई में पानी पूरी...पंजाब हरियाणा दिल्ली में गोल गप्पे ...बस मुझे इतने ही नाम पता हैं...
गोल गप्पे घर लाकर खाने में मजा नहीं आता...ऐसा लगता है कि बंदा कोई एक्सपेरीमेंट कर रहा है..पहले उसे फोड़ो, फिर उस में मटर भरो, फिर पानी...अब तो कुछ दुकानों पर प्लेट में ये गोल गप्पे परोसे जाते हैं...कटोरी या गिलास में खट्टा-मीठा पानी..
पिछले साल से कुछ दुकानों में देख रहा हूं .अब मटकों की जगह इस तरह के डिस्पेन्सरों ने ले ली है... और परोसने वाले ने इस तरह के पतले से दस्ताने पहने होते हैं...इस तरह के पतले तो ठीक लगते हैं..लेिकन एक जगह पर देखा कि उसने डाक्टरों वाले ग्लवज़ पहने हुए थे...अजीब सा लगा था उस दिन...कुछ दिन पहले मैंने इस लड़के की फोटो खींची तो कहने लगा ...व्हाट्सएप पर डालेंगे?...हंसने लगा। पता नहीं मेरे जैसे दिन में कितने लोग फोटो खींच के उसे परेशान कर देते होंगे!😊😊
ग्राहकों को बुलाने के लिए कुछ न कुछ नया करते रहना पड़ता है ...कुछ दुकाने अब बोर्ड लगाने लगी हैं कि यहां पर आर-ओ का पानी इस्तेमाल होता है ...
पानी के बताशों से याद आया ...कुछ िदन पहले मेरे पास पांच दस मिनट का फ्री टाईम था...मुझे और कुछ करने को दिखा नहीं... मैंने सामने पानी बताशे की दुकान में २० रूपये का टोकन लिया...खाने लगा ...मैंने सोचा था ..पांच छः होंगे..लेिकन उस दिन मैंने १०-१२ बताशे खाए बहुत दिनों बाद...तबीयत खराब रही अगली दिन भी ..अब इन सब की इतनी संख्या में खाने की आदत नहीं रही...
वैसे आलू की टिक्की भी अच्छी लगती है ..लेकिन जो पुदीने की चटनी, और पतला प्याज और मीठी चटनी आज से ४० साल पहले मेले में खाया करते थे ...उस का ज़ायका तो अब नाक में ही है ...एक बात अच्छी यह है कि अब बहुत सी जगहों पर कुल्फी की तरह आलू की टिक्की भी इस तरह की मिट्टी की प्लेटों में परोसी जाने लगी है ...
अब इस बात को यहीं विराम देते हैं... फिल्म की बात करते हैं...शाम से ज़ी-क्लासिक चैनल पर कर्मा फिल्म आ रही है ..तीस साल पहले शायद कहीं वी सी आर पर देखी होगी...पॉयरेटेड वीसीडी से ...उस के बाद शायद कभी कभी टीवी पर थोडी बहुत...आज फिर से इसे देख रहा हूं और हैरान हूं कि सभी कलाकारों ने इतना बढ़िया काम किया है ...
Tags.. #पानीकेबताशे #गोलगप्पे #पानीपूरी #ओरलसबम्यूक्सफाईब्रोसिस #गुटखापानमसाला