मंगलवार, 17 जून 2008

अब हो पायेगी डायबिटीज़ की और भी कारगर स्क्रीनिंग एवं डायग्नोसिस..


हम ने अपने बचपन के दौरान यह सुना कि मोहल्ले की तारा मौसी को शूगर हो गई है.....लेकिन इस का पता कैसे चला ?......हुया यूं कि जिस जगह भी तारा मौसी पेशाब करती थी, कुछ समय बाद उस जगह पर मकौड़े आ जाते थे। बस, काफी लोगों की शूगर की डॉयग्नोसिस कुछ इसी ढंग से ही हुआ करती थी.....यह पेशाब पर मकौड़ा टैस्ट तो एक किस्म का कन्फर्मेटरी टैस्ट ही माना जाता था।

लेकिन इस टैस्ट पर निर्भर करने की भी कितनी खतरनाक हानियां होती होंगी ....यह तो आप के सामने ही है। जब तक शूगर के रोगी को ढूंढने के लिये यह देसी टैस्ट अपना काम करता था, तब तक अकसर शूगर रोग के मरीज़ में यह बड़ी हुई शूगर की वजह से शरीर के कईं अंग( गुर्दे, हृदय, आंखें इत्यादि) क्षतिग्रस्त हो जाया करते थे। लेकिन जो भी हो कभी कभार अगर किसी सज्जन-मित्र के पेशाब पर मकौड़ा दिख जाता था तो उस की हालत पतली हो जाती थी।

एक बात और यहां होनी ज़रूरी है कि आज के समय में भी हम लोगों के पास ऐसे कईं मरीज आते हैं जिन से जब शूगर रोग की हिस्ट्री पूछी जाती है तो वे अकसर कह देते हैं कि शूगर है तो, लेकिन बिलकुल थोड़ी ही है और वह भी केवल रक्त में ही है.......इसलिये, वह आगे कहते हैं, कि मैंने कभी दवाई नहीं ली...बस परहेज ही कर रहे हैं। ऐसी सोच बेहद हानिकारक है....कि शूगर का स्तर अगर ब्लड ही में है तो कोई बात नहीं। यह समझ लेना कि जब तक शूगर पेशाब में नहीं आ जाती ...तब तक किसी डाक्टर के पास जाने की जरूरत ही नहीं है.......यह बिलकुल गलत धारणा है। अब प्रश्न पैदा होता है कि पेशाब में शूगर कब आने लगती है.....इस के लिये यह जानना ज़रूरी है कि शूगर के पेशाब में आने के लिये उस को Renal threshold (रीनल थ्रैशहोल्ड) को पार करना होता है...और यह लक्ष्मण-रेखा है 180मि.ग्राम परसेंट ....कहने का मतलब यह कि जब रक्त में शूगर का स्तर यहां तक पहुंच जाता है( 100ml में 180mg.शूगर) तो इस के ऊपर हमारे गुर्दे इस को नहीं झेल पाते हैं और शक्कर पेशाब के साथ शरीर से बाहर आने लगती है।

ऐसा तो आप जानते ही हैं कि उस जमाने में शूगर की स्क्रीनिंग वाली बात इतनी आम नहीं थी ( अब कौन सा यह सब कुछ इतना आम हो गया है!!)। अकसर मकौड़े दिखने पर ही लोग पेशाब में शक्कर की लैबोरेटरी जांच करवाया करते थे। फिर धीरे धीरे लोग शुगर की स्क्रीनिंग के लिये रक्त की जांच करवाने लगे....खाली पेट और फिर खाना खाने के बाद। अब मैडीकल कम्यूनिटी ने यह सिफारिश की है कि शूगर रोग की स्क्रीनिंग के लिये भी ग्लाइकोसेटेज हीमोग्लोबिन( glycosated haemoglobin...Haemoglobin A1c….HbA1c) टैस्ट करवाया जाए।

जर्नल ऑफ क्लीनिकल ऐंडोक्राईनॉलाजी एवं मैटाबॉलिज़म में छपने वाले एक लेख अनुसार चोटि के डाक्टरों के एक एक्सपर्ट पैनल ने यह रिक्मैंड किया है कि मरीज के रक्त से किया जाने वाला ग्लाईकोसेटेज हीमोग्लोबिन टैस्ट जिसे शूगर के मरीजों में इस लिये किया जाता है कि पिछले तीन महीने के दौरान उन के रक्त में शूगर के कंट्रोल का पूरा नक्शा इलाज करने वाले डाक्टर के पास उपलब्ध हो जाए, अब इसी टैस्ट को शूगर के मरीजों की स्क्रीनिंग एवं डॉयग्नोसिस के लिये भी इस्तेमाल किया जाना चाहिये।

शूगर की मौजूदा स्क्रीनिंग के द्वारा डाक्टरों को कईं बार शूगर की डायग्नोसिस में दिक्कत आती है और इस की टैस्टिंग के लिये मरीज़ों को खाली पेट भी रहना पड़ता है। मौजूदा हालात में कुछ हद तक तो डायग्नोसिस में दिक्कत आने की वजह से ही कईं मरीज़ों का बहुत कीमती समय नष्ट हो जाता है और उन के शरीर में शूगर से संबंधित जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं।

आप को जान कर बहुत हैरानी होगी कि जॉन हॉपकिंज़ इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीसन के मैडीकल विशेषज्ञों के अनुमान अनुसार अभी भी अमेरिका में शूगर के 30प्रतिशत मरीज ( 62लाख लोग) ऐसे हैं जिन में शूगर रोग का डायग्नोसिस ही नहीं हो पाया है। मैं भी यह पढ़ कर इस लिये चौंक गया था कि अगर अमेरिका जैसे देश का यह हाल है तो अपने यहां की बात ही क्या करें !!

मैडीकल एक्सपर्ज़ के अनुसार इस टैस्ट ...ग्लाइकोसेटेड हिमोग्लोबिन...HbA1c...को शूगर रोग की स्क्रीनिंग के लिये इस्तेमाल किये जाने के फायदे ये हैं कि एक तो मरीज को टैस्ट करवाने के लिये खाली पेट रहने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती और दूसरा यह कि यह टैस्ट पूरी तरह स्टैंडर्डाइज़ हो चुका है। इसलिये डाक्टरों के इस ग्रुप ने सलाह दी है कि जब कोई व्यक्ति यह टैस्ट करवाये और अगर इस का स्तर रिपोर्ट में 6.5 प्रतिशत या उस से ज़्यादा आये तो फिर भी शूगर रोग की डायग्नोसिस को कंफर्म करने के लिये ब्लड-शूगर की जांच करवानी भी ज़रूरी है।

जाते जाते यह ध्यान आ रहा है कि कहां से चले थे....बाथ-रूम में किसी बंदे के यूरिन पर चलने वाले मकौड़े से और अब हम लोग पहुंच गये हैं ऐसे टैस्ट पर...glycosated haemoglobin…. जो शूगर रोग के डायग्नोसिस के साथ साथ इस बात का भी खुलासा कर देता है कि पिछले तीन महीनों के दौरान किसी शूगर के मरीज में ब्लड-शूगर का कंट्रोल कैसा रहा है। इसलिये भी चिकित्सक की सलाह अनुसार किसी भी शूगर के मरीज को इस टैस्ट ....Glycosated haemoglobin….HbA1c …को भी नियमित तौर पर करवा कर के अपने ब्लड-शूगर के कंट्रोल पर नज़र रखनी बहुत ज़रूरी है।

वैसे यह टैस्ट कोई खास महंगा भी नहीं है....मेरे ख्याल में दो-तीन सौ रूपये में हो जाता है और इस के लिये मरीज के रक्त का सैंपल चाहिये होता है।