बुधवार, 23 जनवरी 2008

गन्ने के रस का लुत्फ तो आप भी ज़रूर उठाते होंगे !



मैं जब भी बम्बई में होता हूं न तो दोस्तो वहां पर बार बार गन्ने के रस पीने से कभी नहीं चूकता.. लेकिन अपने यहां पंजाब -हरियाणा में मेरी पिछले कुछ सालों से कभी गन्ने का रस पीने की इच्छा ही नहीं हुई। पिछले कुछ सालों से इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि पहले खराब गन्ने का रस पीने के नुकसानों से वाकिफ न था। वैसे तो मैं बचपन से ही इस का शौकीन रहा हूं - जब भी मां की उंगली पकड़ कर बाज़ार जाता तो आते वक्त मेरा एक गन्ने का गिलास पक्का था।

दोस्तो, 1980 में मुझे पीलिया हो गया तो मेरी मां बहुत दूर से जाकर छःसात गिलास गन्ने का रस ले कर आती थी, क्योंकि उस अमृतसर के दुर्ग्याणा मंदिर के बाहर स्थित गन्ने के रस की दुकान की खासियत ही यह थी कि वह खूब सारा धूप वगैरह जला कर एक भी मक्खी आस पास नहीं फटकने देता था। और पीलिया रोग में तो यह एहतियात और भी कहीं ज्यादा जरूरी थी।
और बचपन में याद है कि हम लोग स्कूल से आते हुए एक ऐसी जगह से यह जूस पीते थे जहां पर बैल की आंखों पर पट्टी बांध कर उसे गोल-गोल दायरे में घुमा कर गन्नों को पीस कर जूस निकाल जाता था, तब किस कमबख्त को इस की फिकर थी कि क्या मिल रहा है। बस यही शुक्र था कि जूस के पीने का आनंद लूट रहे थे। इस के बाद , अगला स्टाप होता था , साथ में बैठी एक छल्ली वाली ....वही जिसे भुट्टा कहते हैं-- उस से पांच-दस पैसे में कोई छल्ली ले कर आपनी यात्रा आगे बढ़ा करती थी।

सारी, फ्रैंडज़, यह जब से ब्लागिरी शुरु की है न , मुझे अपनी सारी पुरानी बातें बहुत याद आने लगी हैं...क्या आप को के साथ भी ऐसा हो रहा है। कमैंटस में जवाब देना, थोड़ी तसल्ली सी हो जाएगी

हां, तो मैं बात कर रहा था कि बम्बई में जाकर वहां पर गन्ने के रस का भरपूर आनंद लूटना चाहता हूं। इस का कारण पता है क्या है ...वहां पर गन्ने के रस के स्टालों पर एकदम परफैक्ट सफाई होती है, उन का सारा ताम-झाम एक दम चमक मार रहा होता है और सब से बड़ी बात तो यह कि उन्होंने सभी गन्नों को सलीके से छील कर अपने यहां रखा होता है ....इसलिए किसी भी गन्ने का ज़मीन को छूने का तो कोई सवाल ही नहीं।
इधर इस एरिया में इतनी मेहनत किसी को करते देखा नहीं, ज्यादा से ज्यादा अगर किसी को कहें तो वह गन्नों को कपड़ों से थोड़ा साफ जरूर कर लेते हैं ,लेकिन जिसे एक बार बम्बई के गन्ने के रस का चस्का लग जाता है तो फिर उसे ऐसी वैसी जगह से यह जूस पसंद नहीं आता। बम्बई ही क्यों , दोस्तो, कुछ समय पहले जब मुझे हैदराबाद जाने का मौका मिला तो वहां पर भी इस गन्ने के रस को कुछ इतनी सी सफाई से परोसा जा रहा था। यह क्या है न दोस्तो कि कुछ कुछ जगहों का कुछ कल्चर ही बन जाता है।

और जगहों का तो मुझे इतना पता नहीं, लेकिन दोस्तो, पंजाब हरियाणा में क्योंकि कुछ जूस वाले सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखते इसलिए गर्मी के दिनों में लोकल प्रशासन द्वारा इस की बिक्री पर कुछ समय के लिए रोक ही लगा दी जाती है ...क्योंकि इस प्रकार से निकाला जूस तो बस बीमारियों को खुला बुलावा ही होता है।

तो,आप भी सोच रहे हैं कि इस में कोई हैल्थ-टिप दिख नहीं रही-तो ,दोस्तो, बस आज तो बस इतनी सी ही बात करनी है कि गन्ने का रस पीते समय ज़रा साफ-सफाई का ध्यान कर लिया करें।

वैसे जाते जाते बम्बई वासियों के दिलदारी की एक बात बताता हूं ...कुछ दिन पहले ही चर्चगेट स्टेशनके बाहर हम लोग गन्ने का जूस पी रहे थे कि एक भिखारी उस दुकान पर आया और उसे देखते ही दुकानदार ने उसे गन्ने के रस का एक गिलास थमा दिया.....उसने बीच में पीते हुए दुकानदार से इतना कहने की ज़ुर्रत कैसे कर ली....नींबू भी डाल दो। और दुकानदार ने भी उसी वक्त कह दिया कि सब कुछ डाला हुया है , तू बस साइड में हो कर पी ले। मैं यह समझ नहीं पाया कि क्या उस भिखारी ने नींबू मांग कर ठीक किया कि नहीं.....खैर जो भी , We liked this small noble gesture of that shopkeeper. May he always keep it up !!

गन्ने के रस का लुत्फ तो आप भी ज़रूर उठाते होंगे !




मैं जब भी बम्बई में होता हूं न तो दोस्तो वहां पर बार बार गन्ने के रस पीने से कभी नहीं चूकता.. लेकिन अपने यहां पंजाब -हरियाणा में मेरी पिछले कुछ सालों से कभी गन्ने का रस पीने की इच्छा ही नहीं हुई। पिछले कुछ सालों से इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि पहले खराब गन्ने का रस पीने के नुकसानों से वाकिफ न था। वैसे तो मैं बचपन से ही इस का शौकीन रहा हूं - जब भी मां की उंगली पकड़ कर बाज़ार जाता तो आते वक्त मेरा एक गन्ने का गिलास पक्का था।

दोस्तो, 1980 में मुझे पीलिया हो गया तो मेरी मां बहुत दूर से जाकर छःसात गिलास गन्ने का रस ले कर आती थी, क्योंकि उस अमृतसर के दुर्ग्याणा मंदिर के बाहर स्थित गन्ने के रस की दुकान की खासियत ही यह थी कि वह खूब सारा धूप वगैरह जला कर एक भी मक्खी आस पास नहीं फटकने देता था। और पीलिया रोग में तो यह एहतियात और भी कहीं ज्यादा जरूरी थी।
और बचपन में याद है कि हम लोग स्कूल से आते हुए एक ऐसी जगह से यह जूस पीते थे जहां पर बैल की आंखों पर पट्टी बांध कर उसे गोल-गोल दायरे में घुमा कर गन्नों को पीस कर जूस निकाल जाता था, तब किस कमबख्त को इस की फिकर थी कि क्या मिल रहा है। बस यही शुक्र था कि जूस के पीने का आनंद लूट रहे थे। इस के बाद , अगला स्टाप होता था , साथ में बैठी एक छल्ली वाली ....वही जिसे भुट्टा कहते हैं-- उस से पांच-दस पैसे में कोई छल्ली ले कर आपनी यात्रा आगे बढ़ा करती थी।

सारी, फ्रैंडज़, यह जब से ब्लागिरी शुरु की है न , मुझे अपनी सारी पुरानी बातें बहुत याद आने लगी हैं...क्या आप को के साथ भी ऐसा हो रहा है। कमैंटस में जवाब देना, थोड़ी तसल्ली सी हो जाएगी

हां, तो मैं बात कर रहा था कि बम्बई में जाकर वहां पर गन्ने के रस का भरपूर आनंद लूटना चाहता हूं। इस का कारण पता है क्या है ...वहां पर गन्ने के रस के स्टालों पर एकदम परफैक्ट सफाई होती है, उन का सारा ताम-झाम एक दम चमक मार रहा होता है और सब से बड़ी बात तो यह कि उन्होंने सभी गन्नों को सलीके से छील कर अपने यहां रखा होता है ....इसलिए किसी भी गन्ने का ज़मीन को छूने का तो कोई सवाल ही नहीं।
इधर इस एरिया में इतनी मेहनत किसी को करते देखा नहीं, ज्यादा से ज्यादा अगर किसी को कहें तो वह गन्नों को कपड़ों से थोड़ा साफ जरूर कर लेते हैं ,लेकिन जिसे एक बार बम्बई के गन्ने के रस का चस्का लग जाता है तो फिर उसे ऐसी वैसी जगह से यह जूस पसंद नहीं आता। बम्बई ही क्यों , दोस्तो, कुछ समय पहले जब मुझे हैदराबाद जाने का मौका मिला तो वहां पर भी इस गन्ने के रस को कुछ इतनी सी सफाई से परोसा जा रहा था। यह क्या है न दोस्तो कि कुछ कुछ जगहों का कुछ कल्चर ही बन जाता है।

और जगहों का तो मुझे इतना पता नहीं, लेकिन दोस्तो, पंजाब हरियाणा में क्योंकि कुछ जूस वाले सफाई का पूरा ध्यान नहीं रखते इसलिए गर्मी के दिनों में लोकल प्रशासन द्वारा इस की बिक्री पर कुछ समय के लिए रोक ही लगा दी जाती है ...क्योंकि इस प्रकार से निकाला जूस तो बस बीमारियों को खुला बुलावा ही होता है।

तो,आप भी सोच रहे हैं कि इस में कोई हैल्थ-टिप दिख नहीं रही-तो ,दोस्तो, बस आज तो बस इतनी सी ही बात करनी है कि गन्ने का रस पीते समय ज़रा साफ-सफाई का ध्यान कर लिया करें।

वैसे जाते जाते बम्बई वासियों के दिलदारी की एक बात बताता हूं ...कुछ दिन पहले ही चर्चगेट स्टेशनके बाहर हम लोग गन्ने का जूस पी रहे थे कि एक भिखारी उस दुकान पर आया और उसे देखते ही दुकानदार ने उसे गन्ने के रस का एक गिलास थमा दिया.....उसने बीच में पीते हुए दुकानदार से इतना कहने की ज़ुर्रत कैसे कर ली....नींबू भी डाल दो। और दुकानदार ने भी उसी वक्त कह दिया कि सब कुछ डाला हुया है , तू बस साइड में हो कर पी ले। मैं यह समझ नहीं पाया कि क्या उस भिखारी ने नींबू मांग कर ठीक किया कि नहीं.....खैर जो भी , We liked this small noble gesture of that shopkeeper. May he always keep it up !!

4 comments:

Let The World Wait said...

Dr. Saab,
im really impressed with u.
and u just keep writting..
and providing such a impt. informations too.
My self..Amit Sharma
From Kuwait
amteeshr@gmail.com

Gyandutt Pandey said...

डाक्टर साहब; ये कुवैत से लिखने वाले सज्जन बिल्कुल सही कह रहे हैं। और यह बहुत अच्छा है कि आप जानदार पोस्ट लिख रहे हैं - डाक्टरी प्रेस्क्रिप्शन नहीं घसीट रहे।
बहुत बहुत साधुवाद - एक ध्येय पूर्ण ब्लॉगिंग के लिये।

अनुनाद सिंह said...

हिन्दीभाषा में स्वास्थ्य-साक्षरता को बढ़ावा देने वाली जानकारी का बहुत अभाव है। आपको हिन्दी-ब्लागजगत में पाकर बहुत सन्तोष हो रहा है। ऐसे ही स्वास्थ्य के लिये महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी लेखनी चलाते रहें; हिन्दी और हिन्दी-जगत का बहुत भला होगा। स्वास्थ्य साक्षरता और रोग-शिक्षा (पैशेंट एडुकेशन) का किसी भी समाज को निरोग रखने में बहुत महत्व है। आशा है आपका ब्लाग इस दिशा में पहल करके समाज का हित साधने के साथ ही यश का भाक़्गी होगा।

PD said...

अजी हम तो यही कहेंगे की हम ब्लौग तो इसीलिये शुरू किये थे क्योंकि मैं अपनी यादों को सजोना चाहता था.. उसे दुनिया तक पहूंचाना चाहता था.. :)

Good Morning, India...............सुप्रभात !!


यह भी क्या, दोस्तो, सुबह सुबह उठ कर लग गए इस बलागिंग के चक्कर मे, किसी से राम-रहीम नहीं, दुया-सलाम नहीं.....यार, सारा दिन अपने पास पढ़ा है, थोड़ा ताज़ी ताज़ी सुबह का आनंद भी तो लें...........
जागती आंखों से भी देखो दुनिया को,
ख्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं।
पिछले लगभग 15वर्षों से ओशो-टाइम्स पढ़ता हूं ---पढ़ता क्या हूं....उस में लिखी बातें पढ़ कर इतना आनंद मिलता है कि अपनी स्लेट पर उस में से ही लिए कुछ वाक्य लिख रहा हूं.........
You be true to yourself. Never try to be anybody else. That is the only sin I call sin. Accept yourself! Whatever you are , you are beautiful. Existence accepts you; you also accept yourself.
Comparison : A great Disease.
We are all unique, so it is pointless to compare ourselves to others.
Comparison is a disease, one of the greatest diseases. And we are taught from the very beginning to compare, Your parents start comparing you with other children.
From the very beginning you are being told to compare yourself with others. This is the greatest disease; it is like a cancer that goes on destroying your very soul—because each individual is unique, and comparison is not possible.
I am just myself and you are just yourself. There is nobody else in the world you can be compared with.
Do you compare a marigold with a roseflower? Do you compare a mango with an apple? You don’t compare. You know they are different; comparison is not possible.
Man in not a species, because each man is unique. There has never been any individual like you before and there will never be again. You are utterly unique. This is your privilege, your prerogative, your unique-ness. Comparison will bring trouble.
If you fall victim to this disease of comparison, naturally you will either become very egoistic or you will become very bitter; it depends on whom you compare yourself with.
If you compare yourself with those who seem to be bigger than you, higher than you, greater than you, you will become bitter. You will become angry : “ why am I not greater than I am? Why am I not physically so beautiful, so strong? Why am I not so intelligent? Why am I not this, not that?” Your life will become poisoned by the comparison. You will remain always in a state of depression, as if existence has deceived you , betrayed you, as if you have been let down.
Or if you compare yourself with people who are smaller than you, in some way lesser than you, then you will become very egoistic…
……………………………………………..
Ok friends, good morning.
सुप्रभात........आज की यह नई सुबह आप की ज़िंदगी में बहारें ले आये।