मैं बीस वर्ष पूर्व डा राव जो टाटा कैंसर अस्पताल के उस समय निदेशक थे...उन का एक लेक्चर अटैंड कर रहा था...उस दिन उन्होंने इस बात पर भी विशेष ज़ोर दिया कि अगर देश के लोग रात को सोने से पहले अच्छे से कुल्ला कर के सोना शुरू कर दें, तो मुंह के कैंसर के केसों में ५०प्रतिशत की कमी आ जायेगी। उन के कहने का आशय था कि मुंह अच्छे से साफ़ करने के बाद फिर किसी का मन नहीं करेगा कि मुंह में गुटखा, तंबाकू, खैनी, या पान ठूंस कर सोए।
ऐसा नहीं है कि दिन के समय इस तरह के जानलेवा पदार्थों को गाल या होठों के अंदर रखने का कम नुकसान है। खतरनाक तो है ही यह सब भी लेकिन रात के समय भी इन्हें गाल या होंठ के अंदर दबा कर सोने से नुकसान दोगुना हो जाता है।
आज मेरे पास यह ५० व्यक्ति आया था.. उसे केवल तकलीफ़ यह थी कि उस के ऊपर वाले दो दांत हिल रहे हैं और कुछ भी चबाते वक्त दर्द करते हैं। इन के दांतों की अवस्था से आप अनुमान लगा ही सकते हैं कि ये पान-तंबाकू का भरपूर प्रयोग करते हैं। मेरे पूछने पर यह भी बताया कि कभी कभी बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, पानमसाला भी हो जाता है...मैंने हल्के से मजाक में कह ही दिया कि आप से बात करते हुए मुझे शोले की बसंती की मौसी की बातें याद आ रही हैं जब जय उस के पास वीरू और बसंती के रिश्ते की बात करने जाता है। हंसने लगा मेरी बात सुन कर।
मैंने पूछा िक आपने कभी अपने मुंह में देखा है....कहने लगा कि ऩहीं कभी नहीं। मैंने पहले तो उसे वाश-बेसिन के शीशे के पास ले जाकर टार्च मार कर उसे उस के दाहिने गाल का अंदरूनी हिस्सा िदखाया...फिर उस की फोटी खींच कर दिखाई तो वह अच्छे से समझ गया.......मेरे समझाने पर उसने तौबा कर ली कि आज से वह किसी भी ऐसी वैसी चीज़ को चबाना-चूसना तो दूर, छुऐगा तक नहीं!!
यह व्यक्ति भी अकसर पान, तंबाकू, गुटखा दाईं तरफ़ वाली गाल के अंदर ही टिकाए रखता था...आप देख सकते हैं कि दाईं और बाईं तरफ़ वाले गालों के अंदरूनी हिस्सों में कितना फर्क है....बाएं तरफ़ वाले गाल में इतनी ज़्यादा गड़बड़ी नहीं है..। यह जो ऊपर दाईं तरफ़ वाली गाल में सफेद रंग का एक घाव, चटाक या ज़ख्म सा देख रहे हैं ...इसे ओरल-ल्यूकोप्लेकिया कहते हैं और यह मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था है...... it is definitely a oral pre-cancerous lesion.
जितना ज़रूरी था उतनी इस बंदे को भी बताया...सब से पहले तो यह ज़रूरी है कि यह अब इन सब चीज़ों से तौबा कर ले (जो भी संभवतः उस ने कर ली)....अब इस तरह के घाव का इलाज होना चाहिए...अगर यह आज भी ये सब जानलेवा पदार्थ छोड़ दे तो भी कईं महीने लगेंगे इस चमड़ी को ठीक होने में। और बहुत बार तो इसे उतारना ही ज़रूरी होता है.......फिर इस टुकड़े की पैथोलॉजी लैब में जांच होगी..........यह कैंसर नहीं है यह तो लगभग निश्चित ही है...अभी यह पूर्वावस्था ही है।
अगर इस तरह की पूर्वावस्था का कुछ इलाज न किया जाए...और ऊपर से तंबाकू-गुटखा-पान निरंतर चालू रहे तो ऐसी पूर्वावस्था कब और कितने वर्षों में मुंह के कैंसर का रूप धारण कर लेगी, यह कहना बड़ा मुश्किल है। अभी चार िदन पहले ही एक ७५-८० वर्ष की बुज़ुर्ग महिला आई थी--अकेले ही आई थीं दांत दिखाने.....कह रही थीं कि मसूड़े थोड़े कटे कटे से लग रहे हैं.....मैंने देखा तो मुझे बेहद बुरा लगा था.......क्योंकि ऊपरी गाल के अंदरूनी हिस्से में पूरी तरह से विकसित कैंसर फैल चुका था.....मुझे उस दिन बहुत ही ज़्यादा दुःख हुआ था.....मैंने उस दिन तो उन्हें तो कुछ नहीं कहा लेकिन बेटे को साथ लाने को कहा और अपना फोन नंबर िदया.....बात हुई उस के बेटे से ...इलाज तो चल रहा है ........लेकिन....!!...... क्या लिखूं। मैंने कहा कि आपने आज से पान नहीं खाना, तो कहने लगीं कि बस सौंफ ही खाती हूं अब तो ......सामने ही शीशी थी उस के हाथ में......सौंफ में भी डली मिली हुई थी.....(यू पी में सुपारी को डली कहते हैं) .. मैंने समझाया कि सौंफ का मतलब सिर्फ़ सौंफ........डली मिलाने में तो वही बात है कि पानमसाला न खाया और इस तरह की सौंफ-डली खा ली।
मैं अब आज वाले ५० वर्ष की आयु वाले मरीज़ पर वापिस आता हूं..इस बात की तरफ़ आप ध्यान दें कि किस तरह से अपने मुंह में स्वयं झांकने से जब बंदा स्वयं कोई घाव या दाग आदि देखता है या उसे उसके मुंह के अंदर की तस्वीर दिखाई जाती है तो उस की ऐसे पदार्थों का त्याग करने की भावना प्रबल होती है......निःसंदेह यह बात तो पक्की है।
अपने मुंह में झांकना कितना आसान है.....गाल, होंठ, तालू, जुबान, जुबान के नीचे वाला हिस्सा.......शीशे के आगे खड़े होकर देखते रहना चाहिए.......ज़रूरी है यह मुंह का स्वयं-निरीक्षण करना.......कुछ भी असामान्य दिखने पर दंत चिकित्सक के परामर्श करिए.......और इन सब घातक पदार्थों से हमेशा दूर रहें।
ऐसा नहीं है कि दिन के समय इस तरह के जानलेवा पदार्थों को गाल या होठों के अंदर रखने का कम नुकसान है। खतरनाक तो है ही यह सब भी लेकिन रात के समय भी इन्हें गाल या होंठ के अंदर दबा कर सोने से नुकसान दोगुना हो जाता है।
इस मरीज़ के बाईं तरफ़ के गाल का अंदरूनी हिस्सा |
मैंने पूछा िक आपने कभी अपने मुंह में देखा है....कहने लगा कि ऩहीं कभी नहीं। मैंने पहले तो उसे वाश-बेसिन के शीशे के पास ले जाकर टार्च मार कर उसे उस के दाहिने गाल का अंदरूनी हिस्सा िदखाया...फिर उस की फोटी खींच कर दिखाई तो वह अच्छे से समझ गया.......मेरे समझाने पर उसने तौबा कर ली कि आज से वह किसी भी ऐसी वैसी चीज़ को चबाना-चूसना तो दूर, छुऐगा तक नहीं!!
मुंह के कैंसर की पूर्व-अवस्था......ओरल ल्यूको-प्लेकिया (दाईं गाल) |
जितना ज़रूरी था उतनी इस बंदे को भी बताया...सब से पहले तो यह ज़रूरी है कि यह अब इन सब चीज़ों से तौबा कर ले (जो भी संभवतः उस ने कर ली)....अब इस तरह के घाव का इलाज होना चाहिए...अगर यह आज भी ये सब जानलेवा पदार्थ छोड़ दे तो भी कईं महीने लगेंगे इस चमड़ी को ठीक होने में। और बहुत बार तो इसे उतारना ही ज़रूरी होता है.......फिर इस टुकड़े की पैथोलॉजी लैब में जांच होगी..........यह कैंसर नहीं है यह तो लगभग निश्चित ही है...अभी यह पूर्वावस्था ही है।
अगर इस तरह की पूर्वावस्था का कुछ इलाज न किया जाए...और ऊपर से तंबाकू-गुटखा-पान निरंतर चालू रहे तो ऐसी पूर्वावस्था कब और कितने वर्षों में मुंह के कैंसर का रूप धारण कर लेगी, यह कहना बड़ा मुश्किल है। अभी चार िदन पहले ही एक ७५-८० वर्ष की बुज़ुर्ग महिला आई थी--अकेले ही आई थीं दांत दिखाने.....कह रही थीं कि मसूड़े थोड़े कटे कटे से लग रहे हैं.....मैंने देखा तो मुझे बेहद बुरा लगा था.......क्योंकि ऊपरी गाल के अंदरूनी हिस्से में पूरी तरह से विकसित कैंसर फैल चुका था.....मुझे उस दिन बहुत ही ज़्यादा दुःख हुआ था.....मैंने उस दिन तो उन्हें तो कुछ नहीं कहा लेकिन बेटे को साथ लाने को कहा और अपना फोन नंबर िदया.....बात हुई उस के बेटे से ...इलाज तो चल रहा है ........लेकिन....!!...... क्या लिखूं। मैंने कहा कि आपने आज से पान नहीं खाना, तो कहने लगीं कि बस सौंफ ही खाती हूं अब तो ......सामने ही शीशी थी उस के हाथ में......सौंफ में भी डली मिली हुई थी.....(यू पी में सुपारी को डली कहते हैं) .. मैंने समझाया कि सौंफ का मतलब सिर्फ़ सौंफ........डली मिलाने में तो वही बात है कि पानमसाला न खाया और इस तरह की सौंफ-डली खा ली।
मैं अब आज वाले ५० वर्ष की आयु वाले मरीज़ पर वापिस आता हूं..इस बात की तरफ़ आप ध्यान दें कि किस तरह से अपने मुंह में स्वयं झांकने से जब बंदा स्वयं कोई घाव या दाग आदि देखता है या उसे उसके मुंह के अंदर की तस्वीर दिखाई जाती है तो उस की ऐसे पदार्थों का त्याग करने की भावना प्रबल होती है......निःसंदेह यह बात तो पक्की है।
अपने मुंह में झांकना कितना आसान है.....गाल, होंठ, तालू, जुबान, जुबान के नीचे वाला हिस्सा.......शीशे के आगे खड़े होकर देखते रहना चाहिए.......ज़रूरी है यह मुंह का स्वयं-निरीक्षण करना.......कुछ भी असामान्य दिखने पर दंत चिकित्सक के परामर्श करिए.......और इन सब घातक पदार्थों से हमेशा दूर रहें।