मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

टीन- प्रेगनेंसी रोकने हेतु कुछ स्थायी उपाय

किशोरियों में प्रेगनेंसी मुद्दे पर आप कुछ पढ़ने जा रहे हैं ..तो आप भी यही लगता होगा कि यह पश्चिम का ही मुद्दा होगा। क्या मैं ठीक कह रहा हूं?

कल शाम जब मैंने दो न्यूज़-स्टोरी देखीं तो मुझे यही लगा कि अमेरिका ने तो ईमानदारी से सारे आंकड़े इक्ट्ठा तो कर लिए और उन्होंने अपने नागरिकों के जो ठीक समझा उस की सिफारिश भी कर दी लेकिन बाकी विश्व क्यों चुप है?. क्या वहां पर ऐसी कोई समस्या जिसे हम टीन प्रेगनेंसी (स्कूल जाने वाली किशोरावस्था के दौरान होने वाली प्रेगनेंसी).....कहते हैं, है ही नहीं,  लेकिन आंकड़े हैं कहां?

ना ही तो मैं किसी नैतिक पुलिस ग्रुप का मेंबर हूं और न ही बनना चाहता हूं ..क्योंकि इस तरह के मुद्दों पर मंथन करने के लिए एक बड़ी स्टेज की ज़रूरत है, यह मंच बहुत ही छोटा है...फिर भी जो कल पढ़ा उसे केवल शेयर कर के और बहुत से प्रश्न हवा में उछाल कर खिसक लूंगा...

तो इस न्यूज़-रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में किशोर युवक एवं युवतियां प्रेगनेंसी से बचने के लिए कन्डोम एवं गर्भ-निरोधक गोलियां पर भरोसे करते आ रहे हैं.......(आंकड़े आप स्वयं नीचे दिए गये दो लेखों कर क्लिक कर के देख सकते हैं...)

लेिकन अब अमेरिकी बाल रोग विशेषज्ञों की संस्था ने यह सिफ़ारिश कर दी है कि किशोरियों में प्रेगनेंसी रोकने के लिए उन में अगर लंबे समय तक चलने वाले गर्भनिरोधक उपाय फिट ही कर दिये जाएं तो टीनएज प्रेगनेंसी की दर में बहुत गिरावट आ सकती है.....वे लंबे समय तक चलने वाले जिन गर्भनिरोधक उपायों की बात कर रहे हैं, वे हैं इंट्रायूटरीन डिवाईस (IUD) और गर्भनिरोधक इंपाल्ट जिन का साइज एक दियासिलाई जितना होता है जिसे बाजू की चमड़ी के नीचे रख दिया जाता है ताकि वह निरंतर गर्भनिरोधक हार्मोन रिलीज़ करता रहे.....

Pediatricians Endorse IUDs, Implants for Teen Birth Control 
Free, Long-Acting Contraceptives May Greatly Reduce Teen Pregnancy Rate

बहुत से प्रश्न छोड़ कर जा रहा हूं, मैं भी मंथन करता हूं ..हो सके तो आप भी करिएगा...... इस पोस्ट को लिखते लिखते गुड्डी फिल्म का यह सुंदर गीत याद आ गया.......काफ़ी समय हो गया इसे सुने हुए.....





कुर्बानी पर कुर्बान ..भाग२

पिछली कुछ महीनों से एक और समस्या है कि मैं घर में आने वाली दो अखबारें --टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदी की हिन्दुस्तान--ढंग से नहीं पढ़ पाता। वही पुराना बहाना स्कूल कालेज के दिनों वाला कि पढ़ते ही नींद आने लगती है। लेकिन फिर भी स्नैप डील और फ्लिपकार्ट की सभी पेशकशें बेटे के मार्फ़त शाम तक काफ़ी हद तक याद हो जाती हैं......चाहे उन से कुछ लेना देना नहीं होता, बस ऐसे ही जिसे जुबानी जमा-खर्च कहते हैं ना, एक शुगल सा।

कल जब मैंने कुर्बानी पर कुर्बान का पहला लेख लिखा तो मुझे ईद के बारे में मेरे मन में उमड़े बहुत से प्रश्नों का सवाल मिल गया था।

आज सुबह जल्दी नींद खुल गई....होता है कभी कभी ऐसा भी। अब टीवी में मेरी रूचि कम हो गई है....जब से बच्चन और आमिर द्वारा केबीसी और जागते रहो के हर एपीसोड के लिए मेहनताना लेने की रकम का पता चला है, उस दिन से बिल्कुल भी रूचि रही नहीं.....बिग-बॉस वैसे ही पहली ही देखने की हिम्मत जुटा पाया था......उसे देख कर यही डर लगता है कि यार, कहीं घर में हम सारे ही ऐसे ही चलने और बतियाने ना लगें.....नज़रिया अपना अपना.......बहरहाल,  कल की टाइम्स ऑफ इंडिया पड़ी हुई थी। सोचा कि इसे भी पलट लूं........

जैसे ही मैं संपादकीय पन्ने पर पहुंचा तो दा स्पीकिंग ट्री के अंतर्गत एक लेख के शीर्षक पर नज़र पड़ गई......  Find your Ismail and Sacrifice it... ईद के विषय से संबंधित मेरे जो बचे खुचे सवाल थे, वे भी जैसे धोने के लिए ही यह सुंदर लेख मुझे आज सुबह सुबह दिख गया था....मैंने इसे पढ़ कर राहत की सांस ली, लेकिन यह मेरी राहत की सांस लेने से हुआ क्या, सोचने की बात है कुछ नहीं........वैसे भी मेरी राहत की सांस लेनी इतनी ज़रूरी कहां थी, ज़रूरी तो कुछ और था....मेरे जैसे बुद्दिजीवियों की बस इतनी कहानी..........है इतना फ़साना है इतनी कहानी.........

कल शाम को फेसबुक पर एक बहन की पोस्ट पढ़ी ......
"बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल,
जे नर बकरी खात हैं, ताको कौन हवाल" - कबीर।
सभी बकरियों व बकरों के स्वस्थ प्राकृतिक दीर्घजीवन की शुभकामनाएँ।


ताको कौन हवाल का मतलब नहीं पता था तो उन से ही पूछ लिया.... तुरंत जवाब मिल गया....
 "यानि वे किसके हवाले ? उनका क्या होगा ? उनका कौन मालिक ? वे किसके भरोसे ?"