आज के अखबार में एक खबर तो बेहद दुःखदायी दिखी कि तमिलनाडू के थिरूवल्लूर ज़िले में चार शिशु खसरे(मीज़ल्स) का इंजैक्शन लगवाने के बाद अचानक चल बसे। अब इस की जांच तो होगी....लेकिन इस जांच का फायदा तभी ही होगा अगर हम इन जांच-रिपोर्टों से कम से इतना तो सीख ही लें कि भविष्य में ऐसा हादसा फिर कभी भी न होने पाये। हम ज़रा उन चार परिवार वालों की हालत की कल्पना करें कि वे अपने हंसते-खेलते शिशु लेकर बड़े चाव से उन्हें खसरे से बचाव का टीका लगवाने जाते हैं और कुछ समय बाद ही कुछ भी शेष नहीं रहता। रही बात, उस हर परिवार को तीन-तीन लाख देने वाली बात.....जिस तरह से इस राशि के बारे में अखबारों में आ जाता है, मुझे बेहद ओछापन लगता है जैसे कि उन शोकग्रस्त परिवारों को मुंह बंद रखने का मुआवजा दिया जा रहा हो......कि देखो, अब जो गया सो गया, वह तो वापिस आने से रहा, लेकिन अब तुम लोग अपनी जुबान पर ताला लगाये रखने का यह मोल रख लो।.... खैर, अपना अपना नज़रिया है.....शायद इस काम का ढिंढोरा पिटवाना भी उन की मजबूरी रहती होगी.......क्योंकि यह एक अच्छी खासी पब्लिक-रिलेशन एक्सर-साइज़ भी तो है। खैर, इस बात को इधर ही समाप्त करते हैं क्योंकि मेरा तो इस तरह की मदद-वदद की बातें देख-सुन-पढ़ कर सिर दुःखता है। जिस मां की गोद ही उजड़ गई, उस की आखिर क्या मदद हो सकती है!!.
ध्यान रहे कि मीज़ल्स का टीका बच्चों को केवल एक ही बार 9महीने की उम्र पर लगाया जाता है और यह टीका उसे मीज़ल्स से 95प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करता है। सुनने में तो लगता है कि क्या है खसरा ही तो है.....बच्चों में अकसर हो ही जाता है और फिर ठीक भी हो जाता है। लेकिन ऐसी बात नहीं है....क्योंकि खसरा विकासशील देशों में हर साल लाखों बच्चों की जान ले लेता है। होता यूं है कि खसरा रोग से पैदा होने वाली जटिलतायों( कम्पलीकेशन्ज़).. जैसे कि डायरिया(दस्त रोग), निमोनिया, और एनसैफेलाइटिस ( दिमाग की सूजन)....की वजह से बहुत सी मौतें हो जाती हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चे तो इस के बहुत ज़्यादा शिकार हो जाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मीजल्ज़ का टीका तैयार होने के बाद तीन घंटे के बाद इस्तेमाल हो जाना चाहिये। तैयार करने से यहां मतलब है ....रिकंस्टीच्यूशन ....( Reconstitution)….इस का मतलब यह है कि मीजल्ज़ का टीका फ्रीज़-ड्राइड फार्म ( freeze-dried form) अर्थात् एक पावडर जैसे रूप में हमें मिलता है और इसे इस्तेमाल करने से पहले लिक्विड-फार्म में लाया जाता है। और एक बार जब यह लिक्विड-फार्म में आ जाये तो तीन-घंटे के अंदर अंदर इस का इस्तेमाल किया जाना लाज़मी है.....जो बच जाये उसे फैंकना होता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में आल-इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साईंस के कम्यूनिटी मैडीसन विभाग के एक प्रोफैसर का यह स्टैटमैंट भी दिया है कि ऐसी रिपोर्टें कभी नहीं आई कि मीज़ल्स के टीके लगने से बच्चों की मौत हो गई क्योंकि इंजैक्शन खराब था। लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह के इंजैक्शन जिन्हें रिकंस्टीच्यूट करने के बाद गर्म-वातावरण में अथवा सीधी धूप( exposed to heat or direct sunlight) में ऱखा जाता है.....इस तरह का इंजैक्शन लगने से शिशुओं में एनाफाईलैक्टिक शॉक ( एक तरह का वैसा ही रिएक्शन जो पैनेसिलिन टीके के तुरंत बाद कभी कभी हो जाता है) ...हो जाता है जिस से ह्दय काम करना बंद कर देता है और सांस लेने में दिक्कत हो जाती है।
रोग-प्रतिरक्षण के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले टीकों के बारे में इतना जानना भी बहुत ज़रूरी है कि हर स्टेज पर इन्हें एक खास तापमान ( 2 से 8 डिग्री-सैंटीग्रेड) मुहैया करवाया जाता है। हर स्टेज पर इस तापमान को कायम रखने के लिये जो कड़ी है , जो सुदृढ़ ढांचा विकसित है उसे कोल्ड-चेन कहा जाता है.....एक तरह से यह समझ लें कि यह कोल्ड-चेन किसी भी टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता की रीढ़ की हड्डी है......इस के साथ किसी भी स्टेज पर थोड़ा भी समझौता हुया नहीं कि यह सारा प्रोग्राम फेल हुया समझो। हमेशा से ही चिकित्सा विभाग के आगे यह चैलेंज रहा है कि इस कोल्ड-चेन को किसी भी तरह से कैसे टूटने से बचाया जाये.......क्योंकि जैसे ही यह कोल्ड-चेन टूटती है, टीके में खराबी ( contamination) के चांस बहुत बढ़ जाते हैं।
अब इस सारे एपीसोड की जांच तो होगी ही ....और यह भी पता लगाने की कोशिश की जायेगी कि क्या यह दुर्घटना कोल्ड-चेन में किसी किस्म की ब्रेक होने की वजह से हुई या इंजैक्शन के खराब ( contaminated) होने की वजह से चार शिशुओं ने अपनी जानें गंवा दीं।
जिस तरह से इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की कवरेज समाचार-पत्रों में आज मैंने देखी है उस से एक बार फिर मुझे यह लगा है कि अंग्रेज़ी प्रिंट मीडिया में इस तरह की कवरेज का स्तर बहुत ज़्यादा अच्छा है....इस रिपोर्ट ने पाठक को अच्छी तरह से समझाने की और उस के मन में उठ रहे कईं प्रश्नों का जवाब देने की अच्छी कोशिश की है। दा हिंदु अंग्रेज़ी अखबार ने तो पहले पेज़ पर यह रिपोर्ट छापने के साथ साथ इस दुर्घटना पर पहला सम्पादकीय लेख छाप कर सारे पाठकों का ध्यान इस तरह आकर्षित किया है। मैं उस सम्पादकीय लेख में से कुछ लाइनें यहां दे रहा हूं......काफी बातें इन लाइनों से ही स्पष्ट होती दिखती हैं..........
..... “ The involvement of the vaccine belonging to the same batch in different health centres seems to indicate problems with quality, which could have occurred at the point of manufacture, during transfer or storage. Laboratory investigations can determine whether the vaccine produced by the Human Biologicals Institute, Hyderabad, was contaminated, but the death of the infants is bound to shake public confidence in the immunization programme. The priority must now be to restore faith in the system in order to maintain wide vaccination coverage. The benefits of good quality vaccines for diseases such as measles, mumps, diphtheria, polio, and tetanus are universally acknowledged and heavily outweigh the very rare adverse reactions.
जाते जाते, हिंदी समाचार-पत्र की इस न्यूज़-रिपोर्ट पर भी एक नज़र मार ही लें......आप को भी ऐसा लगेगा कि जैसे किसी सरकारी प्रैस-विज्ञप्ति को पढ़ रहे हैं। शायद हिंदी मीडिया ने सिर्फ़ एक सरकारी फरमान के रूप में ही इतनी अहम खबर को छापना सही समझा होगा लेकिन इतनी भी क्या जल्दी कि खसरे की दवा के टीके की जगह इस अखबार ने तो खसरे की दवा को पीने वाली बतला दिया। बात छोटी सी है......कवरेज हिंदी अखबारों का ज़्यादा है....ऐसे में इस तरह की आधी-अधूरी खबर का असर दो-दिन बाद होने वाले पल्स-पोलियो रविवार पर भी पड़ सकता है कि नहीं ?....आप का क्या ख्याल है.......इसीलिये तो कहता हूं कि अब समय आ गया है कि हिंदी अखबारों को भी हैल्थ-कवरेज को ऊंचा उठाने के यत्न करने चाहिये......क्या है..बात केवल इतनी सी है कि किसी क्वालीफाइड डाक्टर से बेसिक बातें तो चैक करवाई ही जा सकती हैं........ताकि खसरे का टीका टीका ही रहे.....पीने वाली दवा तो ना बने।