शनिवार, 22 नवंबर 2025

....ट्रेन के ए.सी डिब्बे में उसने तो चूल्हा-चौका ही कर दिया शुरु

कुछ खबरें, कुछ वीडियो डरा देते हैं...बहुत ज़्यादा खौफ़ज़दा कर देते हैं ...जैसे आज सुबह जैसे ही मैंने अखबार उठाई टाईम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर एक खबर दिखी कि एक महिला की वीडियो वॉयरल हुई है जिसमें वह ट्रेन के ए.सी के डिब्बे में बिजली से चलने वाली केतली से नूडल्स तैयार कर रही है ...और यह भी लिखा है कि वह 15 लोगों के लिए चाय पानी का इंतज़ाम भी कर चुकी थी ...

दोस्तो, है कि नहीं यह एक डरावनी खबर....

टाइम्स आफ इंडिया मुंबई 22 नवंबर 2025 

मुझे 22-23 बरस पहले की एक घटना याद आ गई....बात 2002 या 2003 की है, केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा मुझे असम के जोरहाट में एक नवलेखक शिविर के लिए डेढ़ दो हफ्ते के लिए भेजा गया था....वापिस आने के लिए जोरहाट से गुवाहाटी तक ओवरनाईट यात्रा करने के बाद , सुबह यही कोई सात आठ बजे गुवाहाटी से राजधानी ट्रेन मिली....कुछ समय बाद एक स्टेशन आता है ...शायद न्यू-जलपाईगुड़ी था....यह एक बहुत अहम् स्टेशन है ....ट्रेन के अंदर बहुत से चीज़ें बेचने वाले आ गए....शायद वहां से कोई देश का बार्डर नज़दीक पड़ता है ...या पता नहीं चाईनीज़ सामान ही था ...लेकिन बहुत सी चीज़ें बिक रही थीं....मुझे भी एक रेडियो पसंद आ गया ...मैंने उन दिनों उसे 250 रुपए में खरीदा ...वह बिजली से चलने वाला था और सैलों से भी ...अभी सैल डाल कर एक फेरीवाला उसे चैक करवा ही रहा था कि ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें आने लगीं...

क्या हुआ....?

कुछ खास नहीं.....!!

एक चाय बेचने वाला जो अपनी अंगीठी के साथ अंदर एसी के डिब्बे में अपनी चाय बेच रहा था ...कहीं भीड़ भड़क्के में उस की अंगीठी थोड़ी टेढी़ हो गई और उस में से कुछ जलते हुए कोयले नीचे कोच की फ्लोर पर गिर गये ...ज़ाहिर है वह फ्लोर तो जलनी ही थी, उस जगह पर आग लग गई ...जिसे कपडे़ वपड़े की मदद से तुंरत बुझा दिया गया....

उस चाय वाले के लिए या कोच के स्टॉफ के लिए वह कोई बड़ी बात न थी...आम सी बात उन को लग रही थी ..क्योंकि कोच का फर्श लगभग एक फुट जलने के बाद भी वह एक मिनट के बाद चाय बेचने के लिए अगले कैबिन की तरफ़ चला गया....

मुझे....मुझे क्या, बुहत से लोगों को यह हादसा देख कर बहुत हैरानी हुई ...आखिर वह अंगीठी समेत चाय बेचने के लिए अंदर घुसा कैसे ....

खैर, ये सब बुद्धिजीवी लोगों के बेकार के सवाल.....जिन का काम ही है उठना और फिर बैठ जाना...। 

जहां तक मुझे ख्याल आ रहा है कुछ साल पहले भी किसी गाड़ी में भीषण आग लगी थी तो मीडिया में यही आया था कि कोई यात्री इसी तरह से फोन चार्ज करने वाली सॉकेट में पानी गर्म करने वाली केतली को लगा कर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन कर रहा था ....

इस तरह की ज़रूरी खबर को टाइम्स के पहले पन्ने पर जगह दी गई....यह इस पेपर के सामाजिक सरोकार को दर्शाता है ...

 
मुझे नही ं लगता कि यह पहली बार हुआ होगा....इतने तरह के गैजेस्टस की सिरदर्दी हम लोग साथ लेकर चलते हैं....किसे कितना करैंट चाहिए, किसे कितना...हमें न तो यह समझ है और न ही हम समझना चाहते हैं....हम जैसे टिकट खरीद कर रेलवे पर एहसान कर चुके हैं....सौ दो किलो का वज़नदार सामान और साथ में बिजली का इस तरह से दुरुप्रयोग ...

दुरुप्रयोग बडा़ छोटा शब्द है इस तरह के दुःस्साहस के लिए ....इस वीडियो में अंकल जी भी बड़े चाव से नूडल्स खा रहे हैं...रेलवे ढूंढ ही लेगी इन को ....लेकिन ऐसी हरकत से हज़ारों लोगों की जान को ख़तरे में डाल दिया ....तुम लोगों ने तो नूडल्स और चाय का मज़ा ले लिय़ा ........लेेकिन इस चक्कर में सोते-जागते, लेटे हुए, बतियाते  तो लोगों का काम स्वाहा हो सकता था ....

रेलवे ने वैसे ही सेवा में कोई कोर कसर न छोड़ रखी है ...अधिकतर ट्रेनों में अच्छी केटरिंग सर्विस है ....जो भी ज़रुरी चीज़ होती है मिल ही जाती है ..ऐसे में ट्रेन के डिब्बे में चूल्हा-चौका चलाने का क्या ख़याल भी कैसे आया....

यह खबर देखने के बाद मैं सोच नहीं पा रहा हूं कि इस तरह की हरकतें न हों, यह सुनिश्चित करना किस की जिम्मेदारी है ...ट्रेन की स्टॉफ की, या सब से ज़्यादा तो यात्री की है ...आज कल कोई इतना भी अनाड़ी नहीं है कि उसे पता न हो कि इस तरह की हरकत से चलती ट्रेन पलक झपकते ही आग की लपटों का रूप ले सकती है ....

सीधी सी बात है ...अगर रेलवे ने फोन चार्ज करने की एक बढ़िया सुविधा दी है तो उसे उसी काम के लिए इस्तेमाल करिए..मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या इस तरह के बिजली के प्वाईंट दूसरी तरह के बीसियों गैजेट्स की चार्जिंग करने के लिए उपर्युक्त हैं भी या उन को भी इसी तरह के प्वाईंट्स में चार्ज करने से आग लगने का ख़तरा तो रहता ही है ....मुझे यह भी याद आ रहा है कि किसी ट्रेन में मैंने इस तरह के स्टिकर भी देखे थे इन प्वाईंट्स के पास लगे हुए कि इस प्वाईंट में मोबाईल चार्ज के अलावा और कुछ चार्ज न करें ...केतली का भी लिखा हुआ था.....

रेलवे भी कितना कुछ सके.....कुछ तो यात्री भी जिम्मेदारी लें ....पढ़े लिखे हैं.....पढ़े लिखों की हरकतें अगर इस तरह की होंगी तो फिर कैसे चलेगी इतनी बड़ी रेल के ताने बाने की विराट व्यवस्था........। 


इस खबर ने तो मुझे मेरे कालेज के दिनों की सुपरहिट फिल्म और उस के सुपरहिट गानों की भी याद दिला दी ....दा बर्निंग ट्रेन.....मेरे लिए 1980 वाला वह बहुत से सुनहरे सपनों से लदा हुआ साल ....😀