बुधवार, 28 अप्रैल 2010

बेमौसमी महंगे फल और सब्जियां ----आखिर क्यों?

आज कल बाज़ार में बे-मौसमी महंगी सब्जियों एवं फलों की भरमार है। लेकिन पता नहीं क्यों इन का स्वाद ठीक सा नहीं लगता। अकसर देखता हूं, सुनता भी हूं कि लोगों में यह एक धारणा सी है कि सब्जियां-फल चाहे बेमौसमी हैं, लेकिन अगर मंहगे भाव में मिल भी रही हैं तो वे स्वास्थ्यवर्द्धक ही होंगी।

लेकिन यह सच नहीं है। मैं कहीं पढ़ रहा था कि जिस मौसम में जो सब्जियां एवं फल हमारे शरीर के लिये लाभदायक हैं और जिन की हमारे शूरीर को मौसम के अनुसार ज़रूरत होती है, प्रकृति हमारे लिये उस मौसम में वही सब्जियां एवं फल ही प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध करवाती है।

ठीक है, बिना मौसम के भी फुल गोभी, मटर, पालक .....और भी पता नहीं क्या क्या...सब कुछ ....मिल तो रहा है लेकिन इन सब्जियों को तैयार करने में और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिये एक तो ज़्यादा उर्वरक (फर्टिलाइज़र्स) इस्तेमाल किये जाते हैं और दूसरा इन को इन के लिये अजनबी कीटों आदि से बचाने के लिये कीटनाशकों का प्रयोग भी ज़्यादा ही करना पड़ता है। सीधी सी बात है कि ये सब हमारी सेहत के लिये ठीक नहीं है।

जब से मैंने यह तथ्य पढ़ा है तब से मैं बेमौसमी फलों एवं सब्जियों से दूर ही भागता हूं। बिना मौसम के फल भी कहां से आ रहे हैं---सब कोल्ड-स्टोरों की कृपा है। ऐसे में बड़े बड़े डिपार्टमैंटल स्टोरों से महंगे महंगे बेमौसमी फल खरीदने की क्या तुक है? हां, आज वैसे ज़माना कुछ ज़रूरत से ज़्यादा ही हाई-टैक हो गया है---- अकसर इन हाई-फाई जगहों पर हाई-क्लास के फलों पर नज़र पड़ जाती है ---सेब के एक एक नग को बड़े करीने से सजाया हुआ, हरेक पर एक स्टिकर भी लगा हुआ है और दाम ----चौंकिये नहीं ---केवल 190 रूपये किलो। और भी तरह तरह के " विलायती फल" जिन्हें मैं कईं बार पहली बात देखता तो हू लेकिन खरीदता कभी नहीं।

और तरह तरह की अपने यहां बिकने वाली सब्जियों-फलों की बात हो रही थी-- इन के जो भिन्न भिन्न रंग है वे भी हमें नाना प्रकार के तत्व उपलब्ध करवाती हैं--इसलिये हर तरह की सब्जी और फल बदल बदल कर खानी चाहिये क्योंकि जो तत्व एक सब्जी में अथवा फल में मिलते हैं, वे दूसरे में नहीं मिलते।

मैं लगभग सभी तरह की सब्जियां खा लेता हूं --विशेषकर जो यहां उत्तर भारत में मिलती हैं, लेकिन एक बात का मलाल है कि मुझे करेला खाना कभी अच्छा नहीं लगता। इस का कारण यह है कि मैं बचपन में भी करेले को हमेशा नापसंद ही करता था। यह मैंने इसलिये लिखा है कि बचपन में बच्चों को सभी तरह की सब्जियां एवं फल खाने की आदत डालना कितना ज़रूरी है, वरना वे सारी उम्र चाहते हुये भी बड़े होने पर उन सब्जियों को खाने की आदत डाल ही नहीं पाते।

वैसे भी अगर कुछ सब्जियां ही खाईं जाएं तो शरीर में कईं तत्वों की कमी भी हो सकती है क्योंकि संतुलित आहार के लिये तो भिन्न भिन्न दालें, सब्जियां एवं फल खाने होंगे।

आज सुबह मैं बीबीसी न्यूज़ की वेबसाइट पर एक अच्छी रिपोर्ट पढ़ रहा था जिस का निष्कर्ष भी यही निकलता है कि ज़रूरी नहीं कि महंगी या स्टीरियोटाइप्ड् वस्तुओं में ,ही स्वास्थ्यवर्धक तत्व हैं ----इस लेख में बहुत सी उदाहरणें दी गई हैं ---जैसे कि शकरमंदी में गाजर की तुलना में 15 गुणा और कुछ अन्य पपीते में संतरे की तुलना में बहुत ज़्यादा होते हैं।

बीबीसी न्यूज़ की साइट पर छपे इस लेख में भी इसी बात को रेखांकित किया गया है कि संतुलित आहार के लिये सभी तत्व एक तरह का ही खाना खाने से नहीं मिल पाते ----बदल बदल कर खाने की और सोच समझ कर खाने की सलाह हमें हर जगह दी जाती है।

सारे विश्व में इस बात की चर्चा है कि अगर हमें बहुत सी बीमारियों से अपना बचाव करना है तो हमें दिन में पांच बार तो सब्जियों-फलों की "खुराक" लेनी ही होगी। पांच बार कैसे --- उदाहरण के तौर पर नाश्ते के साथ अगर एक केला लिया, दोपहर में दाल-सब्जी के साथ सलाद (विशेषकर खीरा, ककड़ी, टमाटर, पत्ता गोभी, चकुंदर आदि ), कोई फल ले लिया और शाम को भी खाने के साथ कोई सलाद, फल ले लिया तो बस हो गया लेकिन इतना अवश्य अब हमारे ध्यान में रहना चाहिये कि अकाल मृत्यु के चार कारणों में कम सब्जियों-फलों का सेवन करना भी शामिल है ---अन्य तीन कारण हैं --धूम्रपान, मदिरापान एवं शारिरिक श्रम से कतराना।