अच्छे खाते-पीते घरों के बच्चों द्वारा खाए जाने वाली उन की मनपसंद विभिन्न वस्तुओं की कैलोरी वैल्यू कोजोड़-जोड़ कर उन के मम्मी-डैडी अकसर थोड़ा सुकून हासिल कर लेते हैं कि चलो, लाडले ने कुछ खायातो......लेकिन अफसोस तो इसी बात का ही है कि आज कल अधिकांश बच्चों में यह मांग अधिकतर चाकलेट, तरहतरह की कोल्ड-ड्रिंक्स, फलों के रस के नाम पर मिल रहे बढ़िया पैकिंग वाले खट्टे-मीठे जूसों,नूडल्स,चिप्स, बिस्कुट, बर्गर, भुजिया, केक-पेस्ट्री आदि जंक-फू़ड्स से ही पूरी होने लगी है।
दोस्तो, बात जो सोचने वाली है वह यह है कि अगर केवल शरीर की कैलोरी मांग का ख्याल रखना ही इतना जरूरीहोता तो वह तो कोई भी 10-12 वर्ष की आयु का बच्चा दिन में दो चाकलेट और दो पैकेट बिस्कुट खा कर भी तो पूरीकर सकता है, लेकिन ऐसे में कहां से आएगी पौष्टिकता....ऐसा सब कुछ खाने पर कहां से आयेगी इन बच्चों केचेहरों पर रौनक, शरीर कैसे पल्लवित होगा ( हां, फूल कर कुप्पा जरूर हो जाएगा), कैसे बढ़ेगास्टेमिना-चुस्तीलापना-फुर्तीलापन। यह भी एक तरह का कुपोषण ही है। ( This is another type of malnutrition only which is seen in these children). एक बात मेरे ध्यान में आ रही है चाहे पोषण ज्यादा होऔर चाहे कम हो---है तो दोनों ही कुपोषण। यही कारण है कि हम डाक्टर लोग बार बार संतुलित आहार लेने की हीबात दोहराते रहते हैं।
संतुलित आहार में सारे आवश्यक पौष्टिक तत्व उचित मात्रा और अनुपात में होते हैं। संतुलित आहार में हमें दोप्रकार के पौष्टिक तत्वों का ध्यान रखना चाहिए—एक तो वे तत्व हैं जो ऊर्जा देते हैं और दूसरे वे हैं जो ऊर्जा नहींदेते हैं, बल्कि कुछ और काम करते हैं। हम अभी इन दोनों तत्वों के बारे में बात करते हैं।
ऊर्जा देने वाले तत्व तीन हैं---कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन। इन तीनों को मिला कर हमारे शरीर को पर्याप्त ऊर्जामिलनी चाहिए। हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट अन्य पौष्टिक तत्वों के साथ अनाज और दालों के रूप में हमें प्राप्तहोता है। आलू और केला भी इस के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। कार्बोहाइड्रेट शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं और यही इनकामुख्य कार्य है। प्रोटीन भोजन के नाइट्रोजन-युक्त तत्व हैं।
उच्च श्रेणी का प्रोटीन प्राप्त करने के लिए मांस खाना आवश्यक नहीं है। शाकाहारी लोग इसे दूध और दही से प्राप्तकर सकते हैं और सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि अनाज और दालों के मिश्रण से भी उच्च श्रेणी का प्रोटीन मिलसकता है। अनाज (गेहूं, चावल,बाजरा, ज्वार आदि) हमारा प्रमुख भोजन है और दालें तो इस का एक महत्वपूर्णअंग है।
मजे की बात तो यह है कि यह तथ्य प्राचीन सभ्यताओं ने संभवतः अनुभव से जान लिया था। अपने देश के उत्तरी भागों में दाल-रोटी, दक्षिणी भागों में सांभर-चावल, चीन में सोयाबीन और चावल और दक्षिण अमेरिका में मकई और लोबिया का मिश्रण आदिकाल से प्रचलित है।
घी और तेल वसा के स्रोत हैं—उनका प्रयोग अनिवार्य नहीं है। शरीर को वसा की जितनी न्यूनतम मात्रा चाहिए, उतनी वसा तो अनाज और दालों में भी होती है। यदि हम आवश्यकता से अधिक ऊर्जा लेंगे ---वह कार्बोहाइड्रेट केरूप में हो या प्रोटीन के रूप में ...वह शरीर में वसा के रूप में इकट्ठी हो जाती है।
अब बात करते हैं उन तत्वों की जो ऊर्जा नहीं देते अर्थात् अपाच्य तत्व, विटामिन, खनिज तत्व और जल जोसंतुलित आहार का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। अपाच्य तत्वों का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत साबुत अनाज औरदालें हैं। मोटे आटे में और जिस आटे से चोकर न निकाला गया हो, सेला चावल और साबुत दालों में ये अपाच्य तत्वअधिक मिलते हैं। अपाच्य तत्व आंतों में पहुंचकर पानी को चूस लेते हैं और मल को नर्म करते हैं। अपाच्य होतेहुए भी इन का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव है।अनाज, दालें और हरी सब्जियां मिलकर हमें ऊर्जा प्रदान करने वालेऔर ऊर्जा न प्रदान करने वाले, दोनों ही प्रकार के तत्व पर्याप्त मात्रा में देते हैं।
विटामिन भोजन में बहुत थोड़ी मात्रा में होते हैं। हमें उनकी आवश्यकता भी थोड़ी ही मात्रा में होती है, परंतु इस कामहत्व बहुत बड़ा है। विटामिन हमें चाहे ऊर्जा नहीं देते परंतु ये हमारे शरीर को दूसरे खाध्य तत्वों- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा को इस्तेमाल करने में सहायता करते हैं।
खनिज पदार्थों की आवश्यकता, विटामनों की तरह,बहुत कम होती है और ये भी ऊर्जा नहीं देते। लेकिन शरीर मेंकईँ प्रकार की अहम भूमिकाएं इन के द्वारा निभाई जाती हैं जैसे कि लोह (iron) रक्त की लाल कोशिकाएं बनाने केलिए आवश्यक है, कैल्शियम दांतों और हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए, आयोडीन थाइराइड ग्लैंड के ठीक ठाककाम करने के लिए आवश्यक है।
विटामिन और खनिज तत्व पर्याप्त मात्रा में पाने के लिए हरी सब्जियां और फल लेना बहुत ज़रूरी है। यही बच्चों केआहार की सबसे बड़ी कमी है कि वे सब्जियां एक तो वैसे ही बहुत कम खाते हैं और ऊपर से हम सब्जियों कोपकाते समय उनके कुछ विटामिन भी नष्ट कर देते हैं ।
फलों और सब्जियों में मुख्य अंतर यह है कि फलों को कच्चा ही खाया जाता है- इसलिए उन के विटामिनों औरखनिज तत्व नष्ट नहीं होते। इस दृष्टि से तो कच्ची खाई जाने वाली सब्जियां जैसे कि गाजर, टमाटर, खीरा, ककड़ी, मूली इत्यादि फलों के समान ही हैं।
फलों के गुण उनके विटामिन और खनिज तत्वों पर निर्भऱ करते हैं। प्रायः फलों के गुणों और उन के मूल्य में कोईसंबंध नहीं होता, इसलिए महंगे फल स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक नहीं हैं। यदि सस्ते फल और कच्ची हरीसब्जियां पर्याप्त मात्रा में ली जाएं तो हमें पर्याप्त विटामिन और खनिज तत्व मिल जाते हैं।
बात बहुत लंबी हो गई है...लंबी ही नहीं..बहुत लंबी हो गई ...लेकिन क्या करें पाठ ही कुछ ऐसा था जो हम दूसरीकक्षा से आजतक पढ़ते चले आ रहे हैं लेकिन इस से संबंध केवल पढ़ने तक ही रखते हैं, गुढ़ते नहीं हैं। दोस्तो, please don’t mind….I am also sailing in the same boat…and sometimes take a lot of liberty with junk food……लेकिन मुझे इस समय मेरे गुरूजी परम पूज्यनीय ऋषि प्रभाकर जी की बात याद आ गई कि तुमजितनी बार किसी दूसरे को कोई बात कहते हो उतनी बार तुम स्वयं अपने आप को भी वह बात कह रहे होते हो। इसलिए आज से मैं स्वयं भी एक बार फिर इन खाने-पीने की बातों का और भी ज्यादा ध्यान रखूंगा।
मुख्य बिंदु यही है कि प्रकृति हमें भोजन जिस रूप में देती है न वही रूप उत्तम होता है। आधुनिकता के नाम पर हमचाहे जितनी भी लंबी अंधाधुंध दौड़ कर हांफ लें, फास्टफूड और तरह तरह के जंक फूड के फ़ज़लो-करम से शरीरपर जगह जगह जमीं चर्बी कम करने के लिए किसी बहुत बड़े हाई-फाई स्लिमिंग सैंटर में अंग्रेज़ी कसरत कर रहेहोंगे तो दूर विविध भारती पर अपने रेडियोनामा वाले यूसूफ भाई द्वारा चलाया गया गाना हमें चिढ़ा रहा होगा.....
दाल रोटी खाओ-----प्रभु के गुण गाओ।
Really, friends,it is same simple as that….but we are hell bent on making it complex by doing all sorts of things against Mother Nature…….अभी भी सुधर जाएं...अभी भी वक्त है......Tomorrow it may be too late !!!
Good luck, friends, take care !!