आज सुबह से घर में ही बैठा हुया हूं....पता नहीं क्रियएटिव ज्यूस कुछ ज़्यादा बह रहे हैं...पहले तो इस ब्लाग का यह टेंपलेट बनाने के लिये एक स्लेट पर इस का शीर्षक लिखा....लेकिन फिर ध्यान आया कि इंक-ब्लागिंग की तो बात हो गई...तो चलिये आज मूल रूप से कलम चिट्ठाकारी का ध्यान कर के कुछ लिखा जाये। बस, यह तुच्छ सा प्रयास है। अपने उन महान मास्टरों के नाम जिन्होंने ऐसा लिखने की ट्रेनिंग दी....सब कुछ उन्हीं महान आत्माओं की ही देन है, दोस्तो। अपना तो बस यही है कि अब बड़े होने की वजह से दिमाग चलाना आ गया है, और कुछ नहीं, फ्रैंकली स्पीकिंग !!
जब मैं यह एजवेंचर कर रहा था तो मेरा छठी कक्षा में पढ़ रहा बेटा बहुत रोमांचित हो रहा था....उस ने यह रोशनाई, यह दवात, यह कलम आज पहली बार देखी थी। उस ने भी लिखने की थोड़ी ट्राई की तो है। बस, और क्या लिखूं....कुछ खास नहीं है। बस, उन दिनों की तरफ ही ध्यान जा रहा है जब तख्ती के ऊपर तो इस कलम से लिखना ही पड़ता था...और रोज़ाना नोटबुक पर सुलेख का एक पन्ना भी इसी कलम से ही लिखना होता था...लेकिन समस्या तब एक ही लगती थी कि झटपट लिख कर भी निजात कहां मिलती थी.....जब तक सूखे नहीं कापी को बंद भी कहां कर सकते थे।
बच्चों को अकसर कहता हूं कि उन दिनों की हुई मेहनत रूपी फसल के ही फल आज तक चख रहे हैं। वैसे आप का इस कलम चिट्ठाकारी के बारे में क्या ख्याल है, लिखियेगा। अच्छा लगेगा।