मैसेज पर पूरा कंट्रोल ....
मैं कईं बार सोचता हूं कि आज के दौर में हम लोगों के पास मैसेज पर पूरे का पूरा कंट्रोल है...सोशल मीडिया पर या यूं कह लें वॉटसएप पर कोई पोस्ट दिखी...हमें लगता है कि उस के ऊपर कुछ तो उसी वक्त टिप्पणी लिखना बनता है ...और हम लोग दस मिनट लगा कर सोच समझ कर कुछ लिख भी लेते हैं, लेकिन पूरा लिखने के बाद ख़्याल आता है कि यार, यह तो एक पंगा लेने वाली बात हो जाएगी...
जिस वाट्सएप ग्रुप के मैंबरों के आगे बंदे को हीरो बनने की तमन्ना होती है, उन में से ज़्यादातर का ऑफलाइन तो क्या ऑनलाइन भी हमारे साथ कोई लिंक नहीं होता...ऐसे में कोई क्या दिल से निकला कोई कमैंट लिखे...हम किसी भी ग्रुप के सदस्यों से अच्छे से वाकिफ़ भी नहीं होते ...उतना ही होते हैं अकसर जितना उन की डी.पी से वे हमें दिखाई पड़ते हैं...ऐसे में किसी भी पोस्ट पर जान मार कर कमेैंट लिखना ही बिलकुल बेवकूफ़ी सी लगती है..क्योंकि किसी ने कोई रिस्पांस नहीं देना होता...जिन लोगों से अपनी कामकाजी रिश्ते हैं उन की तो बात ही क्या करें, सब अपने आप में मस्त होते हैं, बहुत अच्छी बात है...लेकिन स्कूल के एक ग्रुप की मैं मिसाल देता हूं ...हम लोग जो 1973 से 1978 तक पांचवी से दसवीं कक्षा तक ...और जिन में कुछ हैं जो 1980 तक यानि... प्री-मैडीकल तक साथ थे, हमारा 30-35 लड़कों का एक वाट्सएप ग्रुप है, उस ग्रुप से जुड़ना बहुत अच्छा लगता है .....लेकिन उस में भी कुछ रब के बंदे ऐसे हैं जो सब कुछ देखते हैं, पढ़ते हैं ...लेकिन कभी भी कुछ नहीं बोलते...जैसे कसम खा रखी हो कुछ न कहने की..
हां, तो अपनी बात हो रही थी किसी वाट्सएप पोस्ट पर कोई रिमार्क्स लिखने की ...मेरे साथ कितनी बार ऐसा हुआ है कि मैं भावावेश में (पंजाबी में कहें तो गर्मी खा के, तैश च आ के ..) कुछ लिख तो देता हूं ...फिर उसे फट्टी की तरह पोच देता हूं ...बचपन में फट्टी पोचने में या स्लेट साफ करने में कुछ तो मेहनत लगती थी..लेकिन यहां तो उतनी भी नहीं लगती....और हमने मैसेज भिजवाने से पहले ही पोंछ देिया। कईं बार भिजवाने के तुरंत बाद - एक दो मिनट में ही यह महसूस होता है कि नहीं, इस मैसेज या कमैंट को ग्रुप में या वन-टू-वन चैट में भी पोस्ट करना ठीक नहीं....ठीक है जनाब जैसा आप कहें, दिल से आवाज़ आती है ...और अगर ग्रुप में पोस्ट किया है तो उसे सब के लिए डिलीट कर देने से पहले बस यह थोड़ा सा देख लिया जाता है कि कितने लोगों ने और किस किस ने उसे देख लिया है ...चलिए, कोई बात नहीं, देख लिया तो देख लिया...हम ने कौन सा कोई गुनाह कर दिया है। और फिर उसे डिलीट कर दिया..। लेकिन कभी कभी बंदा इसी ऊहापोह में रहता है कि मैसेज डिलीट करूं या रहने दूं ...इसी चक्कर में जब तक वह अपना मन बनाता है डिलीट करने के लिए ..तब तक वाट्सएप की उसे डिलीट करने की टाइम-लिमिट ही ख़त्म हो चुकी होती है ...बस, फिर उसे मन ममोस कर बैठना पड़ता है और दिल को तसल्ली देनी पड़ती है कि कोई बात नहीं, एक कमैटं ही तो है...😎
लिखते लिखते उस एक बहुत मशहूर गीत का भी ख़्याल आ गया है...अभी सुनवाऊंगा भी आप को ...घबराइए नहीं, गा कर नहीं, यू-टयूब की मदद लेकर ...मुझे तो लगता है कि हम लोग जहां ज़रूरत नहीं होती, वहां बोल देते हैं कुछ भी ...कैसे भी ...लेकिन जहां ज़रूरत होती, बहुत ज़रूरत होती है, वहां मौन साध लेते हैं....जैसे मुंह में ज़ुबान ही न हो....क्योंकि हमें लगता है कि यह पंगा लेने वाली बात हो जाएगी...आदमी वैसे ही घिसते घिसते पहले ही कईं तरह पंगे सुलटा कर दुनिया को समझने लगता है कि कोई किसी के साथ नहीं है, सब की अपनी अपनी जंग है ....जो ज़्यादा मुंह खोलता है, वही सिंगल-ऑउट हो जाता है, यही ज़माने का चलन रहा है...वही आस पास के बीस-तीस लोगों की आंखों में किरकरी की तरह चुभने लगता है .......ब्लॉगिंग की बात अलग है, आप अपनी डॉयरी में लिख रहे हैं, जो मन की मौज हो, लिखते रहिए...आप किसी को कुछ नहीं कह रहे, किसी सोए हुए शेर को जगा नहीं रहे ....बस, अपने मन की बातें वेब-लॉग (ब्लॉग) में दर्ज कर रहे हैं....करते रहिए...कहीं टिप्पणी नहीं भी करनी, बहुत बड़े मुद्दे पर तो न करिए...मस्ती से गीत सुनिए..
पंजाबी लेखक पाश की मशहूर कविता ... |