रविवार, 13 जनवरी 2008

हैल्थ-न्यूज़ अपडेट- II

HIV Test होने से करोड़ों लोगों को रिस्क
यह समस्या हमारे देश में ही नहीं, अमेरिका में भी हैअभी तक अमेरिका की एक-तिहाई जनसंख्या ने हीएचआईव्ही टैस्ट करवाया हैयहां तक कि असुरक्षित संभोग करने वाले एवं नशे के लिए सूईंयों का इस्तेमालकरने वाले लोगों में से भी केवल एक चौथाई लोगों पर यह टैस्ट किया गया हैइसी वजह के कारण ही इसइंफैक्शन के फैलने को रोकना बेहद मुश्किल जान पड़ रहा है
चिकित्सा विशेषज्ञों का यही मानना है कि HIV testing की सुविधाओं को और भी ज्यादा व्यापक बनाना होगाऔर इसे सामान्य हैल्थ चैक-अप का एक हिस्सा ही बनाना होगा
अमेरिका के यू.एस सैंटर फार डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार अमेरिका में 11लाख लोग HIV infection सेग्रस्त हैं जिनमें से 25प्रतिशत तो यह जानते भी नहीं हैं कि उन में वायरस हैयही 25% लोग आधी से ज्यादा नईइंफैक्शन फैला रहे हैं क्योंकि ये बचाव के सुरक्षात्मक तरीके नहीं अपनाते
मलेरिया से बचाव का टीका----
मलेरिया के टीके पर हो रही शुरूआती रिसर्च से काफी उत्साहवर्द्धक परिणाम मिल रहे हैंवैज्ञानिकों के अनुसारइस से अफ्रीकी शिशुओं में मलेरिया होने के रिस्क में 65प्रतिशत कमी आईइसी टीम ने यह भी पाया कि मलेरियाका टीका सुरक्षित हैइससे पहले हुए एक अध्ययन के अनुसार 1से 4वर्ष के बच्चों में इस टीके से नये मलेरियासंक्रमण का रिस्क 45% तक घट जाता हैइस टीके पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने इस टीके से उत्पन्नऐंटीबाडीज़(रोग प्रतिऱोधक गुण) के कारण मलेरिया इंफैक्शन के कम होते रिस्क को सिद्ध किया है
उच्च रक्त-चाप का कंट्रोल भी टीके से-----
क्या आश्चर्यजनक नहीं लगता कि उच्च रक्त-चाप को कंट्रोल करने के लिए डाक्टर केवल लगवाने का नुस्खा हीथमा देंलेकिन अमेरिकन हार्ट एसोशिएशन के बैज्ञानिकों को एक ऐसे ही टीके के परीक्षण से अच्छे परिणाम मिलेहैंइन्हें उम्मीद है कि उम्र भर तक उच्च रक्तचाप के कंट्रोल के लिए बस चंद टीके ही पर्याप्त होंगे
यह नया टीका शरीर में एंजियोटैंसन-II (angiotensin II)नामक रसायन की उत्पति को रोकता हैऔर इसरसायन की वजह से ही रक्तचाप बढ़ता है क्योंकि यह एंजियोटैंसन हमारी धमनियों एवं शिराओं (blood vessels) में सिकुड़न पैदा करता हैआजकल बाज़ार में बी पी के कंट्रोल के लिए उपलब्ध बहुत सी दवाईयां भी इसीएंजियोटैंसन- II को ही अपना निशाना बनाती हैंइस टीके पर अभी और भी काम होना बाकी है
दोस्तो, यह बीपी को टीके से कंट्रोल करने वाली बात लिखते लिखते मैं तो यही सोच रहा हूं कि आखिर हमारी यहकुदरत से आगे निकल जाने की दौड़ कहां तक चलेगी.....क्या हम वास्तव में उस से आगे निकल जाएंगे ?----- असंभव !!.............Mother Nature is so full of mysteries ……..लेकिन फिर भी कुछ नया सोचना, कुछ नयाकरना, कुछ नये नये सपने देखना, हवाई किले बनाना....यही तो ज़िंदगी है.......हमारी लाइफ इसी के इर्द-गिर्द हीघूमती है

PS……….I trust I have told my fellow bloggers that my teenage son is behind my starting these blogs…..he told me that dad, go ahead, you can now write in Hindi on the net…….I was a bit skeptical about it….but he insisted and I took the plunge. But, now I want to tell you that he is annoyed with me ----simply because of the fact that I am so much time to this blog posts. He quite often laughingly says…….पापा, मैं ते बडा़ पछताना वां कि ओह केहड़ी घड़ी सी जदों मैं तुहानूं इस हिंदीलिखन बारे दस दित्ता.......( पापा, मैं तो सचमुच पछता रहा हूं कि वह कौन सी घड़ी थी जिस समय मैंने आप कोइस हिंदीविंदी लिखने के बारे में बतला दिया.....मैंने तो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है) ...........उस के ऐसेकहने के पीछे छुपे कारण को तो, दोस्तो, आप समझ ही चुके होंगे.....यही कि अब उसे नेट पर बैठने के लिए समय़कम मिलता है ....क्योंकि बापू ज्यादा टैक-सेवी हो गया हैआप ही थोड़ा समझाइए उसे कि यह तो उस के लिएवैसी ही blessing in disguise है क्योंकि प्लस-टू की बोर्ड परीक्षा के लिए ब्लागिंग सिलेबस में है ही नहीं
मैंने कुछ बोर करना तो नहीं शुरू कर दिया.....अच्छा दोस्तो, फिर मिलते हैं....हैपी लोहड़ी......अभी बाहर सेबार-बार आवाज़े रही हैं कि अब बाहर भी आओ, लोहड़ी जलानी है...................लेकिन ब्लागिये भी ठहरे पक्केगपोड़ी, एक बार की-पैड पर हाथ थिरकने लगे कि बस ठहरने का नाम ही नहीं लेते..........उस प्रभु से यही प्रार्थना हैकि सब ब्लागियों के हाथ यूं ही निरंतर चलते रहें ताकि वे सब मिल कर ज्ञान की अलख जगाते रहें....। .


सर्दी लग जाने पर क्या करें ?

सर्दी लग जाने पर क्या करें ?

दोस्तो, इस मौसम में तो लगता है हर कोई ठंड लग जाने से हुई खांसी जुकाम से परेशान है। शीत लहर अपने पूरे यौवन पर है। इस से बचने एवं साधारण उपचार पर चलिए थोड़ा प्रकाश डालते हैं..........

  • · इस मौसम में तो लोग खांसी-जुकाम से परेशान हो जाते हैं।

ठंड के मौसम में वैसे भी हम सब की इम्यूनिटी (रोग से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता) कम होती है। ऊपर से इन तकलीफों से संबंधित विषाणु (विशेषकर वायरस) खूब तेज़ी से फलते-फूलते हैं। ज्यादा लोगों को पास पास एक ही जगह पर रहने से अथवा एकत्रित होने से खांसी एवं छींकों के साथ निकलने वाले वायरस (ड्रापलैट इंफैक्शन) एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को जल्दी ही अपनी चपेट में ले लेते हैं।

  • · अब प्रश्न यही उठता है कि इस से बचें कैसे....क्या कुछ विशेष खाना चाहिए ..

इस से बचे रहने का मूलमंत्र तो यही है कि आप पर्याप्त एवं उपर्युक्त कपड़े पहन कर ठंडी से बचें। ऐसे कोई विशेष खाध्य पदार्थ नहीं हैं जिससे आप इस से बच सकें। आप को तो केवल शरीर की इम्यूनिटि बढ़ाने के लिए सीधा-सादा, संतुलित आहार लेना चाहिए--- इस से तरह तरह की दालों, साग, सब्जियों, मौसमी फलों , आंवले इत्यादि का प्रचुर मात्रा में सेवन आवश्यक है।

  • · लोग अकसर इन तकलीफों में स्वयं ही एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी शुरू कर देते हैं.....क्या यह ठीक है ??

सामान्यतयः इन मौसमी छोटी मोटी तकलीफों में ऐंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। अगर यह खांसी –जुकाम बिगड़ जाए तो भी चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही दवाईया लें।

  • · इस अवस्था में पहले तो लोग घरेलु नुस्खों से ही काम चला लिया करते थे और वे स्वस्थ भी हो जाया करते थे।

ये घरेलु नुस्खे आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले हुया करते थे। इस में मुलहट्ठी चूसना, चाय में एक चुटकी नमक डाल कर पीना, नींबू और शहद का इस्तेमाल, भाप लेना, नमक वाले गर्म पानी से गरारे करना शामिल हैं। ध्यान रहे कि भाप लेते समय पानी में कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं है।

  • · घरेलु नुस्खों के साथ-साथ और क्या करें ?

हां,हां, यह बहुत जरूरी है कि रोगी को उस के स्वाद एवं उपलब्धता के अनुसार खूब पीने वाले पदार्थ देते रहें, मरीज पर्याप्त आराम भी लें। बुखार एवं बदन टूटने के लिए दर्द निवारक टेबलेट ले लें।

  • · नन्हे-मुन्ने शिशुओं का नाक को अकसर इतना बंद हो जाता है कि वे मां का दूध तक नहीं पी पाते ...

ऐसा होने पर यह करें कि एक गिलास पानी में एक चम्मच नमक डाल कर उबाल लें। फिर उसे ठंडा होने दें। बस हो गई तैयार आप के शिशु के नाक में डालने की दवा। आवश्यकतानुसार इस की 3-4 बूंदें शिशु के नाक में डालते रहें जिस से उस के नाक में जमा हुया रेशा ( dried-up secretions) नरम होकर छींक के साथ बाहर आ जाएगा और शिशु का नाक खुल जाएगा। वैसे तो इस तरह की नाक में डालने की बूंदें (सेलाइन नेज़ल ड्राप्स) आप को कैमिस्ट की दुकान से भी आसानी से मिल सकती हैं।

  • · कईं बार जब जुकाम से पीड़ित मरीज़ अपनी नाक साफ करता है तो खून निकल आता है जिससे वह बंदा बहुत डर जाता है, ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए ...

ज्यादा जुकाम होने की वजह से भी सामान्यतयः नाक को साफ करते समय दो-चार बूंदें रक्त की निकल सकती हैं। लेकिन ऐसी अवस्था में किसी ईएऩटी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श कर ही लेना चाहिए।

  • · ऐसा कौन सी अवस्थाएं हैं जिन में कान-नाक-गला विशेषज्ञ से संपर्क कर लेना चाहिए...

खांसी जुकाम से पीड़ित मरीज को अगर कान में दर्द है, सांस लेने में कठिनाई हो रही है, गले में इतन दर्द है कि थूक भी नहीं निगला जा रहा, गले अथवा नाक से खून निकलने लगे,आवाज़ बैठ जाए, खांसी की आवाज़ भी अगर बदली सी लगे, खांसी-जुकाम से आप को तंग होते हुए अगर सात दिन से ज्यादा हो जाये अथवा यह तकलीफ़ आप को बार-बार होने लगे------इन सब अवस्थाओं में ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिलें।

  • · लोग अकसर थोड़ी बहुत तकलीफ होने पर ही नाक में डालने वाली दवाईयों तथा खांसी की पीने वीली शीशीयां इस्तेमाल करनी शुरू कर देते हैं......

नाक में डालने वाली दवाईयों तथा नाक खोलने के लिए उपयोग किए जाने वाले इंहेलर का भी चिकित्सक की सलाह के बिना पांच दिन से ज्यादा उपयोग न करें। इन को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से और भी ज्यादा जुकाम होने का डर बना रहता है। रही बात खांसी की शीशीयों की, बाज़ार में उपलब्ध ज्यादातर खांसी की इन दवाईयों का इस अवस्था में कोई उपयोग है ही नहीं।

  • · कान में दर्द तो आम तौर पर सभी को कभी कभार हो ही जाता है न......इस में तो कोई खास बात नहीं है न ?

कान में दर्द किसी सामान्य कारण (जैसे मैल वगैरह) से है या कान के भीतरी भागों में इंफैक्शन जैसी किसी सीरियस वजह से है, इस का पता ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिल कर लगाना बहुत ज़रूरी है। विशेषकर पांच साल से छोटे बच्चों में तो इस का विशेष ध्यान रखें क्योंकि ऐसी इंफैक्शन कान के परदे में 24 से 48 घंटों के अंदर ही सुराख कर सकती है।

सर्दी लग जाने पर क्या करें ?



दोस्तो, इस मौसम में तो लगता है हर कोई ठंड लग जाने से हुई खांसी जुकाम से परेशान है। शीत लहर अपने पूरे यौवन पर है। इस से बचने एवं साधारण उपचार पर चलिए थोड़ा प्रकाश डालते हैं..........

  • · इस मौसम में तो लोग खांसी-जुकाम से परेशान हो जाते हैं।

ठंड के मौसम में वैसे भी हम सब की इम्यूनिटी (रोग से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता) कम होती है। ऊपर से इन तकलीफों से संबंधित विषाणु (विशेषकर वायरस) खूब तेज़ी से फलते-फूलते हैं। ज्यादा लोगों को पास पास एक ही जगह पर रहने से अथवा एकत्रित होने से खांसी एवं छींकों के साथ निकलने वाले वायरस (ड्रापलैट इंफैक्शन) एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को जल्दी ही अपनी चपेट में ले लेते हैं।

  • · अब प्रश्न यही उठता है कि इस से बचें कैसे....क्या कुछ विशेष खाना चाहिए ..

इस से बचे रहने का मूलमंत्र तो यही है कि आप पर्याप्त एवं उपर्युक्त कपड़े पहन कर ठंडी से बचें। ऐसे कोई विशेष खाध्य पदार्थ नहीं हैं जिससे आप इस से बच सकें। आप को तो केवल शरीर की इम्यूनिटि बढ़ाने के लिए सीधा-सादा, संतुलित आहार लेना चाहिए--- इस से तरह तरह की दालों, साग, सब्जियों, मौसमी फलों , आंवले इत्यादि का प्रचुर मात्रा में सेवन आवश्यक है।

  • · लोग अकसर इन तकलीफों में स्वयं ही एंटीबायोटिक दवाईयां लेनी शुरू कर देते हैं.....क्या यह ठीक है ??

सामान्यतयः इन मौसमी छोटी मोटी तकलीफों में ऐंटीबायोटिक दवाईयों का कोई स्थान नहीं है। अगर यह खांसी –जुकाम बिगड़ जाए तो भी चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही दवाईया लें।

  • · इस अवस्था में पहले तो लोग घरेलु नुस्खों से ही काम चला लिया करते थे और वे स्वस्थ भी हो जाया करते थे।

ये घरेलु नुस्खे आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने पहले हुया करते थे। इस में मुलहट्ठी चूसना, चाय में एक चुटकी नमक डाल कर पीना, नींबू और शहद का इस्तेमाल, भाप लेना, नमक वाले गर्म पानी से गरारे करना शामिल हैं। ध्यान रहे कि भाप लेते समय पानी में कुछ भी डालने की आवश्यकता नहीं है।

  • · घरेलु नुस्खों के साथ-साथ और क्या करें ?

हां,हां, यह बहुत जरूरी है कि रोगी को उस के स्वाद एवं उपलब्धता के अनुसार खूब पीने वाले पदार्थ देते रहें, मरीज पर्याप्त आराम भी लें। बुखार एवं बदन टूटने के लिए दर्द निवारक टेबलेट ले लें।

  • · नन्हे-मुन्ने शिशुओं का नाक को अकसर इतना बंद हो जाता है कि वे मां का दूध तक नहीं पी पाते ...

ऐसा होने पर यह करें कि एक गिलास पानी में एक चम्मच नमक डाल कर उबाल लें। फिर उसे ठंडा होने दें। बस हो गई तैयार आप के शिशु के नाक में डालने की दवा। आवश्यकतानुसार इस की 3-4 बूंदें शिशु के नाक में डालते रहें जिस से उस के नाक में जमा हुया रेशा ( dried-up secretions) नरम होकर छींक के साथ बाहर आ जाएगा और शिशु का नाक खुल जाएगा। वैसे तो इस तरह की नाक में डालने की बूंदें (सेलाइन नेज़ल ड्राप्स) आप को कैमिस्ट की दुकान से भी आसानी से मिल सकती हैं।

  • · कईं बार जब जुकाम से पीड़ित मरीज़ अपनी नाक साफ करता है तो खून निकल आता है जिससे वह बंदा बहुत डर जाता है, ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए ...

ज्यादा जुकाम होने की वजह से भी सामान्यतयः नाक को साफ करते समय दो-चार बूंदें रक्त की निकल सकती हैं। लेकिन ऐसी अवस्था में किसी ईएऩटी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श कर ही लेना चाहिए।

  • · ऐसा कौन सी अवस्थाएं हैं जिन में कान-नाक-गला विशेषज्ञ से संपर्क कर लेना चाहिए...

खांसी जुकाम से पीड़ित मरीज को अगर कान में दर्द है, सांस लेने में कठिनाई हो रही है, गले में इतन दर्द है कि थूक भी नहीं निगला जा रहा, गले अथवा नाक से खून निकलने लगे,आवाज़ बैठ जाए, खांसी की आवाज़ भी अगर बदली सी लगे, खांसी-जुकाम से आप को तंग होते हुए अगर सात दिन से ज्यादा हो जाये अथवा यह तकलीफ़ आप को बार-बार होने लगे------इन सब अवस्थाओं में ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिलें।

  • · लोग अकसर थोड़ी बहुत तकलीफ होने पर ही नाक में डालने वाली दवाईयों तथा खांसी की पीने वीली शीशीयां इस्तेमाल करनी शुरू कर देते हैं......

नाक में डालने वाली दवाईयों तथा नाक खोलने के लिए उपयोग किए जाने वाले इंहेलर का भी चिकित्सक की सलाह के बिना पांच दिन से ज्यादा उपयोग न करें। इन को लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से और भी ज्यादा जुकाम होने का डर बना रहता है। रही बात खांसी की शीशीयों की, बाज़ार में उपलब्ध ज्यादातर खांसी की इन दवाईयों का इस अवस्था में कोई उपयोग है ही नहीं।

  • · कान में दर्द तो आम तौर पर सभी को कभी कभार हो ही जाता है न......इस में तो कोई खास बात नहीं है न ?

कान में दर्द किसी सामान्य कारण (जैसे मैल वगैरह) से है या कान के भीतरी भागों में इंफैक्शन जैसी किसी सीरियस वजह से है, इस का पता ईएनटी विशेषज्ञ से तुरंत मिल कर लगाना बहुत ज़रूरी है। विशेषकर पांच साल से छोटे बच्चों में तो इस का विशेष ध्यान रखें क्योंकि ऐसी इंफैक्शन कान के परदे में 24 से 48 घंटों के अंदर ही सुराख कर सकती है।

2 comments:

Gyandutt Pandey said...

१. बहुत बढ़िया कि एक डाक्टर ने इस विषय पर बिना भयानक लगने वाले लम्बे लम्बे रोग-नामों के सरल तरीके से बताया।
२. आपका पोस्ट का फॉण्ट जरूर बड़ा है और डराता है!
३. बहुत धन्यवाद।

yunus said...

डॉकदर साहब तुसी ग्रेट हो जी । हम तो सर्दी से अकसर परेशान रहते हैं गला खराब तो अनाउंसर की छुट्टी । आपके उपाय नोट कर लिये हैं । शुक्रिया जी ।

हैल्थ-न्यूज़ अपडेट......1.


गुर्दे की बीमारी के बढ़ते केस लेकिन अधिकांश रोगी अनजान
अमेरिका की नेशनल इंस्टीच्यूट आफ हैल्थ के एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि अमेरिका में गुर्दे कीलम्बे समय तक चलने वाली बीमारी (क्रानिक केस) के केस तेज़ी से बढ़ रहे हैं लेकिन इस से ग्रस्त अधिकांश लोगोंको इस का आभास तक नहीं हैयही वजह है कि गुर्दे को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होने अथवा गुर्दा फेल होने कीरोकथाम के उपाय समय रहते ठीक से नहीं हो पाते जिस से मरीज़ों को डायलासिस या गुर्दे के प्रत्यारोपण (किडनीट्रांस्प्लांट) करवाने को विवश होना पड़ता है

इस अध्ययन के अनुसार अमेरिका में 260लाख लोग (अमेरिका की जनसंख्या का 13प्रतिशत हिस्सा) गुर्दे कीजटिल बीमारी से ग्रस्त हैंमधुमेह, उच्च रक्तचाप , मोटापा इत्यादि इस के लिए ज़िम्मेदार हैंगुर्दे की बीमारी कीमुख्य त्रासदी ही यही है कि यह बहुत उग्र रूप धारण करने तक भी शांत ही रहती हैलेकिन अगर हमें इस कासमय रहते पता चल जाए तो गुर्दे को फेल होने से बचाने के लिए काफी कुछ किया जा सकता हैइसलिए जिसे भीशुगर रोग (डायबिटिज़), उच्च रक्तचाप या परिवार में गुर्दे की बीमारी की हिस्ट्री है तो उसे नियमित रूप से गुर्दे कीकार्यप्रणाली को चैक करने हेतु रक्त की जांच (ब्लड यूरिया, क्रियट्नीन आदि) एवं मूत्र परीक्षण नियमित तौर परकरवाते रहना चाहिए

बहुत से टी.बी रोगी एच.आई.व्ही से भी ग्रस्त---- एक रिपोर्ट
अमेरिका के लगभग एक तिहाई टीबी के मरीज यह नहीं जानते कि क्या वे एचआईव्ही संक्रमण से भी ग्रस्त हैं किनहीं ??- यह तथ्य इस बात को ही रेखांकित करता है कि इन मरीज़ों का एच.आई.व्ही टैस्ट करवाने हेतु ठोस कदमउठाने की जरूरत हैविश्व भर में एच.आई.व्ही से ग्रस्त रोगियों की मृत्यु का का एक अहम् कारण बेकाबू हुया टीबीरोग ही है
अमेरिका के सैंटर फार डिसीज़ कंट्रोल के अनुसार 2005 में अमेरिका में सभी सक्रिय टीबी के मरीज़ों में से 9 प्रतिशत को एच.आई.व्ही संक्रमण से भी ग्रस्त पाया गया थालेकिन 31प्रतिशत टी.बी मरीज़ों में तो इस का पतानहीं चल पाया कि उन्हें एच.आई.व्ही संक्रमण है या नहीं क्योंकि ये लोग वो लोग थे जिन्होंने या तो स्वयं यह टैस्टकरवाने से मना ही कर दिया अथवा इन को टैस्ट करवाने की सलाह ही नहीं दी गईअब यह सिद्ध हो चुका है किएचआईव्ही संक्रमण टी बी रोग को बढ़ा देता है और टी.बी रोग एचआईव्ही संक्रमण को बेकाबू कर देता हैअमेरिका के सेंटर फार डिसीज़ कंट्रोल ने सभी टीबी मरीज़ों की रूटीन एचआईव्ही टैस्टिंग की सिफारिश की है

यह पोस्ट लिखते लिखते यही ध्यान रहा है कि अगर अमेरिका में यह स्थिति है तो इस देश में क्या हालातहोंगे----हमारी तो भई वही बात लगती है कि जैसै कबूतर अपनी आंखें बंद कर के यही सोच पाल लेता है कि अबबिल्ली का कोई रिस्क नहीं है !!

मोटापा कम करने वाली दवा पर लगा प्रश्न-चिन्ह----
मोटापा कम करने वाली दवाई लेने की तैयारी करने वालों के लिए एक बुरी खबर यह है कि एक ऐसी ही दवाईरिमोनाबेंट को ले रहे रोगियों में डिप्रेशन (अवसाद) एवं अत्यधिक तनावग्रस्त रहने जैसे मानसिक विकार उत्पन्नहोने की आशंका दोगुनी बताई गई हैचिकित्सा वैज्ञानिक वैसे तो पहले से ही इस दवाई को आत्महत्या के विचारपैदा करने के साथ लिंक कर चुके हैंब्रिटिश मैडीकल जर्नल के एक अध्ययन के अनुसार इस दवाई के उपयोग सेमोटापे में कुछ खास कमी आती भी नहीं है और ज्यादातर लोगों का मोटापा बना ही रहता है

बच्चों में खांसी ?--- जब कुछ भी न करना ही गोल्डन !

जर्नल आफ अमेरिकी मैडीकल एशोशिएशन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अब मां-बाप को अपने खांसते हुए बच्चे को दवाईयों की बजाए शहद देने के बारे में सोचना होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शहद लेने से बच्चों को खांसी में डैक्सट्रोमिथार्फैन से भी ज्यादा राहत महसूस हुई और वे रात को बेहतर ढंग से सो भी पाए। यहां यह बताने योग्य है कि आमतौर पर खांसी दबाने वाली कैमिस्ट से बिना किसी प्रैस्क्रिप्शन के मिलने वाली ज्यादातर दवाईयों में डैक्सट्रोमिर्थाफेन ही होती है। लेकिन इस तरह की खांसी-जुकाम के लिए कुछ भी न करने से शहद ले लेना बेहतर है, और कैमिस्ट की दुकान का रुख करने से पहले इस शहद को अवश्य ट्राई कर लेना चाहिए।

दोस्तो, वैसे भी हमारे देश में तो इस शहद को सदियों से ही खांसी की तकलीफ़ को भगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन क्या करें, दोस्तो, हम लोगों की मानसिकता ही कुछ ऐसी बन चुकी है कि जब तक हमारी किसी अच्छी से अच्छी प्रामाणिक एवं सिद्ध बात पर अमेरिकी वैज्ञानिकों की स्टैंप का ठप्पा नहीं लगता , हम कहां मानते हैं.........Generally, it is said that for anything to become popular( even it could be an ancient Indian practice), it has to be routed through America…………….that’s exactly what is happening with our Yoga………यह योग भी हमें तब ही ज्यादा भाया जब इसे अमेरिकी चासनी में घोल कर योगा बना कर हमारे सामने पेश किया गया। ।

अपनी शहद वाली बात पर वापिस आते हुए यह बताना भी जरूरी है कि शहद को एक साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं देना चाहिए

अमेरिकी मैडीकल एसोशिएशन के इस अध्ययन को एक शुभ संकेत इस लिए भी माना जा रहा है क्योकि आजकल मां बाप अपने खांसी-जुकाम से जूझ रहे बच्चों के लिए कोई दूसरे रास्ते तलाश रहे हैं क्योंकि पिछले महीने ही अमेरिकी फूड एवं ड्रग एडमिनीस्ट्रेशन के एक पैनल ने यह महत्वपूर्ण सिफारिश की है कि छःसाल से कम बच्चों ( children under the age of 6) को अपने आप ही खांसी-जुकाम की दवाईयां देनी शुरू नहीं कर देना चाहिए क्योंकि ऐसी अधिकांश दवाईयों में डैक्स्ट्रोमिथार्फैन ही होती है।

इस अध्ययन में दो से पांच साल के बच्चों को एक टी-स्पून का आधा हिस्सा, छः से ग्यारह साल के बच्चों को एक टी-स्पून एवं बारह से अठारह साल के बच्चों को शहद के दो चम्मच दिए गए

नैट बंधुओं, इस बात का ज़रा ध्यान रखें कि यह सब बातें आम खांसी-जुकाम के लिए ठीक हैं, कहने से भाव यह नहीं कि अगर दूसरी तरह की खांसी वगैरह की तकलीफ है तो उस में शहद कारगर नहीं है, जी नहीं, शहद तो शहद है- उसने तो अपना काम करना ही है---लेकिन यह ध्यान भी रखना होगा कि कब एक बार डाक्टर से मिलना भी जरूरी होता है। सीधी सीधी सी बात है कि जब बच्चे को ज्यादा ही तकलीफ़ है, वह तेज़ बुखार से भी परेशान है, गले में बेहद दर्द भी है, और खांसी करने से पीली बलगम निकलती है-------ऐसे में अपने फैमिली डाक्टर से मिल लेना चाहिए क्योंकि कईं बार इस इंफैक्शन की नकेल कसने के लिए एँटीबायोटिक दवाईयां भी देनी पड़ सकती हैं।
मैंने इस चिकित्सा क्षेत्र में इन एंटीबायोटिक दवाईयों का बहुत ज्यादा मिसयूज़ देखा है और वह भी इस सादी खांसी-जुकाम की परेशानी के लिए ही------जिस में अकसर किसी एंटीबायोटिक दवाईयों की जरूरत होती ही नहीं है। बचपन में सुनी एक बात याद आ रही है -------If you take medicines for common cold, it will take seven days to cure it……..if you don’t take any medicines, it will be alright in a week.
So, the weather here is getting colder day by day………..take care……..
Enjoy all those seasonal delicacies that are offered to us during this Lohri festival……………………….HAPPY LOHRI !!