सोमवार, 26 मार्च 2018

बॉम्बे रोजनामचा..

आज सुबह मेरे पास यहां लिखने के कुछ खास है नहीं...बस, अपने उस्ताद की बात याद आ गई..

दरअसल आज से १६-१७ साल पहले मैं केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा आयोजित एक नवलेखक शिविर में शामिल होने आसाम के जोरहाट में गया हुआ था ..पंद्रह दिन तक चला था यह शिविर...

उस दौरान लिखने-पढ़ने की बहुत सी बारीकियां सीखने का मौका भी मिला ... एक बहुत बडे़ लेखक ने उन दिनों हमें बताया कि उन के दादा जी पुराने ज़माने में एक कागज़ पर चीनी,घी, आटा, चावल, दाल आदि खाने-पीने वाली वस्तुओं के दाम लिखते रहते थे .. बस, सौ साल बाद वह एक विश्वसनीय दस्तावेज़ बन गया ...यह भी साहित्य ही है ...वे हमें समझाते थे कि रोज़ लिखो, अपनी मातृ-भाषा में भी लिखो और जो मन में आए अपनी डॉयरी में दर्ज करते जाइए... अब यही मशविरा मैं नये लेखकों को देता हूं ...रोज़ डॉयरी में एक सफ़ा भी लिखेंगे तो साल में हो गये ३६५ सफ़े....यकीं मानिए इन में ५०-६० तो कहीं छपने लायक भी ज़रूर होंगे ...बस, रोज़ाना कुछ भी लिखना लाज़मी है ..

डायरी वायरी में तो कुछ साल सब कुछ दर्ज किया ..फिर २००७ से जो कुछ भी कहना होता है अपने आप से या दूसरों से इसी ब्लॉग में ही सहेज लेने की फ़िराक में रहता हूं...

आज की इस पोस्ट में भी आप को चंद तस्वीरों और कुछ रेट-लिस्टों के अलावा कुछ नहीं दिखने वाला .. बंबई में आज घर कितने में मिलता है, क्या रेट है, कूरियर के क्या रेट हैं, मैडीकल जांच करवाने के लिए कैसे तैयार किया जा रहा है ...इन तस्वीरों पर नज़र फेर कर आप जान पाएंगे ...जान तो क्या पाएंगे, आप सब तो सुधि पाठक हैं, पहले ही से बहुत कुछ जानते हैं, बस मेरे कैमरे में बंद कुछ तस्वीरें देख लेंगे ....और हां, कुछ तस्वीरें बोलती तो हैं ही ...

कल मैंने बांद्रा एरिया की एक चर्च के बाहर यह बात पढ़ी.....मैंने इस का मतलब समझने की बहुत कोशिश की ..लेकिन मेरी समझ में अभी तक तो यह बात आई नहीं....मुझे चर्च के बाहर इस तरह के मैसेज पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, इन में ज़िंदगी को जी लेने की कला छिपी होती है .. पता नहीं, इस गधे वाले शख्स की बात मेरे पल्ले क्यों नहीं पड़ रही ...

अगर आप को इस बात का मतलब पता हो तो कमैंट में लिखिएगा... 
आज सुबह टहलने निकले तो अपनी बिल्डिंग में हर तरफ़ बसंत ऋतु का नज़ारा देखने लायक था ...हरे भरे वृक्ष और फूलों से लदे हुए जैसे कुदरत मौसम के मिजाज का लुत्फ उठा रही हो ..


अभी बिल्डिंग से बाहर निकले ही थे तो बाहर इस तरह से पेड़ पर पहली बार कटहल लगे हुए देखा ....जर्नल-नालेज कमज़ोर ही है मेरा भी ...मैं बिल्कुल भूल गया था कि कटहल भी पेड़ पर ही उगते हैं...सोच कर हैरानी भी होती है कि जितने बड़े बड़े कटहल बाज़ार में बिकते हैं वे कैसे पेड़ पर टिके रहते होंगे ...



आगे बढ़े तो देखा कि किडनी स्टोन और प्रोस्टेट ग्लैंड की जांच का एक इश्तिहार टंगा हुआ है जगह जगह ....३५०० रूपये के टैस्ट फोकट में करने की बात पची तो नहीं .. लेकिन फिर भी एक फोटो खींच ही ली... यहां चसपा करने के लिए ...


अभी थोडा़ आगे बढ़े थे कि किसी मकान बिकाऊ का एक इश्तिहार दिख गया ... पास जा कर देखा तो यह किसी बैंक के द्वारा किया गया किसी नीलामी का नोटिस था किसी फ्लैट का .. आप भी देखिए और इसे इत्मीनान से पढ़िए...यह जानने के लिए मुंबई में पाली हिल इलाके में इन दिनों प्रापर्टी का रेट क्या चल रहा है..


आगे चलते हैं ...एक छोटे से दुकानदरा की क्रिएटिविटी कुछ ऐसी दिखी ....मैंने फोटो खींची तो वह हंसने लगा ...कहने लगा कि इस के दो फ़ायदे हैं, एक तो बैठने की जगह मिल गई और दूसरा आते जाते हुए वाहन मेरे स्टाल के दरवाजे से टकरा कर उसे बंद नहीं कर पाते अब ... सही ही कहते हैं ..Necessity is the mother of invention!



उसी स्टाल पर ही एक कूरियर कंपनी का इश्तिहार पड़ा हुआ था ...उत्सुकता हुई मुझे देखने की ...क्योंकि मैं कूरियर के मामले में अभी भी बीस साल पहले के रेटों में ही कहीं अटका पड़ा हूं...जब कभी कोई चिट्ठी कूरियर करवाने जाता हूं और वह सौ रूपये मांग लेता है तो मेरे शरीर में एक हल्का सा करंट दौड़ पड़ता है ... फिर ध्यान आता है कि अब बीस-तीस रूपये वाली बात भी तो बीस साल पुरानी हो गई है ....इसलिए इस कूरियर की रेट-लिस्ट की भी फोटो खींच ली ..ताकि भविष्य में मुझे कूरियर रेट सुन कर लगने वाले हल्के करंट का प्रभाव कुछ कम हो सके ....यकीं मानिए, इसे पढ़ कर मुझे नहीं लगता कि मुझे भविष्य में ऐसी कोई तकलीफ़ कभी होगी...



आते वक्त इस पेड़ पर जब नज़र पड़ी तो हमेशा की तरह बचपन में बडे़-बुज़ुर्गों द्वारा घुट्टी की तरह पिलाई गई बात याद आ गई कि इस तरह के पेड़ों के इन खाली "खुड्डों" में सांप छिपे होते हैं...हा हा हा हा हा .....😀😁😂....अब तो मैं दांत निकाल रहा हूं लेकिन बचपन में ऐसी बात सुन कर ही हम लोग सहम जाया करते थे..


अच्छा, आज के दिन के लिए गप्पबाजी इतनी ही काफ़ी है ... सोच तो आप भी यही रहे होंगे कि तुम टहलने गये थे या तस्वीरें खींचने....मैं अपने आप से भी यही पूछ रहा हूं ...जब कि मैं भी जानता हूं कि मेरा टहलना तो बस फोटो खींचने का एक बहाना होता है ...वरना .. टहलना!!


अब मैं वापिस अपनी किताब की तरफ़ लौट रहा हूं ...मैं आजकल इसे पढ़ रहा हूं ...यह रूपा पब्लिकेशन की किताब है ...बहुत ही बढ़िया है ..

जाते जाते सोच रहा हूं कि रामनवमी के उपलक्ष्य में आज के दिन एक भक्तिगीत लगा दूं....यह गीत मुझे बेहद पसंद है ....शायद मैंने १९७३-७४ के आसपास जब अमृतसर में दूरदर्शन आया ही था....तब इसे टीवी पर ही देखा था ...बाद में तो कईं बार देखा ..और गली-मोहल्लों में लाउड-स्पीकरों पर तो यह गीत उस दौर में अकसर बजता ही रहता था .. राम चंदर कह गये सिया से ...ऐसा कलयुग आयेगा  !! .....आयेगा क्या भईया, आ चुका है..!!