मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा से कैसे करें बचाव?

जैसा कि अब हम जानते हैं कि यह एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा भी एक मौसमी एन्फ्लुऐंजा ही है, इस से डरने की कोई विशेष वजह नहीं है। यह स्वाईन-फ्लू नहीं है।

क्या एहतियात के तौर पर पहले ही से दवा ले लें?

अब प्रश्न जो मन में उभरना स्वभाविक है कि क्या कोई ऐसा जुगाड़ या दवाई है कि हम लोग इस से बचे रह सकें ?
इस का जवाब यही है कि क्या हम लोग अन्य बीमारियों से बचने के लिए पहले ही से दवाई ले लेते हैं?....नहीं ना, तो फिर इस एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा के लिए भी ऐसा कुछ दवा नहीं है कि जिसे हम लो खा लें और निश्चिंत हो जाएं कि यह इंफेक्शन हमें नहीं होगा।

क्या इस से बचाव का टीका ही न लगा लें?

जी हां, इस एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा से बचाव का टीका तो है लेकिन इस से भी ८०-९० प्रतिशत बचाव ही मिलता है। सामान्यतयः इस टीके को स्वास्थ्य-कर्मियों को लेने की सलाह दी जाती है और जो लोग हाई-रिस्क केटेगरी में आते  हैं..जैसे कि बहुत बुज़ुर्ग, गर्भवती महिलाएं या ऐसे लोग जिन की इम्यूनिटि कुछ दवाईयों (जैसे कि स्टीरॉयड आदि) की वजह से दबी हुई है।

कल मेरे पास एक महिला अपने इलाज के लिए आई थी, पूछने लगी कि उस की बेटी नर्सिंग का कोर्स कर रही है ..कालेज वालों ने एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा का टीका लगवाने के लिए कहा है। मैंने उसे बताया कि यह टीका जब भी अस्पताल में आएगा पहले डाक्टरों एवं स्वास्थ्यकर्मियों को ही लगेगा जिन का मरीज से सीधा और नजदीकी संपर्क रहता है। पूछने लगी का बाज़ार में इस की कितनी कीमत है, मैंने नेट पर चेक किया तो पता चला कि इस टीके का दाम  बाज़ार में २५०रूपये है।

लेकिन इस समय परेशानी यह है कि ये टीके सरकारी अस्पतालों और मैडीकल कालेजों में भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं, ये बाहर से निर्यात होते हैं... आज पेपर में पढ़ा है कि सरकारी अस्पतालों द्वारा भी इस तरह के टीकों का आयात करना एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि इस में लगभग दो महीने का समय भी लग सकता है।

छोटी छोटी बातें---बड़े बड़े लाभ

बड़ी सीधी सी बात है कि इस इंफेक्शन से भी बचे रहने के लिए हमें बड़ी बेसिक सी बातों की तरफ़ ध्यान देना होगा।
सब से पहले तो विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर हम लोग सलीके से खांसने और छींकने की तहजीब सीख पाएं तो हम इस तरह की बीमारियों से ही नहीं, टीबी, कुष्ठरोग जैसी अन्य बीमारियों से भी बचे रह सकते हैं।


खांसने की तहजीब (Cough Etiquettes) 

अधिकतर हमें खांसने की तहजीब नहीं है, कईं बार तो किसी पब्लिक जगह पर ऐसे लगता है कि खांसने वाले आप के मुंह में खांस रहा है। बार बार हमें याद दिलाया जाता है कि हमें अपने रूमाल में खांसना चाहिए... पता हमें सब कुछ है, लेकिन हम सुधरने वाले नहीं है।

दरअसल हमारी खांसी में जो कीटाणु निकलते हैं उनके ज़रिये बहुत सी बीमारियां एक से दूसरे बंदे में फैल जाती हैं।
अब आप सोचते होंगे कि हम सब इस तरह से आसपास के लोगों की खांसी की बदतमीजी (जी हां, यह एक बदतमीजी ही है, इतना सीखने के लिए किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं.....अगर कोई बहुत गंभीर व्यक्ति खांस रहा है, उसे कोई सुध नहीं है, उसे तो बिल्कुल क्षमा किया जा सकता है)....लेकिन जो हट्टे-कट्टे पढ़े लिखे लोग बिना अपने मुंह ढंके खांसते रहते हैं, उन्हें यह तहज़ीब सीखने की बहुत ज़रूरत है...हम अकसर देखते हैं कि हमें यह सब बुरा लगता है, लेकिन हम लोग शिष्टाचार वश किसी से कुछ कहते वहते नहीं हैं।


अब आते हैं छींकने वालों पर

वही बात, बिना रूमाल, या हाथ या बाजू आगे किए हुए छींकने से भी बहुत सी बीमारियां फैल जाती हैं। खांसने और छींकने से जो ड्राप्सलेट्स हमारे नाक और मुंह से निकलते हैं वे कुछ मीटर तक बैठे व्यक्ति को भी अपनी चपेट में लेते हैं।

खांसने और छींकने की बदतमीजी का शिकार हो कर भी अगर कोई व्यक्ति इन बीमारियों से बच जाता है तो इस के लिए उस की इम्यूनिटि (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को इस का क्रेडिट मिलना चाहिए।

एक बार मैं इसी एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा के संबंध में एक प्रश्न टीवी पर सुन रहा था कि हम ऐसा क्या करें कि हमारी इम्यूनिटि ठीक रहे। इस का जवाब विशेषज्ञों ने बिल्कुल सही दिया कि आप नशों, तंबाकू-गुटखा, दारू से दूर रहें, संतुलित आहार लें, रोजाना व्यायाम करें, टहला करें......इस से आप की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहेगी, अधिकतर बीमारियां आप के पास नहीं फटकेंगी। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह सब कुछ एक दो महीने ही एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा से बचने के लिए अगर मान रहे हैं, फिर से पुरानी दिनचर्या और वही जंक-फूड आदि खाना-पीना शुरू हो जायेगा तो यह इम्यूनिटि टिक नहीं पाती.........यह तो दोस्तो निरंतर जीवनपर्यंत मानने वाली बातें हैं।


बार बार अच्छे से हाथ धोने की आदत

अगर हमें बार बार अच्छे से हाथ धोने की आदत है तो भी हम इस एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा से ही नहीं अन्य बीमारियों से भी बचाव कर सकते हैं। हम देखते हैं कि हम लोग कितने दिन मनाने लगे हैं...वेलेंटाइन डे, चॉकलेट डे, फ्रेंडशिप डे........सब से ज़्यादा अहम् है हैंडवॉशिंग दिवस.....जी हां, पिछले कुछ सालों से मैंने देखा है कि विदेशी स्कूलों में हैंडवॉशिंग दिवस भी मनाया जाता है... यह बहुत बहुत बहुत ज़रूरी है कि हम बच्चों को तो सिखाएं ही और हम जो पहले से सब कुछ सीखे हुए हैं, उसे नज़रअंदाज़ न करें।

दूर ही से नमस्कार ठीक है

मिलने जुलने का सीधा सादा हिंदोस्तानी तरीका --दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करने वाला-- सब से उत्तम है। हाथ मिलाने से हम लोग एक दूसरे तक बीमारियों के जीवाणु भी परोस सकते हैं...इसलिए हमेशा आदत रहनी चाहिए कि कुछ भी खाने से पहले हाथ हम लोग अच्छी तरह से धो लें, बिना धोए हाथों को मुंह, आंख, नाक में कभी न डालते फिरें, इस से बीमारियां फैलती हैं।

खांसी-जुकाम होने पर बच्चों को स्कूल न भेजें

बच्चों में खांसी जुकाम होने पर अगर बच्चे स्कूल नहीं जाएं तो यह भी एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा से रोकथाम का एक बड़ा कदम है। दो दिन पहले मैं एक शिशु रोग विशेषज्ञ को टीवी पर सुन रहा था ..उस ने कितना सही कहा कि बच्चे एक दिन स्कूल जा कर अगर काले और गुलाबी रंग का भेद दो दिन बाद सीख लेंगे तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर वे खांसी-जुकाम के दौरान स्कूल जाएंगे तो उन के बहते नाक से, खांसी से तरह तरह की इंफेक्शन दूसरे बच्चों में फैल जाती है ...और फिर उन दूसरे बच्चों के रास्ते उन के घर के अन्य सदस्य भी इस तरह के संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं।

दोस्तो, यह बात नहीं है कि आज कल एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा की चर्चा ज़ोरों पर है, इसलिए ही हमें यह बच्चों को स्कूल न भेजने वाली एहतियात बरतनी है, यह तो भाई एक सामान्य बचाव है जो हमें हमेशा ही करना होगा ताकि बाकी बच्चे इस तरह की बीमारियों से बचे रहें......और वैसे भी बच्चे के नाक से जो पानी बहता है, और मुंह से वे जो खांसते हैं, उन के खांसने में और छींक में वॉयरस बहुत अधिक मात्रा में होते हैं और लंबे समय तक ये वॉयरस के जीवाणु उन में मौजूद रहते हैं।

मुझे एक बाल रोग विशेषज्ञ की यह बात बहुत बढ़िया लगी कि स्कूलों में यह जो नया फैशन सा है .. १०० प्रतिशत अटेंडेंस के लिए अवार्ड---इसे तो बिल्कुल खत्म कर देना चाहिए...इसी अवार्ड के चक्कर में खांसी-जुकाम से ग्रस्त छोटे बच्चे भी स्कूल रवाना कर दिये जाते हैं....जिससे दूसरे बच्चे इस की चपेट में आ जाते हैं।

बचाव की बातें काफी हो गई हैं, लगता है अब इस पर विराम लगाएं.......इस से डरने की ज़रूरत नहीं है, हर साल सर्दियों और बरसात के मौसम में होता है, किसी साल कम किसी साल ज़्यादा होता है...डेंगू का भी तो यही हाल है, कभी ज़्यादा, कभी कम। लेकिन वही पुरानी कहावत यहां भी फिट बैठती है........परहेज से इलाज भला......परहेज का मतलब कि हम लोग कैसे बचाव कर पाएं........पूरी रामकथा ऊपर लिख दी है, इन्हें मान लेने में ही भलाई है।

खुशखबरी यह है कि आज अखबार में भी आया कि बस होली तक ही ये एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा के केस मिलेंगे...जैसे जैसे तापमान बढ़ता है इस वॉयरस की बीमारी पैदा करने की क्षमता भी घटने लगती है...इसलिए इस के केसों में भी कमी आने लगती है। फिर बरसात में मौसम में, ह्यूमिडिटी की वजह से वॉयरस जल्दी जल्दी बढ़ती है और फिर से एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा के केस बढ़ने लगते हैं।

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दोस्तो, आज शिवरात्रि है, न मैंने कहीं जाकर शिव जी का विवाह सुना ..न कुछ और ... सुबह से इस इंफ्लूऐंजा के बारे में ऐसा लिखने बैठा हूं कि शाम होने को है.....अब इस के बारे में बची खुची बातें कल कर लेंगे.......जाते जाते आप बम बम भोले को याद कर लें!

एच1एन1 (H1N1) एन्फ्लुऐंजा का टेस्ट -- कब और कैसे?

मैंने पिछली पोस्ट में एक मित्र के बारे में लिखा कि उसे खांसी-जुकाम हुआ...उसने फ़िज़िशियन से कहा कि मेरी स्वाईन-फ्लू (दरअसल ये H1N1 एन्फ्लुऐंजा है) की जांच करवा दें, वह मान गए, घर में लैब-टेक्नीशीयन आ कर गले से स्वैब ले गया.... और अगले दिन टेस्ट पॉज़िटिव आ गया, फिर उस की दवाई तो शुरू हो ही गई, साथ ही उस के परिवार के अन्य लोगों को भी बचाव के लिए दवाई दी जाने लगी, पांच दिन के लिए।

दोस्तो, मैं आपसे यह शेयर करना चाहता हूं कि यह टेस्ट बहुत महंगा है, सरकारी अस्पताल ही जो ये टेस्ट अपने सरकारी कर्मचारियों का प्राईव्हेट लैब से करवाते हैं उन्हें ही इस के लिए लगभग साढ़ें चार हज़ार रूपये चुकाने होते हैं।

मैंने अभी अभी लखनऊ की एक प्राईव्हेट लेब को फोन किया ...इस टेस्ट का रेट पूछने के लिए.. यहां पर इस का रेट साढ़े पांच हज़ार रूपये हैं और रिपोर्ट दो दिन में मिलती है...यानि आज टेस्ट करवाया तो रिपोर्ट दो दिन बाद परसों मिलेगी।

अभी मैं हिंदी का अखबार देख रहा था, कल यहां पर आर्चीटेक्चर कालेज के कुछ छात्र इक्ट्ठे हो कर मैडीकल कालेज पहुंच गये कि उन्हें एच१एन१ की जांच करवानी है...इस की दवाई लेनी है क्योंकि कुछ दिनों से उन का खांसी-जुकाम ठीक नहीं हो रहा...सीनियर डाक्टर ने उन्हें खांसी-जुकाम की दवाई दे कर और मास्क दे कर यह कह कर वापिस भेज दिया कि अगर ये दवाईयां लेने से कुछ समय बाद भी राहत महसूस न हुई तो एच१एन१ एन्फ्लुऐंजा की जांच करेंगे।

इस सीनियर डाक्टर ने बिल्कुल सही किया.... टेस्ट को टाल दिया..यह बहुत ही ज़रूरी है, वरना होता क्या है जब इस तरह की बीमारी होती है और मीडिया में खौफ़ पैदा कर दिया जाता है तो कुछ लोग अपने रसूख के बल पर यह टेस्ट करवा लेना चाहते हैं ....और हो भी जाता है, यहां रसूख से बड़े से बड़े काम हो जाते हैं, यह तो कुछ भी नहीं।

लेकिन यह गलत है। मेरे मित्र को भी अपने आप चिकित्सक को कहने की कोई ज़रूरत नहीं थी कि क्या आप मेरा एच१एन१ टेस्ट करवा देंगे।

अब आपके मन में यह प्रश्न आना स्वभाविक है कि मेरे मित्र ने किसी डाक्टर को कहा कि उसका टेस्ट करवा दे, और टेस्ट होने के बाद उस की रिपोर्ट पॉज़िटिव भी आ गई....ऐसे में तो मेरे मित्र ने बड़ी समझदारी का परिचय दिया।

नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, आप कृपया यह बात गांठ बांध लें कि चिकित्सक अपने हिसाब से अपने अनुभव के आधार पर जो काम कर रहा है, उसे करने देना चाहिए, उसी में ही हम सब की भलाई है....मित्र ने टेस्ट करवाने की इच्छा ज़ाहिर की और उसने भी कहा कि हां, ठीक है, करवा लो।

अब मैं आता हूं असली बात पर.......वह यह है कि खांसी जुकाम तो इस मौसम में बहुत से लोगों को हुआ ही करता है, सर्दी में भी होता है और बरसात में भी होता है....ऐसे में क्या हर बंदा सरकारी अस्पतालों में या प्राईव्हेट लैब में लाइनें लगा कर टेस्ट करवाना शुरू कर दे....इस एच१एन१ एन्फ्लुऐंजा वॉयरस के लिए। नहीं, इस की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है।

H1N1 एन्फ्लुऐंजा टेस्ट किस का होना चाहिए? 

हम सब लोगों की फ्लू से जान पहचान तो है ही, है कि नहीं?-- H1N1 एन्फ्लुऐंजा के लक्षण भी बिल्कुल मौसमी फ्लू जैसे ही हैं, सिर और शरीर में दर्द, नाक बहता है...और इस के लिए इऩ लक्षणों के लिए ही जो दवाईयां आदि हम लोग अकसर लेते हैं या देसी जुगाड़ --मुलैठी, नमक वाले गर्म पानी से गरारे, बुखार के लिए या बदन दर्द के लिए कोई दर्द की टिकिया ले लेते हैं....गर्मागर्म चाय-वाय खूब पीते हैं अदरक डाल कर.... क्योंकि अच्छा लगता है..और अकसर यह दो चार दिन में ठीक हो जाता है...

लेकिन अगर खांसी-जुकाम के साथ साथ कुछ चेतावनी देने वाली लक्षण भी दिखने लगें तो हमें अस्पताल में चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए....दोस्तो, मैंने यह नहीं कहा कि हमें किसी लैब में जाकर H1N1 एन्फ्लुऐंजा का टेस्ट करवा लेना चाहिए, इस की कोई ज़रूरत नहीं है, लैब वाले तैयार बैठे हैं, लेकिन उस की ज़रूरत है कि नहीं, यह पता करना तो चिकित्सक का काम है। हां, तो बात हो रही थी चेतावनी देने वाले लक्षणों की ....

चेतावनी देने वाले लक्षण 

दरअसल अगर H1N1 एन्फ्लुऐंजा का संक्रमण गले से छाती में चला जाता है और यह काम ५ से ७ दिन में हो जाता है, तो इस से मरीज़ को निमोनिया की तकलीफ़ हो जाती है, अब मरीज को कैसे पता चले कि निमोनिया हो गया है...यह हो रहा है......उसे तेज बुखार के साथ साथ सांस लेने में तकलीफ़ होगी, पेट में दर्द हो, उल्टी आए और खांसी करने पर बलगम में खून आने लगे तो तुरंत चिकित्सक से मिलना चाहिए। उस हालात में उस का H1N1 एन्फ्लुऐंजा टेस्ट करवाया जाता है और तुरंत इस बीमारी का समुचित इलाज शुरू किया जाता है।

ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि कुछ मरीज़ों में विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए... बच्चों में खांसी जुकाम तो होता ही है, लेकिन अगर इस के साथ अगर उस ने फीड लेनी बंद कर दी है, तेज़ बुखार के साथ वह सांस भी तेज़ तेज़ ले रहा है, उस की पसली चलने लगी है और बच्चा नीला पड़ रहा है तो तुरंत चिकित्सक को मिलना चाहिए। इसी तरह से बुज़ुर्गों में भी ६५ वर्ष से ऊपर वालों में अगर वे खांसी-जुकाम और बुखार होने पर गफलत में जा रहे हैं, उन के हाथ-पैर ठंड पड़ रहे हैं तो ये चेतावनी वाले लक्षण हैं....यह आम खांसी-जुकाम के लक्षण नहीं है, इन्हें चिकित्सक के पास ले कर जाना चाहिए।

उसी तरह से जब यही लक्षण सांस की बीमारी से ग्रस्त, दिल के किसी रोगी या मधुमेह रोगी या ऐसी किसी व्यक्ति में पाये जाएं जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले ही से कम है.. इम्यूनिटी कंप्रोमाइज्ड है-- चाहे वे इम्यूनिटी दबाने वाली कोई दवाएं खा रहे हों पहले से....इन सब में भी ऊपर लिखे चेतावनी वाले लक्षणों के मिलते ही तुरंत चिकित्सक से संपर्क साधना ज़रूरी है।

कैसे होता है टेस्ट 

जिन मरीज़ों में चिकित्सक समझते हैं कि उन का एच१एन१ टेस्ट होना चाहिए तो उन का यह टेस्ट एक स्वॉब से ही हो जाता है... इस के लिए किसी तरह के रक्त की जांच की ज़रूरत नहीं पड़ती ...

मेरे विचार में बाकी बातें अगली पोस्ट में करते हैं, इस के लिए तो इतना ही काफ़ी है..एक बात जो मेरे ज़हन में आ रही है आप की तरफ़ से वह यह है कि आप सोच रहे होंगे कि मेरे दोस्त को अगर एच१एन१ इंफेक्शन का पता न चलता तो उस की दवाई शुरू न होती, जिस से उस की जान पर बन सकती थी। नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है, अगर उस में ऊपर लिखे चेतावनी वाले लक्षण होते तो उस का टेस्ट हो जाता और उस का फिर इलाज शुरू कर दिया जाता। हर खांसी-जुकाम के केस में यह टेस्ट करवाने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है।

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पिछले कईं हफ्तों से एक तरह से हड़कंप मचा हुआ है...स्वाईन फ्लू आ गया है, फैल रहा है...लेकिन सब से पहले समझने वाली बात यही है कि यह स्वाईन फ्लू नहीं है, नहीं है, नहीं है।

यह स्वाईन फ्लू नहीं है...इन शब्दों पर ज़ोर देने के लिए मुझे तीन बार लिखना पड़ा क्योंकि मीडिया में बार बार स्वाईन फ्लू शब्द का ही इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि सरासर गलत है, लोगों में भम्र पैदा कर रहा है, इसी की वजह से ही अफरातफरी का माहौल बन रहा है।

कुछ दिन पहले मैंने किसी विषय पर लेख लिखा था...लेकिन उस के कमैंट में एक भाई ने पूछा कि क्या स्वाईन-फ्लू की दवा है?..मैंने उन्हें संक्षेप सा उत्तर तो दे दिया...लेकिन उस उत्तर से मैं भी संतुष्ट नहीं था, मुझे लगा कि बात विस्तार से करनी होगी।

चार पांच दिन पहले मेरे एक मित्र का दिल्ली से फोन आया...बताने लगा कि तबीयत नासाज़ है, खांसी-जुकाम है, मैंने ही डाक्टर को कहा है कि क्या मुझे स्वाईन-फ्लू का टेस्ट करवा लेना चाहिए। डाक्टर ने कहा है--करवा लेते हैं। अगले दिन उस का फोन आया कि स्वाईन-फ्लू का टेस्ट पाज़िटिव निकला है। मैं उसे तसल्ली दी कि परेशान न होए, अपने खाने-पीने का ध्यान रखे....लेकिन उस की तसल्ली होती दिखी नहीं, दरअसल मीडिया ने स्वाईन-फ्लू के नाम ही से इतना प्रचार-प्रसार कर दिया है।

उस दोस्त की भी दवाई शुरू हो गई पांच दिन के लिए ... और घर के अन्य सदस्यों को दवाई एहतियात के तौर पर दी जाने लगी है... लेकिन क्या ऐसे हर केस में या इन के परिवार को दवाई दी जानी ठीक है, इस के बारे में मैडीकल विज्ञान के आधार पर बात करने की ज़रूरत है..आज सारा दिन मैं आप से इस एच१एन१ एन्फ्लुऐंजा के बारे में ही बात करूंगा......आज मुझे छुट्टी है, सोच रहा हूं आज शाम तक इस विषय पर सही सही जानकारी आप तक सटीक ढंग तक पहुंचा कर इस का खौफ खत्म करने के लिए अपना एक तुच्छ योगदान मैं भी दूं।

अब यह सूअर से नहीं, आदमी से आदमी में फैलता है...

जी हां, ये जो आज कर फ्लू हो रहा है, यह स्वाईन-फ्लू नहीं है, यह बस मौसमी एन्फ्लुऐंजा है... जो हर साल आता है जाता है। इसे सीज़नल H1N1एन्फ्लुऐंजा  (Seasonal Influenza H1N1) कहते हैं। जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है कि यह स्वाईन फ्लू नहीं है। स्वाईन का मतलब है कि सूअर से फैलने वाला......लोगों में तो यह भी भ्रांति है कि यह सूअर का मांस खाने से फैलता है, ऐसा नहीं है, वो अलग बात है कि सूअर के मांस के साथ अन्य मुद्दे जुड़े हुए हैं जो इस पोस्ट की चर्चा का विषय नहीं है।

 दरअसल २००९ में जब स्वाईन-फ्लू आया --जब इस वॉयरस का मुखौटा सामने आया या यूं कह लें कि २००९ में जब यह वॉयरस पैदा हुई.. तब इसे पैनडैमिक एच१एन१ कहा गया था, यह विश्व के बहुत से देशों में फैलने लगा।

२००९ में जब यह फ्लू आया तो विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर बराबर नज़र रखे हुए था, उसने विश्व स्तर पर एलर्ट भी जारी किया था... क्योंकि यह वॉयरस का बिल्कुल नया मुखौटा था... जिस का न तो कोई वैक्सीन था, न ही लोगों के शरीर में इस का मुकाबला करने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता ही थी।

तो यह बात अब हम सब की समझ में आ चुकी है कि यह २००९ वाली वॉयरस ही है, तब यह विश्व में पहली बार दिखी थी, लेकिन २००९ से २०१५ के बीच में हम सब में "herd immunity" पैदा हो चुकी है.......इस अंग्रेजी का मतलब केवल यही है कि इतने लंबे समय में हम लोगों के शरीर में इस का मुकाबला करने की क्षमता पैदा हो चुकी है....यह अपने अपने होता है......बिना बीमार हुए, बिना इस इंफेक्शन से ग्रस्त हुए......आप यूं समझ लें कि इस तरह की हर्ड-इम्यूनिटि हमारे लिए एक प्रकृति का तोहफ़ा है।

पहली बात तो यह कि अब सूअर वाली बात इस बीमारी के बीच से निकल चुकी है.......क्योंकि यह अब एक व्यकित से दूसरे व्यक्ति में खांसी-ज़ुकाम की तरह ही फैल रहा है.......और सीधी सीधी बात यह कि बहुत से लोगों में होगा, लेकिन गंभीर नहीं होगा, अब इम्यूनिटि है, इस से टक्कर लेने की रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो चुकी है।

मुझे ध्यान आया कि मैंने २००९ में कुछ स्वाईन-फ्लू से संबंधित लेख लिखे थे, अगर आप चाहें तो इस ब्लाग के दाईं तरफ पैनल में जो सर्च-बॉक्स बना है, उस में स्वाईन-फ्लू लिखें, तो सारे लेख आप के सामने आ जाएंगे.......मैंने भी अभी अभी देखे, लेकिन मैं जान-बूझ कर उन का लिंक यहां नहीं लगा रहा, जब यह स्वाईन-फ्लू है ही नहीं तो आप को क्यों बिना वजह उलझाया जाए।

तो दोस्त, आज सुबह जब अखबार आप के हाथ में आए तो पहले पन्ने पर स्वाईन-फ्लू के बारे में खबरें देख कर बिल्कुल भी भयमीत मन होइएगा.....इस के बारे में आज आप से बहुत सी बातें शेयर करनी हैं।