सोमवार, 26 जनवरी 2009

आज मुझे इस विज्ञापन की बखिया उधेड़नी ही होगी !

अवार्डों का मौसम है ---विभिन्न कारणों की वजह से लोगों को अवार्ड मिल रहे हैं –मुझे भी लगभग पंद्रह महीने तक हिंदी ब्लॉग लिखने के बाद परसों एक टिप्पणी के रूप में अवार्ड मिला कि मैं आंखे बंद करके एलोपैथी के लिये विज्ञापनीअंदाज़ में लेख लिखता हूं। इस से पिछली पोस्ट पर भी कुछ इस तरह की मिलती जुलती एक टिप्पणी आई थी।

वैसे इस तरह का स्पष्टीकरण देने की ज़रूरत तो है नहीं क्योंकि मैं किसी सेठ का गुलाम तो हूं नहीं कि कोई मुझे यह बताये कि यह लिख और यह मत लिख। वैसे कोई अगर यह कहता भी है तो तुरंत समझ में आ ही जाता है कि लिखने वाला किस भावना से ऐसा आग्रह कर रहा है। अपना तो सीधा सा फंडा है कि जिस बात को लिख कर सिर हल्का सा हो जाये , बस लिख कर छुट्टी की जाये, लेकिन फिर भी स्पष्ट कर ही देना ठीक होगा कि इस विज्ञापनबाजी के चक्कर में मुझे आज तक तो पड़ने की कोई ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई। और शुक्र है कि किसी भी चीज की कमी नहीं है , वरना ज़रूरत अविष्कार की जननी है –यह मैं भी अच्छी तरह से जानता हूं।

लेकिन यह टिप्पणी देने वाले का भला हो --- क्योंकि इस विज्ञापनी अंदाज़ वाली बात से यह प्रेरणा मिली कि क्यों न मैं ब्लॉग में कुछ विज्ञापनों की बखिया ही उधेड़ लिया करूं। यह जो विज्ञापन आप यहां देख रहे हैं—इस तरह के कईं विज्ञापन आप को अकसर दिखते रहते हैं और इस तरह के लोशन वगैरा खरीदने के लिये उकसा ही देते हैं।

अकसर ऐसे मरीज़ मिलते हैं जिन से पता चलता है कि उन्होंने अपने दांतों पर बाज़ार से लेकर एक लोशन लगाया ताकि दांत चमक जायें लेकिन दो-चार दिन बाद ही दांत काले पड़ गये और साथ ही दांतों में ठंडा-गर्म लगना शुरू हो गया।

ऐसे एक एक बात गिनाने लगूंगा तो पोस्ट बहुत ही लंबी हो जायेगी—इसलिये एक काम करता हूं कि तरह तरह के लोशनों की हमारे मुंह एवं दांतों के स्वास्थ्य में क्या कोई भूमिका है , इस का विश्लेषण करते हैं ।

अभी तक कोई भी ऐसा लोशन बन कर तैयार नहीं हुआ है जिसे लगाने से दांत में किसी भी रंग का दाग दूर हो जाये -
लोशन के द्वारा यह काम संभव है ही नहीं --- ये दाग वगैरा दूर हो सकते हैं केवल एक प्रशिक्षित डैंटिस्ट के अपना इलाज करवा कर ही । कईं बार तो दांतों की पालिशिंग से ही ये दाग दूर हो जाते हैं। मैंने प्रशिक्षित डैंटिस्ट इसलिये लिखा है क्योंकि ये झोलाछाप अपने आप को दांतों का डाक्टर कहने वाले बशिंदे भी बहुत बार इस तरह के लोशन लोगों के दांतों पर लगा तो देते हैं ---बात में क्या होता है , इस से उन्हें क्या मतलब ? होता दरअसल यह है कि जो ये प्रोडक्ट्स वगैरह ये नीम-हकीम तथाकथित दंत-चिकित्सक इस्तेमाल करते हैं इस में कोई न कोई एसिड ( अमल, तेजाब) जैसी वस्तु पड़ी होती है ,अब आप ही सोचें कि जब इन तरह तरह की बेहद आयुर्वैदिक पदार्थों की आड़ में दांतों पर यह एसिड भी रगड़ा जायेगा तो क्या परिणाम होंगे --- मैं इस तरह के परिणाम अकसर देखता ही रहता हूं।

मसूढ़ों को शक्तिशाली बनाने वाला भी कोई लोशन अभी नहीं बना ---
ये सब गल्त क्लेम हैं, गल्त ही क्या , बेबुनियाद एवं भ्रामक हैं। लेकिन अफ़सोस यही है कि यहां पर लोशन ही नहीं तरह तरह के मंजन जो बसों में , फुटपाथों पर बिकते हैं ...वे भी यह क्लेम करते फिरते हैं। यह संभव ही नहीं है -----ये सब गुमराह करने के रास्ते हैं।

लोशन से दांत, इनामैल सुरक्षित रहेगा ---
इस का जवाब पहले ही दे चुका हूं कि ये लोशन इनामैल की धज्जियां उड़ाते हैं ना कि उसे सुरक्षित रखते हैं।

दांत की पथरी, मुंह से दुर्गंध, ठण्डा पानी या मिठाई खाने पर दांत सिरसिराना, पाइरिया एवं दांत से खून आना इस तरह के लोशन से कभी भी बंद हो ही नहीं सकता
यह कतई संभव है ही नहीं –अगर कोई ऐसी तकलीफ़ है तो डैंटिस्ट से मिल कर उपचार करवाना ही होगा, वरना दंत-रोग अंदर ही अंदर बढ़ता ही रहेगा।
इस तरह के लोशन ही क्यों, हिंदी के अखबारों में या जगह जगह ऐसी पेस्टों के विज्ञापन भी मिल जायेंगे जो कहेंगे कि इस से पॉयरिया ठीक हो जायेगा, मसूड़ों से खून आना ठीक हो जायेगा ---यह सरासर झूठ है, इस पर कभी भी विश्वास न ही करें तो बेहतर होगा – क्वालीफाइड डैंटिस्ट के पास जाये बिना यह कभी भी ( शत-प्रतिशत गारंटी !!) दुरूस्त हो ही नहीं सकता। हां, एक बात हो सकती है कि कुछ समय के लिये दांतों एवं मसूड़ों की कोई अवस्था दब जाये लेकिन इस अवस्था के पीछे जो कारण हैं वे बिल्कुल बरकरार रहते हैं और मज़े से पल्लवित-पुष्पित होते रहते हैं और बीमारी को उग्र रूप देना में योगदान देते हैं।

हिलने वाले दांतों तो मजबूत करने वाला कोई लोशन भी नहीं बना
अकसर यह भी कहा जाता है कि हिलने वालेदांत तो बिठाने के लिये भी पाउडर मिलता है। यह भी सरासर लोगों को च - - बनाने का एक ढंग है लेकिन लोग किसी ठोस प्रामाणिक जानकारी के अभाव में खुशी खुशी बन भी तो रहे हैं। हिलते दांतों के बारे में कुछ विशेष बातें मैं पहले भी लिख चुका हूं।

कहने को तो कोई यह भी कहे कि यार ये जो लोशन वगैरा मिलते हैं इन में तो कपूर, बबूल , माजूफल, लौंग का तेल, नारियल का मूल, दालचीनी, बकुल, अमृत पत्ता ------सब कुछ पड़ा तो हुआ है, सब कुछ आयुर्वैदिक ----भला, यह क्यों इस तरह के लोशन को भला-बुरा कह रहा है—हो न हो, यह मीडिया डाक्टर तो वास्तव में ही आयुर्वेद का धुर विरोधी भी है और किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त भी है।

आयुर्वेद की तारीफ़ मैं किन अल्फाज़ में करूं ---मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं, लेकिन आज कल कईं ऐसे -वैसे निर्मात्ता आयुर्वैदिक के नाम पर लोगों को वही बनाये ( आप समझते हैं क्या, ऊपर आप को हिंट दे तो दिया था !!) जा रहे हैं। वैसे भी मुझे अकसर उन इनग्रिडिऐन्ट्स की चिंता रहती है जिस का ज़िक्र इस तरह की दवाईयों की पैकिंग पर या रैपर पर कभी भी नहीं होता। और लोग यही समझते हैं कि आयुर्वैदिक ही तो है ना, तो सब ठीक ही होगा।

आयुर्वेदिक पद्धति से कोई अपनी किसी भी बीमारी का इलाज करवाना चाहता है तो उसे प्रशिक्षित आयुर्वेद के चिकित्सक के पास जाना ही होगा ----- वे ही इस तरह की दवाईयों के जानकार हैं, वरना झोलाछाप देसी डाक्टर तो इस देश के लगभग हर परिवार में एक-दो होते ही है जो लोकल बस स्टैंड पर खरीदी किसी देसी दवाईयों की किताब से ही अपने फन का सिक्का जमाने की धुन में मस्त हैं।

मुझे डर लगता है जिस तरह से लोग बस में किसी भी तरह के चूर्ण का सैंपल किसी से भी लेकर अपना हाजमा दुरुस्त करने लगते हैं, किस तरह अपने मुंह की बास खत्म करने के लिये किसी मंजन को आजमाने से नहीं चूकते, और तो और किसी से भी आंखों की दवाई डलवाने से भी नहीं चूकते----लेकिन ये सब खतरनाक काम हैं।लेकिन अफ़सोस जिन लोगों को मैं यह बात कहनी चाह रहा हूं उन तक मेरी बात शायद ही कभी पहुंचेगी। फिर भी कर्म किये जाना अपना कर्त्तव्य है।

और जाते जाते उस टिप्पणी का एक बार फिर से धन्यवाद करना चाहूंगा कि मुझे उस से एक नया आइडिया मिला। और रही बात, किसी टिप्पणी के माध्यम से किसी का मनोबल कम करने की बात, तो हम जैसे लोग कहां इस मिट्टी के बने हैं , हम ठहरे ढीठ किस्म के लोग, ऐसी हज़ारों टिप्पणीयों का स्वागत है और यह भी वायदा है कि इन्हें कभी भी डिलीट नहीं करूंगा-------मुझे उस टिप्पणी में यह भी लिखा गया था कि उसे डिलीट कर दूं , वरना मेरे टिप्पणीकारों को बुखार आ जायेगा---- लेकिन अफसोस मैं ऐसा करने के बिल्कुल भी मूड में नही हूं ---बुखार आयेगा तो क्या है , पैरासिटामोल की टेबलेट है ना !!

अभी मुझे ध्यान आ रहा है निठल्ला चिंतन ब्लॉग के तरूण जी का --- उन्होंने मुझे शुरू शुरू में एक बार सचेत भी किया था कि कमैंट-माडरेशन ऑन कर लेनी चाहिये ---- मैंने ऑन की भी थी लेकिन कुछ दिन बाद ही अन्य ब्लागर बंधुओं के अनुरोध पर हटा भी दी थी क्योंकि पता नहीं मैं समझता हूं कि कमैंट-माडरेशन ऑन करना किसी आज़ाद बाशिंदे के मुंह पर पट्टी बांधने के समान है। आज सब तरफ़ आज़ादी की हवा चल रही है ---हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार है , है कि नहीं ?

और जाते जाते उस टिप्पणी करने वाले से इतना ज़रूर पूछना चाहूंगा कि मेरी ऐसी कौन सी पोस्टें हैं जहां से उन्हें विज्ञापनबाजी की बास आ रही है , मुझे तो अपनी सभी पोस्टों से सच्चाई की , प्रेम प्यार की, अपनेपन की, सद्भाव की, विश्व-बंधुत्व की खुशबू आ रही है, लेकिन मैं गलत भी हो सकता हूं ---इसलिये अगर अन्य पाठकों को भी ऐसी वैसी बास आ रही हो, तो प्लीज़, बेझिझिक हो कर लिखियेगा, चाहे तो अनॉनीमस ही लिख दीजियेगा-----ताकि इस मीडिया डाक्टर पर बेकार लिखने की माथा-फोड़ी छोड़ कर हम भी नेट पर कोई दूसरी गली पकड़ें जहां पर दो पैसे भी कमायें और रोज़ाना बच्चों के तानों से भी बचें कि क्या हो जायेगा पापा ये सब लिखने से, देख लेना कुछ भी नहीं होगा !!

मैं खुशवंत सिंह जी की बेबाक लेखनी का बहुत प्रशंसक हूं --- पर पता नहीं आज कल उन के लेख दिखते नहीं हैं ---अगर आप को इस का कुछ पता हो कि वे आजकल किस पेपर में छपते हैं तो बतलाईयेगा, हां, तो उन की लिखी एक बात का ध्यान आ रहा है --- भगवान का शुक्र है कि पैन के लिये कोई कांडोम नहीं बना !! वाह, खुशवंत जी, क्या खूब बात कही !! -- आज के ज़माने में अगर ऐसा भी कुछ बन जाता तो अपने जैसों कितने ही लोगों का मन की बातें मन में रखे रहते दम ही निकल जाता।


मैं भी कभी कभी बाल की कितनी खाल खींचने लग जाता हूं ---- मैंने इतना लिख कर जो बात कही, वही बात सुपरस्टार राजेश खन्ना कितनी सहजता से, कितने सुकून से, कितने सुरीले अंदाज़ में कह रहे हैं, आप भी सुनिये।