बुधवार, 1 अक्तूबर 2008

श्रृंखला ---कैसे रहेंगे गुर्दे एक दम फिट !! ....भाग एक

पिछले वीकऐंड पर मैं दो दिन के लिये चैन्नई में था....वहां पर किडनी हैल्प ट्रस्ट नाम की एक संस्था पिछले लगभग 12 वर्षों से आसपास के हज़ारों लोगों पर एक अध्ययन कर रही है, कि क्या बिल्कुल साधारण से उपायों द्वारा लोगों को गुर्दे की क्रॉनिक बीमारियों से बचाया जा सकता है। मुझे वहां एक मैडीकल- राइटर के तौर पर आमंत्रित किया गया था।

इस संस्था के संचालक हैं – डा एम के मणि जो कि देश के सुप्रसिद्ध नैफ्रोलॉजिस्ट ( गुर्दा रोग विशेषज्ञ) हैं ..डा मणि मद्रास के अपोलो हास्पीटल के नैफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष भी हैं.....लगभग बीस लोगों को इस ट्रेनिंग वर्कशाप में बुलाया गया था। इस अध्ययन एवं ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में विस्तार से तो मैं अपनी अगली पोस्टों में लिखता रहूंगा। इस अध्ययन में इन के साथ हैं जानी-मानी ऐपियोडेमियोलॉजिस्ट, डा मंजूला दत्ता एवं श्री रवि दत्ता जो इस ट्रस्ट का प्रबंधन कार्य देखते हैं।

दो-चार बहुत ही महत्त्वपूर्ण सी बातें लिख कर यह पोस्ट तो समाप्त करूंगा।
सब से पहली बात तो यह है कि गुर्दे की क्रॉनिक बीमारियों की वजह से गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं। और एक बात है कि एक बार गुर्दे किसी क्रॉनिक बीमारी से ग्रस्त हो जायें तो या तो डॉयलैसिस रैगुलर करवाना पड़ता है ....और कुछ वर्षों के बाद तो गुर्दे के प्रत्यारोपण की ज़रूरत तो पड़ती ही है.......और हमारे देश में गुर्दे की तकलीफ़ों से जूझ रहे मरीज़ लाखों की संख्या में हैं और चंद मुट्ठी भर मरीज़ों के इलावा इतना महंगा इलाज करवाना इस देश की जनता के वश की बात है ही नहीं। यह तो एकदम तय है।

इसलिये केवल एक ही उपाय जान पड़ता है कि कैसे भी हो गुर्दे के रोगों से बच कर रहा जाये। क्या ऐसा संभव है ? – जी हां, देश के मशहूर किडनी विशेषज्ञों के अनुसार गुर्दे की क्रानिक बीमारी से बच कर रहना काफी हद तक संभव है।

गुर्दे की क्रानिक बीमारी के लगभग दस हज़ार मरीज़ों की एक स्टडी से पाया गया है कि लगभग इन में से 30 प्रतिशत केसों में डायबीटीज़ इस गुर्दे रोग का कारण होती है, अन्य 10 प्रतिशत केसों में हाई-ब्लड-प्रैशर की वजह से गुर्दे की बीमारी को देखा गया। इसी तरह से किडनी में पत्थरी की वजह से भी गुर्दे की बीमारी देखी गई है........सार के रूप में हमें वहां यही बताया गया कि गुर्दे की क्रॉनिक बीमारी के जितने भी कारण हैं उन में से लगभग 75प्रतिशत कारण ऐसे हैं जिन के बारे में हम कुछ न कुछ अवश्य कर सकते हैं ताकि गुर्दे की इस बीमारी से बचा जा सके।

कहने का भाव यह है कि अगर हम लोग मरीज के हाई-ब्लड-प्रैशर एवं उस की डायबीटीज़ को कंट्रोल में रखें तो हम गुर्दे की सेहत को काफ़ी हद तक बरकरार रख सकते हैं।

और विशेषज्ञों ने उस ट्रेनिंग प्रोग्राम ने एक बार पर बहुत ही ज़्यादा ज़ोर दिया कि चाहे कैसे भी जिस किसी भी दवा से यह संभव हो पाये- बीपी और डायबीटीज़ तो काबू में रहनी ही चाहिये। ऐसा नियंत्रण गुर्दे की सेहत के लिये बहुत ज़रूरी है।

लाइफ-स्टाईल की बात हो रही थी – बार बार उन्होंने ने यह भी कहा कि वज़न को तो कंट्रोल करना बेहद लाज़मी है ही ....इस के साथ ही साथ नमक एंव शूगर की खपत पर भी कंट्रोल करना होगा।

नमक के बारे में मुझे कुछ बातें जो वहां पर डिस्कस हुईं ध्यान में आ रही हैं। लेकिन तब तक आप एक होम-वर्क तो करिये- आप अपनी श्रीमति जी से या जो भी आप के घर में खाना बनाता है, उस से ज़रा यह पूछिये की आप के घर में एक महीने में नमक की लगभग कितनी खपत होती है। अच्छा आप यह सूचना मेरे को टिप्पणी में या ई-मेल में भेजियेगा., साथ में यह ज़रूर लिखियेगा कि परिवार में कुल सदस्य कितने हैं ....आगे की बात फिर करते हैं। वैसे ध्यान आ रहा है कि किसी ज़माने में मैंने कुछ लिखा था ...केवल नमक ही तो नहीं है नमकीन!....कभी फुर्सत हो तो उसे थोड़ा देख लीजियेगा- यह रहा उस का लिंक