सोमवार, 14 जनवरी 2008
दोस्तो, मेरी तो भई आज तलाश खत्म हो गई !!
जब पित्ते की पथरियां परेशान करने लग जाएं.......( Gall stones…..क्या हैं ये स्टोन और इन से कैसे निबटा जाए)
 
अकसर आप ने अपने आसपास लोगों को कहते सुना होगा कि फलां फलां बंदे के पित्ते में पथरियां थीं, बेहद परेशान था इसलिए उस को आप्रेशन करवाना पड़ा। कईं बार यह भी सुना होगा कि कोई व्यक्ति पित्ते की पथरी के दर्द से बेहद परेशान सा रहता है। 
चलिए, आज पित्ते की पथरी के बारे में ही कुछ बातें करते हैं॥
पित्ते की पथरियां महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती हैं। बार-बार गर्भ धारण करना, मोटापा एवं अचानक वजन कम करने वाली महिलाओं में ये अधिकतर होती हैं। 
पित्ते की  पथरी के अधिकांश मरीजों को तो कईं कईं साल तक कोई तकलीफ़ ही नहीं होती और कुछ मरीजों में तो कभी भी इन का कुछ भी कष्ट नहीं होता। लेकिन इन पथरियों की वजह से कुछ व्यक्तियों में उग्र तरह के परिणाम देखने को भी मिलते हैं जैसेकि  पेट में कभी कभी होना वाले बहुत ही  ज्यादा दर्द, और कभी कभी तो जीवन को ही खतरे में डाल देने वाली अवस्थाएं जैसे कि पित्ते की सूजन (acute cholecystitis), पैनक्रियाज़ की सूजन(acute pancreatitis) या किसे बहुत ही विरले केस में पित्ते का कैंसर। 
पित्ते की पथरियां ज्यादातर कोलैस्ट्रोल की ही बनी होती हैं। एक बार जब यह बनना शुरू हो जाती हैं तो फिर अगले दो-तीन वर्ष तक बढ़ती रहती हैं। लेकिन पित्ते की 85प्रतिशत पथरीयां दो सैंटीमीटर से कम डायामीटर वाली ही होती हैं। 
 
आम तौर बीस साल पहले तक तो पित्ते की पथरी के इलाज का एक ही साधन हुया करता था जिस में आप्रेशन कर के पथरी समेत पित्ते को बाहर निकाल दिया जाता था। यह आप्रेशन तो आजकल भी किया जाता है। और सामान्यतयः इस आप्रेशन के बाद हस्पताल में पांच दिन तक दाखिल रहना पड़ता है और पूरी तरह से ठीक ठाक होने में तीन से छः हफ्ते का समय लग जाता है। पिछले कुछ सालों से पित्ते की पथरी के लिए दूरबीनी आप्रेशन भी बड़ा कामयाब सिद्ध हुया है। 
बहुत से लोगों को पता नहीं है कि यह दूरबीनी आप्रेशन कैसे किया जाता है। थोड़ा बता देते हैं ......इस आप्रेशन के दौरान पेट (abdominal cavity) को कार्बनडाइआक्साइड गैस भर कर फुला दिया जाता है, उस के बाद लगभगआधे इंच के कुछ कट्स के रास्ते से अंदर से दूरबीनी फोटो लेने वाले एवं सर्जीकल औज़ारों को अंदरघुसा दिया जाता है।  और इस आप्रेशन कीलाइव तस्वीरों  को ओ.टी में लगी एक बड़ी स्क्रीन पर देखा जाता है। आप्रेशन के दौरान गाल-बलैडर (gall bladder-- पित्ते) को लिवर से अलग किया जाता है( सब कुछ दूरबीन से देख कर ही किया जाता है)  और एक बार जब यह पित्ता फ्री हो जाता है तो उसे उन छोटे-छोटे कट्स में से किसी एक कट् के रास्ते से बाहर खींच लिया जाता है.....उसके बाद दूरबीन एवं अन्य औजारोको भी बाहर निकाल लिया जाता है, और जो पेट पर जो छोटे छोटे कट्स दिए गए होते हैं उन को बहुत सा आसानी से टांक दिया जाता है और एक छोटी पट्टी से उसे कवर कर दिया जाता है। इस प्रकार के दूरबीनी आप्रेशन के लिए हास्पीटल में केवल एक-दो दिन ही रहना पड़ता है और एक-दो हफ्ते में बंदा एकदम परफैक्टली फिट भी हो जाता है।
 
ज्यादातर पित्ते की पथरीयां सारी उम्र कोई भी तकलीफ नहीं देती हैं। एक बात और यह भी है कि जिन मरीज़ों में भी पित्ते की पथरी की वजह से किसी तरह की जटिलता ( complication) पैदा होती है, वह अचानक ही पैदा नहीं होती, उस से पहले अकसर पित्ते की पथरी के कईं प्रकार के लक्षण दिख जाते हैं। कुछ अपवादों (exceptions) को छोड़ कर, एक बार किसी मरीज़ के पित्ते में पथरीयां पाईं जाने पर और वह भी बिना किसी लक्षण के हैं और किसी तरह की उनकी कोई तकलीफ़ भी नहीं है, तो ऐसे केसों में भविष्य में किसी कंप्लीकेशन से बचने के लिए आप्रेशन की सलाह विशेषज्ञ अकसर नहीं देते हैं। जिन अपवादों की बात की है, उन में से एक तो यही है कि चाहे कोई लक्षण अथवा तकलीफ है या नहीं, लेकिन अगर पित्ते की पथरी तीन सैंटीमीटर डायामीटर से भी ज्यादा है तो उस का आप्रेशन तो हो ही जाना चाहिए। बाकी अपवाद इस लेख के scope से थोड़ा परे की ही बात है क्योंकि उन्हें मेरे लिए इतना सिंप्लीफाई कर के आप को बताना बड़ा मुश्किल लग रहा है कि वे आसानी से आप की समझ में आ जाएं।
 
एक बार अगर पित्ते की पथरीयों की कोई तकलीफ अथवा लक्षण हो जाता है तो फिर ये तकलीफ अधिकांश मरीजों में बार-बार होती रहती है। इस का मतलब यही है कि जिन मरीजों में भी पित्ते की पथरी के कुछ लक्षण दिखें अथवा उन्हें इस की कोई तकलीफ़ है, उन्हें तो इलाज करवा ही लेना चाहिए। यही कारण है कि संबंधित डाक्टर को पहले यही सुनिश्चित करना होता है कि किसी मरीज में पेट में दर्द किसी निष्क्रिय पड़ी हुईं पित्ते की पथरियों की वजह से है या किसी और तकलीफ से है। आप समझ रहे हैं न------कहीं ऐसा न हो कि मरीज को पित्ते की पथरीयों की वजह से तो कोई तकलीफ हो नहीं और उस के पित्ते का आप्रेशन कर दिया जाए। ऐसे केसों में असली कारण तो भी ज्यों का त्यों बना रहेगा। पित्ते की पथरी का दर्द जिसे अकसर बीलियरी कोलिक (biliary colic) भी कहा जाता है, यह दर्द अच्छा-खासा तेज़, अचानक ही उठता है, पेट के ऊपरी हिस्से में (epigastric) या पेट के ऊपरी दायें हिस्से में यह दर्द होता है जो कि एक घंटे से लेकर पांच घंटे तक रहता है और अकसर मरीज़ को रात में नींद से जगा देता है।
 
जो पित्ते के आप्रेशन के लिए दूरबीनी आप्रेशन की बात हो रही थी, कईं केसों में विशेषज्ञ वह करवाने की सलाह नहीं देते। लेकिन यह ध्यान रखें कि इस काम के लिए किसी अनुभवी लैपरोस्कोपिक सर्जन के पास ही जाना ठीक है जिसे इस तकनीक द्वारा पित्ते के आप्रेशन का अच्छा अनुभव हो। कईं लोग यह सोच लेते हैं कि मोटे लोगों में यह दूरबीनी आप्रेशन नहीं हो सकता, ऐसा बिल्कुल नहीं है। मोटे मरीज़ों में भी यह दूरबीनी आप्रेशन किया जा सकता है बशर्ते कि उन की पेट की चर्बी ( abdominal wall) इतनी ज्यादा हो कि उस में से दूरबीनी आप्रेशन में इस्तेमाल होने वाले औज़ार ही अंदर न जा सके।
 
दोस्तो, यह सब जानकारी एक बैक-ग्राउंड इंफरमेशन है,, कोई भी तकलीफ होने पर अपने चिकित्सक से सम्पर्क करें जो आप को आपकी शारीरिक स्थिति के अनुसार आप को सलाह देंगे। 
वैसे आज मुझे एक बार फिर लग रहा है कि मैडीकल विषयों को आम जनता तक उन की ही बोलचाल में उन के सामने रखना अच्छा-खासा मुश्किल काम है........पर क्या करूं मैं भी ऐसे काम करने के लिए अपनी आदत से मजबूर हूं........क्योंकि यही सोचता हूं कि अगर यह काम हम जैसे लोग नहीं करेंगे तो फिर और कौन करेगा। 
OK ---friends-----wish you all a wonderful new year full of health , happiness and broad smiles and lot of SUNSHINE !!!
 
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चमत्कारी दवाईयां – लेकिन लेने से पहले ज़रा सोच लें !!
यह क्या, आप भी क्या सोचने लग गए ?- वैसे आप भी बिलकुल ठीक ही सोच रहे हैं- ये वही चमत्कारी दवाईयां हैं जिन के बारे में आप और हम तरह तरह के विज्ञापन देखते, पढ़ते और सुनते रहते हैं जिनमें यह दावा किया जाता है कि हमारी चमत्कारी दवा से किसी भी मरीज़ का पोलियो, कैंसर, अधरंग, नसों का ढीलापन, पीलिया रोग शर्तिया तौर पर जड़ से खत्म कर दिया जाता है। वैसे, चलिए आज अपनी बात पीलिया रोग तक ही सीमित रखते हैं।
 
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े होने के कारण बहुत से मरीज़ों से ऐसा सुनने को मिला कि पीलिया होने पर फलां-फलां शहर से लाकर चमत्कारी जड़ी-बूटी इस्तेमाल की, तब कहीं जाकर पीलिये के रोग से छुटकारा मिला। साथ में यह भी बताना नहीं भूलते कि जो शख्स यह काम कर रहा है उस को पीलिये के इलाज का कुछ रब्बी वरदान (बख्श) ही मिला हुया है – वह तो बस यह सब सेवा भाव से ही करता है, न कोई फीस, न कोई पैसा।
 
हमारे देश की प्राकृतिक वन-सम्पदा तो वैसे ही निराली है- औषधीय जड़ी बूटियों का तो भंडार है हमारे यहां। हमारी सरकार इन पर होने वाले अनुसंधान को खूब बढ़ावा देने के लिए सदैव तत्पर रहती है। इस तरह की योजनाओं के अंतर्गत सरकार चाहती है कि हमारी जनता इस औषधीय सम्पदा के बारे में जितना भी ज्ञान है उसे प्रगट करे जिससे कि सरकार उन पौधों एवं जड़ी बूटियों का विश्लेषण करने के पश्चात् उन की कार्यविधि की जानकारी हासिल तो करें ही, साथ ही साथ यह भी पता लगाएं कि वे मनुष्य द्वारा खाने के लिए सुरक्षित भी हैं या नहीं अथवा उन्हें खाने से भविष्य में क्या कुछ दोष भी हो सकते हैं ?
अच्छा, तो बात चल रही थी , पीलिये के लिए लोगों द्वारा दी जाने वाली चमत्कारी दवाईयों की। आप यह बात अच्छे से समझ लें कि पीलिये के मरीज़ की आंखों का अथवा पेशाब का पीलापन ठीक होना ही पर्याप्त नहीं है, लिवर की कार्य-क्षमता की जांच के साथ-साथ इस बात की भी पुष्टि होनी ही चाहिए कि यह जड़ी-बूटी शरीर के किसी भी महत्वपूर्ण अंग पर कोई भी गल्त प्रभाव न तो अब डाल रही है और न ही इस के प्रयोग के कईं वर्षों के पश्चात् ऐसे किसी कुप्रभाव की आशंका है। इस संबंध में चिकित्सा वैज्ञानिकों की तो राय यही है कि इन के समर्थकों का दावा कुछ भी हो, उन की पूरा वैज्ञानिक विश्लेषण तो होना ही चाहिए कि वे काम कैसे करती हैं और उन में से कौन से सक्रिय रसायन हैं जिसकी वजह से यह सब प्रभाव हो रहा है।
 
अकसर ऐसा भी सुनने में आता है कि ऐसी चमत्कारी दवाईयां देने
वाले लोग इन दवाई के राज़ को राज़ ही बनाए रखना चाहते हैं---उन्हें यह डर रहता है कि कहीं इस का ज्ञान सार्वजनिक करने से उनकी यह खानदानी शफ़ा ही न चली जाए। वैसे तो आज कल के वैज्ञानिक संदर्भ में यह सब हास्यास्पद ही जान पड़ता है। --- क्योंकि यह मुद्दा पैसे लेने या न लेने का उतना नहीं है जितना इश्यू इस बात का है कि आखिर इन जड़ी-बूटियों का वैज्ञानिक विश्लेषण क्या कहता है ?- वैसे कौन कह सकता है कि किसी के द्वारा छिपा कर रखे इस ज्ञान की वैज्ञानिक जांच के पश्चात् यही सात-समुंदर पार भी लाखों-करोड़ों लोगों की सेवा कर सकें।
 
वैसे तो एक बहुत जरूरी बात यह भी है कि किसी को पीलिया होने पर तुरंत ही इन बूटियों का इस्तेमाल  करना उचित नहीं लगता –कारण मैं बता रहा हूं। जिस रोग को हम पीलिया कहते हैं वह तो मात्र एक लक्षण है जिस में भूख न लगना, मतली आना, उल्टियां होने के साथ-साथ पेशाब का रंग गहरा पीला हो जाता है, कईं बार मल का रंग सफेद सा हो जाता है और साथ ही साथ आंखों के सफेद भाग पर पीलापन नज़र आता है। 
पीलिये के कईं कारण हैं और केवल एक प्रशिक्षित चिकित्सक ही पूरी जांच के बाद यह बता सकता है कि किसी केस में पीलिये का कारण क्या है......क्या यह लिवर की सूजन की वजह से है या फिर किसी और वजह से है। यह जानना इस लिए जरूरी है क्योंकि उस मरीज का इलाज फिर ढ़ूंढे गए कारण के मुताबिक ही किया जाता है। 
मैं सोचता हूं कि थोड़ी चर्चा और कर लें। दोस्तो, मैं बात कर रहा था एक ऐसे कारण की जिस में लिवर में सूजन आने की जिस की वजह से पीलिया हो जाता है। अब देखा जाए तो इस जिगर की सूजन के भी वैसे तो कईं कारण हैं,लेकिन हम इस समय थोड़ा ध्यान देते हैं केवल विषाणुओं (वायरस) से होने वाले यकृतशोथ (लिवर की सूजन) की ओर, जिसे अंगरेज़ी में हिपेटाइटिस कहते हैं। अब इन वायरस से होने वाले हिपेटाइटिस की भी कईं किस्में हैं,लेकिन हम केवल आम तौर पर होने वाली किस्मों की बात अभी करेंगे----- हिपेटाइटिस ए जो कि हिपेटाइटिस ए वायरस से इंफैक्शन से होता है। ये विषाणु मुख्यतः दूषित जल तथा भोजन के माध्यम से फैलते हैं। इस के मरीजों में ऊपर बताए लक्षण बच्चों में अधिक तीव्र होते हैं। इस में कुछ खास करने की जरूरत होती नहीं , बस कुछ खाने-पीने में सावधानियां ही बरतनी होती हैं.....साधारणतयः ये लक्षण 6 से 8 सप्ताह ( औसतन 4-5 सप्ताह) तक रहते हैं। इसके पश्चात् लगभग सभी रोगियों में रोग पूर्णतयः समाप्त हो जाता है। हिपेटाइटिस बी जैसा कि आप सब जानते हैं कि दूषित रक्त अथवा इंफैक्टिड व्यक्ति के साथ यौन-संबंधों से फैलता है।
 
बात लंबी हो गई लगती है, कहीं उबाऊ ही न हो जाए, तो ठीक है जल्दी से कुछ विशेष बातों को गिनते हैं....
·        अगर किसी को पीलिया हो जाए तो पहले चिकित्सक से मिलना बेहद जरूरी है जो कि शारीरिक परीक्षण एवं लेबोरेट्री जांच के द्वारा यह पता लगायेगा कि यह कहीं हैपेटाइटिस बी तो नहीं है अथवा किसी अन्य प्रकार का हैपेटाइटिस तो नहीं है। 
·        इस के साथ ही साथ रक्त में बिलिर्यूबिन (Serum Bilirubin)  की मात्रा की भी होती है ---दोस्तो, यह एक पिगमैंट है जिस की मात्रा अन्य लिवर फंक्शन टैस्टों (Liver function tests which include SGOT, SGPT and of course , Serum Bilirubin) के साथ किसी व्यक्ति के लिवर के कार्यकुशल अथवा रोग-ग्रस्त होने का प्रतीक तो हैं ही, इस के साथ ही साथ मरीज के उपचार के पश्चात् ठीक होने का भी सही पता इन टैस्टों से ही चलता है। 
·        इन टैस्टों के बाद डायग्नोसिस के अनुसार ही फिर चिकित्सक द्वारा इलाज शुरू किया जाएगा। कुछ समय के पश्चात ऊपर लिखे गए टैस्ट या कुछ और भी जांच करवा के यह सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी का लिवर वापिस अपनी सामान्य अवस्था में किस गति से आ रहा है। 
·        दोस्तो, जहां तक हिपेटाइटिस बी की बात है उस का इलाज भी पूरा करवाना चाहिए। अगर किसी पेट के विशेषज्ञ ( Gastroenterologist) से परामर्श कर लिया जाए तो बहुत ही अच्छा है। यह वही पीलिया है जिस अकसर लोग खतरनाक पीलिया अथवा काला पीलिया भी कह देते हैं। इस बीमारी में तो कुछ समय के बाद ब्लड-टैस्ट दोबारा भी करवाये जाते हैं ताकि इस बात का भी पता लग सके कि क्या अभी भी कोई दूसरा व्यक्ति मरीज़ के रक्त के संपर्क में आने से इंफैक्टेड हो सकता है अथवा नहीं। ऐसे मरीज़ों को आगे चल कर किन तकलीफ़ों का सामना करना पड़ सकता है, इस को पूरी तरह से आंका जाता है। 
बात थोड़ी जरूर हो गई है, लेकिन शायद यह जरूरी भी थी। दोस्तो, हम ने देखा कि चमत्कारी दवाईयां लेने से पहले अपने चिकित्सक से बात करनी कितनी ज़रूरी है और बहुत सोचने समझने के पश्चात् ही कोई निर्णय लें-----अपनी बात को तो, दोस्तो, मैं यहीं विराम देता हूं लेकिन फैसला तो आप का ही रहेगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति जड़ी –बूटियों द्वारा ही अपना इलाज करवाना चाहता है तो भी उसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञों से विमर्श करने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए।
दोस्तो, यार यह हमारी डाक्टरों की भी पता नहीं क्या मानसिकता है.....मकर-संक्रांति की सुहानी सुबह में क्या बीमारीयों की बातें करने लग पड़ा हूं....आप को अभी विश भी नहीं की...................
आप सब को मकर-संक्रांति को ढ़ेरों बधाईयां .......आप सब इस वर्ष नईं ऊंचाईंयां छुएं और सदैव प्रसन्न एवं स्वस्थ रहें !!
 
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