सोमवार, 28 अप्रैल 2008

मेरी अस्थियों की वसीयत...

आज मैं अपनी अस्थियों की वसीयत करने जा रहा हूं....नहीं..नहीं..बिल्कुल किसी प्रकार के भी दबाव में नहीं....बल्कि स्वयं अपनी मर्जी से होशो-हवास में यह सब कुछ कर रहा हूं.....नहीं, नहीं, मेरे सारे परिवार वाले, मेरे बीवी-बच्चों को भी इस में रती भर भी आपत्ति नहीं होगी.....इस का कारण यही है कि उन सभी के विचार मुझ से भी कहीं ज़्यादा क्रांतिकारी किस्म के हैं, प्रगतिशील हैं, रूढ़िपन से कोसों दूर हैं........किसी भी कर्म-कांड से कोसों दूर....इन ढकोंसलों को सिरे से नकारने वाले विचार रखते हैं मेरे घर के सारे बाशिंदे। वैसे पहले तो मेरा विचार था कि अपने पार्थिव शरीर को किसी मैडीकल कॉलेज को दान दे दूंगा.....ताकि कम से कम मैडीकल छात्रों के कुछ तो काम आये.....( वैसा ऐसा मेरे मरहूम नानाससुर ने दो-एक साल पहले किया था, उन के ये भाव जान कर मेरा मन बहुत उद्वेलित हुया था...).....लेकिन आज की अखबार पढ़ कर मुझे लगने लगा है कि यार, इन अस्थियों की तो अभी कुछ लोगों को विशेष ज़रूरत है.......चलिये अब मैं पूरी बात पर आता हूं।

आज हिंदी के तीन अखबारों के पहले पन्नों पर छपी तीन खबरों ने बहुत परेशान किया। एक अखबार के पहले पन्ने पर खबर दिखी कि कुछ बेटों ने किसी तांत्रिक के प्रभाव में आकर अपनी मां की ही बलि दे दी । अब इस के बारे में क्या कहूं.......खबर पूरी पढ़ ही क्या , सुन कर ही बोलती बंद हो जाती है ना !!

दूसरी अखबार के पहले पेज़ पर खबर थी कि महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक द्वारा आयोजित एमडी-एमएस प्रवेश परीक्षा का पेपर एक दिन पूर्व लीक हुआ था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चयनित स्टूडेंट्स को अलग अलग स्थानों पर प्रश्न रटवाए गये थे। अब कुछ छात्र समूह इस की एंक्वायरी की मांग कर रहे हैं..........छोटी मोटी एंक्वायरी ही क्यों, मेरे विचार में तो इस तरह के घोटाले में सीबीआई जांच होनी चाहिये। समझ नहीं आता कि किस तरह के स्पैशलिस्ट तैयार होंगे इस तरह की चयन परीक्षा के द्वारा........जो सीरियस किस्म के छात्र बेचारे कईं कईं साल तैयारी कर के इन कोर्सों में प्रवेश प्राप्त करने के सपने बुनते हैं.........वे तो बेचारे बेवकूफ़ हो गये....और जो लोग अपने कंटैक्ट एवं पैसे के ज़ोर पर इस तरह की प्रवेश-परीक्षा पर ही धावा बोल देते हैं........एक तरह से इन परीक्षाओं को सैबोटॉज कर लेते हैं.......वे अकलमंद हो गये। शायद ही आप इस बात का अंदाज़ा लगा सकें कि इस तरह की धांधली की वजह से किसी भी प्रतिभावान डाक्टर को कितनी घुटन, कुंठा, कितना आक्रोश, कितनी फ्रस्ट्रेशन, कितनी आग लगती होती......मेरे पास तो ये सब लिखने के शब्द भी नहीं हैं.....लेकिन ये बातें लिखने-पढ़ने की बात भी है नहीं.....अनुभव करने की बातें हैं।

तीसरी खबर.....यह भी एक अखबार के पहले पन्ने पर ही थी....इसे देख कर तो मेरा दिमाग 360 डिग्री ही घूम गया.....और मैंने अपने अस्थियों की वसीहत करने का फैसला कर लिया । हुया यूं कि अंबाला में गांव की किसी महिला की अस्थियां जेब में डालकर ले जाने वाले एक दिहाड़ी मज़दूर को ग्रामवासियों ने न केवल मुंह काला करने घुमाया बल्कि गांव से निकाल दिया। हां, हां, अस्थियां तो उस की जेब से निकाल ही लीं। पुलिस को भी फोन भी हो गया , तुरंत पंचायत भी बैठ गई....और उस मज़दूर को गांव-निकाला भी दे दिया और उस से यह भी कह दिया गया कि आज के बाद वह गांव में नज़र नहीं आना चाहिये। लेकिन मजदूर की बात तो सुनिये.....सुन कर आप भी पिघल जायेंगे.....उस ने कहा कि उस को किसी ने कहा था अस्थि बच्चे के गले में डाल दो तो बीमारी नहीं लगती है, इसलिये वह अस्थि ले कर जा रहा था।

तो, क्या आप को इन खबरों से आज के समाज की भयानक तसवीर की एक झलक नहीं दिखी......मुझे तो अच्छी खासी दिखी.....इसीलिये मैंने झट से अपनी अस्थियों की वसीयत कर देने में ही समझदारी समझी। वैसे भी मैं तो यह बिल्कुल नहीं समझता हूं कि इन अस्थियों के द्वारा ही मुझे मुक्ति मिलने वाली है.....नहीं, नहीं, मैं नहीं पड़ना चाहता इस तरह के मिथ्या आडंबरों में.....वैसे भी मुझे मुक्ति नहीं चाहिये.......मैं तो बस यूं ही पाखंडियों के आस-पास मंडराता रहना चाहता हूं.....मर कर भी उन की नींद हराम किये रखना चाहता हूं...........और वैसे भी इस न्यूज़-रिपोर्ट जैसे पता नहीं अभी कितने हज़ारों-लाखों लोग होंगे जिन्हें अब बच्चों के गले में डालने के लिये अस्थियां चाहिये होंगी........चलो, कुछ के तो काम आ ही जायेंगी....और इसी बहाने मुझे अपनी इस हार को मानने का एक अवसर तो मिलेगा कि ये वे महान आत्मायें हैं जिन को मैं अपनी ज़िंदगी के दौरान भ्रमजाल से मुक्त नहीं कर सका, इसलिये ये अब जो भी मेरी अस्थियों के साथ करना चाहें, इन्हें मनमानी कर लेने दो।

वैसे जब मैं ये अस्थियां चुराने वाली खबर पढ़ रहा था तो मेरा ध्यान हमेशा की तरह रोटी फिल्म के उस बेहद सुंदर गीत की तरफ एक बार फिर चला गया..........यार, हमारी बात सुनो, ऐसा इक इंसान चुनो....जिस ने पाप ना किया हो.......जो पापी न हो...........सचमुच आप पूरे मन से वह वाला गीत सुनेंगे तो आप की आंखें भर आयेंगी... दोस्तो, यह रोटी फिल्म भी कमबख्त ऐसी है कि पता नहीं लाइफ में किस घड़ी में देखी है कि ये मेरे लिये कईं अहम् फैसले लेने के लिये भी एक बैंच-मार्क का काम करती हैं......मुझे अकसर रोज़ाना कईं महत्वपूर्ण फैसले करने होते हैं.....तो अकसर मैं अपने इस बैंच-मार्क को ज़रूर कंसल्ट कर लेता हूं.......। धिक्कार है इस समाज पर, इस समाज के ठेकेदारों पर, इन धर्म के सौदागरों पर जिन्होंने एक मजलूम से इंसान को इतनी छोटी सी भूल के लिये इतनी बड़ी सज़ा देकर पता नहीं किस इलाही धर्म का पालन कर डाला। मैं मज़बूर बंदों पर इस तरह से अत्याचार करने की खुल कर, बिल्कुल खुल कर, ओपनी....घोर निंदा करता हूं।.........समाज से और कौन से अपराध नहीं हो रहे....घूसखोरी, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, जालसाजी, फरेब, बलात्कार, हत्यायें, आतंकवाद की घटनायें......इन का फैसला कभी इतनी तुंरत नहीं ( पता नहीं कब आता है...!!) आया जितना कि इस बेसहारा मज़दूर का आ गय़ा।

बस, अभी आप से क्षमा चाहता हूं....क्योंकि मैं ये तीनों खबरें पढ़ कर बहुत शर्मसार हूं.........मुझे सैटल होने के लिये थोड़ा एकांत चाहिये।