मंगलवार, 14 अक्तूबर 2008

कब्ज़ के इलाज के लिये क्यों न लें जुलाब !!


कब्ज़ का इलाज जानने से पहले यह समझना आवश्यक है कि कब्ज़ है क्या। यदि मल बहुत सख्त आए तो उसे कब्ज़ समझना चाहिए। यदि मल रोज न आए, परन्तु जब आए तो बहुत सख्त न हो तो उसे कब्ज़ नहीं कहेंगे। सख्त स्टूल यदि रोज आए तो फिर भी कब्ज़ समझकर उसका इलाज करना चाहिए।

सख्त मल को बाहर करने के लिये जोर लगाना पड़ता है, और उससे कई प्रकार की हानि हो सकती है। मल को नर्म करने के लिये आवश्यक है कि उस में पानी अधिक हो। मल में पानी अधिक तभी बचेगा यदि पानी का चूस लेने के लिये कुछ तत्व मल में हों। ऐसे तत्व भोजन के अपाच्य तत्व हैं, जो साबुत अनाज तथा दालों, और फल व सब्जियों में पाए जाते हैं। अपाच्य का अर्थ है कि वे छोटी आंत में पचते नहीं, और बिना हज़म हुए बिना बड़ी आंत में पहुंच जाते हैं। पानी चूस लेने के कारण वे बड़ी आंत में मल का आयतन बढ़ा देते हैं, और उसे नर्म कर देते हैं।

इसलिए यदि कब्ज़ हो तो
- हमें साबुत अनाज का प्रयोग करना चाहिए। यदि ऐसा न हो सके तो कम से कम छिलका हटाना चाहिए। अर्थात् हमारा आटा मोटा होना चाहिए, और उसे जाली में छानकर चोकर को फैंकना नहीं चाहिए। मैदे का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।

-साबुत दालों का प्रयोग करना चाहिए। धुली हुई दालों में छिलका निकल जाने के कारण अपाच्य तत्व कम होते हैं।
हरी सब्जियों और फलों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।

-जल अधिक पीना चाहिए ताकि अपाच्य तत्व काफी जल चूस सकें।

यदि फिर भी कब्ज ठीक न हो तो दिन में एक बार, एक या दो चम्मच ईसबगोल की भूसी को दूध या पानी में भिगो कर लेना चाहिए। ईसबगोल की भूसी एक बीज का ही छिलका है जिसमें पानी चूसने वाले अपाच्य तत्व बहुत मात्रा में होते हैं। इसलिए यह उतना ही प्राकृतिक तरीका है जितना साबुत दालें या फल व सब्जियां लेना है। इसे जुलाब नहीं समझना चाहिए। आहार में परिवर्तन के साथ साथ यदि थोड़ा व्यायाम भी कर लिया जाए तो कब्ज़ को लाभ होता है।

यह तो हुई करने वाली बातें। एक महत्वपूर्ण बात जो नहीं करनी चाहिए, वह यह है कि कब्ज़ के इलाज के लिए जुलाब नहीं लेने चाहिए।इसका कारण यह है कि जुलाब हमारी बड़ी आंत को इतना खाली कर देते हैं कि उसे भरने के लिए 2-3 दिन की आवश्यकता होती है। यदि कोई इतना समय धैर्य से प्रतीक्षा नहीं कर सकेगा तो वह फिर से जुलाब ले लेगा। जुलाब लेने से आंत फिर से खाली हो जाएगी, और इस प्रकार जुलाब लेने का सिलसिला चलता ही रहेगा।
तो आइए, बाईं तरफ  दी गई चार तस्वीरों को देखते हैं और इस जुलाब न लेने के फंडे को समझने की कोशिश करते हैं। जब हम शौचालय जाते हैं तो बड़ी आंत का केवल थोड़ा सा ही भाग खाली होता है (1) खाली भाग को भरने के लिए प्रायः एक-दो दिन लग जाते हैं।
जुलाब से बड़ी आंत बहुत अधिक खाली हो जाती है (2)
फलस्वरूप अगले दिन (3) या उस से भी अगले दिन (4) बड़ी आंत इतनी भरी नहीं होती कि शौचालय जाने की इच्छा हो। ऐसी अवस्था में आवश्यकता है धैर्य की। यदि एक दिन और ठहर जायेंगे तो अपने आप ही बड़ी आंत इतनी भर जाएगी कि शौचालय जाने की इच्छा होगी।