शनिवार, 16 अगस्त 2014

पानमसाला जिन की जान नहीं भी ले पाता....

कुछ दिन पहले मेरे पास एक आदमी आया --कहने लगा कि उस की बीवी को मुंह में कुछ शिकायत है। मैंने कहा- ठीक है, ले आओ कभी भी। झिझकते हुए कहने लगा कि उसे पानमसाला खाने की लत है और आप उसे मत झिड़कियेगा, आप ने जो कहना होगा बाद में मुझे कह लीजिएगा। वह कमजोर दिल वाली है। मैंने इस तरह की रिक्वेस्ट पहली बार सुन रहा था। मैंने कहा --नहीं, नहीं, तुम चिंता न करो.....मैं तो उसे क्या तुम्हें भी कुछ नहीं कहूंगा। अब कोई क्या खा-पी रहा है, उस पर मेरा कोई कानूनी नियंत्रण थोड़े ही ना है।

बहरहाल, दो तीन दिन पहले वह मेरे पास अपनी बीवी को ले आया--- ३३-३४ साल की उम्र.. मुंह खुल नहीं रहा था, बिल्कुल भी नहीं, बस इतना कि दूध-चाय में बिस्कुट डुबो कर अंदर डाल ले। दुःख होता है इस तरह के मरीज देख कर......वैसे सेहत बिल्कुल ठीक ठाक और इतनी छोटी उम्र में ऐसा लफड़ा।

फिर उसने मेरे सामने अपने पुराने पेपर कर दिए.....जिस से मुझे पता चला कि २००७ में भी उसने कुछ इलाज तो लिया था। वह बताने लगी कि उस समय मेरे मुंह में तीन अंगुली चली जाती थी और अब एक अंगुली भी नहीं जा पाती। मुंह के लगभग ना के बराबर खुलने की बात तो मैं पहले ही कर चुका हूं।

इलाज के नाम पर वही मुंह में घाव के ऊपर लगाने वाली कुछ दवाईयां, गुब्बारे फुलाने वाली एक्सरसाईज़........कुछ नहीं होता वोता इन सब से.......अगर ना तो पानमसाला ही छोड़ा जाए और न ही अगर किसी ढंग की जगह से --मेरे कहने का मतलब है ओरल सर्जन से इस का उपचार न करवाया जाए....कुछ नहीं होता इस तरह के घरेलू उपायों से।

मुझे अफसोस इस बात का हुआ कि सात वर्ष थे इस के पास --- कितना समय नष्ट हो गया, न तो इसने पानमसाला ही छोड़ा और न ही इस ही यह किसी विशेषज्ञ से इलाज करवा पाई। अब तीन दिन पहले उसने पानमसाला छोड़ दिया है।
उस के बाद वह फिर २००९ में भी किसी डाक्टर के पास गई जिसने उसे एक डैंटल कालेज में रेफर किया , लेकिन किसी कारण वश वह वहां पर भी न गई।

ऐसे केस मैं देखता हूं कि मुझे लगता है कि मरीज की गलती तो है ही कि वह यह मसाला-वाला छोड़ नहीं रहा, डाक्टर का भी क्या हुनर कि वह एक इंसान का इतना ब्रेन-वॉश न कर पाए कि उसे मसाले से नफ़रत हो जाए। यहां चिकित्सक भी फेल हुआ..।

मैंने जब पूछा कि कब से खा रही हैं मसाला......तो उसने जो बताया वह संदेश आप सब को भी जानने की ज़रूरत है कि औरतों को किस किस हालात में यह लत लग जाती है ताकि आप औरों को भी सचेत कर सकें।

उसने बताया कि शादी से पहले उसने कभी कुछ इस तरह का नहीं खाया.......२१ वर्ष की उम्र में जब वह पेट से थी और गांव में रहती थी तो उसे थोड़ी बेचैनी होने लगती तो बस उसे पानमसाले की आदत पड़ गई। लेकिन कुछ महीनों के बाद जब उस का पहला बेटा हुआ तो उसने फिर यह खाना बंद कर दिया।

दो साल बाद जब वह फिर से उम्मीद से हुई तो फिर उसे पानमसाले की आदत पड़ गई......लेकिन फिर दूसरा बच्चे होने पर इसे छोड़ दिया। लेकिन तीसरा बच्चा होने पर फिर उस के बाद वह इस आदत को छोड़ न पाई और निरंतर ५-६ पाउच पानमसाले के चबाती रही । ऐसे ही तीन चार साल चबाने के बाद जब मुंह खुलना कम होने लगा तो फिर दंत चिकित्सक के पास पहुंच गई। बाकी की बात तो मैंने पहले आप को सुना ही दी है। अब इस का पूरा इलाज होगा किसी ओरल सर्जन की देख रेख में।

अब पढ़ने वाले यह मत सोच लें कि यह तो ६ पैकेट खाती रही, हम तो चार ही खाते हैं, इस ने तो इतने वर्ष खाए, हम ने तो ३-४ वर्ष ही खाए हैं, इसलिए हम तो सुरक्षित हैं, नहीं ऐसा नहीं है,  आज ही कहीं नोट कर लें कि गुटखा-पानमसाला खाने वाला कोई भी सुरक्षित नहीं है। हां, अगर आप अपनी किस्मत अजमाने के चक्कर में हैं, तो फिर आप को कौन रोक सकता है।

इस पोस्ट से मैं एक बात और रेखांकित करना चाहता हूं कि इस तरह की तकलीफ जैसी की इस औरत में पाई गई (सब-म्यूक्स फाईब्रोसिस) --यह कैंसर की पूर्व-अवस्था है....और ऐसे हर केस में कैंसर बनेगा, यह नहीं है, लेकिन किस में बनेगा, यह पहले से कोई नहीं बता सकता। वैसे भी अगर कैंसर डिवेल्प होने से ऐसे मरीज बच भी जाएं तो क्या इतना लंबा और महंगा इलाज, मुंह में बार बार तरह तरह के टीके लगवाने, मुंह के अंदर चमड़े की तरह जुड़ चुकी मांसपेशियों को खोलने के लिए किए जाने वाले आप्रेशन........क्या हर कोई करवा सकता है, क्या हर एक के पास इतना पैसा है या विशेषज्ञ इतनी आसानी से मिल जाते हैं ? और तौ और खाने पीने की बेइंतहा तकलीफ़, दांत साफ़ न करने का दुःख, आप बस एक क्लपना सी करिए की मुंह न खुलने पर किसी को कैसा लगता होगा, और कौन कौन से काम वह बंदा करने में असमर्थ होगा, आप सोच कर ही कांप उठेंगे। है कि नहीं?

लिखता रहता हूं इस तरह के ज़हर के बारे में क्योंकि रोज़ इस ज़हर से होने वाली तकलीफ़ों से लोगों को तड़फते देखता हूं.........इतना तो आप मेरा ब्लॉग देख पढ़ कर समझ ही चुके होंगे कि इस में आप किसी भी पेज को खोल लें, केवल सच और सच के सिवा कुछ भी नहीं लिखा, मुझे क्या करना है किसी भी बात को बढ़ा चढ़ा कर लिखने से, मैं कौन सा आप से परामर्श फीस ले रहा हूं.  केवल जो सच्चाई है, जो सीखा है उसे आप के साथ साझा करने आ जाता हूं, मानो या ना मानो, जैसी आप की खुशी।

एक बात और ......पिछले सप्ताह एक आदमी आया........पानमसाला उसने १९९५ में छोड़ दिया था जब उस का मुंह खुलना कम हुआ....... ऐसा उसने मेरे को बताया, अब उस के मुंह में गाल के अंदर एक घाव था, मुझे वह घाव अजीब सा लगा, मैंने कहा कि इस का टुकड़ा लेकर टेस्ट करना होगा। कहने लगा कि वह तो उसने करवा लिया है सरकारी कालेज से ...रिपोर्ट लेकर आया तो मुझे बहुत दुःख हुआ.......वह घाव मुंह के कैंसर में बदल चुका था. मैंने उसी दिन उसे मुंबई के टाटा अस्पताल में जाने की सलाह दी, लेकिन वह आज तक लौट कर नहीं आया।

मुझे कईं बार लगता है कि ये तंबाकू, गुटखा, पानमसाला भी एक बहुत बड़े आतंकवाद का हिस्सा है, लगभग हर कोई खाए जा रहा है, इस उम्मीद के साथ कि इस के दुष्परिणाम तो दूसरों में होंगे, उसे तो कुछ नहीं होगा........अगर ऐसा कोई विचार भी मन में आ रहा है या कभी भी आया हो मैं अपने इस विषय पर लिखे अन्य लेखों के लिंक्स यहां लगा रहा हूं........हो सके तो नज़र मार लीजिएगा।

और एक बात...ऐसे केस इक्का-दुक्का नहीं हैं दोस्तो, आते ही रहते हैं, रोज़ ही आते हैं, इसलिए अगर पान-पानमसाला, गुटखा, तंबाकू-- खाने,पीने,चूसने,चबाने,दबाने के बावजूद भी अभी तक बचे हुए हैं तो तुंरत इसे थूक डालिए और किसी अनुभवी दंत चिकित्सक से अपने मुंह की जांच करवाईए........फायदे में रहेंगे। लाख टके की बात बिल्कुल मुफ्त में बता रहा हूं।

चमड़ी को चमड़ा बनने से पहले --- पानमसाले को ...
मुंह न खोल पाना एक गंभीर समस्या 
दो वर्षों में भी अपना काम कर लेता है गुटखा..
मीडिया डाक्टर: गुटखा छोड़ने का एक जानलेवा ...
काश, किसी तरह भी इस लत को लात पड़ जाये
मीडिया डाक्टर: तंबाकू --- एक-दो किस्से ये भी ...

सी टी स्कैन का दिन प्रतिदिन बढ़ता धंधा

बीबीसी की यह न्यूज़-रिपोर्ट पढ़ कर कुछ ज़्यादा अचंभा नहीं हुआ कि वहां पर २०१२ में बच्चों में किए जाने वाले सी टी स्कैनों की संख्या दोगुनी हो कर एक लाख तक पहुंच गई।

रिपोर्ट पढ़ कर और तो कुछ ज़्यादा आम बंदे को समझ नहीं आयेगा लेकिन वह इतना तो ज़रूर समझ ही जायेगा कि कुछ न कुछ तो लफड़ा है ही।

Sharp rise in CT scans in children and adults

समझ न आने का कारण है कि रिपोर्ट में कुछ कह रहे हैं कि यह ठीक नहीं है, कुछ कह रहे हैं कि नहीं जिन बच्चों को ज़रूरत थी उन्हीं का ही सी टी स्कैन करवाया गया है, खिचड़ी सी बनी हुई है।

लेिकन एक बात जो सब को अच्छे से समझने की ज़रूरत है कि बिना वजह से करवाए गये सी टी स्कैन का वैसे तो हर एक को ही नुकसान होता है, लेकिन बच्चों को इस से होने वाले नुकसान का सब से ज़्यादा अंदेशा रहता है क्योंकि उन का जीवन काल अभी बहुत लंबा पड़ा होता है।

इस रिपोर्ट में एक २०१२ की स्टडी का भी उल्लेख है जिसमें यह पाया गया कि अगर बच्चों के सी टी स्कैन बार बार किए जाएं (१० या उस से अधिक) तो उन में रक्त  एवं  दिमाग का कैंसर होने का रिस्क तिगुना हो जाता है।

अब सोचने वाली बात यह है कि यह पढ़ कर सभी मां बाप कहेंगे कि हमें पता कैसे चले कि डाक्टर जो सी टी स्कैन के लिए लिख रहा है, उस जांच की मांग उचित है या नहीं। वैसे भी बच्चा बीमार होने पर मां-बाप अपनी सुध बुध सी खोए रहते हैं और ऐसे में यह कहां से पता चले कि सीटी स्कैन करवाना उचित है कि नहीं, इस की ज़रूरत है भी कि नहीं।

बिल्कुल सही बात है यह निर्णय मां-बाप के लिए लेना मुमकिन बिल्कुल भी नहीं है।

लेकिन एक बात तो मां-बाप कर ही सकते हैं कि छोटी मोटी तकलीफ़ों के लिए बच्चे को बड़े से बड़े विशेषज्ञ के पास या बड़े कार्पोरेट अस्पतालों में लेकर ही न जाएं, सब से पहले अपने पड़ोस के क्वालीफाइड फैमली डाक्टर पर ही भरोसा रखें, यकीनन वह अधिकतर बीमारियों को ठीक करने में सक्षम है। अगर किसी बड़े टेस्ट की ज़रूरत होगी तो वह बता ही देगा।

और मुझे ऐसा लगता है कि यह मंहगे महंगे टेस्ट अगर किसी ने लिखे भी हैं, तो भी अगर समय की कोई दिक्कत नहीं है तो भी किसी दूसरे डाक्टर से परामर्श कर ही लेना चाहिए।

वैसे यह सब कुछ कर पाना क्या उतना ही आसान है जितनी आसानी से मैं लिख पा रहा हूं। बहुत मुश्किल है मां -बाप के लिए डाक्टर के कहे पर प्रश्नचिंह लगाना.......बहुत ही कठिन काम है।

यू के की बात तो हमने कर ली, लेकिन अपने यहां क्या हो रहा है, रोज़ हम लोग अखबारों में देखते हैं, टीवी पर सुनते हैं। कुछ कुछ गोरखधंधे तो चल ही रहे हैं।

एक बात जो मैंने नोटिस की है कि भारत में लोग पहले किसी गांव के नीम-हकीम झोला छाप के पास जाते हैं जिसने सीटी स्कैन या एमआरआई का बस नाम सुना हुआ है, बस वह हर सिरदर्द के मरीज़ को सीटी स्कैन और हर पीठ दर्द के मरीज़ को एमआरआई करवाने की सलाह दे देता है। इन नीम हकीमों तक ने भी सैटिंग कर रखी होती है...... और यह सैटिंग ज़्यादा पुख्ता किस्म की होती है। समझ गये ना आप?

अब अगर तो यह मरीज़ किसी सही डाक्टर के हाथ पड़ जाता है तो वह उसे समझा-बुझा कर उस की सेहत और पैसा बरबाद होने से बचा लेता है, वरना तो......।

बीबीसी की इसी रिपोर्ट में आप पाएंगे कि यह मांग की जा रही है वहां यूके में किस सीटीस्कैन सैंटर ने वर्ष में कितने सीटीस्कैन किए और मरीज़ों की एक्सरे किरणों की कितनी डोज़ दे कर ये सीटीस्कैन किए जा रहे हैं, इस की पूर्ण जानकारी सरकार को उपलब्ध करवाई जाए। इस तरह के उपाय क्या भारत में भी शुरू नहीं किये जा सकते है या अगर शुरू हो भी गये तो इन का बेवजह किए जाने वाले सीटी स्कैनों की निरंतर बढ़ रही संख्या पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी एक प्रश्न ही है।

अंत में बस यही बात समझ में आ रही है कि अपने फैमिली फ़िज़िशियन पर भी हम लोग भरोसा करें......... और महंगे टैस्ट करवाने के लिए कहे जाने पर.....जिन के बार बार करवाने से नुकसान भी हो सकता है----ऐसे केस में हमें दूसरे चिकित्सक से ओपिनियन लेने में नहीं झिझकना चाहिए। यह नहीं कि दूसरे डाक्टर की फीस २०० रूपये है और यह टैस्ट तो ८०० रूपये में हो जायेगा, बात पैसे की नहीं है, बात सेहत की सुरक्षा की है कि बिना वजह एक्सरे किरणें शरीर में जा कर इक्ट्ठी न हो पाएं, किसी तरह की जटिलता न पैदा कर दें।

कुछ अरसा पहले भी मैंने इस विषय पर कुछ लिखा था, ये पड़े हैं वे लिंक्स........

सी.टी स्कैन से भी होता है ओवर-एक्सपोज़र
मीडिया डाक्टर: ओव्हर-डॉयग्नोसिस से ओव्हर ...