शुक्रवार, 13 मई 2016

आइए, मकानों को सुंदर बनाएं!

मकानों को घर बनाने वाला टापिक तो बिल्कुल अलग ही है..प्रवचन टाइप में है...उस के बारे में तो आप सब बहुत कुछ पहले ही से जानते हैं...आज मैं सुबह साईकिल पर घूमने निकला तो अचानक मुझे ध्यान अपने बचपन के दिनों का ..हम लोग स्कूल से आते वक्त एक फौजी अफसर की कोठी के बाहर एक तख्ती देखा करते थे..लिखा रहता था..कुत्ते से सावधान...इंगलिश में भी लिखा रहता था..Beware of dog!

इस घर के आस पास न तो कोई पेड़-पौधे ही थे...बिल्कुल गमगीन सा मकान दिखा करता था..हमें भी इस मकान के आगे से निकलते समय एक अजीब सी उलझन हुआ करती थी...ऐसे लगता था कि झट से इसे पार करें और आगे सरकें...गेट बंद रहता था और उस के आगे कंटीली तार वाली दीवार भी थी..फिर भी लगता था कि आज तो कोई कुत्ता पकड़ ही लेगा...

मैं बहुत बार इस के बारे में सोचता हूं कि मकान कैसे सुंदर बन सकते हैं..क्या हज़ारों रूपयों की महंगी पेन्टिंग्स आर्ट गैलरी से लाकर टांग देने से, वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के अंदर वाले हिस्से की लैंड-स्केपिंग करवाने से...या महंगे महंगे पत्थर-संगमरमर मकान पर चिपकाने से ....मुझे नहीं लगता कि किसी भी मकान की सुंदरता किसी भी तरह से मोरंग, रेता, ईंटों की मोहताज है ...हो ही नहीं सकती ...

कईं बार आपने देखा होगा कि आप कहीं से गुज़र रहे हेैं तो अचानक कोई मकान आप को बहुत अच्छा लगता था...चाहे वह कच्चा ही होता है..कईं बार...लेकिन हम तो यहां बस अच्छा लगने की बात कर रहे हैं...उस मकान में अगली बार नोटिस करियेगा कि निम्नलिखित विशेषताओं में से कोई न कोई तो ज़रूर मिल जाएंगी..

उस घर के आस पास और अंदर आंगन में खूब बड़े बड़े पुराने पेड़ होंगे....हां, एक बात कह दूं बिना पड़ताल के ही ...अकसर ऐसे मकान घर भी अच्छे हुआ करते हैं। 

इन घरों के कुछ पेड़ों पर पंक्षियों के घोंसलों से उन के चहचहाने की आवाज़ें भी आ रही होती हैं अकसर..

अपने लिए पानी की सप्लाई कितनी है कितनी नहीं, इस के बावजूद घर के बाहर जानवरों के लिए पानी के लिए एक हौज़ सा होगा, वरना बड़ा सा पत्थर का कोई जुगाड़ जिस में पानी इक्ट्ठा किया जा सके..



पंक्षियों के लिए पानी पीने के लिए कुछ बर्तन घर की दीवार पर पड़े मिलेंगे...

मैं बहुत बार नोटिस करता हूं कि किसी रास्ते पर जाते हुए जब किसी मकान के बाहर आप कोई घना पेड़ देखते हैं तो अचानक आप को लगता है कि यार, यह घर कितना सुंदर है...आने जाने वाले राही को ठंडक तो देते ही हैं ...बेशक...

अकसर ऐसे घरों के बाहर दो तीन पानी के मटके लाल कपड़े में िलपटे भी मिल जाएंगे...राही को बुला रहे हों जैसे कि पथिक, आओ, इस शिखर दोपहरी में पेड़ की छाया में थोड़ा सुस्ता लो, पानी पिओ...फिर आगे बढ़ो। 

मेरी यह परिभाषा है सुंदर मकान की....जैसा कि मैंने कहा और पूरे विश्वास से साथ कह रहा हूं कि अकसर इस तरह के सुंदर मकान बेहद सुंदर घर भी होते हैं....मतलब आप समझ रहे हैं...सब अच्छे संस्कारों और कोमल भावनाओं का खेल है, और कुछ नहीं!

जाते जाते एक बात ध्यान में आ गई...कुछ िदन पहले मैं सुबह साईकिल पर टहलने निकला...एक आलीशान मकान के गेट के पास एक रईस दिखने वाली महिला कुर्सी पर बैठ कर अपनी बेड-टी का आनंद ले रही थी ..साथ में शायद अखबार पढ़ा जा रहा था ...और पास ही गेट के पास एक बड़े सुंदर पिंजड़े में एक तोताराम जी चुपचाप सहमे हुए बैठे थे...मुझे उस दिन यही लगा कि जिस तरह से तुम अपनी आज़ादी का मजा ले रही हो, ऐसे में क्यों इस बेचारे को पिंजड़े में कैद कर रखा है ...अचानक वह मकान कुरूप दिखने लगा...

यहां भी मिट्ठू मियां को पिंजड़ें में बंद करने की बातें चल रही हैं...बहुत बरसों बाद इस का ध्यान आया..सोचा फिर से देख ही लिया जाए..फिल्म चरणों की सौगंध...

लेकिन जिन सुंदर मकानों की बात मैं कर रहा हूं उन में अकसर पिंजड़े नहीं हुआ करते, तरह तरह के पंक्षी, तोते-मैना सभी खुशी खुशी आते हैं ....मकान वालों को अपना हाल चाल ब्यां करते हैं, दाना खाते हैं, पानी पीते हैं और फुर्र....ये गये वो गये....अगले दिन फिर से सुबह वापिस लौट कर आने के लिए....यही प्रेम का असली रिश्ता है...

इस मकान को किराये पर लेने की बड़ी तमन्ना थी...लेकिन हो नहीं पाया!
आज सुबह टहलते मुझे यह मकान भी दिख गया जिसे हम लोग किराये पर लेना चाहते थे ..लेकिन यह संभव नहीं हो पाया...इस मकान को आप देखिए पेड़ों ने हर तरफ़ से घेर रखा है ...मुझे एक रिटायर्ड चिकित्सा महानिदेशक की बात याद आ गई ..किसी से सुनी थी एक बार...वह कहा करते थे कि अस्पतालों के आसपास और उन के आंगन में पेड़ों के इस तरह के झुरमुट होने चाहिए ...हरियाली इतनी होनी चाहिए कि दूर से अस्पताल दिखे ही नहीं....कितनी सुंदर बात ...कितनी संवेदना....अगर इस तरह का वातावरण रहेगा तो मरीज़ को स्वास्थ्य लाभ भी कितनी जल्दी मिलेगा! 

कुछ लोगों के लिए पेड़ जैसे आफ़त हों...हम लोग एक घर में रहते थे ...हम ने उस में बहुत से पेड़ लगवाए...आठ दस साल में बड़े हो गये....उन से हम सब को इतनी मोहब्बत कि श्रीमति को उन की छंटाई भी बच्चों के स्कूल के समय ही करवानी पड़ती ...बच्चे फिर भी स्कूल से आने पर नाराज़ हो जाते...लेिकन जब हमारा तबादला हुआ तो जिस बंदे को वह मकान अलाट हुआ, सुना है उसने पहला काम यही किया कि सभी पेड़ जड़ से उखड़वा फिंकवा किए....हमें उस दिन बहुत दुःख हुआ.. क्या करें यार, लोग समझने को तैयार ही नहीं है, फिर कहते हैं कि अब कूलर से कुछ नहीं होता, ए.सी भी काम करते नहीं दिखते.......साहब, अगर यही हालात रहे तो आगे आगे देखिए होता है क्या!

हमारे मकान (घर?) का एक कोना मेरा भी है ...हा हा हा हा ...हम मकानों की सुंदरता पर चर्चा कर रहे हैं और इस रेडवे पर इस party song में अपनी मस्ती में मस्त किसी लड़की ब्यूटीफुल के चुल कर जाने की बात सुनाई दे रही है...इन की भी सुन लीजिए...

आज सुबह के लिए इतनी बकबक ही काफ़ी है, चुपचाप आप भी नाश्ता करिए और अपने काम धंधे की फ़िक्र करिए...मिलते हैं जल्दी ही फिर से...