रविवार, 10 अगस्त 2014

किशोरावस्था के अहम् मुद्दे...

अभी कुछ सर्च कर रहा था तो यह पन्ना दिख गया...अमेरिकन एकेडमी ऑफ पिडिएट्रिक्स का तैयार किया हुआ.. इस की विश्वसनीयता के बारे में आप पूरी तरह से आशवस्त हो सकते हैं। बिल्कुल विश्वसनीय जानकारी है ...इस पेज पर यह बताया गया है कि किशोरावस्था में कौन से मुद्दे किशोरों को परेशान किए रहते हैं.......

मोटी आवाज़ --- लड़के जब किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो उन की आवाज़ भारी भरकम हो जाती है। इस से उन्हें बड़ी परेशानी सी होती है.....एम्बेरेसमैंट महसूस करते हैं, यह इस लेख में लिखा गया है तो मैं लिख रहा हूं लेकिन मेरे को नहीं लगता कि इस देश में यह कोई मुद्दा भी है। मैंने नहीं नोटिस किया कि आवाज़ के इस बदलाव से बच्चे परेशान होते हैं, पता नहीं मेरे अनुभव में यह बात आई ऩहीं।

गीले सपने (वेट ड्रीम्ज़).....यह अकसर होता है कि बच्चा सुबह उठता है तो उस का पायजामा और चद्दर भीगे हुए हों। यह पेशाब की वजह से नहीं बल्कि गीले सपने या रात में वीर्य के स्खलन की वजह से होता है, जो रात में सोते सोते ही हो जाता है। इस का मतलब यह नहीं कि लड़के को कोई कामुक सपना आ रहा था। लेकिन ऐसा हो भी सकता है (यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है)

लड़के के बापू को अपने बेटे को इस बार के बारे में बता चाहिए, उस के साथ इस विषय पर बात करनी चाहिए और उसी इस बात के लिए पूरी तरह से आश्वस्त करें कि आप को पता है कि इस के ऊपर उस (लड़के) का कोई नियंत्रण नही है..और वह इसे रोक नहीं पायेगा। बड़े होने की प्रक्रिया का यह वेट-ड्रीम्ज़ भी एक हिस्सा ही है।

अपने आप ही शिश्न का खड़ा हो जाना (involuntary erection)-- किशोरावस्था में प्रवेश करने पर लड़कों का पिनिस बिना उसे टच किए या बिना किसी प्रकार के कामुक विचारों के.. अपने आप ही खड़ा हो जाता है..अगर ऐसा कभी किसी पब्लिक जगह पर जैसे कि स्कूल आदि में हो जाता है तो लड़के को एम्बेरेसिंग लग सकता है। अगर आप का लड़का उम्र की इस अवस्था में है तो उसे बता कर रखें कि इस तरह से पिनिस का अपने आप उस की उम्र में उठ जाना भी एक बिल्कुल सामान्य सी बात है और यह केवल इस बात का संकेत है कि उस का शरीर मैच्यओर हो रहा है। यह सभी लड़कों में इस उम्र में हो सकता है......और जैसे जैसे समय बीतेगा इन की फ्रिक्वेंसी कम हो जायेगी। जी हां, मेरे साथ भी उस उम्र के दौरान ऐसा कईं बार हुआ था।

बस इतना सा कहना ही उस किशोर के मन पर जादू सा काम करेगा, भारी भरकम बोझ उतर जाएगा उस के सिर से कि पता नहीं यह सब क्यों होता है।

स्तन बड़े होना -- इन वर्षों में कईं बार किशोरों के स्तन थोड़े बढ़ जाते हैं और वे इस के बारे में चिंतित रहने लगते हैं लेकिन इस के लिए कुछ करना नहीं होता, अपने आप ही यह सब कुछ ठीक हो जाता है। इस और पता नहीं कभी मैंने तो ध्यान दिया ही नहीं।

एक अंडकोष दूसरे से बड़ा होना......एक अंडकोष का दूसरे से बड़े होना सामान्य भी है और एक आम सी बात भी है।

आप ने देखा कि किस तरह के कुछ छोटी छोटी दिखने वाली बातें किशोरों के मन का चैन छीन लेती हैं उस समय के दौरान जब उन का पढ़ाई लिखाई में मन लगा होना चाहिए। लेकिन अफसोस अभी तक हम लोग यही निर्णय नहीं कर पा रहे कि किशोरों को सैक्स ऐजुकेशन दी जानी कि नहीं, कितनी दी जानी चाहिए........आप भी ज़रा यह सोचिए कि अगर किशोरावस्था में बच्चों को ये सब बातें बता दी जाएंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा।

मुझे मेरे मित्र बार बार कहते रहते हैं कि यार तुम इंगलिश में लिखा करो.........लेकिन अकसर इंगलिश में लिखने की इच्छा इसलिए नहीं होती क्योंकि इतनी सुंदर जानकारी हर विषय पर नेट पर इंगलिश में उपलब्ध है लेकिन हिंदी पढ़ने वालों की ज़रूरत कैसे पूरी हो, उन्हें क्यों विश्वसनीय जानकारी से वंचित रखा जाए, बस यही जज्बा है जो मेरे से हिंदी में कुछ भी लिखवाता रहता है।

प्रमाण --->>   Concerns boys have about puberty   और साथ में मेरे व्यक्तिगत अनुभव का आधार. अगर अभी भी किशोरों तक यह सब जानकारी न पहुंचे तो मैं क्या कहूं ?

Generally we take for granted that our adolescent boys know all this. No, they don't know the truth explained above. They just know distorted facts dished out to them by vested interests and peer-groups. Take care--- Stay informed, stay care-free!!

बी बी सी हिंदी की साइट कैसी है?

मुझे याद है जब मैं आठ-दस वर्ष का था, हमारे पास एक बाबा आदम के जमाने का मर्फी रेडियो हुआ करता था जिस का सब से बड़ा फैन मेरा बड़ा भाई था, उसे फिल्मी गीत सुनना बड़ा अच्छा लगता था, सारे प्रयोग कर लिया करता था चंद गीतों को सुनने के लिए -- ऊपर छत पर ऐरियर जैसी तार किसी पत्थर के नीचे रख कर आना, आवाज़ में गड़गड़ होने पर उस को हल्के से दो-तीन हाथ भी लगा देता था.......अरे यार, जो स्विच को ऑन करने के बाद वह एक-डेढ़ मिनट का इंतज़ार हुआ करता था कि अब आई आवाज़, अब आई.......वह रोमांच भुलाए नहीं भूलता।

और हां, खबरें भी तो हम उसी पर सुना करते थे और जिस दिन देश में कोई घटना हो जाती तो पड़ोसी-वड़ोसी यह कह कर बड़ी धौंस जमाया करते थे कि अभी अभी बीबीसी पर खबर सुनी है। मुझे धुंधला धुंधला सा याद आ रहा है कि १९७१ के भारत-पाक की सही, सटीक जानकारी के लिए हम लोग किस तरह से बीबीसी रेडियो के कैच होने का इंतज़ार किया करते थे ...शायद अकसर यह रात ही के समय कैच हो जाता था, उस रेडियो के साथ पूरी मशक्कत करने पर.....उस ऐरियर वाली तार के जुगाड़ को कईं बार इधर उधर हिला कर। लेकिन यह क्या, दो मिनट सुन गया, फिर आवाज़ गायब........कोई बात, हम इस के अभ्यस्त हो चुके थे। बहुत सारा सब्र... कोई अफरातफरी नहीं।

उस के पंद्रह बीच वर्ष बाद जब फिलिप्स का वर्ड-रिसीवर लिया.....तब बीबीएस को सुनना हमारे एजेंडा से बाहर हो चुका था. बस १९९० के दशक के बीच तक हम केवल रेडियो पर एफएम ही सुनने के दीवाने हो चुके थे।

हां, अब मैं बात शुरू करूंगा बीबीसी हिंदी वेबसाइट की....... इसे आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं और आनंद ले सकते हैं। इस का यूआरएल यह है ...  www.bbc.co.uk/hindi 

इस वेबसाइट से मेरा तारूफ़ पांच वर्ष पहले हुआ.. मैं इग्न्यू दिल्ली में विदेशी विशेषज्ञों सें इंटरनेट लेखन की बारीकियां  एक दो महीने के लिए सीखने गया था। वहां पर हमें अकसर बीबीसी साइट (इंगलिश) का उदाहरण लेकर कईं बातें समझाई जाती थीं, इसलिए धीरे धीरे इस साइट में मेरी भी रूचि बढ़ने लगी।

कैसे लिखना है, कितना लिखना है, लेखन को कैसे प्रेजैंट करना है, यह बीबीसी की अंग्रेजी और हिंदी वेबसाइट से बढ़िया कोई सिखा ही नहीं पाएगा, यह मैंने बहुत अच्छे से समझ लिया है।

जब भी इस वेबसाइट पर गया हूं अच्छा लगता है। एक बहुत बड़ी खूबी यह कि जो कुछ भी लिखा जाता है एकदम विश्वसनीय....यह इन की प्रशंसनीय परंपरा है।

एक बात और मजे की यह है कि इस पर हिंदी पत्रकारिता का कखग सीखने के लिए भी रिसोर्स है..... हिंदी पत्रकारिता पर हिंदी बीबीसी की वेबसाइट

एक बार और...जो मैंने नोटिस की कुछ बहुत ही लोकप्रिय हिंदी की वेबसाइटों के बारे में कि कुछ अजीब किस्म की चीज़ें अपनी साइटों पर डालने लगे हैं...सैक्स के फार्मूले, सैक्स पावर बढ़ाने के नुक्ते, बेड-रूम के सीन.......यानि कुछ भी ऐसा अटपटा खूब डालने लगते हैं ...शायद वे लोग यह नहीं समझते कि इस काम के लिए उन्हें इतनी मेहनत करने की ज़रूरत है ही नहीं, वैसे ही नेट इस्तेमाल करने वाले इस तरह की सामग्री से एक क्लिक की दूरी पर हैं, आप का काम है केवल हिंदी में साफ़-सुथरी उपलब्ध करवाना .......और इस महत्वपूर्ण वैश्विक सामाजिक दायित्व के काम के लिए मैं बीबीसी की हिंदी वेबसाइट को पूरे अंक देना चाहता हूं.....एक दम साफ सुथरी, ज्ञान-वर्धक, विश्वसनीय और बिना किसी अश्लील कंटैंट के ......इसलिए भी यह इतनी लोकप्रिय साइट है।

मैंने पिछले दिनों इस के रेडियो के भी कईं प्रोग्राम सुने और फिर उस के बारे में प्रोड्यूसर को फीड बैक भी भेजी.....मैंने भगवंत मान की इंटरव्यू सुनी थी और उसे इतने अच्छे तरीके से पेश किया गया था कि मुझे तुरंत प्रोग्राम प्रस्तुत करने वाले श्री जोशी जी को बधाई भिजवाने पर विवश होना पड़ा।

कुछ बातें इस वेबसाइट पर देख कर थोड़ा अजीब सा लगता है ......... सब से ज़्यादा अहम् बात तो यह है कि पता नहीं क्या कारण है, मेरी समझ से परे है, ये बीबीसी हिंदी वाले लोग (इंगलिश वाले भी) अपने पाठकों से सीधा संवाद क्यों नहीं स्थापित करना चाहते, इस के कारण मेरी समझ में नहीं आ रहे।

 इंटरएक्शन और फीडबैक तो वेब 2.0 की रूह है यार और वही गायब हो तो ज़ायका कुछ खराब सा लगता है, कुछ नहीं बहुत खराब लगता है....ठीक है यार आप लोगों ने अपनी स्टोरी परोस दी, दर्शकों-पाठकों तक पहुंच भी गई, लेिकन उस की भी तो सुन लो, उस की प्रतिक्रिया कौन लेगा।

आप इन की किसी भी न्यूज़-रिपोर्ट के साथ नीचे टिप्पणी देने का प्रावधान पाएंगे ही नहीं, आज के वक्त में यह बात बड़ी अजीब सी लगती है, फीडबैक से क्यों भागना, बोलने दो जो भी कुछ दिल खोल कर कहना चाहता है, उस से दोनों का ही फायदा होगा, वेबसाइट का भी और सभी यूजर्स का भी। अपने दिल की बात लिखने से ज़्यादा क्या कर लेगा फीडबैक देने वाला.......आप चाहे तो मानिए, वरना विवश कौन कर रहा है। लेकिन इस तरह की पारदर्शिता से लोग उस वेबसाइट से सीधा जुड़ पाते हैं --एक रिश्ता सा कायम होने लगता है।

एक बात और मैंने नोटिस की.....वह शायद मुझे ही ऐसा लगा हो कि बीबीसी हिंदी का फांट इतना अच्छा नही है, अगर कोई बढ़िया सा और थोड़ा बड़ा फांट हो तो इस साइट को चार चांद लग जाएंगे।

बहरहाल, यह वेबसाइट हिंदी वेबसाइटों की लिस्ट में से मेरी मनपसंद वेबसाइटों पर बहुत ऊपर आती है.......क्योंकि यहां फीडबैक के प्रावधान के बिना शेष सब कुछ बढ़िया ही बढ़िया है............लेकिन आज के दौर में फीडबैक का अभाव अपने आप में एक उचित बात नहीं लगती, वह ठीक है, उन की अपनी पालिसी होगी। हां, संपर्क के लिए एक फार्म तो भरने के लिए कहते हैं........लेकिन यार यह नेट पर जा कर फार्म वार्म भरने का काम बड़ा पकाने वाला काम लगता है....कौन पड़े इन फार्मों के चक्कर वक्कर में........ दो एक बार भर भी दिया.....लेकिन ये लोग कभी उस का जवाब नहीं देते......कम से कम मैंने यह पाया कि  ..they dont revert back!

फिर भी यह साइट रोज़ाना देखे जाने लायक तो है ही......... strong recommendation!

लीजिए इसी साइट पर रेडियो के एक प्रोग्राम को सुनिए.....बेहतरीन प्रस्तुति ..... (नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करिए) ..

http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2014/08/140807_sikh_us_video_akd.shtml