वाट्सएपिया बधाईयां
आती थीं खुशियां कभी
ख़तों पे सवार हो कर दीवाली की बधाईयां….
पहुंचा तो दिया करती थीं ख़ुशियां
साढ़े तीन रुपए की फिक्स रेट बधाई की तार भी लेकिन
तार वाले की पुकार सुन कर थोड़ा डर जाते थे उन दिनों…
बधाई वाली तार का फूल-पत्ती वाला रंग बिरंगा लिफाफा देख लेकिन
चल पड़ती थी अटकी सॉंस फ़ौरन….
फिर पड़ गया ग्रीटिंग्स कार्ड का रुल
रुपए एक में रेहड़ीयां पर लगे थोक में बिकने
लोग खरीद लेते थोक में, भेजते परचून में लेकिन
रख लेते संभाल अगले साल के वास्ते….
कार्ड जब जाते अपने ठिकाने पहुंच, फिर शुरू होता मुआयना उनका,
किस कंपनी का है, कितने का है, टिकट कितने की लगी है …
कार्ड अगर होते बैंक, इंश्योरेंस, या बिजनेस की मशहूरी वाले,
पता लगते ही उन की रेटिंग हो जाती एकदम डाउन ….
फुटपाथ से खरीदे, चालू किस्म के कार्ड भी
भिजवाने वाले की हैसियत की खोल देते पोल …
वक्त ही था ऐसा ….आर्ची़ज़ है तो बात है, वरना बेकार है …
(आशिक लोग इस बाबत रहते थे एकदम सचेत…नो कंप्रोमाईज़ विद स्टाईल…
इन्हीं पट्ठों की वजह से आर्चीज़ स्टोर चल क्या निकले, लगे भागने…)
जवाब में कार्ड भिजवाना या थैंक-यू कार्ड भिजवाना…
यह देखा बहुत ही कम…
ठानते बहुत बार लोग दिखे लेकिन
कि अगली बार हम भिजवाएँगे कार्ड उधर से आने से पहले…
लेकिन अगली बार न आई कभी…
क्योंकि अगली बार तक तो ..
ज़िंदगी में लैंड कर गया लैंड-लाइन…
आईएसडी, एसटीडी, लोकल दरों पर
बूथ पर लगे मीटर पर नज़रें गढ़ाए गढ़ाए
आने जाने लगीं दनादन बधाईयां…
फेसबुक, मोबाइल ने यह काम कर दिया बेहद आसां
बात करने की इच्छा है तो ठीक, बधाई चिपका कर वरना,
फेसबुक वॉल पर निपट गया यह काम….
इंस्टा भी तो है, फेंको स्टोरी बधाई वाली
इक पंथ कईं काज हुए सम्पन्न…
वकेशन लोकेशन दिखा दी, बधाई भी हो गई सेंड,
और जो खून बढ़ गया फील गुड फील से….
वह बोनस अलग…..यह तो होना ही था….
वाट्सएप पर अब बधाईयों के लगे हैं अंबार मगर
न रस है, न स्वाद…
शादी-ब्याह में मिलने वाले कपड़ों की तरह,
यहां वहां से आए बेतहाशा, बहुत बार पढ़े बिना….
फारवर्ड किए हुए बधाई संदेश….
सच कहूं तो इस पल पल के अपडेट्स..
हर पल ऑनलाईन टंगे रहने की फ़िराक ने
हाल ऐसा कर रखा है बेहाल,
अब उंगली के एक पोर को थोड़ी ज़ेहमत दे कर
मैसेज भिजवाने की इच्छा भी हुई खत्म….
चलिए, खुद नहीं भेजते एक बात ….
दूसरों से पहुंचे बधाई संदेश भी
नहीं लगते हैं अब किसी भारी बोझ से कम,
यह सोच कर कि निजात पाने के लिए इस भार से…
वही घिसे-पिटे मकैनिकल से भेजने होंगे जवाब ..
बिना किसी फील और इमोशन वाले…
सुबह उठ कर इसलिए हर दिन
सच्चे दिल से यह अरदास ही कर दें एक बार .. …
“सरबत दा भला….”
सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुख भाग्भवेत्।
प्रवीण चोपड़ा
23.10.25