पहले तो इस बात का यकीं ही नहीं हुआ..ऐसे लगा जैसे मुझे पढ़ने में कुछ गलती लगी हो..लेिकन फिर से पढ़ा आज की टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर छपी इस पहली खबर को ..दो साल की बच्ची ने एक लाल मिर्ची को खा लिया और इसी चक्कर में उस की जान चली गई....बहुत दुःखद, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण।
छोटे बच्चों के लिए हम लोग अपने स्विच बोर्ड चाइल्ड-प्रूफ कर लेते हैं.. मैंने कुछ रिपोर्टज़ देखीं कि छोटे बच्चों ने गेम्स में डलने वाले छोटे गोलाकार सेलों को निगल लिया...पेरेन्ट्स को आगाह तो करते ही हैं कि जिन रिमोट्स में भी छोटे गोलाकार सेल पड़ते हैं, उन्हें बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाए, दवाईयों के बारे में तो कहते ही हैं...हां, दवाईयों से एक बात याद आई, कल से नईं बात पता चली पेपर से कि जिन दवाईयों की स्ट्रिप्स पर लाल लाइन लगी हो, उन्हें आप को बिना डाक्टर की सलाह के लेना ही नहीं है... उत्सुकता हुई, घर मे कुछ दवाईयां थीं, देखा उन पर लाल लाइन लगी हुई थी, इस बात का हमें आगे प्रचार करना चाहिए।
आगे से लाल लकीर का आप भी ध्यान रखिएगा.. इस संदेश को आगे भी पहुंचाइएगा |
हां, तो दिल्ली में रहने वाली इस दो वर्ष की बच्ची के साथ यह हुआ कि इसने गलती से एक लाल मिर्ची को काट लिया....ज्यादा से ज्यादा होता, मुंह जलता या आंखों से पानी आता. थोड़ी शक्कर खाने से ठीक हो जाता, लेकिन नहीं, इस बच्ची की तो सांस लेने की प्रक्रिया ही फेल हो गई ...चिकित्सीय मदद के बावजूद वह चल बसी।
आल इंडिया मैडीकल इंस्टीच्यूट दिल्ली में इस बच्ची के शव की जांच (आटोप्सी) से पाया गया कि उस की सांस की नली में पेट के द्रव्य ( gastric juices) चले गये... जिस की वजह से उस की सांस लेने की प्रक्रिया बंद हो गई। दरअसल इस बच्ची को मिर्ची खाने के बाद उल्टीयां आने लगीं और बस, उसी दौरान उल्टी का कुछ हिस्सा सांस की नली में पहुंच गया...डाक्टरों की कोशिश के बावजूद बच्ची २४ घंटों में ही चल बसी।
यह वाकया तो कुछ महीने पहले का है, लेकिन यह मैडीको-लीगल जर्नल में अभी छपा है ..
ध्यान रखिए भई आप जिन के छोटे बच्चे हैं, मेरे जैसे बड़ों को भी यह समझना बहुत ज़रूरी है कि खाने के वक्त बातें नहीं करनी होतीं, चुपचाप खाना खाइए...वरना यह खतरा उस दौरान भी बना ही रहता है...कितनी बार तो हमारे साथ ही होता रहता है...कुछ बात बार बार दोहराने लायक होती हैं, शायद हमारे मन में बस जाएं....जैसे जहां शोच, वहां शोचालय के बारे में विद्या बालन की डांट-डपट हम सुन सुन कर कुछ सुधरने लगे हैं..काकी, क्या करूं अब लोग तो सुनते नहीं, मक्खियां को ही कहना पड़ेगा कि इन के खाने पे मत बैठो।
दूसरी खबर जो पहले ही पन्ने पर छपी है और परसों से टीवी पर बीसियों बार देख-सुन-समझ चुके हैं कि संघ वाले अब खाकी निक्कर की जगह भूरे रंग की पतलून पहना करेंगे....बहुत अच्छा ...मुझे समझ यह नहीं आया कि इस में ऐसी क्या बात है कि जो कि पेपर के पहले पन्ने पर इसे छापा गया और वह भी तस्वीर के साथ... तस्वीरों के बारे में भी पेपर वालों की दाद देनी पड़ेगी, पता नहीं क्या क्या इन्होंने अपने आर्काइव्ज़ ने सहेज रखा है, बच के रहना चाहिए..
पहले पन्ने पर एक खबर यह भी िदखी कि रेलवे अब कंबल को प्रत्येक इस्तेमाल के बाद साफ़ किया करेगी....लिखा है उस में किस तरह से नये डिजाईन के कंबल आएंगे...अभी कुछ गाड़ियों में ही इसे शुरू किया जायेगा... इसी चक्कर में मुझे आज सुबह आठ-दस साल पहली लिखी एक ब्लॉग-पोस्ट का ध्यान आ गया.. उसे आप के लिए ढूंढ ही लिया..
अब इस कंबल के बारे में भी सोचना पड़ेगा क्या! (इस पर क्लिक कर के इसे देख सकते हैं, अगर चाहें तो)..
मेरे विचार में अभी के लिए इतना ही काफ़ी है, मैं भी उठूं ...कुछ काम धंधे की फिक्र करूं....ये बातें तो चलती ही रहेंगी,..बिना सिर-पैर की, आगे से आगे... फिर मिलते हैं ...शाम में कुछ गप्पबाजी करेंगे... till then, take care... may you stay away from Monday Blues!