शत प्रतिशत सच...बस, नाम बदल रहा हूं...सचिन..आयु १८ वर्ष...अभी छः महीने पहले कालेज में गया है..
पिछले चार महीनों से परेशान था सचिन ..मुंह खुल नहीं रहा था, दर्द थी, गर्म कुछ भी नहीं खा पा रहा था...तीखा, मिर्च-मसाले वाला खाना तो बिल्कुल ही नहीं खा पाता था, बहुत ज़्यादा लगता है..
यहां वहां से दवाई ले कर खाता रहा...जो किसी भी चिकित्सक की समझ में आया...वे देते रहे, लेिकन कुछ दिन पहले जब इस ने जांच करवाने के लिए कहा तो उस चिकित्सक ने इस के रक्त की जांच करवा दी..
इसे तब लगा कि किसी और चिकित्सक को दिखाना चाहिए...किसी ने बताया होगा कि दंत-चिकित्सक को दिखाओ...इसलिए उस दिन यह मेरे पास आया था और इसने ही मुझे यह सारी बातें बताईं।
जब कोई भी व्यक्ति मुंह के पूरा न खुलने की बात कहता है ..विशेषकर जब कोई युवावस्था या किशोरावस्था में हो ...तो यही गुटखे-पानमसाले से मुंह के अंदर होने वाली विनाश-लीला का ध्यान आ जाता है....या कईं बार इस १८-२०-२२ वर्ष के आयुवर्ग में अकल की दाड़ की वजह से भी कुछ दिक्कत आ जाती है...वह एक अलग विषय है, उस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।
हां, तो इस युवक के मुंह के अंदर झांकने से ही पता चलता है जैसा कि आप नीचे तस्वीरों में देखेंगे ..कि मुंह के अंदर कुछ गड़बड़ तो है जो कि एक १८ साल के नौजवान के लिए खतरे की घंटी तो है ही बेशक।
सचिन बता रहा था कि वह लखनऊ से दूर एक गांव में लगभग ४० किलोमीटर की दूरी पर रहता है..हाई स्कूल तक वह इस तरह का कुछ भी नहीं खाता था...११वीं कक्षा में जब नये कालेज में गया तो एक दोस्त ने पानमसाले की थोड़ी थोड़ी आदत डाल दी...बस, फिर थोड़े समय में सचिन भी खाने लगा....कह रहा था कि केवल दो पैकेट पानमसाले के ही खाता था लगभग दो साल तक...बहुत कम बार ऐसा हुआ कि तीसरा पैकेट खाया हो...और यह पानमसाले का सेवन कालेज में ही चलता था अधिकतर...घर में खाने की हिम्मत नहीं थी, मां को पता चल जाता तो वह पिटाई कर देती थी और पिता जी के सामने तो इसे खाने-चबाने की हिम्मत ही नहीं होती थी..
उसने आगे बताना जारी रखा कि लगभग पिछले एक वर्ष से उसने पानमसाले के साथ साथ थोड़ा ज़र्दा भी लेना शुरू कर दिया था...बिल्कुल थोड़ा लेकिन ...पर उसे यह इत्मीनान था कि यह ज़र्दा उसने कभी अपने पैसे से नहीं खरीदा....मुझे लग रहा था कि यार, ज़हर अपने पैसे से खरीदा जाए या दूसरे के पैसे से ...क्या फ़र्क पड़ता है, ज़हर ने तो अपना काम करना ही है। लेकिन मैंने उसे कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा।
उसने मुंह में अपनी अंगुली डाल कर मुझे बताया कि अभी तो उस के मुंह में दो अंगुलियां भी नहीं जा पातीं, पहले तो पांच अंगुलियां भी चली जाती थीं....और जब चार पांच महीने पहले उसे लगा कि उस से तो पानी के बताशे (गोलगप्पे) भी नहीं खाए जा रहे, तब से वह यहां वहां से दवाई ले रहा है, लेकिन किसी ने उसे यह नहीं बताया कि यह पानमसाले-गुटखे की वजह से हो रहा है।
मुंह के कैंसर की पूर्वावस्था..(Oral Pre-Cancerous Lesion)- इस युवक में जिस के मुंह की कुछ तस्वीरें भी मैं यहां लगा रहा हूं ..इस के मुंह की जो अवस्था है उसे ओरल-सब-म्यूकस फाईब्रोसिस नाम से पुकारते हैं....(Oral Submucous Fibrosis)...और इसे Oral Pre-Cancerous Lesion कहा जाता है...और इस बीमारी के जितने भी लक्षण हैं, इस १८ वर्षीय युवक में वे सभी मौजूद हैं...
इस का मुंह कम खुलने लगा है...और अगर आप इस के तालू के पिछली तरफ़ देखेंगे तो पाएंगे कि वह सारी जगह सफेद पड़ी हुई है...यहां तक कि इस के गाल के अंदर वाले हिस्से की चमड़ी भी सफेद हो चुकी है, और होंठ के अंदर वाले हिस्से का भी यही हाल है, आप नीचे इस के मुंह की तस्वीरों में यह देख सकते हैं जिन में वह अपने हाथ से गाल एवं होंठ के अंदरूनी हिस्सों को दिखा रहा है...एक बात जो आप देख नहीं पाएंगे, वह यह है कि जहां जहां पर भी मुंह के अंदर की चमड़ी सफेद पड़ी हुई है ...उस की फील भी बिल्कुल सूखे चमड़े (dry leather) जैसी हो गई है।
अगर यह युवक पानमसाले-गुटखे का यूं ही सेवन करता रहा तो आने वाले समय में कुछ भी हो सकता है ...मैंने उसे १५-२० मिनट में अच्छे से पक्का कर दिया है ...लगता तो नहीं कि अब पानमसाले-गुटखे को कभी यह इस्तेमाल करेगा।
मैंने ऊपर लिखा है कि अगर इस की यह आदत चालू रही तो कुछ भी हो सकता है ...कम से कम जो हो सकता है वह यह है कि इस का मुंह धीरे धीरे खुलना और कम होता जायेगा और फिर कुछ समय बाद ऐसी भी परिस्थिति आ सकती है कि मुंह लगभग न के बराबर ही खुले और उस अवस्था में मरीज़ कुछ भी खाने-पीने के लिए भी तरस जाता है...बहुत से मरीज़ इस अवस्था में भी मेरे पास आ चुके हैं.....हो तो जाता है इलाज..विशेषज्ञ कर सकते हैं एक जटिल से आप्रेशन के द्वारा मुंह थोड़ा खोल दिया जाता है ताकि खाने पीने की परेशानी का तो हल हो पाए। लेकिन विभिन्न कारणों की वजह से मैंने देखा है कि लोग इस तरह का इलाज भी करवा नहीं पाते.....बस, ऐसे तैसे कट जाती है...सेहत निरंतर नीचे गिरती रहती है ....और कुछ सालों के बाद इस तरह के मुंह में कैंसर के विकसित होने का अंदेशा तो बना ही रहता है...एक मरीज़ आया था जो बता रहा था कि उसे ओरल-सब-म्यूक्स फाईब्रोसिस की तकलीफ थी कईं सालों से ...मुंह इतना कम खुलता था कि एक बिस्कुट भी मुश्किल से अंदर जा पाए....पिछले साल जब वह दिखाने आया मेरे पास तो मुंह के अंदर कैंसर बना हुआ था...करवाया गया है उस का पूरा इलाज.
हां तो उस १८ वर्षीय युवक की तरफ़ लौटते हैं...इस युवक के इलाज की सब से पहली सीढ़ी तो यही है कि वह तुरंत ही कल से नहीं, आज अभी से पानमसाले-गुटखे से तौबा कर ले.....और फिर इस का इलाज के लिए इस के मुंह में कुछ इंजैक्शन दिए जाएंगे...कईं महीनों तक इलाज चलेगा....खाने की दवाईयां भी होंगी और मुंह के अंदर इस सफेद हुई चमड़ी पर लगाने की कुछ दवाईयां भी दी जाएंगी...जो भी हो, इलाज का असर इतनी जल्दी नहीं दिखता... लंबा समय लग जाता है...लेकिन अगर यह इस तरह की चीज़ें खानी-चबानी छोड़ देगा ...तो कम से कम इतना तो है कि बीमारी आगे फैलने से तो रूक जायेगी....चिकित्सकों की निगरानी में रहेगा ...नियमित दिखाने आता रहेगा तो इस के अंदर की अवस्था पर नज़र बनी रहेगी ... अगर कुछ भी अनियमित सा विकसित होता दिखेगा तो समुचित उपचार कर दिया जायेगा।
खाने पीना इस तरह के युवक का अच्छा पौष्टिक होना चाहिए...इस से मतलब बस घी-मक्खन से ही नहीं, बल्कि ताजी, हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल, साग, सलाद इसे अच्छे से खाना होगा, जंक फूड से, मिर्ची-विर्ची से दूर रहना होगा....और दवाई खाने वाली, मुंह के अंदर लगाने वाली और मुंह में लगाए जाने वाले इंजेक्शन नियमित लगवाने होंगे........वैसे डाक्टरों के लिए लिख देना कितना आसान है ...लेकिन जिसे यह सब करना-करवाना पड़ता है उस के लिए कितनी आफ़त की बात है!
सरकार इतने विज्ञापन देती रहती है इस तरह के खतरों के बारे में ...पान मसाले, गुटखे के पैकटों पर भी लिखा रहता है लेकिन फिर भी इस का चलन बढ़ता ही जा रहा है.....मुझे अच्छे से याद है शायद १९९० के आसपास तक हमें ये केस बहुत कम दिखा करते थे.....लेकिन जैसे ही यह पानमसाले-गुटखे का चलन शुरू हुआ है ...तबाही मची हुई है... ऐसा नहीं है कि पान, बीड़ी-सिगरेट, खैनी, डली, तंबाकू-चूना मिश्रण किसी तरह से कम आतंकी हैं, वे भी कहर बरपा ही रहे हैं.....अलग अलग तरह से ..मुंह में, गले में, फेफड़े में, दिल-दिमाग में......कहीं भी जहां मौका मिलता है। अब क्या बार बार इन पर लिखें, आज के दौर में सब लोग इतना तो जानते ही हैं कि जिस शैतान को वे मुंह में चबाने जा रहे हैं उस के पैकेट पर क्या लिखा हुआ है !
लगता है हो गया, अब इस पोस्ट को यहीं बंद करूं.....लेिकन एक बात है कि कहीं भी आप किसी को भी यह सब करते देखें तो उसे एक मिनट के लिए समझाने की कोशिश तो कीजिए..कोई पता नहीं कब कौन सी बात किसी की ज़िंदगी बदल दे....मैं तो ऐसा ही करता हूं....पैट्रोल पंप वाले युवकों को, रेहड़ी वालों को, रिक्शा वाले को .......जहां भी मौका मिलता है ...मैं तो दो मिनट रूक जाता हूं....मैं जानता हूं कि मेरा योगदान उस छोटी चिड़िया की तरह ही है जो एक जंगल की आग बुझाने के लिए पास ही के एक तालाब से चोंच में पानी भर भर के लाती है ....बस, इसीलिए कि उस का नाम आग बुझाने वालों में दर्ज हो जाएगा। शायद मैं भी यही सोचता हूं।
पिछले महीने मैं चांदनी चौंक दिल्ली की एक दुकान से बाहर आया तो मैंने देखा कि एक साईकिल रिक्शा वाला अपने दांतों के ऊपर कुछ घिस रहा था...मेरे से रहा नहीं गया...मैंने उस से बातचीत की ...वह पिसा हुआ तंबाकू का मंजन घिस रहा था...उस से बातचीत करते हुए मुझे उस के मुंह की हालत कुछ ठीक नहीं लग रही थी..मैंने उसे प्रेरित किया तो इसे छोड़ कर अपने मुंह का इलाज करवाए...पास ही मौलाना आज़ाद डैंटल कालेज है, मुफ्त इलाज होता है....मुझे पता है कि यह सब कहना आसान है , दिखा आयेगा मुफ्त ...लेकिन महंगी दवाईयां, अच्छा पौष्टिक खान पान.....बहुत मुश्किल होता जा रहा है आज के दौर में ......उस ने भी वही बात कही कि अपना काम-धंधा छोड़ कर कहां मैं कहीं इस के इलाज के लिए जा सकता हूं!
तो दोस्तो, ज़मीनी हालात ये हैं...मैंने इस तरह के विषय पर पिछले आठ-दस सालों में बीसियों लोगों की आप-बीती शेयर की है, अगर आप भी इन सब चीज़ों का शौक रखते हैं, तो आज ही से थूक दीजिए...हम लोग तो कह ही सकते है, यह ढिंढोरा पीटने की ड्यूटी हमें मिली है, कृपया इसे अन्यथा न लें, चिकित्सकों के पास तो यही बातें हैं......After all, Choice is very much yours.......Tobacco or Health! ....Please Choose Health!
आज की पोस्ट कुछ लंबी हो गई दिखती है ... लिखते लिखते सिर भारी हो गया है...अब मैं इस गीत को सुनूंगा तो मेरा सिर हल्का हो जायेगा.... आप भी सुनिए और इस युवक के लिए दुआ कीजिए की वह यह गुटखा-पान मसाला छोड़ पाए...
पिछले चार महीनों से परेशान था सचिन ..मुंह खुल नहीं रहा था, दर्द थी, गर्म कुछ भी नहीं खा पा रहा था...तीखा, मिर्च-मसाले वाला खाना तो बिल्कुल ही नहीं खा पाता था, बहुत ज़्यादा लगता है..
यहां वहां से दवाई ले कर खाता रहा...जो किसी भी चिकित्सक की समझ में आया...वे देते रहे, लेिकन कुछ दिन पहले जब इस ने जांच करवाने के लिए कहा तो उस चिकित्सक ने इस के रक्त की जांच करवा दी..
इसे तब लगा कि किसी और चिकित्सक को दिखाना चाहिए...किसी ने बताया होगा कि दंत-चिकित्सक को दिखाओ...इसलिए उस दिन यह मेरे पास आया था और इसने ही मुझे यह सारी बातें बताईं।
जब कोई भी व्यक्ति मुंह के पूरा न खुलने की बात कहता है ..विशेषकर जब कोई युवावस्था या किशोरावस्था में हो ...तो यही गुटखे-पानमसाले से मुंह के अंदर होने वाली विनाश-लीला का ध्यान आ जाता है....या कईं बार इस १८-२०-२२ वर्ष के आयुवर्ग में अकल की दाड़ की वजह से भी कुछ दिक्कत आ जाती है...वह एक अलग विषय है, उस पर फिर कभी चर्चा करेंगे।
हां, तो इस युवक के मुंह के अंदर झांकने से ही पता चलता है जैसा कि आप नीचे तस्वीरों में देखेंगे ..कि मुंह के अंदर कुछ गड़बड़ तो है जो कि एक १८ साल के नौजवान के लिए खतरे की घंटी तो है ही बेशक।
सचिन बता रहा था कि वह लखनऊ से दूर एक गांव में लगभग ४० किलोमीटर की दूरी पर रहता है..हाई स्कूल तक वह इस तरह का कुछ भी नहीं खाता था...११वीं कक्षा में जब नये कालेज में गया तो एक दोस्त ने पानमसाले की थोड़ी थोड़ी आदत डाल दी...बस, फिर थोड़े समय में सचिन भी खाने लगा....कह रहा था कि केवल दो पैकेट पानमसाले के ही खाता था लगभग दो साल तक...बहुत कम बार ऐसा हुआ कि तीसरा पैकेट खाया हो...और यह पानमसाले का सेवन कालेज में ही चलता था अधिकतर...घर में खाने की हिम्मत नहीं थी, मां को पता चल जाता तो वह पिटाई कर देती थी और पिता जी के सामने तो इसे खाने-चबाने की हिम्मत ही नहीं होती थी..
उसने आगे बताना जारी रखा कि लगभग पिछले एक वर्ष से उसने पानमसाले के साथ साथ थोड़ा ज़र्दा भी लेना शुरू कर दिया था...बिल्कुल थोड़ा लेकिन ...पर उसे यह इत्मीनान था कि यह ज़र्दा उसने कभी अपने पैसे से नहीं खरीदा....मुझे लग रहा था कि यार, ज़हर अपने पैसे से खरीदा जाए या दूसरे के पैसे से ...क्या फ़र्क पड़ता है, ज़हर ने तो अपना काम करना ही है। लेकिन मैंने उसे कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा।
उसने मुंह में अपनी अंगुली डाल कर मुझे बताया कि अभी तो उस के मुंह में दो अंगुलियां भी नहीं जा पातीं, पहले तो पांच अंगुलियां भी चली जाती थीं....और जब चार पांच महीने पहले उसे लगा कि उस से तो पानी के बताशे (गोलगप्पे) भी नहीं खाए जा रहे, तब से वह यहां वहां से दवाई ले रहा है, लेकिन किसी ने उसे यह नहीं बताया कि यह पानमसाले-गुटखे की वजह से हो रहा है।
मुंह के कैंसर की पूर्वावस्था..(Oral Pre-Cancerous Lesion)- इस युवक में जिस के मुंह की कुछ तस्वीरें भी मैं यहां लगा रहा हूं ..इस के मुंह की जो अवस्था है उसे ओरल-सब-म्यूकस फाईब्रोसिस नाम से पुकारते हैं....(Oral Submucous Fibrosis)...और इसे Oral Pre-Cancerous Lesion कहा जाता है...और इस बीमारी के जितने भी लक्षण हैं, इस १८ वर्षीय युवक में वे सभी मौजूद हैं...
पूरी कोशिश करने के बावजूद अब युवक मुंह के अंदर दो अंगुली नहीं डाल पाता |
अगर यह युवक पानमसाले-गुटखे का यूं ही सेवन करता रहा तो आने वाले समय में कुछ भी हो सकता है ...मैंने उसे १५-२० मिनट में अच्छे से पक्का कर दिया है ...लगता तो नहीं कि अब पानमसाले-गुटखे को कभी यह इस्तेमाल करेगा।
मैंने ऊपर लिखा है कि अगर इस की यह आदत चालू रही तो कुछ भी हो सकता है ...कम से कम जो हो सकता है वह यह है कि इस का मुंह धीरे धीरे खुलना और कम होता जायेगा और फिर कुछ समय बाद ऐसी भी परिस्थिति आ सकती है कि मुंह लगभग न के बराबर ही खुले और उस अवस्था में मरीज़ कुछ भी खाने-पीने के लिए भी तरस जाता है...बहुत से मरीज़ इस अवस्था में भी मेरे पास आ चुके हैं.....हो तो जाता है इलाज..विशेषज्ञ कर सकते हैं एक जटिल से आप्रेशन के द्वारा मुंह थोड़ा खोल दिया जाता है ताकि खाने पीने की परेशानी का तो हल हो पाए। लेकिन विभिन्न कारणों की वजह से मैंने देखा है कि लोग इस तरह का इलाज भी करवा नहीं पाते.....बस, ऐसे तैसे कट जाती है...सेहत निरंतर नीचे गिरती रहती है ....और कुछ सालों के बाद इस तरह के मुंह में कैंसर के विकसित होने का अंदेशा तो बना ही रहता है...एक मरीज़ आया था जो बता रहा था कि उसे ओरल-सब-म्यूक्स फाईब्रोसिस की तकलीफ थी कईं सालों से ...मुंह इतना कम खुलता था कि एक बिस्कुट भी मुश्किल से अंदर जा पाए....पिछले साल जब वह दिखाने आया मेरे पास तो मुंह के अंदर कैंसर बना हुआ था...करवाया गया है उस का पूरा इलाज.
हां तो उस १८ वर्षीय युवक की तरफ़ लौटते हैं...इस युवक के इलाज की सब से पहली सीढ़ी तो यही है कि वह तुरंत ही कल से नहीं, आज अभी से पानमसाले-गुटखे से तौबा कर ले.....और फिर इस का इलाज के लिए इस के मुंह में कुछ इंजैक्शन दिए जाएंगे...कईं महीनों तक इलाज चलेगा....खाने की दवाईयां भी होंगी और मुंह के अंदर इस सफेद हुई चमड़ी पर लगाने की कुछ दवाईयां भी दी जाएंगी...जो भी हो, इलाज का असर इतनी जल्दी नहीं दिखता... लंबा समय लग जाता है...लेकिन अगर यह इस तरह की चीज़ें खानी-चबानी छोड़ देगा ...तो कम से कम इतना तो है कि बीमारी आगे फैलने से तो रूक जायेगी....चिकित्सकों की निगरानी में रहेगा ...नियमित दिखाने आता रहेगा तो इस के अंदर की अवस्था पर नज़र बनी रहेगी ... अगर कुछ भी अनियमित सा विकसित होता दिखेगा तो समुचित उपचार कर दिया जायेगा।
खाने पीना इस तरह के युवक का अच्छा पौष्टिक होना चाहिए...इस से मतलब बस घी-मक्खन से ही नहीं, बल्कि ताजी, हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल, साग, सलाद इसे अच्छे से खाना होगा, जंक फूड से, मिर्ची-विर्ची से दूर रहना होगा....और दवाई खाने वाली, मुंह के अंदर लगाने वाली और मुंह में लगाए जाने वाले इंजेक्शन नियमित लगवाने होंगे........वैसे डाक्टरों के लिए लिख देना कितना आसान है ...लेकिन जिसे यह सब करना-करवाना पड़ता है उस के लिए कितनी आफ़त की बात है!
सरकार इतने विज्ञापन देती रहती है इस तरह के खतरों के बारे में ...पान मसाले, गुटखे के पैकटों पर भी लिखा रहता है लेकिन फिर भी इस का चलन बढ़ता ही जा रहा है.....मुझे अच्छे से याद है शायद १९९० के आसपास तक हमें ये केस बहुत कम दिखा करते थे.....लेकिन जैसे ही यह पानमसाले-गुटखे का चलन शुरू हुआ है ...तबाही मची हुई है... ऐसा नहीं है कि पान, बीड़ी-सिगरेट, खैनी, डली, तंबाकू-चूना मिश्रण किसी तरह से कम आतंकी हैं, वे भी कहर बरपा ही रहे हैं.....अलग अलग तरह से ..मुंह में, गले में, फेफड़े में, दिल-दिमाग में......कहीं भी जहां मौका मिलता है। अब क्या बार बार इन पर लिखें, आज के दौर में सब लोग इतना तो जानते ही हैं कि जिस शैतान को वे मुंह में चबाने जा रहे हैं उस के पैकेट पर क्या लिखा हुआ है !
लगता है हो गया, अब इस पोस्ट को यहीं बंद करूं.....लेिकन एक बात है कि कहीं भी आप किसी को भी यह सब करते देखें तो उसे एक मिनट के लिए समझाने की कोशिश तो कीजिए..कोई पता नहीं कब कौन सी बात किसी की ज़िंदगी बदल दे....मैं तो ऐसा ही करता हूं....पैट्रोल पंप वाले युवकों को, रेहड़ी वालों को, रिक्शा वाले को .......जहां भी मौका मिलता है ...मैं तो दो मिनट रूक जाता हूं....मैं जानता हूं कि मेरा योगदान उस छोटी चिड़िया की तरह ही है जो एक जंगल की आग बुझाने के लिए पास ही के एक तालाब से चोंच में पानी भर भर के लाती है ....बस, इसीलिए कि उस का नाम आग बुझाने वालों में दर्ज हो जाएगा। शायद मैं भी यही सोचता हूं।
पिछले महीने मैं चांदनी चौंक दिल्ली की एक दुकान से बाहर आया तो मैंने देखा कि एक साईकिल रिक्शा वाला अपने दांतों के ऊपर कुछ घिस रहा था...मेरे से रहा नहीं गया...मैंने उस से बातचीत की ...वह पिसा हुआ तंबाकू का मंजन घिस रहा था...उस से बातचीत करते हुए मुझे उस के मुंह की हालत कुछ ठीक नहीं लग रही थी..मैंने उसे प्रेरित किया तो इसे छोड़ कर अपने मुंह का इलाज करवाए...पास ही मौलाना आज़ाद डैंटल कालेज है, मुफ्त इलाज होता है....मुझे पता है कि यह सब कहना आसान है , दिखा आयेगा मुफ्त ...लेकिन महंगी दवाईयां, अच्छा पौष्टिक खान पान.....बहुत मुश्किल होता जा रहा है आज के दौर में ......उस ने भी वही बात कही कि अपना काम-धंधा छोड़ कर कहां मैं कहीं इस के इलाज के लिए जा सकता हूं!
तो दोस्तो, ज़मीनी हालात ये हैं...मैंने इस तरह के विषय पर पिछले आठ-दस सालों में बीसियों लोगों की आप-बीती शेयर की है, अगर आप भी इन सब चीज़ों का शौक रखते हैं, तो आज ही से थूक दीजिए...हम लोग तो कह ही सकते है, यह ढिंढोरा पीटने की ड्यूटी हमें मिली है, कृपया इसे अन्यथा न लें, चिकित्सकों के पास तो यही बातें हैं......After all, Choice is very much yours.......Tobacco or Health! ....Please Choose Health!
आज की पोस्ट कुछ लंबी हो गई दिखती है ... लिखते लिखते सिर भारी हो गया है...अब मैं इस गीत को सुनूंगा तो मेरा सिर हल्का हो जायेगा.... आप भी सुनिए और इस युवक के लिए दुआ कीजिए की वह यह गुटखा-पान मसाला छोड़ पाए...